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श्रीमद्भगवद्गीता को सनातन धर्म की नीवं माना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता का अर्थ है, 'ईश्वर का गीत'। भगवत गीता मुख्य रूप से महाभारत के सबसे कुशल योद्धा अर्जुन को उनके सारथी रहे भगवान श्री कृष्ण द्वारा, कुरुक्षेत्र में युद्ध की पूर्व संध्या पर दिए गए उपदेश का लिखित रूप है। श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है, और इसमें 18 अध्याय तथा 700 श्लोक वर्णित हैं। हालांकि ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवत गीता के अलावा भी कई ऐसे गीत अथवा उपदेश (गीताएँ) हैं, जो अलग अलग कालखंड में अलग-अलग विद्वानों द्वारा बोले और रचे गए हैं।
आज हम इनमें से प्रमुख चालीस प्रकार की गीताओं के बारे में संक्षेप में जानेगे।
१. अनु गीता: अनुगीता एक प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रंथ है, जो मूल रूप से महाभारत का ही एक हिस्सा है। इसमें महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद को दर्शाया गया है। अनुगीता में नैतिकता के साथ-साथ अस्तित्व की प्रकृति सहित विभिन्न विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। अनुगीता का शाब्दिक अर्थ गीता का अनु ("निरंतरता, साथ-साथ, अधीनस्थ") होता है।
२.अष्टावक्र_गीता: अष्टावक्र गीता एक प्राचीन हिंदू ग्रंथ है जिसमें "ऋषि अष्टावक्र" और मिथिला के राजा "जनक" के बीच हुए संवाद को उल्लेखित किया गया है। यह पाठ अद्वैत वेदांत दर्शन पर केंद्रित है, जो कहता है कि "ब्रह्म ही एकमात्र वास्तविकता है और संसार में शेष सब कुछ एक भ्रम है।" अष्टावक्र गीता, को अष्टावक्र नामक ऋषि द्वारा रचा गया है। अष्टावक्र नाम का शाब्दिक अर्थ "जिसका शरीर आठ जगह से टेढ़ा " होता है। अष्टावक्र ऋषि, शारीरिक रूप से आठ जगहों से टेढ़े थे, लेकिन वह बचपन से ही बहुत बुद्धिमान भी थे। अष्टावक्र गीता की रचना का काल निर्धारण (रचना का समय) अनिश्चित है। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि इसे 5वीं-4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लिखा गया था, लेकिन कई विद्वान यह भी मानते हैं कि इसे बहुत बाद में, लगभग 8वीं या 14 वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था।
३. अवधूत गीता: अवधूत गीता, हिंदू धर्म में एक प्राचीन संस्कृत पाठ है, जिसमें आत्मा की मुक्ति की यात्रा का वर्णन किया गया है। इसकी रचना का श्रेय ऋषि दत्तात्रेय को दिया जाता है। दत्तात्रेय हिंदू दर्शन के अद्वैत और द्वैत दोनों दर्शन विद्यालयों में पूजनीय माने जाते हैं। माना जाता है कि अवधूत गीता को संभवतः 9वीं या 10वीं शताब्दी ईस्वी में भारत के दक्कन राज्यों (आधुनिक महाराष्ट्र) में रचा गया था। यह पाठ 8 अध्यायों में संरचित है, जिनमें आत्म-बोध की यात्रा का वर्णन किया गया है। अवधूत गीता हमें सिखाती है कि आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति "स्वाभाविक रूप से, निराकार, सर्वव्यापी आत्मा" होता है।
४. भिक्षु गीता: भिक्षु गीता, राजा परीक्षित और ऋषि शुक के बीच हुए संवाद का लेखन रूप है। इसमें वेदांत दर्शन, ब्राह्मण और आत्मा पर एक संक्षिप्त विवरण दिया गया है।
५. ब्राह्मण गीता: ब्राह्मण गीता भी अनु गीता का ही एक हिस्सा मानी जाती है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण को ब्रह्मांड के परम नियंत्रक के रूप में दर्शाया गया है।
६. बोध्य गीता: बोध्य गीता में महाभारत के दौरान ऋषि बोध्य और राजा ययाति के बीच हुए संवाद को लिखा गया है।
७. ब्रह्म गीता: ब्रह्म गीता भगवान ब्रह्मा द्वारा वदित ब्रह्मपुराण (भाग 1) के तीन अध्यायों, अध्याय 35, अध्याय 37 और 38 तथा श्लोक 96 और 97 का वर्णन है।
८. देवी गीता: देवी गीता, महर्षि व्यास द्वारा लिखित "देवी भागवत" का ही हिस्सा है। इसमें हमें देवी के एक अवतार के बारे में बताया गया है जिसमें वह अपनी प्रकृति, ध्यान, योग प्रथाओं, अनुष्ठानों और अन्य तपस्याओं के साथ -साथ अपनी पूजा की प्रकृति का भी वर्णन करती है।
