Post Viewership from Post Date to 30-Nov-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1891 178 2069

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

तमस, रजस और सत्व: मात्र इन तीन गुणों की समझ, आपके जीवन में कैसे बदलाव ला सकती है?

लखनऊ

 30-10-2023 09:51 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
लंबे समय से, पश्चिमी दर्शन के अधिक प्रचार और भारतीय मनोविज्ञान एवं दर्शन के दमन के कारण, आज हमारे पूर्वजों द्वारा अर्जित किया गया बहुमूल्य ज्ञान, या तो विलुप्त हो चुका है या फिर केवल पांडुलिपियों और पुस्तकों तक ही सीमित रह गया है। लेकिन एक बात आप भी गौर करेंगे कि जैसे-जैसे हमारा समाज गंभीर मानसिक संकट की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे प्राचीन समय में लिखी गई यही प्राचीन भारतीय पांडुलिपियाँ और इनमें निहित ज्ञान अधिक उपयोगी साबित हो रहा है। मनुष्य के तीन गुणों की अवधारणा भी हमारे पूर्वजों द्वारा दिए गए ऐसे ही बहुमूल्य उपहारों में से है, जो हमें हमारी समस्याओं को समझकर इन्हें जड़ से मिटाने का मार्ग प्रदर्शित करती है। "गुण" एक संस्कृत शब्द है जिसका अनुवाद "विशिष्टता या विशेषता" के रूप में किया जा सकता है। “योग दर्शन में गुण को ऊर्जा की प्राथमिक विशेषता” माना जाता है, जिनकी उत्पत्ति प्रकृति से हुई है। इसे ब्रह्मांड में सभी पदार्थों का मूल आधार माना गया है। मूल रूप से गुणों की संख्या तीन होती है, और इन्हें क्रमशः तमस (अंधकार और अराजकता), रजस (गतिविधि और जुनून), और सत्व (अस्तित्व और सद्भाव) के क्रम में पहचाना जाता है। गुण, हिंदू और सिख दर्शन दोनों में ही एक प्रमुख अवधारणा है, और इसका उपयोग मनुष्य के व्यक्तित्व, जन्मजात प्रकृति और मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को संदर्भित करने और मानव व्यवहार का अध्ययन करने में भी किया जाता है। गुण हमारी मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और ऊर्जावान स्थितियों को प्रभावित कर सकते हैं।
चलिए इनकी विशेषताओं को समझते हैं: 1. तमस: तमस को अंधकार, जड़ता और अज्ञान का गुण माना गया है। यह तीन गुणों में सबसे प्रबल होता है और हमें आलस्य, उदासीनता और निराशा की स्थिति में ले जाता है। तमस हमारी क्रोध, भय और लालच जैसी नकारात्मक भावनाओं से भी जुड़ा है। इसलिए जब हम सुस्त, आलसी या प्रेरणा हीन महसूस करते हैं, तो उस समय हम संभवतः तामसिक अवस्था में होते हैं। तमस हमें आवेगपूर्ण निर्णय लेने और अस्वास्थ्यकर व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। 2. रजस: रजस को जुनून, गतिविधि और परिवर्तन का गुण माना गया है। यह हमारी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं के लिए प्रेरक शक्ति के रूप में काम करता है। रजस हमें काम करने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए प्रेरित करता है। हालाँकि, बहुत अधिक रजस से बेचैनी, चिंता और आक्रामकता बढ़ सकती है। इसलिए जब हम तनावग्रस्त या चिंतित महसूस करते हैं, तो हम संभवतः राजसिक अवस्था में होते हैं। 3. सत्व: सत्त्व को सद्भाव, संतुलन और ज्ञान का गुण माना गया है। यह तीन गुणों में सबसे हल्का होता है और प्रेम, करुणा और आनंद जैसी सकारात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ माना जाता है। सत्त्व गुण हमारे मन और अंतर्ज्ञान की स्पष्टता को भी बढ़ावा देता है। जब हमारे मन और शरीर पर सत्व गुण हावी होता है, तो हम अधिक केंद्रित और गहरी शांति का अनुभव करते हैं। इसके हावी होने पर हमारे बुद्धिमानी पूर्ण निर्णय लेने और स्वस्थ व्यवहार अपनाने की भी संभावना अधिक होती है। इसलिए जब हम शांतिपूर्ण और केंद्रित महसूस कर रहे होते हैं, तो हम संभवतः सात्विक अवस्था में होते हैं।
