Post Viewership from Post Date to 01-Dec-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2911 225 3136

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

संस्कृत व्याकरण जनक पाणिनि से कैसे प्रभावित हुए,पश्चिमी संरचनात्मक भाषाविज्ञान के जनक,सौसर

लखनऊ

 31-10-2023 09:23 AM
ध्वनि 2- भाषायें

शतरंज के खेल को जीतना है तो, आपके लिए यह समझना जरूरी है कि, कौन सा मोहरा कौन सी चाल चलता है या जीतने के लिए इन मोहरों का आपस में तालमेल कैसे बिठाया जाए? साथ ही शतरंज का खेल जीतने के लिए आपको इसके सभी जरूरी नियमों को भी समझना होगा! संरचनात्मक भाषाविज्ञान (Structural Linguistics), भी भाषा के साथ शतरंज खेलने जैसा ही है। किसी भाषा के विभिन्न शब्द, शतरंज की बिसात पर मोहरों की तरह होते हैं। प्रत्येक शब्द की अपनी भूमिका होती है, और इन्हीं शब्दों के तालमेल से किसी भी वाक्य का एक सार्थक अर्थ निकलकर आता है। संरचनात्मक भाषाविज्ञान, किसी भी भाषा का अध्ययन करने का एक ऐसा तरीका है, जिसके तहत भाषा प्रणाली के विभिन्न हिस्सों के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। संरचनात्मक भाषा विज्ञान का विकास, स्विस भाषाविद्, लाक्षणिक और दार्शनिक (Swiss Linguist) फर्डिनेंड डी सौसर (Ferdinand De Saussure) द्वारा, 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में किया गया था। सौसर ने तर्क दिया कि “भाषा केवल व्यक्तिगत अर्थ वाले शब्दों का संग्रह नहीं है, बल्कि परस्पर आपस में जुड़े संकेतों की एक प्रणाली है।” भाषा के किसी चिह्न का सही अर्थ उस भाषा प्रणाली में मौजूद अन्य चिह्नों के साथ उसके संबंध से निर्धारित होता है। अपने इस विचार की बदौलत सौसर को व्यापक रूप से 20वीं सदी के भाषाविज्ञान और सांकेतिकता के प्राथमिक संस्थापकों में से एक माना जाता है।
सौसर के काम ने भाषा विज्ञान, दर्शन, मनोविश्लेषण, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र सहित मानव विज्ञान की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रभावित किया है। सौसर का जन्म 1857 में जिनेवा में हेनरी लुईस फ्रैडरिक डी सौसर (Henri Louis Frédéric De Saussure), नामक एक खनिज विज्ञानी, कीट विज्ञानी और वर्गीकरण विज्ञानी के घर में हुआ था। उन्होंने कम उम्र से ही अपनी बौद्धिक प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी। जिनेवा विश्वविद्यालय में लैटिन, प्राचीन ग्रीक और संस्कृत का अध्ययन करने के बाद, उन्होंने 1876 में जर्मनी के लीपज़िग विश्वविद्यालय (University Of Leipzig) से स्नातक की पढ़ाई की। 21 साल की उम्र में, सौसर ने इंडो-यूरोपीय भाषाओं में आदिम स्वर प्रणाली पर एक पुस्तक भी प्रकाशित की। सौसर ने भाषाविज्ञान में कई अन्य महत्वपूर्ण अवधारणाओं (जैसे संकेत (Sign), संकेतक (Signifier) और संकेतित (Signified) को भी पेश किया। यहां पर संकेतक से तात्पर्य, संकेत के भौतिक रूप से है, जैसे कि प्रयोग में आया हुआ है कोई शब्द या इशारा, और संकेतित, वह अवधारणा है, जिसे संकेत संदर्भित करता है । सौसर के विचारों का 20वीं सदी में भाषाविज्ञान के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके काम का आज भी व्यापक रूप से अध्ययन, और बहस होती है।
सौसर के भाषा सिद्धांत के अनुसार, “किसी शब्द का अर्थ उसके अंतर्निहित गुणों से निर्धारित नहीं होता है, बल्कि शब्दों की प्रणाली में अन्य शब्दों के साथ उसके संबंध से निर्धारित होता है।” दूसरे शब्दों में, किसी शब्द का अर्थ भाषा के अन्य शब्दों से उसके अंतर से परिभाषित होता है। उदाहरण के लिए, "कुत्ता" शब्द का अपने आप में कोई अर्थ नहीं है, बल्कि यह अंग्रेजी भाषा के अन्य शब्दों, जैसे "बिल्ली", "घोड़ा" और "पेड़" से भिन्न है, और इन सभी जीव जंतुओं को संदर्भित करने वाले शब्दों या संकेतों के समूह का हिस्सा है। विश्व स्तर पर सबसे अधिक उद्धृत भाषाविदों में से एक होने के बावजूद, सौसर ने अपने जीवनकाल में बहुत कम लेख प्रकाशित किये। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक इकोले प्रैटिक डेस हाउट्स एट्यूड्स (École Pratique Des Hautes Etudes) में पढ़ाया और उन्हें नाइट (Knight) ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर (Chevalier De La Légion D'honneur (Knight Of The Legion Of Honour) की उपाधी प्राप्त हुई। 1892 में, वह जिनेवा में प्रोफेसर का पद लेने के लिए स्विट्जरलैंड लौट आये। उन्होंने अपने शेष जीवन में जिनेवा विश्वविद्यालय में संस्कृत और इंडो-यूरोपीय भाषा पर कई व्याख्यान दिए।
सौसर को संरचनात्मक भाषाविज्ञान का जनक माना जाता है। वह अपने जीवन में लंबे समय तक संस्कृत सहित कुछ इंडो-यूरोपीय भाषाओं के प्रोफेसर भी रहे थे। हालांकि सौसर के सामान्य भाषाविज्ञान पाठ्यक्रम का प्रकाशित संस्करण उनके द्वारा नहीं लिखा गया था, इसलिए हमें संस्कृत और इंडो-यूरोपीय भाषाविज्ञान पर उनके प्रकाशित कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विद्वान मानते हैं कि सौसर , भारतीय भाषाविद् पाणिनि से बहुत अधिक प्रभावित थे, जिन्हें विश्व का पहला व्याकरण कर्ता माना जाता है।
संस्कृत के साथ सौसर के अस्पष्ट संबंध के बावजूद, वह यह नहीं मानते थे कि “सभी शब्दों का कुछ मौलिक अर्थ होता है।” लेकिन हाल के वर्षों में, भारतीय विद्वानों ने बताया है कि सौसर ने संस्कृत भाषाविज्ञान के कुछ मूलभूत पहलुओं की गलत व्याख्या की है, जिसके कारण संरचनात्मक भाषाविज्ञान के पश्चिमी सिद्धांत में कुछ खामियाँ हो सकती हैं। सौसर, संस्कृत व्याकरण को सही तरीके से समझ भी नहीं पाए थे, और यह दावा कर दिया कि वैदिक काल में संस्कृत में संबंध कारक निरपेक्ष का उपयोग नहीं किया गया था। हालांकि उनका यह कथन पूरी तरह से गलत है, क्योंकि संबंध कारक निरपेक्ष का उपयोग भारत के कई वैदिक ग्रंथों में किया गया है। लेकिन इस एक गलती ने भाषा विज्ञान में समस्याएँ पैदा कर दी हैं, और इस विचार को जन्म दिया है कि धार्मिक ग्रंथों को रूपक कथाओं तक सीमित किया जा सकता है। हमें इसमें सुधार करने की आवश्यकता है क्योंकि यह भारतीय वैदिक ग्रंथों की गरिमा को प्रभावित कर सकता है!

