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प्राचीन मनुष्यों ने, मांस के लिए जब से जानवरों का उपभोग किया है, तब से वे उनकी खाल या चमड़े का भी उपयोग कर रहे हैं। शायद कपड़े, आश्रय एवं जूते, उन प्राथमिक चीज़ों में रहे होंगे, जिनमें जानवरों की खाल का इस्तेमाल किया गया था।
वास्तव में,उपचाररहित खाल कम तापमान पर सख्त हो जाती हैं, और गर्मी में सड़ जाती हैं। अतः इसे टिकाऊ बनाने हेतु, जानवरों की खाल को चमड़े में बदलने के लिए कुछ प्रक्रियाएं करनी पड़ती हैं। सदियों से ही, मनुष्यों ने धीरे-धीरे जानवरों की खाल को संरक्षित करने के तरीके खोजे हैं। उन्होंने खाल से मांस के निशान हटाना एक आवश्यक चरण पाया। आग के धुएं में सेंकने पर, खाल लंबे समय तक टिकती थी या धूप में सुखाने पर, खाल सड़ती नहीं थी। हरी पत्तियों को आग में डालने से, परिणाम अधिक प्रभावी थे, क्योंकि, इस प्रकार उत्पन्न धुएं में फॉर्मेल्डिहाइड(Formaldehyde) रसायन मौजूद हो जाता था। साथ ही, उन्होंने पाया कि, खाल में नमक रगड़ने से उसकी नमी खत्म हो जाती है।शायद, उन्होंने कई प्रकार के पदार्थों को खाल में रगड़ने का प्रयोग किया होगा। इस तरह,उन्हें पता चला कि, ओक(Oak) के पेड़ों की छाल में मौजूद टैनिन(Tannin) एक प्रभावी उपचार घटक है।
दरअसल, टैनिंग(Tanning) अर्थात चर्मशोधन तकनीकें पांचवीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व के असीरियन ग्रंथों(Assyrian texts) तथा होमर(Homer)द्वारा लिखित महाकाव्य, इलियड(Iliad) में पाई जाती हैं। प्राचीन मिस्रवासी चमड़े के शिल्प में काफ़ी परिष्कृत थे। रोमन काल के दौरान पूरे साम्राज्य में ही चमड़े का उपयोग किया जाता था। 12वीं शताब्दी तक वे बुनियादी तकनीकें स्थापित हो चुकी थीं, जिनके द्वारा हम आज खाल का उपचार करके चमड़ा बनाते हैं।
चमड़ा उद्योग के अनुसार, दरअसल चमड़ा, खाद्य मांस उद्योग का एक उप-उत्पाद है और चमड़े के उत्पादन के अभाव से गंभीर पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं। वैसे तो यह ज़ाहिर ही है कि, खाल और चमड़े की आपूर्ति मुख्य रूप से मांस के उत्पादन पर ही निर्भर करती है। जिन देशों में मांस का पर्याप्त उत्पादन और उपभोग होता है, वहां चमड़े का उत्पादन भी अधिक होता है।
भारत का चमड़ा उद्योग उन्नीसवीं सदी में ब्रिटिश सेना के आगमन तथा उनके द्वारा जूते एवं काठी की मांग के साथ शुरू हुआ था। और आज भारत विश्व में, चमड़े के उत्पादों का एक प्रमुख निर्यातक है।
चमड़े जैसी अत्यधिक बहुमुखी एवं उपयोगी सामग्री के साथ भारतीयों का संबंध वास्तव में, लगभग पांच हजार साल पुराना है। आज भी, चमड़ा प्रतिष्ठा और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। चमड़े का सबसे पहला प्रलेखित साक्ष्य, वेदों में मिलता है।ऋग्वेद में 3000 ईसा पूर्व के दौरान पानी के लिए चमड़े के ‘माशकों’ या बोरों के साथ-साथ बोतलों के उपयोग, का दस्तावेजीकरण किया गया है।तब चमड़े से, पट्टे,थैले एवं पाल भी, बनाए जाते थे।
इसी लेखन में, महान ऋषि अगस्त्य द्वारा चमड़े की बोतल का किया गया ज़िक्र भी हमें मिलता है।2000 ईसा पूर्व की,‘सांख्य और लिखिता’ की कानून पुस्तकों में भी, चमड़े की वस्तुओं के उपयोग का संदर्भ दिया गया है। पुराने संस्कृत साहित्य में पाए जाने वाले,चर्मंत, चर्मपथ, वरात्र, चसबंध आदि शब्दों का उपयोग, यह इंगित करता है कि, उस समय चमड़े के उत्पाद आम उपयोग में थे।ये बातें, चमड़े के ऐतिहासिक, और इसके नवीनता - दोनों ही मूल्यों को दर्शाती हैं।
