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छोटे द्वीपों पर महाद्वीपीय प्रजातियों की तुलना में जानवरों और पक्षियों की प्रजातियों का इंसानों द्वारा विलुप्त होना आम बात है। यूरोपीय लोगों के संपर्क में आने के कारण, दुनिया भर में विलुप्त हो चुकी पक्षियों की कुल 94 प्रजातियों में से केवल 9 प्रजातियां ही महाद्वीपीय थी, अर्थात, 85 पक्षी प्रजातियां छोटे-छोटे द्वीपों से संबंधित थी। द्वीपों पर इनकी विलुप्ति के लिए ज़िम्मेदार कुछ कारण वनों की कटाई, वनों में आग, चरने वाले स्तनधारियों का वन भ्रमण, खेती और खरपतवार पौधों का बढ़ना आदि हैं। इसके अलावा, द्वीपीय प्रजातियां मानव उपनिवेशीकरण से पहले भी अपनी कम आबादी, प्रतिबंधित आनुवंशिक विविधता तथा संकीर्ण सीमाओं के कारण भी विलुप्त होने की उच्च दर का सामना करती रही हैं। साथ ही, मानव–जनित भूमि परिवर्तन इन प्रजातियों के महत्वपूर्ण आवासों को नष्ट कर देते हैं, जिससे दुनिया भर में द्वीपीय प्रजातियों को भारी नुकसान पहुंचता है।
विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियों में से एक उदाहरण, विश्व की सबसे बड़ी जीवित कछुआ प्रजाति का है। दुनिया के कुछ सबसे बड़े कछुओं में गैलापगुस कछुआ (Galápagos tortoise), ऑल्डैब्रा कछुआ (Aldabra tortoise) और सल्केटा कछुआ (Sulcata) आदि शामिल हैं। आइए, आज गैलापगुस कछुए के बारे में जानते हैं।
गैलापगुस कछुआ, जिसका वैज्ञानिक नाम, चेलोनोइडिस नाइजर (Chelonoidis niger) है, विश्व में कछुओं की सबसे बड़ी प्रजाति है। इस प्रजाति की 15 उप-प्रजातियां भी है, जिसमें से वर्तमान समय में 13 प्रजातियां मौजूद हैं, जबकि, 2 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। 100 वर्षों से भी अधिक जीवनकाल के साथ, ये कछुए सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले कशेरुकियों में से भी एक है। एक वयस्क गैलापगुस कछुए की औसत लंबाई 31 इंच से 53 इंच तक तथा औसत वजन 185 किलोग्राम से 417 किलोग्राम तक हो सकता हैं।
दरअसल, गैलापगुस कछुए प्रशांत महासागर में स्थित सात गैलापगुस द्वीपों की मूल निवासी प्रजाति हैं। इनके खोल का आकार उनकी उप-प्रजातियों और आबादी के बीच भिन्न-भिन्न होता है। आर्द्र उच्चभूमि वाले द्वीपों पर, ये कछुए बड़े, गुंबददार खोल और छोटी गर्दन वाले होते हैं। जबकि, शुष्क तराई क्षेत्र वाले द्वीपों पर, ये कछुए छोटे, काठी जैसे खोल (Saddleback shell) और लंबी गर्दन वाले होते हैं।
‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) द्वारा भी, इन कछुओं की शेष उप- प्रजातियों को विलुप्त होने की कगार से लेकर असुरक्षित होने तक की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। इनकी धीमी वृद्धि दर, देरी से यौन प्रौढ़ता तथा द्वीप स्थानिकता के कारण इन कछुओं को विशेष रूप से विलुप्त होने का खतरा है।
आज से, दो शताब्दी पहले, गैलापगुस द्वीप समूह पर इन कछुओं की संख्या 2 लाख से अधिक थी, किंतु आज इनकी संख्या मूल संख्या की केवल 10% ही है। कछुओं की आबादी का बचाव और अंततः पुनर्प्राप्ति धीमी और स्थिर रही है। गैलापगुस कछुओं की आबादी में गिरावट मुख्य रूप से 19वीं सदी की शुरुआत में, व्हेल(Whale) मछली का शिकार करने वाले जहाजों द्वारा इनके अत्यधिक शोषण के कारण हुई थी। दूसरी ओर, हाल के वर्षों में, गैलापगुस कछुओं को आक्रामक प्रजातियों द्वारा शिकार, अपने निवास स्थान के विनाश एवं मनुष्यों द्वारा आबाद द्वीपों पर बढ़ते मानव-कछुआ संघर्षों से खतरा है।