संदर्भ
https://tinyurl.com/5d2vddc9
https://tinyurl.com/4kctd9ez
https://tinyurl.com/4s5eds72
https://tinyurl.com/bdd3v39z

चित्र संदर्भ
1. संस्कृत व्याकरण जनक पाणिनि और पश्चिमी संरचनात्मक भाषाविज्ञान के जनक,सौसर को संदर्भित करता एक चित्रण (PICRYL, wikimedia)
2. एसीसी. डी सॉसर के भाषण सर्किट को दर्शाता एक चित्रण (Openclipart)
3. संकेत=संकेतक/संकेतित लेखन को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. पाणिनि के व्याकरण ग्रंथ की 17वीं शताब्दी की बर्च छाल पांडुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्व-निर्मित कॉर्पस में चार वाक्य संरचनाओं के प्रतिशत को दर्शाता एक चित्रण (researchgate)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नदियों के संरक्षण में, लखनऊ का इतिहास गौरवपूर्ण लेकिन वर्तमान लज्जापूर्ण है
    नदियाँ

     18-09-2024 09:20 AM


  • कई रंगों और बनावटों के फूल खिल सकते हैं एक ही पौधे पर
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:18 AM


  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM


  • खनिजों के वर्गीकरण में सबसे प्रचलित है डाना खनिज विज्ञान प्रणाली
    खनिज

     09-09-2024 09:45 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id