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यादव वंशज हैहय,व् नर्मदा नदी किनारे उनकी पौराणिक राजधानी महिष्मती,जो है आज का महेश्वर शहर

लखनऊ

 29-09-2023 09:36 AM
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक

शायद ही हम में से कोई ऐसा हो जिसने बाहुबली फिल्म न देखी हो। बाहुबली की कहानी महिष्मती राज्य पर आधारित है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह काल्पनिक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक नहीं है इसमें कुछ सच्चाई भी है! आईए जानते हैं। हैहय (Haihaya) राजवंश, जो स्वयं को यादवों का वंशज मानते थे, माना जाता है कि उनकी पौराणिक राजधानी ‘महिष्मती’ मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर स्थित महेश्वर शहर था, जहां अहिल्याबाई होल्कर ने अपना राज्य स्थापित किया था। महिष्मती वर्तमान मध्य भारत में प्राचीन शहर था। समय के साथ यह इतिहास से लुप्त होता गया और आज बहुत कम लोग जानते हैं कि यह एक भव्य साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। महिष्मति का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में किया गया है, और कहा जाता है कि इस पर प्रसिद्ध यादव हैहय शासक कार्तवीर्य अर्जुन का शासन था। हैहय पांच गणों (कबीलों) का एक प्राचीन संघ था। हरिवंश पुराण (34.1898) के अनुसार, हैहय यदु के प्रपौत्र और सहस्रजित के पौत्र थे। विष्णु पुराण (IV.11) में, सभी पांच हैहय कुलों का उल्लेख तालजंघा के रूप में किया गया है। पांच हैहय वंश वितिहोत्र, शर्यात, भोज, अवंती और टुंडिकेरा थे। हैहय पश्चिमी मध्य प्रदेश के वर्तमान मालवा क्षेत्र के मूल निवासी थे। पुराणों में हैहयों को अवंती का पहला शासक वंश बताया गया है।
हैहय राजवंश से जुड़ी कई कहानियां एवं किवदंतियां प्रचलित हैं, आईए जानते हैं इनके बारे में-
हैहय राजवंश का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। महाभारत में उल्‍लेख किया गया है कि हैहय साम्राज्य मध्य और पश्चिमी भारत में चंद्रवंशी (यादव) राजाओं द्वारा शासित राज्यों में से एक था। इस पर रावण को हराने वाले कार्तवीर्य अर्जुन का शासन था। इसकी राजधानी वर्तमान मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित माहिष्मती थी। तलजंघा हैहय के पूर्व में उनका एक सहयोगी राज्य था। इन दोनों ने मिलकर भारत के कई अन्य राज्यों पर विजय प्राप्त की, अंतत: योद्धा भार्गवों के साथ शत्रुता के कारण ये दोनों साम्राज्य समाप्त हो गए। इस साम्राज्य को ख़त्म करने वाले भार्गव वंशज परशुराम थे।
इक्ष्वाकु राजाओं से विवाद: कौशल साम्राज्य के राजा सागर,जिनकी राजधानी अयोध्या थी, प्राचीन भारत के प्रसिद्ध शाही राजवंश इक्ष्वाकु के वंश से थे। सागर का उल्लेख जादू के पुत्र के रूप में किया गया है। कहा जाता है कि उनकी सेना में 60,000 सैनिक थे, उन सभी को वह अपने पुत्रों के समान मानते थे। कहा जाता है कि इक्ष्वाकु राजा सागर ने हैहय और तालजंघों को हराया था।
वत्स साम्राज्य के हैहय और तलजंघा हैहय और तलजंघों की उत्पत्ति संभवतः वत्स साम्राज्य में हुई थी। वत्स साम्राज्य में हैहय, जिन्हें सामूहिक रूप से विताहव्य के नाम से जाना जाता है, ने काशी राजाओं की चार पीढ़ियों : हर्यस्व, सुदेव, दिवोदास और प्रतर्ददान के शासनकाल के दौरान काशी पर हमला किया। उनमें से अंतिम प्रतर्दन ने हैहयों को हराया और संभवतः उन्हें वत्स साम्राज्य से निष्कासित कर दिया। काशी के राजा भी इक्ष्वाकु काल में पैदा हुए थे।
हर्यश्व के शासनकाल में: हैहय और तालजंघा, दोनों वत्स के पुत्र थे। हैहय की दस पत्नियाँ और सौ पुत्र थे, जिनमें से सभी युद्ध के प्रति अत्यधिक रूचि रखते थे। काशी में हर्यश्व नाम के एक राजा थे। राजा हैहय के पुत्रों, जिन्हें विताहव्य के नाम से भी जाना जाता था, ने काशी राज्य पर आक्रमण किया। गंगा और यमुना नदियों के बीच स्थित इस राज्य में आगे बढ़ते हुए, उन्होंने राजा हर्यश्व के साथ युद्ध किया और उन्हें परास्त किया। ।