९. गणेश गीता: गणेश गीता, श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित गणेश पुराण से ली गई है, जिसमें श्री गणेश को दिव्य और केंद्रीय भूमिका दी गई है। "गणेश गीता मूलतः राजा वरेण्य और गजानन “भगवान गणेश" के बीच का एक संवाद है।
१०. गोपिका गीता: गोपिका गीता, बृंदावन की गोपियों और भगवान कृष्ण के प्रति उनके गहरे और निस्वार्थ प्रेम का एक गीत है। यह भागवत पुराण के दसवें अध्याय में वर्णित भगवान विष्णु की कहानी है, जिसे महर्षि शुक ने राजा जनमेजय को सुनाया था।
११. गुरु गीता: गुरु गीता की रचना महर्षि व्यास द्वारा की गई थी। यह भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच हुए संवाद का लिखित रूप है, जिसमें माँ पार्वती भगवान शिव से उन्हें गुरु तत्व के बारे में सब कुछ सिखाने के लिए कहती हैं।
१२. हंस गीता: हंस गीता को उद्धव गीता भी कहा जाता है। इसमें भगवान् श्री कृष्ण द्वारा अपना नश्वर शरीर छोड़ने से पहले उद्धव को कहे गए अंतिम प्रवचन शामिल है।
१३. हनुमद गीता: हनुमद गीता वे प्रवचन हैं जिन्हें रावण की हार और भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद लंका से लौटने पर देवी सीता ने बजरंगबली हनुमान को दिया था।
१४. हरित गीता: हरित गीता महाभारत, मोक्ष पर्व शांति पर्व के एक भाग के रूप में वर्णित है। इसमें संन्यास के साथ-साथ अहिंसा पर भी चर्चा की गई है। इसमें हरित मुनि से संबंधित बीस छंद उल्लेखित हैं।
१५. ईश्वर गीता: ईश्वर गीता में कूर्म पुराण के उत्तर विभाग के पहले ग्यारह अध्याय शामिल हैं। इसमें भगवान शिव की शिक्षाएं उल्लेखित हैं। साथ ही इसमें भगवद गीता की शिक्षाओं के साथ-साथ लिंग की पूजा, पतंजलि के आठ गुना योग जैसे अन्य विषय भी शामिल हैं।
१६. कपिला गीता: कपिला गीता भी श्रीमद्भागवत पुराण का ही एक अंश है। इसमें ऋषि कपिला द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश कर रही, अपनी बूढ़ी मां देवहुति को सांत्वना देते हुए कथन वर्णित हैं।
१७. मानकी गीता: मानकी गीता में महाभारत से मानकी नाम के एक संत और उनके दो बैलों की 50 श्लोकों में वर्णित कहानी दी गई है। इसका मूल संदेश इच्छा और लालच को त्यागना तथा सभी प्राणियों के लिए दया विकसित करना है।
१८. पांडव गीता या प्रपन्न गीता: पांडव गीता को “समर्पण का गीत” भी कहा जाता है। यह एक प्रकार से पौराणिक युग की कई महान विभूतियों के द्वारा श्री कृष्ण और पांडवों की महिमा में कहे गए वचनों का संकलन है।
१९. पराशर गीता: पराशर गीता भी महाभारत से प्रेरित है। इसमें नौ अध्याय हैं और ऐसा कहा जाता है कि यह महर्षि व्यास के पिता ऋषि पराशर और राजा जनक के बीच का संवाद है।
२०. पिंगला गीता: पिंगला गीता भी महाभारत का ही एक भाग है, जिसमें श्रीकृष्ण द्वारा उद्धव को पिंगला और उसकी मुक्ति की कहानी बताई गई है।
२१. राम गीता: राम गीता, रामायण से ली गई है, जो उत्तर खंड के 5वें सर्ग में ब्रह्माण्ड पुराण का एक हिस्सा है।
२२. रमण गीता: रमण गीता को रमण महर्षि द्वारा संस्कृत में लिखा गया था। इसे उनके प्रमुख शिष्यों में से एक श्री गणपति मुनि ने अभिलेखित किया था।
२३. रिभु गीता: रिभु गीता शिव रहस्य पुराण का छठा भाग है। इसमें ऋषि रिभु और ऋषि निदाघ के बीच आत्म और ब्रह्म पर लगभग दो हजार छंदों में हुए संवाद को लिखित रूप दिया गया है।
२४. रुद्र गीता: रुद्र गीता भगवान शिव द्वारा प्रजापति दक्ष को दिए गए निर्देशों की एक श्रंखला है। इसमें भगवान विष्णु की महिमा को समर्पित छंद भी शामिल हैं। इसमें मुक्ति और आत्म-प्राप्ति के मार्ग के हेतु भगवान विष्णु की पूजा करने के महत्व तथा हिंदू धर्म और इसकी शिक्षाओं के बारे में भी चर्चा की गई है।
२५. संपाक गीता: संपाक गीता भी महाभारत का एक भाग है। इसमें इक्कीस श्लोक दिए गए हैं, जिनमें एक विद्वान और धर्मपरायण ब्राह्मण “सांपक” यह संदेश देते हैं कि व्यक्ति केवल त्याग के माध्यम से ही शाश्वत सुख प्राप्त कर सकता है।