ये तीनों गुण सभी प्राणियों और वस्तुओं में सदैव उपस्थित रहते हैं, लेकिन इनकी सापेक्ष मात्राएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। गुणों में भी लगातार उतार-चढ़ाव हो रहा होता है। उदाहरण के लिए, आपने भी यह अनुभव किया होगा कि रात की अच्छी नींद के बाद सुबह हम अधिक सात्विक महसूस कर सकते हैं, लेकिन दोपहर में अधिक राजसिक महसूस करने लगते हैं। हमारे सभी 3 गुणों को हमारे विचार, कार्य और जीवनशैली विकल्प, हमेशा प्रभावित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए, स्वस्थ आहार खाना, पर्याप्त नींद लेना और योग और ध्यान का अभ्यास हमारे भीतर सत्त्व गुण को बढ़ाने में मदद कर सकता है। दूसरी ओर, अस्वास्थ्यकर भोजन का अत्यधिक सेवन, देर तक जागना और हिंसक फिल्में देखने से हमारे भीतर रजस और तमस गुण प्रबल हो सकता है। दिलचस्प बात यह है कि हम अपनी पसंद और कार्यों के माध्यम से गुणों को संतुलित भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अधिक सात्विक अवस्था विकसित करने के लिए, हम योग, ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं और स्वस्थ आहार खा सकते हैं। बहुत अधिक राजसिक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए, हम ऐसी गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं जो शांत और स्थिर हों। तमस को कम करने के लिए, हम नियमित व्यायाम कर सकते हैं और अधिक खाने और अधिक या बहुत कम सोने से बच सकते हैं। हमारे समग्र कल्याण के लिए इन गुणों को संतुलित करना महत्वपूर्ण माना गया है। जब हम संतुलन में होते हैं, तो हम खुश, स्वस्थ और शांतिपूर्ण महसूस करते हैं। गुणों का उपयोग वास्तविकता की प्रकृति को समझने के लिए भी किया जाता है। सांख्य दर्शन में, गुणों को ब्रह्मांड के तीन मूलभूत निर्माण खंड माना गया है। ये हमारी चेतना की विभिन्न अवस्थाओं (सत्व: जाग्रत अवस्था से, रजस: स्वप्न अवस्था से, और तमस: गहरी नींद की अवस्था) से भी जुड़े हुए हैं। गुणों का उपयोग आत्म-परिवर्तन के लिए एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है। गुणों को समझकर हम हमारे भीतर अधिक सात्विक गुणों को विकसित करना शुरू कर सकते हैं और अपने राजसिक और तामसिक गुणों को कम कर सकते हैं। इससे अधिक सामंजस्यपूर्ण और संतुलित जीवन जिया जा सकता है। गुण की अवधारणा भारतीय साहित्य में एक प्रमुख प्राचीन अवधारणा मानी जाती है। ये गुण अलग-अलग अनुपात में प्रकृति में मौजूद सभी चीज़ों और प्राणियों में मौजूद हैं। गुणों का उपयोग भारतीय दर्शन में नैतिकता और ब्रह्मांड विज्ञान को समझाने के लिए भी किया जाता है। नैतिकता के संदर्भ में, गुणों को हमारे मूल्यों और कार्यों को प्रभावित करने वाले घटक के रूप में देखा जाता है। ब्रह्मांड विज्ञान में, गुणों को ब्रह्मांड के मूलभूत संचालन सिद्धांतों के रूप में देखा जाता है। गुण एक जटिल और सूक्ष्म अवधारणा है और सदियों से इसकी कई अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की गई है। हालाँकि, यह भारतीय चिंतन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा बनी हुई है और आज भी इसका अध्ययन और बहस अभी भी जारी है। क्या आप जानते थे कि "योग करने का प्राथमिक लक्ष्य ही, हमारे मन और शरीर में सत्व गुण विकसित करना होता है"?
सत्व गुण विभिन्न प्रथाओं के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे:
