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बचपन एक ऐसा समय होता है जब हर बच्चा अपने माता-पिता के साथ खेलता, पढ़ाई करता और खुशियों का आनंद लेता है। लेकिन हर किसी को यह नसीब नहीं होता, विश्व में एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो पारिवारिक खुशियों से वंचित है, उनके सिर से माता पिता का साया उठ गया है और वे अनाथों की श्रेणी में जीवन यापन कर रहे हैं। भारत में 30 मिलियन से भी ज्यादा अनाथ बच्चे हैं, जिनमें से एक बहुत बड़ा तबका हमारे उत्तर प्रदेश में मौजूद है।जैसे-जैसे हमारे उ.प्र. की आबादी बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे अनाथालयों की आवश्यकता पहले से भी अधिक होती जा रही है। हाल ही में लखनऊ के एक अनाथालय से गोद ली गयी एक लड़की का अंतरराष्ट्रीय मामला सामने आया,जो गोद लेने की प्रक्रियाओं पर फिर से विचार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
मिनेसोटा शहर, अमेरिका (Minnesota) की महोगनी एम्बरकाई (Mahogany Emberkai) नामक बालिका को लखनऊ से 21 साल पहले एक अमेरिकी महिला ने गोद लिया था। हाल ही में महोगनी, कई हजार किलोमीटर की यात्रा करके अपने जैविक परिवार का पता लगाने के लिए लखनऊ आयी। दरअसल नन्ही सी महोगनी को लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया गया था, जहां से उन्हें एक अनाथालय में ले जाया गया , और तब 2002 में एक अमेरिकी महिला (कैरोल ब्रांड) ने उन्हें गोद ले लिया और उन्हें अमेरिका ले गई। अब उत्सुकता में महोगनी अपना इतिहास जानने के लिए लखनऊ वापस आई। महोगनी ने यहां लखनऊ आकर बताया कि उनकी पालक माता कैरोल ब्रांड, एकल थी जिनका व्यवहार इनके साथ बहुत अच्छा नहीं था, और उन्हें उनके इतिहास के बारे में कभी भी कुछ नहीं बताया था।इनके पास अपनी बचपन की याद के नाम पर एक धुंधली तस्वीर है, जो उनके परिवार को खोजने के लिए पर्याप्त नहीं है फिर भी वह एक उम्मीद के साथ अपनी कोशिश में लगी हुयी हैं।
हम आशा करते हैं कि जल्द ही महोगनी अपने वास्तविक माता पिता और परिवार का पता लगा पाएंगी।
हमारे लखनऊ शहर में ऐसे कई अनाथ बच्चे हैं जो अपने माता-पिता से अलग अनाथालयों में जीवन काट रहे हैं।लखनऊ का मनीषा मंदिर बालिका आश्रय गृह ऐसे बच्चों को आश्रय देने का महान कार्य कर रहा है, भले ही इसके प्रबंधन से संबंधित कुछ मुद्दे 4 साल पहले मीडिया के सामने आए थे। फिर भी, अनाथालय चलाना कोई आसान काम नहीं है,लखनऊ और उ. प्र. के संदर्भ में, खासकर बढ़ती जनसँख्या को देखते हुए, यह एक महत्वपूर्ण कार्य है।
डॉ. सरोजिनी अग्रवाल, ने मनीषा मंदिर (जिसे निराश्रितों का घर कहा जाता है) की नींव रखी थी। वह आश्रम में रहने वाली हज़ारों लड़कियों और युवा महिलाओं के लिए 'मां' के समान हैं, और यहां वे अपनी गोद ली हुई बेटियों का स्नेहपूर्वक पालन-पोषण करती हैं। यहाँ हम आपको बता दें कि इस आश्रम की नींव उन्होंने 1978 में अपने जीवन में हुयी सबसे बड़ी त्रासदी के बाद रखी, जब उनकी आठ वर्षीय बेटी मनीषा की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। डॉ.अग्रवाल के लिए यह विपत्ति असहनीय रूप से दर्दनाक थी, क्यूंकि उस समय डॉ.अग्रवाल स्वयं ही वह दोपहिया वाहन चला रही थीं, जिस पर छोटी मनीषा पीछे बैठी थी। “मेरी बच्ची ही क्यों? यह सवाल उन्हें लगातार दर्द पहुंचाता रहा, आखिरकार एक दिन ईश्वर की दया से जवाब उनके पास आ ही गया।
80 वर्षीय डॉ.अग्रवाल बताती हैं, ''जिस दिन मेरा सबसे बड़ा बेटा इंजीनियर बना, मैंने परित्यक्त बच्चों के लिए एक घर बनाने का विचार अपने पति के सामने रखा,'' उनके पति, वी.सी.अग्रवाल अब मनीषा मंदिर की लड़कियों के लिए 'पापा' के समान हैं।
1985 में डॉ.अग्रवाल ने अपनी किताबों से रॉयल्टी(royalty) के रूप में अर्जित सारी धनराशि लगा कर, अपने ही घर में तीन कमरों में मनीषा मंदिर की स्थापना की । जिस पहली लड़की को उन्होंने गोद लिया था, वह एक मूक-बधिर बच्ची थी, जिस की तलाकशुदा मां की जन्म देते समय ही मृत्यु हो गई थी। जल्द ही, दो बहनें और आ गईं, जिनकी माँ की भी एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद, एक के बाद एक, बालिकाएं इनसे जुड़ती गयी, जिन्हें अवांछित समझकर सड़को पर छोड़ दिया गया था । कुछ लड़कियां वेश्यालयों से बाहर निकलकर यहाँ आयी। डॉ.अग्रवाल ने अपने घर के गेट के पास एक पालना लटकाना भी शुरू किया, जिसे उन्होंने 'अंजीवन पालना' या जीवन का पालना नाम दिया, यहां, लोग नवजात शिशुओं को सड़कों पर छोड़ने के बजाय, छोड़ सकते थे।