२६. शिव गीता: शिव गीता पद्म पुराण का भाग है और इसमें 16 अध्याय दिए गए हैं। इस गीता में, लंकेश रावण द्वारा माता सीता के हरण करने के बाद दुखी हुए, प्रभु श्री राम को ऋषि अगस्त्य सांत्वना देते हैं। वह उन्हें भगवान शिव की प्रार्थना करने की सलाह देते हैं। इसके बाद भगवान राम के समक्ष, भगवान शिव प्रकट होते हैं।
२७. श्रुति गीता: श्रुति गीता भी श्रीमद्भागवत के अध्याय 87 में निहित है। इसमें राजा परीक्षित, ऋषि शुक से गुणों वाले देवताओं के सिद्धांत के विरुद्ध गुणहीन ब्रह्म की व्याख्या करने के लिए कहते हैं।
२८. सूर्य गीता: सूर्य गीता गुरु ज्ञान वसिष्ठ द्वारा विरचित धार्मिक पाठ है। इस पाठ में तीन भाग: ज्ञान काण्ड (ज्ञान), उपासना काण्ड (आध्यात्मिक अभ्यास) और कर्म काण्ड (क्रियाएँ) हैं।
२९. सुत गीता: सुत गीता स्कंध पुराण के यज्ञ वैभव कांड के अध्याय 13 से 20 तक का संकलन है। इसमें द्वैतवाद का खंडन और अद्वैतवाद का समर्थन किया गया है।
३०. स्वामीनारायण गीता या योगी गीता: स्वामीनारायण गीता श्री योगीजी महाराज की शिक्षाओं और प्रार्थनाओं का चयन है। श्री योगीजी महाराज, स्वामीनारायण के चौथे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। इसमें वह एक भक्त को मुक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए अभ्यास करने के आवश्यक गुण प्रदान करते हैं।
३१. उत्तर गीता: उत्तर गीता में भी श्री कृष्ण, अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर देते हैं। अपने राज्य और भौतिक संसार के सभी सुखों का आनंद लेने के बाद, अर्जुन के मन में वैराग्य की भावना आ गई, जिसके बाद वह ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए श्री कृष्ण के पास जाते हैं।
३२. वल्लभ गीता: वल्लभ गीता में श्री वल्लभ ने अपने शिष्यों को जीवन के सच्चे लक्ष्य यानी मुक्ति की तलाश करने की शिक्षा दी है। यह श्री वल्लभ के सोलह कार्यों का संग्रह है जिसमें सभी प्रकार के विषयों पर चर्चा की गई है।
३३. वसिष्ठ गीता या योग वसिष्ठ: वसिष्ठ गीता महर्षि वसिष्ठ द्वारा राजकुमार राम को दिए गए उपदेशो का संकलन है। इसमें 32000 श्लोक हैं और यह अद्वैत वेदांत तथा इसके सिद्धांतों से जुडी हुई है।
३४. विभीषण गीता: विभीषण गीता में भगवान राम द्वारा लंका के युद्ध के मैदान में विभीषण को दी गई शिक्षाएं शामिल हैं। इसमें श्री राम, विभीषण को भक्ति, विश्वास और सही मूल्यों के गुणों को अपनाने की सलाह देते हैं।
३५. विचख्नु गीता: विचख्नु गीता महाभारत, मोक्षपर्व का भाग है। इसमें अहिंसा पर बात की गई है। इसमें ग्यारह छंद हैं और इसे भीष्म ने युधिष्ठिर को सुनाया था।
३६. विदुर गीता: विदुर गीता, विदुर और राजा धृतराष्ट्र के बीच हुए संवाद का लिखित रूपांतरण है जिसमें विदुर न केवल धृतराष्ट्र को राजनीति के विज्ञान के बारे में सलाह देते हैं बल्कि सही आचरण, निष्पक्षता और सच्चाई के मूल्यों का पालन करने की सलाह भी देते हैं।
३७. वृत्र गीता: वृत्र गीता महाभारत, मोक्ष पर्व, शांति पर्व के एक भाग के रूप में लिखी गई है। इसमें दो अध्याय हैं और यह राक्षस वृत्रासुर और सभी राक्षसों (असुरों) के गुरु शुक्राचार्य के बीच हुआ एक संवाद है।
३८. व्याध गीता: व्याध गीता, महाभारत के वन पर्व से ली गई है और इसमें एक कसाई (व्याध) द्वारा एक भिक्षु को दी गई शिक्षा शामिल है।
३९. व्यास गीता: व्यास गीता कूर्म पुराण से ली गई । इसमें महर्षि व्यास आत्म ज्ञान का उच्चतम मार्ग सिखाते हैं। यह आस्थाओं की एकता और अद्वैतवाद के दर्शन पर जोर देती है।
४०. यम गीता : यम गीता में वाजश्रवा नामक एक राजा के पुत्र “नचिकेता” की कहानी दी गई है। संक्षेप में, यम गीता, आत्मा की प्रकृति और मुक्ति के मार्ग को समझने के लिए नचिकेता और यम के बीच हुए संवादो का संकलन है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdh6zfej
https://tinyurl.com/dsv3jx77
चित्र संदर्भ
1. विविध गीता उपदेशों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia,
songngunhatanh)
2. कुरुक्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
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