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"गुण" एक संस्कृत शब्द है जिसका अनुवाद "विशिष्टता या विशेषता" के रूप में किया जा सकता है। “योग दर्शन में गुण को ऊर्जा की प्राथमिक विशेषता” माना जाता है, जिनकी उत्पत्ति प्रकृति से हुई है। इसे ब्रह्मांड में सभी पदार्थों का मूल आधार माना गया है। मूल रूप से गुणों की संख्या तीन होती है, और इन्हें क्रमशः तमस (अंधकार और अराजकता), रजस (गतिविधि और जुनून), और सत्व (अस्तित्व और सद्भाव) के क्रम में पहचाना जाता है। गुण, हिंदू और सिख दर्शन दोनों में ही एक प्रमुख अवधारणा है, और इसका उपयोग मनुष्य के व्यक्तित्व, जन्मजात प्रकृति और मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को संदर्भित करने और मानव व्यवहार का अध्ययन करने में भी किया जाता है। गुण हमारी मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और ऊर्जावान स्थितियों को प्रभावित कर सकते हैं।
1. तमस: तमस को अंधकार, जड़ता और अज्ञान का गुण माना गया है। यह तीन गुणों में सबसे प्रबल होता है और हमें आलस्य, उदासीनता और निराशा की स्थिति में ले जाता है। तमस हमारी क्रोध, भय और लालच जैसी नकारात्मक भावनाओं से भी जुड़ा है। इसलिए जब हम सुस्त, आलसी या प्रेरणा हीन महसूस करते हैं, तो उस समय हम संभवतः तामसिक अवस्था में होते हैं। तमस हमें आवेगपूर्ण निर्णय लेने और अस्वास्थ्यकर व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।
2. रजस: रजस को जुनून, गतिविधि और परिवर्तन का गुण माना गया है। यह हमारी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं के लिए प्रेरक शक्ति के रूप में काम करता है। रजस हमें काम करने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए प्रेरित करता है। हालाँकि, बहुत अधिक रजस से बेचैनी, चिंता और आक्रामकता बढ़ सकती है। इसलिए जब हम तनावग्रस्त या चिंतित महसूस करते हैं, तो हम संभवतः राजसिक अवस्था में होते हैं।
3. सत्व: सत्त्व को सद्भाव, संतुलन और ज्ञान का गुण माना गया है। यह तीन गुणों में सबसे हल्का होता है और प्रेम, करुणा और आनंद जैसी सकारात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ माना जाता है। सत्त्व गुण हमारे मन और अंतर्ज्ञान की स्पष्टता को भी बढ़ावा देता है। जब हमारे मन और शरीर पर सत्व गुण हावी होता है, तो हम अधिक केंद्रित और गहरी शांति का अनुभव करते हैं। इसके हावी होने पर हमारे बुद्धिमानी पूर्ण निर्णय लेने और स्वस्थ व्यवहार अपनाने की भी संभावना अधिक होती है। इसलिए जब हम शांतिपूर्ण और केंद्रित महसूस कर रहे होते हैं, तो हम संभवतः सात्विक अवस्था में होते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि हम अपनी पसंद और कार्यों के माध्यम से गुणों को संतुलित भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अधिक सात्विक अवस्था विकसित करने के लिए, हम योग, ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं और स्वस्थ आहार खा सकते हैं। बहुत अधिक राजसिक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए, हम ऐसी गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं जो शांत और स्थिर हों। तमस को कम करने के लिए, हम नियमित व्यायाम कर सकते हैं और अधिक खाने और अधिक या बहुत कम सोने से बच सकते हैं। हमारे समग्र कल्याण के लिए इन गुणों को संतुलित करना महत्वपूर्ण माना गया है। जब हम संतुलन में होते हैं, तो हम खुश, स्वस्थ और शांतिपूर्ण महसूस करते हैं।
गुणों का उपयोग वास्तविकता की प्रकृति को समझने के लिए भी किया जाता है। सांख्य दर्शन में, गुणों को ब्रह्मांड के तीन मूलभूत निर्माण खंड माना गया है। ये हमारी चेतना की विभिन्न अवस्थाओं (सत्व: जाग्रत अवस्था से, रजस: स्वप्न अवस्था से, और तमस: गहरी नींद की अवस्था) से भी जुड़े हुए हैं। गुणों का उपयोग आत्म-परिवर्तन के लिए एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है। गुणों को समझकर हम हमारे भीतर अधिक सात्विक गुणों को विकसित करना शुरू कर सकते हैं और अपने राजसिक और तामसिक गुणों को कम कर सकते हैं। इससे अधिक सामंजस्यपूर्ण और संतुलित जीवन जिया जा सकता है।
गुण की अवधारणा भारतीय साहित्य में एक प्रमुख प्राचीन अवधारणा मानी जाती है। ये गुण अलग-अलग अनुपात में प्रकृति में मौजूद सभी चीज़ों और प्राणियों में मौजूद हैं। गुणों का उपयोग भारतीय दर्शन में नैतिकता और ब्रह्मांड विज्ञान को समझाने के लिए भी किया जाता है। नैतिकता के संदर्भ में, गुणों को हमारे मूल्यों और कार्यों को प्रभावित करने वाले घटक के रूप में देखा जाता है। ब्रह्मांड विज्ञान में, गुणों को ब्रह्मांड के मूलभूत संचालन सिद्धांतों के रूप में देखा जाता है। गुण एक जटिल और सूक्ष्म अवधारणा है और सदियों से इसकी कई अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की गई है। हालाँकि, यह भारतीय चिंतन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा बनी हुई है और आज भी इसका अध्ययन और बहस अभी भी जारी है।
क्या आप जानते थे कि "योग करने का प्राथमिक लक्ष्य ही, हमारे मन और शरीर में सत्व गुण विकसित करना होता है"?
इन सभी के अलावा सत्त्व को बढ़ाने के लिए रजस और तमस दोनों को कम कम करने का प्रयास करें, और इसके लिए सात्विक भोजन करें। सात्विक भोजन में साबुत अनाज और फलियाँ और ताजे फल और सब्जियां शामिल होते हैं, जो जमीन के ऊपर उगते हैं। तमस को कम करने के लिए तामसिक भोजन, अधिक सोना, अधिक खाना और निष्क्रियता जैसी स्थितियों से बचें। तामसिक खाद्य पदार्थों में भारी मांस और ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं जो खराब, रासायनिक उपचारित, संसाधित या परिष्कृत होते हैं। रजस को कम करने के लिए राजसिक भोजन, बहुत अधिक व्यायाम, अधिक काम, तेज़ संगीत, अत्यधिक सोचना और अत्यधिक भौतिक वस्तुओं का सेवन करने से बचें। राजसिक खाद्य पदार्थों में तले हुए खाद्य पदार्थ, मसालेदार भोजन और उत्तेजक पदार्थ शामिल हैं।
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