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पादप जीनोम अनुसंधान से, विलुप्त हो चुके पौधों को उनकी खुशबू के साथ वापस लाया जा सकता है!

लखनऊ

 27-10-2023 09:35 AM
कोशिका के आधार पर

आपने यह अक्सर देखा होगा कि जब किसी परिवार का कोई एकलौता बेटा विवाह नहीं करने का विकल्प चुनता है, तो उसके परिवार के लोग अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए कितने चिंतित हो जाते हैं। इस एक फैसले से उस परिवार की पूरी सांस्कृतिक विरासत ख़त्म हो सकती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ठीक कुछ ऐसा ही हाल हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का भी होता है, जब मानवीय या प्राकृतिक कारणों से किसी पौधे की एक पूरी प्रजाति ही नष्ट हो जाती है। जब भी किसी एक पौधे की प्रजाति नष्ट होती है, तो इसका नुकसान केवल उस पौधे तक सीमित नहीं रहता है, बल्कि इससे पूरे पारिस्थितिकी और कई अन्य प्रजातियों पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। उस प्रजाति की विलुप्ति के साथ ही उस पौधे को सींचने में लगी प्रकृति की हजारों वर्षों की मेहनत भी मिट्टी में मिल जाती है।
पिछले 250 वर्षों के दौरान दुनिया भर में पौधों की लगभग 600 प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं। हैरानी की बात यह है कि पौधों के विलुप्त होने की यह दर, प्राकृतिक दर से 500 गुना तेज़ है। मानव गतिविधियों को इसका प्रमुख कारण माना जा रहा है। पर्यावास की हानि, जलवायु परिवर्तन और पौधों की आक्रामक प्रजातियां भी लाभकारी पौधों की प्रजातियों पर गंभीर असर डाल रही हैं। हालांकि राहत की खबर यह है कि तकनीकी और जीव वैज्ञानिक विकास के साथ ही, प्राचीन और विलुप्त हो चुके पौधों की प्रजातियों को पुनर्जीवित करने की संभावनाएं भी बन रही हैं। क्या आपने साल 1993 की रिलीज हुई फिल्म जुरासिक पार्क (Jurassic Park) देखी है जिसमें, वैज्ञानिक लाखों वर्षों से संरक्षित रहे मच्छरों से निकाले गए डीएनए (DNA) का उपयोग करके विलुप्त हो चुके डायनासोर को फिर से वापस ले आते हैं। हालांकि वास्तविक जीवन में डायनासोर के बारे में हम स्पष्ट तौर पर नहीं कह सकते लेकिन आज की दुनियां में पादप जीनोम अनुसंधान (Plant Genome Research) की बदौलत, पौधों की विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को पुनर्जीवित करने का विचार अब हकीकत बनते हुए नजर आ रहा है। हाल ही में एनवाईयू अबू धाबी (NYU Abu Dhabi) के सेंटर फॉर जीनोमिक्स एंड सिस्टम बायोलॉजी (Center For Genomics And Systems Biology) के शोधकर्ताओं ने "पुनरुत्थान जीनोमिक्स (Resurrection Genomics.)" नामक तकनीक का उपयोग करके 2,000 साल से अधिक पहले विलुप्त हो चुकी खजूर की किस्मों के जीनोम (Genome) को सफलतापूर्वक अनुक्रमित किया।
इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब शोधकर्ताओं ने प्राचीन अंकुरित बीजों से पौधों के जीनोम को अनुक्रमित किया है। अनुक्रमण के लिए शोधकर्ताओं ने डायनासोर के डीएनए (DNA) के बजाय, खजूर के बीजों का उपयोग किया, जिन्हें आधुनिक इजराइल के पुरातात्विक स्थलों में खोजा गया था। कुछ बीजों में प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने और दशकों, यहां तक ​​कि सदियों के बाद भी अंकुरित होने की आश्चर्यजनक क्षमता होती है। प्राचीन पौधे का डीएनए भी अक्सर क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिस कारण उनका अनुक्रम करना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, जब प्राचीन बीज अंकुरित होते हैं, तो इनसे डीएनए की प्रतिकृति बनाई जाती है, जिससे अनुक्रम करना आसान हो जाता है। शोधकर्ताओं ने विभिन्न प्राचीन और विलुप्त पौधों की प्रजातियों के जीनोम का अध्ययन करने के लिए पुनरुत्थान जीनोमिक्स का उपयोग किया ।
