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मिठास से लेकर ईंधन तक: राष्ट्र, राज्य व किसान का भविष्य बदल सकती है,गन्ने की बहुपयोगी फसल

लखनऊ

 21-10-2023 09:56 AM
शारीरिक

गन्ना, भारत में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली फसल है। भारतीयों के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि "गन्ने की फसल न केवल हमारे राष्ट्रीय खज़ाने में बड़ा योगदान देती है, साथ ही यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, तकरीबन दस लाख से अधिक लोगों को रोज़गार भी प्रदान करती है।" गन्ना (Sugarcane) सैकरम (Saccharum) प्रजाति का पौधा होता है। इसका उपयोग दुनिया भर में चीनी या मिठास से जुड़े उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है। गन्ना, सुक्रोज़ (Sucrose) से भरपूर लंबी और बारहमासी घास की एक प्रजाति है, जिसमें सुक्रोज़ पौधे के डंठल में जमा हो जाती है। गन्ने की फसल आम तौर पर नकदी फसल की श्रेणी में आती है। हालांकि कभी-कभी इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है। गन्ने की गुणवत्ता में सुधार और इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए क्रॉस ब्रीडिंग और पॉलीप्लोइडीजेसन (Crossbreeding And Polyploidization) जैसी उत्पादन विधियों का भी प्रयोग किया जाता है।
गन्ना हमारे लिए कई मायनों में उपयोगी होता है,जैसे:
➲ गन्ने के रस का उपयोग चीनी बनाने में किया जाता है।
➲ इसके जूस को ऐसे ही ताज़ा पिया जा सकता है या सिरप और गुड़ के रूप में संसाधित किया जा सकता है।
➲ गुड़ का उपयोग कई उत्पाद जैसे रम, एथिल अल्कोहल (Ethyl Alcohol), एसिटिक एसिड (Acetic Acid), ब्यूटेनॉल-एसीटोन (Butanol-Acetone), साइट्रिक एसिड (Citric Acid), यीस्ट (Yeast) और मोनोसोडियम ग्लूटामेट (Monosodium Glutamate) आदि बनाने में किया जाता है।
गन्ने से रस निकालने के बाद बचा हुआ रेशेदार भाग (खोई) भी कई मायनों में उपयोगी हो सकता है, जैसे:
➲ इसका उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
➲ इसका उपयोग बायोगैस (Biogas) का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है।
➲ इसका उपयोग अच्छी गुणवत्ता वाले कागज़ और मैगज़ीन पेपर (Magazine Paper) बनाने के लिए किया जा सकता है।
➲ गन्ने के पौधे के बचे हुए हिस्सों का उपयोग पशु चारे के रूप में भी किया जा सकता है, क्योंकि इसकी पत्तियां पशुओं के लिए पौष्टिक मानी जाती हैं। गन्ना आज मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय से उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों वाले देशो में उगाया जाता है। विश्व के पांच सबसे बड़े गन्ना उत्पादक देश या क्षेत्र क्रमशः ब्राजील (Brazil), भारत, यूरोपीय संघ, चीन और थाईलैंड (Thailand) हैं। ब्राजील विश्व में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में भी गन्ने की खेती वैदिक काल से की जा रही है। भारत में गन्ने की खेती का सबसे पहला उल्लेख 1400 से 1000 ईसा पूर्व की अवधि में लिखे गए भारतीय लेखों में मिलता है। चूंकि भारत में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों प्रकार के क्षेत्र पाए जाते हैं, इसलिए यहां पर गन्ना प्रचुर मात्रा में उगता है। भारत में कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जैसे ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर इसकी खेती 8° उत्तर से 33° उत्तर अक्षांश तक की जाती है। गन्ने की वृद्धि तापमान पर निर्भर करती है। अंकुरण के लिए इसे 32° से 38°c के बीच के तापमान की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा मौसम की स्थिति भी गन्ने की उत्पादकता और इसके रस की गुणवत्ता को बहुत प्रभावित करती है। भारत में गन्ना उत्पादक क्षेत्रों को पाँच भागों (उत्तर पश्चिमी, उत्तर मध्य, उत्तर पूर्वी, प्रायद्वीपीय और तटीय क्षेत्रों) में विभाजित किया गया है। देश में गन्ना उत्पादक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, गोवा, पांडिचेरी और केरल जैसे प्रायद्वीपीय और तटीय क्षेत्र शामिल हैं। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्य उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में गिने जाते हैं। भारत में गन्ना मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में ही उगाया जाता है, और गन्ने की लगभग 50% उपज यहीं होती है। भारत में गन्ने को खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है। इसके लिए वार्षिक स्तर पर 75-150 सेमी की वर्षा की आवश्यकता होती है। गन्ना समृद्ध दोमट मिट्टी या किसी भी नमीदार मिट्टी में अच्छी तरह से उग सकता है।