डॉ.अग्रवाल कहती हैं “हमने दो दिन की बच्चियों को भी गोद लिया है। तब मुझे समझ आया कि मां बनने के लिए आपको बच्चे को जन्म देने की जरूरत नहीं है। जब मैं उन बच्चों को गोद में लेती हूं तो मेरी बेटी की चाहत पूरी हो जाती है। शुरू में, मुझे लड़कियों को पालने में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और उनकी मदद करने के लिए हर संभव कोशिश करती रही,'' डॉ.अग्रवाल कहती हैं, यह सुनकर उन्हें सबसे ज्यादा खुशी हुई कि उनकी लड़कियाँ उन्हें “मां” बुलाती हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, मनीषा मंदिर ने कई बार पते बदले हैं और अब यह लखनऊ के गोमती नगर क्षेत्र में एक विशाल, तीन मंजिला घर में स्थित है।इसमें एक पुस्तकालय, एक कंप्यूटर लैब, शिल्प कार्यशालाएं, मनोरंजन हॉल, शयनगृह, झूले वाले बगीचे, बास्केटबॉल और बैडमिंटन कोर्ट और एक टेलीविजन कक्ष सहित कई अन्य सुविधाएं हैं, जो बच्चों के लिए आरामदायक और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करती हैं। लड़कियां सिलाई, बुनाई भी सीखती हैं और अन्य व्यावसायिक कौशल भी यहां सिखाए जाते हैं। घर के लगातार बढ़ते खर्चों को पूरा करने के लिए, अग्रवाल ने इमारत की ऊपरी मंजिल पर एक बड़ा हॉल बनाया है और इसे समारोहों के लिए किराए पर दिया जाता है। डॉ.अग्रवाल यह भी सुनिश्चित करती हैं कि लड़कियों को सर्वोत्तम शिक्षा मिले। वह कहती हैं“केवल अच्छी शिक्षा ही लड़कियों को स्वतंत्र बना सकती है, जो उनके आत्मविश्वास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, हम उन्हें अच्छे और प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं। हमारी कई लड़कियों ने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है और अच्छी नौकरियां हासिल की हैं।" इस महान कार्य में, उनके परिवार ने भी लगातार हर संभव मदद की है!
मनीषा मंदिर द्वारा ली गई परित्यक्त और अनाथ लड़कियाँ, 17-18 वर्ष की आयु तक घर पर रहती हैं और फिर उन्हें नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अब तक, लगभग 800 लड़कियाँ घर पर रह चुकी हैं और उनमें से कई ने बैंक प्रबंधक, शिक्षक और प्रिंसिपल के रूप में अपनी पहचान बनाई है, जबकि अन्य की शादी अच्छे परिवारों में हुई है। कई लड़कियों को कानूनी गोद लेने के माध्यम से पुनर्वासित भी किया गया है। डॉ.अग्रवाल को उनके प्रेरणादायक काम के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें बच्चों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल है।
लखनऊ में ऐसी कई संस्थाएं हैं जो अनाथ बच्चों को पनाह दे रहे हैं, आईये जानते हैं लखनऊ में स्थित अनाथ आश्रमों के बारे में:
1) लीलावती मुंशी बाल गृह: लीलावती मुंशी बाल गृह लखनऊ का एक पुराना अनाथालय है। यह बच्चों को कड़ी सुरक्षा के साथ बेहतर सुविधाएं देता है। अनाथाश्रम के लोग अनाथ बच्चों के भरण-पोषण का ध्यान रखते हैं। यहां पर समय-समय पर डॉक्टर बच्चों का चेकअप करने के लिए आते हैं। आश्रम का मकसद हीं यहीं है कि प्रत्येक बच्चे के चेहरे पर मुस्कान बनी रहे!
2) राजकीय बाल गृह: यहां के आश्रम के लोगों द्वारा प्रत्येक बच्चे की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है।
3) श्रीमद दयानंद बाल सदन: यहां पर सभी बच्चों को अच्छा खाना, शिक्षा और देखभाल की बेहतर सुविधाएं मिलती है।
4) श्री राम औद्योगिक अनाथालय: रायबहादुर श्री राम बहादुर द्वारा सन् 1911 में बनाया गया,यह आश्रम उद्योगों में काम करने वाले गरीब मजदूरों के बच्चों को अच्छी शिक्षा और उनके बेहतर भविष्य के लिए संचालित किया जाता है। यहां पर उन्हें गुणवत्तापूर्ण खाना भी उपलब्ध कराया जाता है।
संदर्भ:
https://shorturl.at/doDMU
https://shorturl.at/vGLW9
https://shorturl.at/y0237
https://shorturl.at/sHQ78
https://shorturl.at/gzGI9
https://rb.gy/hm7tl
https://tinyurl.com/bdht27xa
चित्र संदर्भ
1. एक व्यक्ति को जिज्ञासा से देखते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (PickPik)
2. झुग्गी में रहने वाले नन्हे गरीब बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wallpaperflare)
3. एक बच्चे को अपने गोद में बिठाए महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक नन्हे पिल्ले को हाथ में उठाये गरीब बच्ची को दर्शाता एक चित्रण (wallpaperflare)
5. स्कूल में पढ़ती बच्चियों को दर्शाता एक चित्रण (wallpaperflare)
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