Post Viewership from Post Date to 14-Nov-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1581 211 1792

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

साप्ताहिक हिन्दुस्तान पत्रिका के जाने के बाद, हिंदी साहित्य जगत के खालीपन को कौन भर रहा है?

लखनऊ

 13-10-2023 10:07 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

भारत को आजादी मिलने के तुरंत बाद, देश में ढेरों हिंदी साप्ताहिक पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगीं। इन सभी में से दो पत्रिकाओं को पाठकों से खूब प्यार मिला, जिनमें से पहली थी, हिंदुस्तान टाइम्स (Hindustan Times) द्वारा जारी की गई "साप्ताहिक हिंदुस्तान" और दूसरी थी टाइम्स ऑफ इंडिया (Times Of India) द्वारा शुरू की गई "धर्मयुग" नामक पत्रिका। हालांकि इंटरनेट के आगमन के साथ ही इन पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कम या बंद हो गया। लेकिन 1960 से 1980 के दशक में, रंगीन चित्रों और अनोखे तथ्यों से भरपूर इन्हीं पत्रिकाओं का दबदबा चलता था! उत्तर भारत में धर्मयुग नामक हिंदी पत्रिका बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी।
इसका संपादन प्रसिद्ध उपन्यासकार और नाटककार धर्मवीर भारती द्वारा किया जाता था। यह पत्रिका बेनेट एंड कोलमैन (Bennett & Coleman (B&C) नामक कंपनी द्वारा प्रकाशित की जाती थी, जिसके मालिक साहू जैन और रमा जैन थे। उन्होंने रचनात्मक लेखन का समर्थन किया और यहां तक कि ज्ञानपीठ पुरस्कार भी शुरू किया, जिसे विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखकों के लिए एक बड़ा साहित्यिक पुरस्कार माना जाता है। बेनेट एंड कोलमैन , जिसे बाद में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के नाम से जाना गया, ने सारिका (जिसमें आधुनिक हिंदी लेखन था) और दिनमान (राजनीति और अर्थशास्त्र से जुड़ी एक साप्ताहिक पत्रिका) जैसी कुछ पत्रिकाएँ प्रकाशित कीं। इसी दौरान धर्मयुग और सारिका के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए बिरला (Birla) के स्वामित्व वाले एक समूह, हिंदुस्तान टाइम्स समूह ने "कादंबरी" और "साप्ताहिक हिंदुस्तान" जैसी पत्रिकाओं को प्रकाशित किया। इन समूहों ने उस समय के सबसे लोकप्रिय हिंदी लेखकों की कहानियाँ प्रकाशित करने का प्रयास किया। 1950 और 1960 के दशक में उत्तर भारत के हर पुस्तकालय और पाठक के पास ये पत्रिकाएँ होती थीं। “साप्ताहिक हिन्दुस्तान” विशेष तौर पर साहित्य के साथ-साथ सामाजिक विषयों पर गंभीर व गवेषणापूर्ण (Exploratory) लेखों तथा उच्च स्तरीय काव्य-विधाओं के प्रकाशन के लिये जानी जाती थी।
इसके साथ-साथ साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान, ज्ञान-विज्ञान पर आधारित समसामयिक उपयोगी सामग्री भी प्रदान करती थी। इस साप्‍ताहिक पत्रिका के सम्पादक श्री मुकुट बिहारी वर्मा थे और इसका प्रथम अंक 1950 में प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका के संपादक श्री मुकुट बिहारी वर्मा के कार्यकाल के तीन वर्ष बाद इसका संपादन भार श्री बांके बिहारी भटनागर को सौंपा गया, जिन्होंने लगभग 15 वर्ष तक इसका कुशलता से संपादन किया और साप्ताहिक हिंदुस्तान को देश भर में लोकप्रियता दिलाई। इसे लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने अपने समय के सभी लेखकों, कवियों और साहित्यकारों का सहयोग लिया। प्रसार संख्या की दृष्टि के आधार पर, इन सभी हिन्दी की साप्ताहिक पत्रिकाओं में साप्ताहिक हिंदुस्तान दूसरे स्थान पर आती है। हालांकि लंबे समय तक पाठकों की पहली पसंद रहने के बावजूत, हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की यह विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका और इस जैसी कई पत्रिकाएं अलग-अलग कारणों से बंद हो गई।