हमारे देश भारत में खाल का इलाज एवं चमड़े का निर्माण, कभी गुजरात के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक थे। हर साल यहां से कई जहाज़ बकरियों, बैलों, भैंसों और अन्य जानवरों की खालें लादकर अरब(Arabia)में भेजे जाते थे। चमड़े का उपयोग तब,चप्पलों के लिए तथा लाल और नीले रंग की सुंदर चटाइयों के लिए किया जाता था। प्रसिद्ध प्राचीन ‘रेशम मार्ग’ के माध्यम से, गुजरात और पड़ोसी विदेशी राज्यों के बीच चमड़े का व्यापार भी किया जाता था। साथ ही, हमारे राज्य उत्तर प्रदेश ने मुगलों तथा मुगल दरबार के अभिजात्य समाज के लिए,कुशलता से निर्मित, ‘जूती’ और चमड़े के वस्त्र बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई हैं। चमड़ा दक्षिण भारतीय राज्यों तथा ग्रीक(Greek)एवं रोमन(Roman) साम्राज्यों के बीच व्यापार की प्रमुख वस्तुओं में से एक था। उस समय चर्मशोधन मुख्य रूप से गांवों में, चमारों के हाथों में था और वह स्थानीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त था।
हालांकि, बाद में वर्ष 1880 के बाद चमड़े का अंतर्राष्ट्रीय निर्यात शुरू हुआ।अब तो, भारतीय चमड़े के उत्पादों का दुनिया भर में निर्यात किया जाता है।
इसके अलावा, बीसवीं शताब्दी ने भारतीय चमड़ा उद्योग के व्यापार इतिहास में एक नया युग चिह्नित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण, भारत में चमड़े और चमड़े के उत्पादों के उद्योग के विकास को प्रोत्साहन मिला। जहां, 1913-14 में 2,753 श्रमिकों को रोजगार देने वाली, केवल 25 बड़ी इकाइयां ही स्थापित की गई थी, 1941 तक इन इकाइयों की संख्या बढ़कर 114 तथा श्रमिकों की संख्या 26,056 हो गई थी।
आइए, अब चमड़े से संबंधित एवं विवादित मुद्दों पर नजर डालते हैं। चमड़े की स्थिरता को लेकर अधिकतर बहस इस बात पर होती है कि, क्या चमड़ा मांस उद्योग का उपोत्पाद है? यदि यह इसका एक उपोत्पाद है, तो जानवरों को मांस के लिए पाला जाता है, और चमड़ा मांस के उपभोग के लिए की गई जानवरों की हत्या से उत्पादित होता है। क्योंकि, यदि पशुपालक चमड़ा बेच नहीं सकते, तो वे इसे फेंक देंगे, या जला देंगे, जो ज़ाहिर है, बहुत ही प्रदूषणकारी होगा।यह भी माना जाता है कि, यदि फैशन उद्योग ने चमड़ा खरीदना बंद कर दिया, तो किसान जानवरों को पालना भी बंद कर देंगे। चमड़ा, जिसकी कीमत किसी गाय के कुल मूल्य का लगभग 5% है, पशुपालकों के लिए, केवल एक अतिरिक्त लाभ है।
और यदि यह एक उपोत्पाद नहीं है, तो पशुपालक चमड़ा बेचने के मुख्य उद्देश्य के लिए जानवरों को पाल रहे हैं। अतः हमारे चमड़े के उत्पाद सीधे तौर पर जानवरों की पीड़ा, ग्रीनहाउस गैस(Greenhouse Gas) उत्सर्जन और वनों की कटाई का कारण बन रहे हैं।
दूसरी ओर, कानपुर का चमड़ा उद्योग अब कई चुनौतियों से जूझ रहा है।इसमें कुशल श्रमिकों की कमी से लेकर डिज़ाइन क्षमताओं की कमी, अस्थिर नीतियों से लेकर तार्किक मुद्दे तथा अच्छी गुणवत्ता और सस्ते सामान की उपलब्धता की कमी शामिल है।
कानपुर के प्रसिद्ध चमड़ा उद्योग में, सबसे बड़ी मंदी के बीच, कानपुर के चर्मकार खुद को बचाए रखने हेतु, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और अन्य क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं। उनका प्रस्थान कड़े प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों के कारण लगाए गए बुनियादी ढांचे के प्रतिबंधों, चर्मशोधन द्वारा उत्पन्न कचरे की उपचार लागत में एक बड़ी उछाल और गौहत्या पर प्रतिबंध के कारण गाय के चमड़े की उपलब्धता की कमी के बीच, संघर्ष करते इस उद्योग के कारण हो रहा है।