पुनरुत्थान जीनोमिक्स में पौधों के विकास और विलुप्त होने के अध्ययन में क्रांति लाने की क्षमता होती है। इसका उपयोग हमें यह समझने में मदद करने के लिए भी किया जा सकता है कि समय के साथ पौधों ने खुद को अलग-अलग वातावरण में कैसे अनुकूलित किया है। आज वैज्ञानिक, हर्बेरियम नमूनों “Herbarium Specimens” (सूखे पौधों के संग्रह ) से भी डीएनए निकालने में सक्षम हो गए हैं। इस डीएनए का उपयोग पौधों का क्लोन बनाने या अन्य जीवित कोशिकाओं में जीन डालने के लिए किया जा सकता है। विलुप्तता अनुसंधान (Extinction Research) की बदौलत पादप भ्रूणों का पुनर्जनन करना भी संभव हो गया है। पौधों के भ्रूण शुष्क परिस्थितियों में भी सैकड़ों वर्षों तक निष्क्रिय रह सकते हैं। इसका मतलब यह है कि सदियों से निष्क्रिय पड़े भ्रूणों को उगाकर विलुप्त पौधों को पुनर्जीवित करना संभव हो सकता है। सन 1912 में, गेरिट वाइल्डर (TY Wilder) नाम के एक वनस्पतिशास्त्री ने माउंटेन हिबिस्कस (Mountain Hibiscus) नामक एक हवाईयन पौधे (Hawaiian Plant) का आखिरी फूल इकट्ठा किया। जिस पेड़ पर फूल उगा था वह अपनी तरह का आखिरी पेड़ था और जिसके बाद इस प्रजाति को विलुप्त घोषित कर दिया गया।
हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी कि एक सदी से भी अधिक समय के बाद, जिन्कगो बायोवर्क्स (Ginkgo Bioworks) नामक कंपनी के वैज्ञानिक, वाइल्डर के इस सूखे फूल के नमूने से निकाले गए डीएनए का उपयोग करके पहाड़ी हिबिस्कस जीन की गंध को फिर से बनाने में सक्षम हो गए हैं। उन्होंने जीन को खमीर कोशिकाओं में डालकर ऐसा कर दिखाया, जिससे फिर वही सुगंधित अणु उत्पन्न होने लगे जो कभी हिबिस्कस फूल में हुआ करते थे। यह सफलता हमें संकेत देती है कि हम एक दिन विलुप्त प्रजातियों को पूरी तरह से ज्यों का त्यों वापस लाने में सक्षम हो सकते हैं। जैसे-जैसे पौधों के नमूनों को डिजिटल बनाने के वैश्विक प्रयास जारी रहेंगे, और अधिक से अधिक हर्बेरिया 'बिग डेटा' में शामिल होते जाएंगे, विलुप्त हो चुके पौधों तक की पहुँच आसान होती जाएगी। पौधों के विलुप्त होने के बढ़ते स्तर को न केवल रोकना बल्कि उस राह से यूं टर्न भी वास्तव में संभव हो सकता है। हालाँकि, हमारे सामने अभी भी कई ऐसी चुनौतियाँ हैं, उन्हें दूर करने की आवश्यकता है। इनमें विलुप्त प्रजातियों से अक्षुण्ण डीएनए ढूंढना और उस डीएनए को जीवित कोशिकाओं में डालने के तरीके विकसित करना आदि शामिल है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/juw9crwk
https://tinyurl.com/mudp3ftp
https://tinyurl.com/4cvj4rfj

चित्र संदर्भ
1. फसलों पर शोध करते किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण ( Innovative Genomics Institute)
2. हाल ही में विलुप्त हुए पौधों की सूची को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. "अराबिडोप्सिस थालियाना" पौधे के जीनोम में जीएफपी जीन के प्रवेश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. इनोवेटिव जीनोमिक्स को दर्शाता एक चित्रण (innovativegenomics)
5. एक वंशानुगत सहजीवन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. हर्बेरियम नमूनों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. प्रयोगशाला में फूलों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)



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