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क्या आप जानते हैं कि भारत का प्यारा 'अप्पू' हाथी था, एशियाई खेलों का सबसे पहला शुभंकर!

लखनऊ

 10-10-2023 10:27 AM
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

अभी हाल ही में संपन्न हुए एशियाई खेलों(Asian games) में हमारे भारतीय खिलाड़ियों ने हमारे देश के झंडे को ऊंचाईयों पर लहराया है। हर भारतीय के लिए यह एक आनंद एवं गर्व का क्षण है। देश के खिलाड़ियों ने कुल 107 पदक देश के नाम किए हैं, जो भारत का एशियाई खेलों में अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। इस बार खिलाड़ियों द्वारा किया गया प्रदर्शन पिछले सभी प्रदर्शनों से अलग रहा है। इसी प्रकार इस बार एशियाई खेलों के लिए शुभंकर चुनने की परंपरा भी कुछ अलग रही। एशियाई खेलों के शुभंकर(Mascots) काल्पनिक पात्र होते हैं। वे आमतौर पर मेजबान देश के मूल निवासी जानवर, मानव या उस स्थान की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। एशियाई खेलों को बच्चों तथा युवा दर्शकों के लिए आकर्षित बनाने के लिए,अक्सर ही शुभंकर का उपयोग किया जाता है। वर्ष 1982 के बाद आयोजित प्रत्येक एशियाई खेलों में शुभंकर अपनाने की परंपरा शुरू हो गई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह परंपरा कहाँ से शुरू हुई? आइए, जानते हैं। एशियाई खेलों जैसे बहु-राष्ट्रीय आयोजनों के लिए, शुभंकर तय करना, लंबे समय से चली आ रही परंपरा है, लेकिन इस वर्ष, चीन(China) ने कुछ अलग करते हुए, एशियाई खेल 2023 के लिए, तीन शुभंकरों की घोषणा की थी। हांग्जो(Hangzhou) एशियाई खेलों में एक रोबोट समूह चेन्चेन(Chenchen), कांगकॉन्ग(Congcong) तथा लियानलियन(Lianlian) को शुभंकरों के रूप में चुना गया , जो इस मेजबान शहर की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव में, इन तीनों को एक साथ ‘मेमोरीज़ ऑफ़ जियांगन’ (Memories of Jiangnan)’ कहा जाता है और इनका नाम बाई जुई(Bai Juyi)द्वारा रचित एक कविता से लिया गया है।
आइए इन तीनों के विषय में जानते हैं-
चेन्चेन शुभंकर: चेन्चेन ‘बीजिंग-हांगझू ग्रैंड कैनल’(Beijing-Hangzhou Grand Canal) का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक विश्व धरोहर स्थल भी है। इस शुभंकर का नाम ‘गोंगचेन ब्रिज’ (Gongchen Bridge) से लिया गया है, जो ग्रैंड कैनल के हांगझूखंड में स्थित है। यह चेन्चेन ग्रांड कैनल, कियानतांग नदी(Qiantang River) और समुद्र के पार बेस शहरों को जोड़ता है। साथ ही, इसका नीला रंग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रतिनिधित्व करता है।
कांगकॉन्ग शुभंकर: कांगकॉन्ग लिआंगझू(Liangzhu) शहर के पुरातात्विक खंडहरों का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक अन्य विश्व धरोहर स्थल है। इस शुभंकर को यह नाम कॉंग जेड पेंडेंट(Cong jade pendant) से मिला है। एक तरह से यह 5,000 साल पुरानी चीनी सभ्यता का प्रतीक है। कांगकांग में पीला रंग अच्छी फसल का प्रतिनिधित्व करता है। जबकि, इसके सिर पर मौजूद पौराणिक प्राणी के चेहरे का स्वरूप अदम्य साहस और आत्म-उत्थान को बयां करता है।
लियानलियन शुभंकर: उपरोक्त अन्य दोनों स्थलों की तरह, लियानलियन भी एक अन्य विश्व धरोहर स्थल, वेस्ट लेक(West lake) का प्रतिनिधित्व करता है। इस शुभंकर को यह नाम, कमल के हरे-भरे और पूर्ण पत्तों के कारण मिला है। चीन में कमल के पत्तों का बहुत महत्व है, क्योंकि यह पवित्रता, बड़प्पन और शांति से जुड़ा है। लियानलियन में हरा रंग जीवन का प्रतीक है। जबकि, इस पर मौजूद कमल का पत्ता पश्चिमी झील में, चंद्रमा को प्रतिबिंबित करने वाले तीन कुंडों का प्रतीक है। वर्ष 1982 में हमारी राजधानी नई दिल्ली में आयोजित, एशियाई खेलों में पहली बार किसी शुभंकर का प्रयोग किया गया था। और दरअसल, इसके पीछे की प्रेरणा एक वास्तविक जीवन के हाथी से मिली थी।1982 में एशियाई खेलों के शुभंकर “अप्पू” हाथी ने भी इसी तरह भारत की संस्कृति और दृष्टिकोण की झलक दुनिया को दिखाई थी।तब अप्पू की तस्वीर के साथ अंग्रेजी और हिंदी भाषा में ‘फ्रेंडशिप फ्रेटरनिटी फॉरएवर’ (Friendship–Fraternity–Forever)’ या ‘सदा मैत्री बंधुता’ लिखा हुआ था।
आइए अब कुछ अन्य शुभंकरों के बारे में जानते हैं-
होडोरी(Hodori)– एक अमूर टाइगर(The Amur Tiger):
वर्ष: 1986