सुदेव के अधीन इस बीच, हर्यश्व के पुत्र सुदेव को काशी के नए शासक के रूप में सिंहासन पर बैठाया गया। कुछ समय तक उसके द्वारा राज्य पर शासन करने के बाद वीतहव्य के सौ पुत्रों ने एक बार फिर उसके प्रभुत्व पर आक्रमण किया और उसे युद्ध में हरा दिया।
दिवोदास के अंतर्गत उसके बाद सुदेव के पुत्र दिवोदास को काशी के सिंहासन पर बैठाया गया। राजा दिवोदास ने, इंद्र के आदेश पर वाराणसी शहर का पुनर्निर्माण और किलेबंदी की। उनके शासनकाल में यह साम्राज्‍य संपन्‍न एवं समृद्ध था। उनका साम्राज्यगंगा के तट से लेकर गोमती के दक्षिणी तट तक उत्तर की ओर फैला हुआ था । यह साम्राज्य उस समय इतना समृद्ध था कि इसकी तुलना इंद्र की राजधानी अमरावती से की जा सकती है। हैहयों ने यहां एक बार फिर आक्रमण किया। शक्तिशाली राजा दिवोदास ने अपनी पूरी शक्ति के साथ एक हजार दिनों तक शत्रु से युद्ध किया, लेकिन अंत में, कई सैनिकों और जानवरों को खो देने के बाद, वह अत्यधिक व्यथित हो गए।खजाना समाप्त होने पर राजा दिवोदास ने अपनी हार मान ली और वह अपनी राजधानी छोड़कर भाग गए। उन्होंने अपने पुरोहित, बृहस्पति के पुत्र, भारद्वाज से सुरक्षा मांगी।
दिवोदास का पुत्र प्रतर्दन प्रतिशोध लेता है: दिवोदास एक ऐसे बहादुर पुत्र की कामना करते हैं जो वीतहव्यों का बदला ले सके। अपने पुरोहित भारद्वाज के आशीर्वाद से उन्हें प्रतर्दन नामक पुत्र की प्राप्ति हुई, जो युद्ध में निपुण था। दिवोदास ने अपने पुत्र को काशी के सिंहासन पर बैठाया और उसे विताहव्य के पुत्रों के विरुद्ध मोर्चा उठाने के लिए कहा। उसने तेजी से अपनी सेना के साथ गंगा पार की और विताहव्यास शहर की ओर आगे बढ़ा। वीतहव्य अपने शहर से बाहर निकले और विभिन्न प्रकार के हथियारों से प्रतर्दन पर टूट पड़े। प्रतर्दन ने युद्ध में उन सभी को मार डाला। तब हैहय राजा विताहव्य ने, अपने सभी पुत्रों और रिश्तेदारों के मारे जाने के बाद, अपने पुजारी भृगु से सुरक्षा मांगी। भृगु ने उन्‍हें ब्राह्मण बना दिया।
हैहय राजा कार्तवीर्य अर्जुन: कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रबाहु अर्जुन या सहस्त्रार्जुन) को एक महान राजा और भगवान दत्तात्रेय का भक्त बताया जाता है। एक हजार भुजाओं वाले अर्थात एक हजार भुजाओं के समान कार्य करने की क्षमता से संपन्‍न और महान सौंदर्य, शक्तिशाली कार्तवीर्य, ​​कम समय में ही पूरी दुनिया के स्वामी बन गए। उनकी राजधानी महिष्मति नगर में थी।
भार्गवों से शत्रुता हैहय राजवंश का भार्गव ब्राह्मणों के साथ विवाद का उल्लेख महाभारत में विभिन्न स्थानों पर मिलता है। कहा जाता है कि भार्गवों के वंशज, जमदग्नि के पुत्र, परशुराम ने हैहय राजा कार्तवीर्य अर्जुन को मार डाला था। उनका विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। भार्गवों ने पूरे भारत में अनेक क्षत्रिय राजाओं को मार डाला, जिनमें से अधिकांश कार्तवीर्य अर्जुन के सगे संबंधी थे। सहस्त्रबाहु अर्जुन के बाद, महिष्मती पर उनके कई हैहय वंशज राजवंशों जैसे वितिहोत्र या तलनजंघा, अवंती, कलचुरी और वृष्णि / चंदेल राजवंशों ने शासन किया । महिष्मती अवंती साम्राज्य के दक्षिणी भाग में सबसे महत्वपूर्ण शहर था, और बाद में अनुपा साम्राज्य की राजधानी बना। हरिवंश में, हैहय की राजधानी महिष्मती की स्थापना का श्रेय राजा महिष्मंत को दिया गया है, जो सहंज के पुत्र और यदु के वंशज थे। एक अन्य स्‍थान पर भगवान राम के पूर्वजों में से एक मुचुकुंद को महिष्मती का संस्थापक बताया गया है। इसमें कहा गया है कि उन्‍होंने रक्ष पर्वतों में महिष्मती और पुरिका नगरों का निर्माण किया। पद्म पुराण के अनुसार, शहर की स्थापना वास्तव में एक निश्चित महिष ने की थी।
