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भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहासमें आज तक काफ़ी विनाशकारी भूकंप हो चुके हैं।यहां भूकंपों की उच्च आवृत्ति और तीव्रता का प्रमुख कारण यह है कि, भारतीय टेक्टोनिक प्लेट(Tectonic plate) लगभग 47 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से एशिया(Asia) खंड की प्लेटसे टकरा रही है। भारत केभौगोलिकक्षेत्रफल कीलगभग 59% भूमि भूकंप के प्रति संवेदनशील है। विश्व बैंक(World Bank) और संयुक्त राष्ट्र(United Nations) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि, भारत में लगभग 200 मिलियन शहरवासी 2050 तक तूफान और भूकंप के संपर्क में आ सकते हैं।
भारत के भूकंप प्रतिरोधी डिजाइन कोड(Design Code) [आईएस(IS) 1893 (भाग 1) 2002] में दिए गए भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र(Seismic zoning map) का नवीनतम संस्करण, क्षेत्र कारकों के संदर्भ में, भारत के लिए भूकंपीयता के चार स्तर निर्दिष्ट करता है। दूसरे शब्दों में, भारत का भूकंप क्षेत्र मानचित्र हमारे देश को 4 भूकंपीय क्षेत्रों(Seismic zones) (क्षेत्र 2, 3, 4 और 5) में विभाजित करता है, जिसमें देश के लिए पांच या छह क्षेत्र शामिल थे। वर्तमान ज़ोनिंग मानचित्र के अनुसार, ज़ोन 5 में भूकंपीयता का उच्चतम स्तर है,जबकि, ज़ोन 2 भूकंपीयता के निम्नतम स्तर के साथ जुड़ा हुआ है।
प्रत्येक ज़ोन, प्रभावित क्षेत्रों के अवलोकन के आधार पर, एक विशेष स्थान पर भूकंप के प्रभावों को इंगित करता है और इसे संशोधित मर्कल्ली तीव्रता स्केल(Mercalli intensity scale) या मेदवेदेव-स्पोंह्यूअर-कार्निक स्केल(Medvedev–Sponheuer–Karnik scale– MSK) जैसे वर्णनात्मक पैमाने का उपयोग करके भी वर्णित किया जा सकता है।
ज़ोन 5:
ज़ोन 5, उन क्षेत्रों को शामिल करता है, जहां MSK IX या इससे अधिक तीव्रता वाले भूकंप आने का खतरा सबसे अधिक होता है। आईएस कोड ज़ोन 5 के लिए 0.36 का ज़ोनकारक निर्दिष्ट करता है। संरचनात्मक डिजाइनर ज़ोन 5 में संरचनाओं के भूकंप प्रतिरोधी डिजाइन के लिए इस कारक का उपयोग करते हैं। 0.36 का क्षेत्र कारक (एक संरचना द्वारा अनुभव किया जा सकने वाला अधिकतम क्षैतिज त्वरण) इस ज़ोन में प्रभावी स्तर के भूकंपों का सूचक है। इसे ‘अति उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र’ कहा जाता है।
कश्मीर, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रन तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्र इस क्षेत्र में आते हैं। आम तौर पर, ट्रैप चट्टान(Trap rock) या बेसाल्टचट्टान(Basalt rock) वाले क्षेत्र ऐसे भूकंप के प्रति संवेदनशील हैं।
ज़ोन 4:
इस क्षेत्र को ‘उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र’ कहा जाता है और इसमें MSK VIII के अंतर्गत भूकंप क्षेत्र शामिल हैं। आईएस कोड ज़ोन 4 के लिए 0.24 का ज़ोनकारक निर्दिष्ट करता है। जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, सिंधु एवं गंगा नदी के मैदानी इलाकों के कुछ हिस्से (उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई क्षेत्र, बिहार का एक बड़ा हिस्सा, उत्तरी बंगाल, सुंदरवन) तथा दिल्ली जोन 4 में आती है। महाराष्ट्र में पाटन क्षेत्र (कोयनानगर) भी जोन 4 में है।
जोन 3:
इस क्षेत्र को ‘मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो MSK VII के अंतर्गत है। आईएस कोड जोन 3 के लिए 0.16 का जोन कारक निर्दिष्ट करता है। चेन्नई, मुंबई, कोलकाता और भुवनेश्वर, जमशेदपुर, अहमदाबाद, पुणे, सूरत, लखनऊ, वडोदरा, मंगलोर, विजयवाड़ा तथा पूर्ण केरल राज्य जैसे कई बड़े क्षेत्र इस जोन में स्थित हैं।
जोन 2:
यह क्षेत्र MSK VI या उससे कम के प्रमाण के अंतर्गत आता है और इसे ‘कम क्षति जोखिम क्षेत्र’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। आईएस कोड जोन 2 के लिए 0.10 का जोन कारक निर्दिष्ट करता है। यह वह क्षेत्र है जहां भूकंप आने की संभावना कम होती है। बेंगलुरु, हैदराबाद, विशाखापत्तनम, नागपुर, रायपुर, ग्वालियर, जयपुर, तिरुचिरापल्ली, मधुराई जैसे शहर इस जोन में हैं।
हमारे देश का लगभग 11% क्षेत्र ज़ोन 5में, 18% ज़ोन 4में, 30% ज़ोन 3में और शेष क्षेत्र ज़ोन 2में आता हैं।जैसे कि हमनें देखा हैं, दिल्ली शहर जोन 4 में आताहै। साथ ही, हमारा निकट शहर गोरखपुर भी जोन 4 का शहर है, जबकि, हमारा लखनऊ शहर जोन 3 का शहर है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र(National Centre for Seismology) संपूर्ण देश तथा भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप की निगरानी के लिए भारत सरकार की नोडल संस्थान(Nodal agency) है। इस उद्देश्य के लिए, भूकंप विज्ञान केंद्र एक राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क का रखरखाव करता है, जिसमें देश भर में फैली 115 वेधशालाएं शामिल हैं।
दरअसल, आज हम जिस यांत्रिक पद्धति से भूकंप की तीव्रता को मापतेहै, वह एक वैज्ञानिक की देन है। 1857 से, रॉबर्ट मैलेट(Robert Mallet) ने आधुनिक यांत्रिक भूकंप विज्ञान की नींव रखी और विस्फोटकों का उपयोग करके भूकंपीय प्रयोग किए। “भूकंप विज्ञान(Seismology)” शब्द को गढ़ने काश्रेयभी उनेजाताहै हैं।जबकि, भूकंप विज्ञानभूकंप एवं पृथ्वी या अन्य ग्रहीय पिंडों के माध्यम से उत्पन्न होने वाली लोचदार तरंगों के प्रसार का वैज्ञानिक अध्ययन है। इसमें सुनामी जैसे भूकंप के पर्यावरणीय प्रभावों के साथ-साथ ज्वालामुखी, टेक्टोनिक, हिमनद, नदी, समुद्री, वायुमंडलीय और विस्फोट जैसी कृत्रिम प्रक्रियाओं जैसे विविध भूकंपीय स्रोतों का भी अध्ययन भी शामिल है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ms4xcbjs
https://tinyurl.com/mryuw5r7
https://tinyurl.com/bdz6ujjs
चित्र संदर्भ
1. भूकंप के कारण क्षतिग्रस्त हुए एक घर और भारत के भूकंप के जोन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, PIXNIO)
2. 1900 से 2017 तक आये (एम6.0+) भूकंपो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत में भूकंप के विविध जोन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भूकंप से जर्जर इमारतों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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