दक्षिण कोरिया(South Korea) के सियोल(Seoul) शहर मेंआयोजित एशियाई खेलों में,अमूर बाघ को शुभंकर बनाया गया था। इस देश के आतिथ्य परंपराओं के साथ-साथ कोरियाई लोगों(Korean people) के मित्रवत स्वभाव का प्रतिनिधित्व करने के लिए होदोरी को एक मिलनसार बाघ के रूप में चित्रित किया गया था।
पैन-पैन(Pan–Pan)– एक पांडा(Panda):
वर्ष: 1990

चीन के बीजिंग(Beijing) शहर में, आयोजित एशियाई खेलों का शुभंकर, पैन-पैन, अप्पू की तरह ही, एक असली पांडा‘बसी’ (Basi) पर आधारित था। यह चीन का सबसे वृद्ध जीवित पांडा था। एक हाथ में पदक थामे और अंगूठा ऊपर करते हुए, पैन-पैन एशियाई खेलों के सबसे यादगार शुभंकरों में से एक बन गया।
पोपो और कुक्कू(Poppo and Cuccu)– सफेद कबूतर:
वर्ष: 1994

ये दोनों शुभंकर जापान(Japan) के हिरोशिमा(Hiroshima) शहर में आयोजित एशियाई खेलों के शुभंकर थे। पोपो और कुक्कू वास्तव में कबूतर थे, जो सद्भाव और शांति के गुणों का प्रतिनिधित्व करते थे। यह एकमात्र एशियाई खेल था जिसमें,नर एवं मादा दोनों एक साथ शुभंकर थे।
दुरिया(Duria)– एक सीगल(Seagull):
वर्ष: 2002

दक्षिण कोरिया के एक अन्य शहर बुसान(Busan)में आयोजित एशियाई खेलों में, एक विशिष्ट छवि प्रदान करने के लिए, दुरिया सीगल को एशियाई खेलों के शुभंकर के रूप में चुना गया था। एशियाई देशों की एकता का प्रतीक, यह पक्षी ‘आप और मैं एक साथ(You and me together)’ का संदेश लेकर खड़ा था।
ओरी(Orry)– एक बारहसिंघा(Oryx):
वर्ष: 2006

कतार(Qatar) के शहर दोहा(Doha) में, इन खेलों के दौरान, उनके राष्ट्रीय पशु को शुभंकर के रूप में चुना गया था। ओरी,एक सफेद बारहसिंघा था जो जलती हुई मशाल हाथ में थामे हुए,उस देश की विशिष्ट पहचान के लिए खड़ा था।
ए जियांग(A Xiang),ए हे(A He), ए रु(A Ru), ए यी(A Yi)तथा ले यांगयांग(Le Yangyang)– भेड़े:
वर्ष: 2010