पहले से ही, कानपुर के 40 चमड़ा उद्योगपतियों ने कोलकाता में चर्मशोधन कारखानों को किराए पर लिया है या खरीदा है।कुछ लोगों ने तो, तैयार गाय के चमड़े के लिए वियतनाम(Vietnam), तुर्की(Turkey) और कुछ यूरोपीय देशों के साथ साझेदारी भी की है।इसके अलावा, लगभग 100 लोगों ने कोलकाता के निकट स्थित बंटाला में, कारखाने शुरू करने के लिए जमीन भी ली है। क्योंकि,यहां पश्चिम बंगाल सरकार, उत्तर प्रदेश के चर्मकारों को 2,865 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से जमीन उपलब्ध करा रही है।हालांकि, लोग अभी भी इस उम्मीद में काम कर रहे हैं कि, किसी दिन इस स्थिति में सुधार होगा।
उपरोक्त कुछ कारकों के अलावा, यह समस्या 2017 के अंत में शुरू हुई थी, जब केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने इन कारखानों की क्षमता एवं बुनियादी ढांचे को घटाकर आधा करने के लिए कहा था। कुंभ और माघ मेलों के दौरान, कारखानों को लंबे समय तक बंद करके इस आदेश का पालन किया गया था।
भारत में चमड़े के व्यापार में,कानपुर के उद्योग का योगदान लगभग 30% है, जो भारत से ब्रिटेन(Britain), अमेरिका(America), चीन(China) और खाड़ी देशों समेत अन्य देशों को लगभग 6,000 करोड़ रुपये का चमड़ा निर्यात करता है। शहर का यह चमड़ा उद्योग, कानपुर एवं उन्नाव जिलों में लगभग दस लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी प्रदान करता है। अतः यहां यह एक बड़ी समस्या है।
अब आशा की एक नई किरण ही इन चर्मकारों के लिए सही साबित हो सकती है।और वह है, मछ्ली से प्राप्त चमड़ा। वस्तुत:मछली की खाल, जल–खाद्य उद्योग का एक उपोत्पाद है, जो अक्सर बर्बाद हो जाती है। हमें एक टन मछली से लगभग 40 किलोग्राम खाल प्राप्त होती है, जिसे अक्सर फेंक दिया जाता है।
वैसे भी, मछली के चमड़े का उपयोग हमेशा से ही किया जाता रहा है। मछली की खाल के चमड़े का उत्पादन, एक समय मछली पकड़ने वाले समुदायों में आम था। अतः अब कारीगर और डिज़ाइनर इस परंपरा को अधिक टिकाऊ अभ्यास के रूप में वापस ला रहे हैं।
मछली की खाल से मजबूत तथा टिकाऊ चमड़ा बनता है, जिसका उपयोग गाय के चमड़े की तरह ही किया जा सकता है। मछली का चमड़ा गाय के चमड़े जितना ही उपयुक्त भी होता है।ऐसे परिदृश्य में, गंगा नदी से प्राप्त मछलियों से चमड़ा निर्माण कानपुर के चर्मकारों को नई राह दिखा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3m58nc5k
https://tinyurl.com/bdzbttb6
https://tinyurl.com/27zvm8dd
https://tinyurl.com/3ycbnhkr
https://tinyurl.com/4yrhb8s7
https://tinyurl.com/2y2rdejk
https://tinyurl.com/3ka7tzxe
चित्र संदर्भ
1. चर्मशोधन उद्योग और मछली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia,youtube)
2. धूप में सूख रहे चमड़े को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. प्राचीन चमड़ा शोधन प्रक्रिया को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. राजस्थानी शैली की चमड़े की जूती को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. शोधित चमड़े को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
6. मछली के चमड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
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