कई प्रारंभिक मध्ययुगीन राजवंश, जिनमें कलचुरी और केरल के मुशकवंश मुशिका साम्राज्य शामिल हैं, स्‍वंय को हैहय राजवंश का वंशज बताते हैं। पूर्वी भारत के हैहयों ने मध्यकाल में इस्लामी आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। महाभारत और हिंदू पुराणों में कहा गया है कि 7वें हैहय सम्राट महिष्मान को महेश ने वरदान स्‍वरूप केवल हैहयों के लिए महिष्मति दी थी। वरदान में कहा गया था कि, “महिष्मती पर हैहयों का शासन समाप्त होने पर यह नगर समाप्त हो जायेगा और शेष भाग महेश्वर में परिवर्तित हो जायेगा।” वरदान के अनुसार, 13वीं शताब्दी में भारी तुर्क आक्रमणों और विद्रोहों के कारण जैसे ही महिष्मती पर चंदेलों (हैहय यादवों की शाखा) का शासन समाप्त हुआ, महिष्मती राजधानी विलुप्त हो गई और शेष भाग (मंदिर पक्ष) महेश्वर बन गया। बौद्ध ग्रंथ दीघा निकाय में महिष्मती का उल्लेख अवंती की राजधानी के रूप में किया गया है, जबकि अन्य पाली ग्रंथों में उज्जयिनी को इसकी राजधानी बताया गया है। हालाँकि, यह ग्रंथ इस बात से सहमत हैं कि महिष्मती अवंती का एक हिस्सा था, और बौद्ध सुत्त और स्तूपों में महिष्मती को बुद्ध के शिष्यों के लिए एक अनुकुलित स्थल बताया गया है। 11वीं और 12वीं शताब्दी में, देश के दक्षिणी हिस्सों के राजाओं ने हैहय के वंशज होने का दावा किया और यहां तक ​​कि महिष्मती को अपना मूल स्थान बताया। 13वीं शताब्दी के शिलालेखों से पता चलता है कि कुछ राजाओं ने उस दौरान महिष्मती में रहने का दावा किया था। हालांकि, आज माहिष्मती की कहानी, दुखद रूप से, समय के पन्नों में खो गई है।
संस्कृत महाकाव्य रामायण में महिष्मती पर रावण के हमले का उल्लेख है। अनुशासन पर्व में कहा गया है कि इक्ष्वाकु का पुत्र दशाश्व महिष्मती का राजा था। यह भी उल्लेख किया गया है कि हैहय राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने अपनी राजधानी महिष्मती से पूरी पृथ्वी पर शासन किया था। महाभारत में माहिष्मती का उल्लेख अवंती साम्राज्य से अलग एक राज्य के हिस्से के रूप में किया गया है। सभा पर्व में कहा गया है कि पांडव सेनापति सहदेव ने महिष्मती पर हमला किया, और उसके शासक नील को हराया।
महिष्मती का उल्लेख विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियों और तथ्यों में किया गया है और यह आज भी उतना ही सुंदर स्थान है। महेश्वर 5वीं शताब्दी से हथकरघा बुनाई का केंद्र रहा है और बेहतरीन हथकरघा कपड़ा परंपराओं में से एक का घर है। यह हथकरघा साड़ियों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाने वाला एक प्रसिद्ध केंद्र है। मध्य भारत के आधुनिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण महिलों में से एक - महान रानी और राजमाता - देवी अहिल्या बाई होल्कर के शासन में माहेश्वरी हथकरघा शिल्प काफी लोकप्रिय हुआ। एक किंवदंती के अनुसार, एक बार वह शाही मेहमानों को बेहतरीन उपहार देना चाहती थीं। इसलिए मांडू और सूरत के बुनकरों को काम पर रखा गया और उन्होंने खुद पहली हथकरघा साड़ी डिजाइन की। ये साड़ियाँ अपने कपड़े के अतुलनीय अनुभव, त्रुटिहीन बुनाई और उत्तम डिजाइन के लिए जल्दी ही लोकप्रिय हो गईं। और जल्द ही उन्हें शाही परिवार की महिलाओं, उनके मेहमानों और शाही दरबार की अन्य महिलाओं द्वारा पहना जाने लगा।

संदर्भ:

https://shorturl.at/cAI08
https://shorturl.at/csyIO
https://shorturl.at/mrW09
https://shorturl.at/acorJ
https://shorturl.at/acfpJ

चित्र संदर्भ
1. काल्पनिक ‘महिष्मती’ साम्राज्य को दर्शाता एक चित्रण (Youtube)
2. रतनपुर में 11वीं सदी के प्राचीन किला! 11वीं शताब्दी में, हिंदू हैहय राजा रतन देव ने अपनी राजधानी को रणनीतिक स्थान के लिए रतनपुर के किले में ही स्थानांतरित कर दिया। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भांड देउल जैन ईंट मंदिर, आरंग छत्तीसगढ़! इसका निर्माण संभवतः 9वीं शताब्दी में हैहया राजवंश के दौरान हुआ था। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. आरंग छत्तीसगढ़ में भांड देउल जैन ईंट मंदिर के अंदर कायोत्सर्ग मुद्रा में 9वीं शताब्दी के जैन तीर्थंकरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. दो राजाओं के बीच चल रहे युद्ध को दर्शाता एक चित्रण (worldhistory)



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