ये पांच भेड़े 2010 में गुआंगझू(Guangzhou) में आयोजित एशियाई खेलों के शुभंकर थे। इन भेड़ों का इस शहर के साथ एक लंबा संबंध था और ये कई मायनों में इसका प्रतिनिधित्व करते थे। ए जियांग, ए हे, ए रु, ए यी और ले यांगयांग नामों को एक साथ पढ़ने का अर्थ सद्भाव, आशीर्वाद, सफलता और खुशी होता है।
बारामे(Barame), चुमुरो(Chumuro) और विचुओन(Vichuon)– सील(Seals):
वर्ष: 2014

ये तीन जलीय प्राणी दक्षिण कोरिया के एक अन्य शहर इंचियोन(Incheon) में आयोजित एशियाई खेलों के शुभंकर थे। बारामे, चुमुरो और विचुओन हवा, नृत्य और प्रकाश का प्रतीक हैं। इन्हें उत्तर कोरिया(North Korea) और दक्षिण कोरिया(South Korea) के बीच भविष्य की शांति के प्रतीक के रूप में भी चुना गया था। इन खेलों का संदेश ‘यहां विविधता चमकती है’ (Diversity shines here) था।
भिन–भिन(Bhin-Bhin), आकुंग(Akung)और काका(Kaka):
वर्ष:2018
इंडोनेशिया(Indonesia) के दो शहरों जकार्ता(Jakarta) और पालेमबैंग(Palembang)में आयोजित एशियाई खेलों के शुभंकर भिन-भिन - एकपक्षी(Bird-of-Paradise), अकुंग– बावियन हिरण(Bawean Deer) एवं काका–जावा का गैंडा थे। क्या आप जानते हैं किश्री वडक्कुनाथन मंदिर, त्रिशूर में अनायुट्टू एक वार्षिक अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें 50 से अधिक हाथियों को विशेष भोजन खिलाया जाता है। यह भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, जो हमारे जीवन की बाधाओं को दूर करते हैं।लेकिन मंदिर के सूत्रों का कहना है कि मंदिर में इस वार्षिक अनुष्ठान के पीछे एक इतिहास है।
उनके अनुसार, 1982 में दिल्ली में आयोजित एशियाई खेलों के उद्घाटन समारोह में प्रदर्शन के लिए, देश के अन्य सांस्कृतिक रूपों के साथ ही केरल के हाथी पूरम को चुना गया था। हाथियों को दिल्ली तक ले जाना एक कठिन कार्य था। और जब उन्हें वापस लाया गया, तब वे काफ़ी थक चुके थे। अतः उन्हें उनकी वापसी पर विशेष भोजन दिया गया था। यह प्रथा इसके बाद हर वर्ष पूर्ण की गई, जो अभी अनायुट्टू के रूप में प्रचलित है। केरल के प्रसिद्ध गुरुवायुर मंदिर का प्रिय हाथी कुट्टीनारायण, 1982 के एशियाई खेलों के शुभंकर “अप्पू” के रूप में पहचाना गया था ;हालांकि, एक दुखद वार्ता के तौर पर, त्रिशूर में, 14 मई 2005 को, कुट्टीनारायणं हाथी का निधन हो गया। विडंबना यह है कि एशियाई खेलों में शुभंकर बने अप्पू की वास्तविक जीवन में बहुत अच्छी देख भाल नहीं की गई थी। एशियाई खेलों के 10 साल बाद अप्पू एक सेप्टिक टैंक में गिर गया, उसकेहाथ-पैर टूट गए और वह हमेशा के लिए अपंग हो गया। बुखार आने के बाद गुरुवयूरमंदिर में उसका दुखद अंत हो गया। वास्तव में, यह आधुनिक युग की ओर बढ़ते हुए भारत की यात्रा में, एक निर्णायक क्षण का प्यारा प्रतीक बन गया था।

संदर्भ
https://tinyurl.com/45rbmnnj
https://tinyurl.com/y8vbwsfb
https://tinyurl.com/4w2xb5xs
https://tinyurl.com/y296ckt7
https://tinyurl.com/57s96p9n
https://tinyurl.com/eshbdfhd

चित्र संदर्भ
1.एशियाई खेलों के सबसे पहले शुभंकर 'अप्पू' हाथी के लोगो और एक आम हाथी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, publicdomainpictures)
2. 1982 में एशियाई खेलों के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हांग्जो एशियाई खेलों के शुभंकर और प्रतीको को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 'अप्पू' हाथी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5.  दूध पीते नन्हे हाथी को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)



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