1. आसन (योग मुद्रा): आसन शरीर को मज़बूत और शुद्ध करने में मदद करता है, जो सत्व गुण के लिए आधार बनाता है।
2. प्राणायाम (श्वास पर नियंत्रण): प्राणायाम करने से हमारा मन शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है।
3.ध्यान (ध्यान): ध्यान हमारे भीतर जागरूकता और शांत मन की अवस्था प्राप्त करने में मदद करता है।
4. यम और नियम (नैतिक दिशा निर्देश): यम और नियम हमारे भीतर करुणा, ईमानदारी और संतुष्टि जैसे सकारात्मक गुणों को विकसित करने में मदद करते हैं।
अपने भीतर सत्व गुण विकसित करने के लिए ऊपर दिए गए सभी अभ्यासों के साथ-साथ निम्नलिखित दिनचर्या का भी अवश्य पालन करें:
1. रात को अच्छी और गहरी नींद लें।
2. स्वस्थ और सात्विक भोजन करें।
3. अधिकांशतः सकारात्मक रहने का प्रयास करें। इन सभी के अलावा सत्त्व को बढ़ाने के लिए रजस और तमस दोनों को कम कम करने का प्रयास करें, और इसके लिए सात्विक भोजन करें। सात्विक भोजन में साबुत अनाज और फलियाँ और ताजे फल और सब्जियां शामिल होते हैं, जो जमीन के ऊपर उगते हैं। तमस को कम करने के लिए तामसिक भोजन, अधिक सोना, अधिक खाना और निष्क्रियता जैसी स्थितियों से बचें। तामसिक खाद्य पदार्थों में भारी मांस और ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं जो खराब, रासायनिक उपचारित, संसाधित या परिष्कृत होते हैं। रजस को कम करने के लिए राजसिक भोजन, बहुत अधिक व्यायाम, अधिक काम, तेज़ संगीत, अत्यधिक सोचना और अत्यधिक भौतिक वस्तुओं का सेवन करने से बचें। राजसिक खाद्य पदार्थों में तले हुए खाद्य पदार्थ, मसालेदार भोजन और उत्तेजक पदार्थ शामिल हैं।
चलते-चलते आपको यह भी बताते चलें कि इनमें से सभी गुणों को आसक्ति का मूल कारण माना गया है, जो हमें अहंकार से बांधते हैं। हालांकि इससे भी ऊपर उठने का उपाय स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने हमें अपने गीता उद्घोष में दिया है, जो श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 14 के श्लोक 20 में कुछ इस प्रकार वर्णित है:
गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् |
जन्ममृत्युजरादु:खैर्विमुक्तोऽमृतमश्रुते || 20||
भावार्थ: शरीर से जुड़ी भौतिक प्रकृति के तीन गुणों को पार करके, कोई भी मनुष्य, मृत्यु, बुढ़ापे और दुख से मुक्त हो जाता है और अमरता प्राप्त करता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/49vwtuju
https://tinyurl.com/bdffkwua
https://tinyurl.com/ydjwtbc5
https://tinyurl.com/4bbhkfaa

चित्र संदर्भ
1. ध्यान करती एक लड़की को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
2. योग साधक को दर्शाता एक चित्रण (spiritualcuriosity)
3. क्रोध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. तनाव को दर्शाता एक चित्रण (PxHere)
5. प्रसन्न युवती को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
6. क्रोधित आँखों को दर्शाता एक चित्रण (pixahive)
7. योग करती युवती को दर्शाता एक चित्रण (pixahive)
8. एक भोजन की थाल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नदियों के संरक्षण में, लखनऊ का इतिहास गौरवपूर्ण लेकिन वर्तमान लज्जापूर्ण है
    नदियाँ

     18-09-2024 09:20 AM


  • कई रंगों और बनावटों के फूल खिल सकते हैं एक ही पौधे पर
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:18 AM


  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM


  • खनिजों के वर्गीकरण में सबसे प्रचलित है डाना खनिज विज्ञान प्रणाली
    खनिज

     09-09-2024 09:45 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id