भारत में गन्ने की पाँच अलग-अलग प्रजातियां पाई जाती हैं:
➲ सैकरम ऑफिसिनारम (Saccharum Officinarum)
➲ सैकरम बरबेरी (Saccharum Barberry)
➲ सैकरम साइनेंस (Saccharum Sinense)
➲ सैकरम स्पान्टेनियम (Saccharum Spontaneum)
➲ सैकरम रोबस्टम (Saccharum Robustum)
चूंकि गन्ना एक जल-गहन फसल होती है, इसलिए इसे उगाने में पानी का उपयोग भी बहुत ही सावधानीपूर्वक करना पड़ता है। गन्ने को कलम (Grafting) लगाकर उगाया जाता है। प्रत्येक कलम से एक नया पौधा उत्पन्न हो सकता है। एक बार जब गन्ने की कटाई हो जाती है, तो उन्हें चीनी में परिवर्तित करने के लिए, मिलों में जल्दी ले जाना पड़ता है। देरी होने पर चीनी की गुणवत्ता खराब हो सकती है।
गन्ने की अहमियत को समझते हुए हाल के वर्षों में, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इस क्षेत्र में तकरीबन 2.14 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है। हाल के वर्षों में राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा दो नई चीनी मिलें शुरू की गई और पहले से बंद पड़ी चार अन्य मिलों को भी फिर से शुरू कराया गया। इसके अलावा राज्य में 30 चीनी मिलों का विस्तार भी किया गया। इन सभी बदलावों की वजह से यूपी में चीनी का उत्पादन काफी बढ़ गया है। वर्तमान में हमारे उत्तर प्रदेश में 120 चीनी मिलें हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में इन मिलों ने खूब गन्ने की पेराई की और खूब चीनी का उत्पादन किया। इन सकारात्मक परिणामों को देखते हुए यूपी में 284 नई खांडसारी (एक प्रकार की चीनी मिल) इकाइयां शुरू हुईं, जिससे तकरीबन 31,690 लोगों को रोजगार मिला है। गन्ने की खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने एक अन्य कार्यक्रम भी शुरू किया, जिसके तहत महिलाएं उच्च गुणवत्ता वाले गन्ने के पौधे के बेबी प्लांट (Baby Plant) बनाती हैं। फिर ये पौधे किसानों को लगाने के लिए दे दिए जाते हैं। अभी, महिलाओं के ऐसे 3,196 समूह हैं जो इन पौधों को बेचकर अच्छा पैसा कमा रही हैं। राज्य में 3,171 सहकारी महिला स्वयं सहायता समूह भी हैं, जिनमें 59,000 से अधिक महिलाएं कार्यरत हैं जो 60 लाख गन्ना किसानों के साथ मिलकर राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम् योगदान दे रही हैं। 2007 से 2017 के बीच गन्ना से होने वाली कुल आय ₹1 लाख आंकी गई थी, जो 2017-2023 के बीच बढ़कर ₹2,134,00 करोड़ हो गई।
आने वाले समय में गन्ने की मांग और अधिक बढ़ने वाली है क्योंकि भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (Indian Institute Of Sugarcane Research) और राष्ट्रीय चीनी संस्थान (National Sugar Institute) के वैज्ञानिक गन्ने के कचरे और खोई से बायोएथेनॉल (Bioethanol) का उत्पादन करने के लिए एक नई तकनीक विकसित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। इथेनॉल एक प्रकार का अल्कोहल है जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है। हमारी राज्य सरकार, गन्ने से इथेनॉल बनाने की प्रक्रिया का बढ़ चढ़ कर समर्थन कर रही है। पहली पीढ़ी (1g) का इथेनॉल, गन्ने के रस और गुड़ से बनाया जाता है। लेकिन दूसरी पीढ़ी (2जी) इथेनॉल गन्ने के अपशिष्ट, जैसे खोई और कचरे से बनाया जा सकता है। भारतीय वैज्ञानिक गन्ने के कचरे से 2जी इथेनॉल बनाने का कम लागत वाला तरीका विकसित करने पर काम कर रहे हैं। वे नए प्रकार के रोगाणुओं को विकसित कर रहे हैं जिनका उपयोग गन्ने के कचरे को किण्वित करके इथेनॉल बनाने में किया जा सकता है। यदि वे अपने प्रयासों में सफल होते हैं तो इससे, अधिक सस्ते और टिकाऊ तरीके से इथेनॉल का उत्पादन संभव हो जाएगा, जिससे भारत की ईंधन के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता काफी हद तक कम हो जाएगी।

संदर्भ
https://tinyurl.com/42wxd27v
https://tinyurl.com/347uew6b
https://tinyurl.com/3vfru7zb
https://tinyurl.com/ymv4x9ma
https://tinyurl.com/4y9sjdub

चित्र संदर्भ
1. गन्ने की कटाई करती एक महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. गन्ने के डंठलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. 2019 में वैश्विक स्तर पर गन्ना उत्पादन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गन्ना छीलती एक महिला किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. चीनी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. रस निकालने के लिए गन्ने को कोल्हू में डालती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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