अभी हाल ही में, येल विश्वविद्यालय (Yale University) के वैज्ञानिकों ने फर्नैंडीना द्वीप (Fernandina Island) पर 2021 की शुरुआत में खोजी गई एक अकेली मादा कछुआ तथा फर्नैंडीना विशाल कछुआ (Giant Tortoise) जिसका वैज्ञानिक नाम चेलोनोइडिस फैंटास्टिकस (Chelonoidis phantasticus) है, के बीच आनुवंशिक समानता की पुष्टि की है, जो गैलापगुस कछुए की ही एक उप-प्रजाति है। आनुवंशिक विश्लेषण से अब पुष्टि हो चुकी है कि यह मादा कछुआ द्वीप के मूल निवासी चेलोनोइडिस फैंटास्टिकस कछुआ प्रजाति से संबंधित है,जिससे वैज्ञानिकों में इस प्रजाति के संरक्षण के लिए कुछ उम्मीद बंधी है।
दूसरी ओर, हमारे देश भारत में भी कछुओं की कुछ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। क्या आप जानते हैं कि मनोरिया एमीस (Manouria emys) प्रजाति के दस किशोर एशियाई विशालकाय कछुओं (Asian Giant Tortoise) को 19 दिसंबर, 2022 को नागालैंड के एक संरक्षित क्षेत्र में छोड़ा गया था। दरअसल, इन कछुओं का जन्म कैप्टिव–ब्रीडिंग (Captive breeding) तकनीक से हुआ था। एशियाई विशालकाय कछुए को ‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ की संकटग्रस्त प्रजातियों की ‘लाल सूची (Red list)’ के तहत ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
अतः नागालैंड वन विभाग (Nagaland Forest Department), एक गैर-लाभकारी संस्थान ‘कछुआ जीवन रक्षा संगठन’ (Turtle Survival Alliance) तथा भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (Wildlife Conservation Society India) इस प्रजातियों को फिर से जंगल में बढ़ने तथा इनकी जनसंख्या में सुधार के उद्देश्य से, इन कछुओं को संरक्षित क्षेत्र में छोड़ने की परियोजना पर कार्यरत हैं। इन कछुओं का उनकी रिहाई से पहले, नागालैंड प्राणी उद्यान, दीमापुर में पांच साल तक संरक्षण और प्रजनन किया गया था। इन किशोरों का जन्म 2018 में हुआ था और उनका औसत वजन 2.4 किलोग्राम है।
110 नवजात शिशुओं एवं 13 वयस्क किशोरों के साथ, नागालैंड प्राणी उद्यान में एशियाई विशालकाय कछुओं की संख्या सबसे अधिक है। इस परियोजना का उद्देश्य वैज्ञानिक जानकारी एकत्र करना तथा बेहतर पुनर्जनन रणनीति विकसित करना भी है। यह प्रयास क्षेत्रीय पैमाने पर इन प्रजातियों की पूरकता के लिए, दीर्घकालिक निगरानी और अंतिम रिहाई रणनीति विकसित करने के लिए पहली आधारभूत जानकारी तैयार करेगा।
एशियाई विशालकाय कछुओं की प्रजातियां भी स्थानीय समुदायों द्वारा उपभोग के लिए अत्यधिक शोषण और अस्थिर उपयोग के परिणामस्वरूप विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं। और अब यह प्रयास इन प्रजातियों को फिर से आबाद करने की दिशा में पहला कदम है। साथ ही, दीर्घकालिक कार्यक्रम में स्थानीय समुदायों को शामिल करना और उन्हें प्रजातियों के संरक्षण में सक्रिय भागीदार बनाने के लिए जागरूकता पैदा करना भी शामिल है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5xdrsamm
https://tinyurl.com/3u248wbc
https://tinyurl.com/56xfb84p
https://tinyurl.com/2jaxrnu2
https://tinyurl.com/ycn294f8
चित्र संदर्भ
1. गैलापगुस को नजदीक से दर्शाता एक चित्रण (pexels)
2. गैलापागोस द्वीप समूह पर विशाल कछुए को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गैलापगुस द्वीप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. संग्रहालय में रखे गैलापगुस कछुए को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. चेलोनोइडिस फैंटास्टिकस को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
6. नन्हे कछुओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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