किंतु इसी बीच ‘इंडिया टुडे’ (India Today) ने एक साप्ताहिक पत्रिका के तौर पर अपने 25 वर्ष सफलतापूर्वक पूरे कर लिए हैं। ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका का प्रकाशन 1975 से नई दिल्ली स्थित लिविंग मीडिया इंडिया लिमिटेड (Living Media India Limited) से किया जा रहा है। अंग्रेजी के साथ-साथ इंडिया टुडे हिंदी में भी प्रकाशित होती है। यह पत्रिका इंडिया टुडे समूह का हिस्सा है। इस पत्रिका के सफर की शुरुआत 1975 में 5,000 प्रतियों के वितरण के साथ हुई थी लेकिन आज इसके साथ 5.62 मिलियन से अधिक पाठक जुड़ चुके हैं और इसकी तकरीबन 1.1 मिलियन से अधिक प्रतियाँ हर साल वितरित होती हैं। पहले के समय में साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग और सारिका जैसी कई पत्रिकाएँ अपने साहित्य और बौद्धिक सामग्री के बल पर मध्यम वर्ग के बीच खूब लोकप्रिय हुआ करती थीं। लेकिन जब इन पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया तो हिंदी साहित्य जगत में एक खालीपन आ गया। शुक्र है, कि आगे चलकर यह खालीपन छोटी पत्रिकाओं ने भर दिया, जिन्हें "लघु पत्रिकाएं" कहा जाता है। आज के समय में ऐसी लगभग एक हजार से अधिक छोटी पत्रिकाएं हैं। जिनमें से तद्भव, हंस, समयांतर, पहल कथादेश, आलोचना, पल-प्रतिपल, नया ज्ञानोदय, समकालीन जनमत और उद्भावना आदि प्रमुख हैं। ये पत्रिकाएँ गंभीर साहित्य और विचारों पर केन्द्रित हैं।
ये छोटी पत्रिकाएँ उन संपादकों द्वारा चलाई जाती हैं, जो साहित्य और विचारों में रूचि रखते हैं। लघु पत्रिकाएँ समाज को प्रतिबिंबित करती हैं और अक्सर सत्ता को चुनौती देने का काम करती हैं। इनके माध्यम से पीड़ितों का समर्थन और सहायता करने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के तौर पर "हंस पत्रिका" के संपादक के अनुसार वे जीवन, लिंग, भाषा और समाज पर पारंपरिक विचारों को चुनौती देने से नहीं डरते हैं। सीमित बजट और संसाधन होने के बावजूद लघु पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य में बड़ा अहम् योगदान दिया है। उन्होंने समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला है। उदाहरण के लिए, कई छोटी पत्रिकाओं ने 1857 के विद्रोह की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष अंक प्रकाशित किये। वहीँ मुख्यधारा की पत्रिकाओं में 1857 के विद्रोह के ऐतिहासिक महत्व पर कोई भी चर्चा नहीं की जाती है। लघु पत्रिकाएं समाज में इसलिए भी अहम् भूमिका निभाती हैं, क्यों कि ये बुद्धिजीवियों को सामाजिक मुद्दों और राज्य सत्ता के खिलाफ लोकतांत्रिक असहमति पर चर्चा करने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं।

संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/Mscekdw4
Https://Tinyurl.Com/3zjwxmme
Https://Tinyurl.Com/523scfv6
Https://Tinyurl.Com/Mep7xeh7
Https://Tinyurl.Com/Mw59vpkt

चित्र संदर्भ
1. साप्ताहिक हिन्दुस्तान पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. धर्मयुग नामक हिंदी पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. एक पत्रिका विक्रेता को दर्शाता एक चित्रण (PxHere)
4. ‘इंडिया टुडे’ की साप्ताहिक पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. अख़बारों के समूह को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नदियों के संरक्षण में, लखनऊ का इतिहास गौरवपूर्ण लेकिन वर्तमान लज्जापूर्ण है
    नदियाँ

     18-09-2024 09:20 AM


  • कई रंगों और बनावटों के फूल खिल सकते हैं एक ही पौधे पर
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:18 AM


  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM


  • खनिजों के वर्गीकरण में सबसे प्रचलित है डाना खनिज विज्ञान प्रणाली
    खनिज

     09-09-2024 09:45 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id