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ऊर्जा का महत्वपूर्ण संसाधन कैसे बनी पनबिजली या जलविद्युत ऊर्जा

लखनऊ

 27-09-2023 09:31 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

जल मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। जल के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। खाना बनाने से लेकर नहाने, कपड़े धोने और साफ-सफाई करने जैसे दैनिक क्रियाकलापों के लिए जहां जल अत्यधिक आवश्यक है, वहीं एक ऊर्जा स्रोत के रूप में भी यह मानव जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी है। वर्तमान समय में जल विद्युत ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। विद्युत ऊर्जा के स्रोत के रूप में जल के उपयोग की शुरूआत 1878 में इंग्लैंड (England) में हुई थी। इसके उपरांत 20 साल से भी कम समय में ब्रिटिश शासन ने भारत के दार्जिलिंग में अपना पहला पनबिजली संयंत्र स्थापित किया। तो आइए, आज इस लेख के जरिए पनबिजली या जलविद्युत ऊर्जा की शुरूआत और इससे सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। पनबिजली या जलविद्युत ऊर्जा, जल से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा या बिजली है। दुनिया की बिजली आपूर्ति का लगभग एक छठा हिस्सा पनबिजली संयंत्रों की मदद से उत्पन्न किया जाता है। ऐसा अनुमान है कि 2020 में पनबिजली की सहायता से दुनिया को लगभग 4500 टेरावॉट आर (Terawatt-hour(TWH) बिजली की आपूर्ति की गई थी। यह आंकड़ा अन्य सभी अक्षय स्रोतों से उत्पन्न बिजली की तुलना में सबसे अधिक है। पनबिजली के माध्यम से बड़ी मात्रा में न्यूनतम कार्बन (low-carbon) वाली बिजली प्राप्त की जा सकती है, जो इसे एक सुरक्षित और स्वच्छ बिजली आपूर्ति प्रणाली बनाता है। पनबिजली ऊर्जा संयंत्र, ऊर्जा का एक लचीला स्रोत है, क्योंकि इसकी सहायता से बिजली की आपूर्ति को, मांग के अनुसार, केवल कुछ ही पलों में बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
अब प्रश्न उठता है कि पानी से बिजली उत्पन्न करने के सबसे पहले विचार ने कहां और कैसे जन्म लिया? हालांकि प्राचीन काल से ही जल विद्युत का उपयोग आटा पीसने जैसे छोटे-छोटे दैनिक कार्यों को करने के लिए किया जाता रहा है। किंतु 18वीं सदी के अंत में जल विद्युत ऊर्जा औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के लिए आवश्यक ऊर्जा स्रोत बन गई। 1770 के दशक के मध्य में, फ्रांसीसी इंजीनियर बर्नार्ड फॉरेस्ट डी बेलीडोर (Bernard Forest de Bélidor) ने ‘आर्किटेक्चर हाइड्रोलिक’ (Architecture Hydraulique) नामक एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज-अक्ष जल विद्युत मशीनों का वर्णन किया गया था, और 1771 में रिचर्ड आर्कराइट (Richard Arkwright) ने अपने जल ऊर्जा उत्पादन की मशीन में इसका उपयोग किया। 1840 के दशक में पनबिजली उत्पन्न करने के लिए जल विद्युत ऊर्जा नेटवर्क भी विकसित हो गया था। हालांकि, दुनिया की पहली पनबिजली ऊर्जा परियोजना को 1878 में विलियम आर्मस्ट्रांग (William Armstrong) ने नॉर्थम्बरलैंड, इंग्लैंड (Northumberland, England) के क्रैगसाइड (Cragside) में विकसित किया। इसका उपयोग उनकी आर्ट गैलरी में एक एकल आर्क लैंप (Arc lamp) को ऊर्जा देने के लिए किया गया था। 1881 में संयुक्त राज्य अमेरिका (United States Of America) के न्यूयॉर्क (New York) राज्य में स्थित नियाग्रा फॉल्स (Niagara Falls) के पास पुराने स्कोलकॉप्फ पावर स्टेशन नंबर 1 (Schoelkopf Power Station No. 1) में पनबिजली का उत्पादन शुरू हुआ था।
30 सितंबर, 1882 को एप्पलटन, विस्कॉन्सिन (Appleton, Wisconsin) में पहले जल विद्युत ऊर्जा संयंत्र ‘वल्कन स्ट्रीट प्लांट’ (Vulcan Street Plant) ने 12.50 किलो वाट की क्षमता के साथ सार्वजनिक आपूर्ति के लिए उत्पादन शुरू कर दिया ।
भारत में पहला पनबिजली ऊर्जा संयंत्र 1897 में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में 130 किलोवाट की क्षमता के साथ स्थापित किया गया था, जिसे ‘सिद्रपॉन्ग हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन’ (Sidrapong Hydroelectric Power Station) के नाम से जाना जाता है। यह पनबिजली ऊर्जा संयंत्र एशिया (Asia) का पहला पनबिजली ऊर्जा संयंत्र भी था। सिद्रपॉन्ग हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर स्टेशन, दार्जिलिंग से 12 किलोमीटर दूर आर्य टी एस्टेट (Arya Tea Estate) की तलहटी में स्थित, भारत का सबसे पुराना पनबिजली ऊर्जा संयंत्र है। इसकी मूल क्षमता 2×65 किलोवाट थी, किंतु बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए 1916 में इसकी क्षमता बढ़ाकर 1000 किलोवाट कर दी गई। 1931 में इसे अधिक कुशल ट्रिपल-फेज ट्रांसमिशन (Triple-phase transmission) के रूप में बदल दिया गया। जबकि भारत का पहला प्रमुख पनबिजली ऊर्जा संयंत्र कर्नाटक में कावेरी नदी के शिवसमुद्रम जलप्रपात (Shivasamudram Falls) के पास 4.5 मेगावाट (MegaWatt) की क्षमता के साथ स्थापित किया गया था।
कुछ ब्रिटिश कंपनियों के स्वामित्व में इसे अमेरिका (America) की एक कंपनी ‘जनरल इलेक्ट्रिक’ (General Electric) द्वारा स्थापित किया गया था। 1902 में इस परियोजना ने सार्वजनिक रूप से कार्य करना शुरू कर दिया। पनबिजली ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत पूरे विश्व में 5वें स्थान पर है।
आज जल विद्युत ऊर्जा भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में एक ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गई है । हमारे घरों और व्यवसायों को बिजली की आपूर्ति हेतु जलविद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए आज अनगिनत संख्या में बांधों का निर्माण किया जा रहा है। पनबिजली ऊर्जा संयंत्र के फायदें और नुकसान दोनों हैं। पनबिजली के उत्पादन में कोई प्रत्यक्ष अपशिष्ट उत्पन्न नहीं होता है और यह जीवाश्म ईंधन-संचालित ऊर्जा संयंत्रों की तुलना में काफी कम ग्रीनहाउस गैस (Green house gas) का उत्सर्जन करता है। यह पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से सबसे अनुकूल ऊर्जा स्रोतों में से एक है। जल ऊर्जा का एक मुख्य लाभ यह है कि पानी लगभग हर जगह मौजूद है और इसका उपयोग जल विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए किया जा सकता है। जल एक नवीकरणीय संसाधन भी है। जलविद्युत ऊर्जा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह दुनिया के सबसे कुशल ऊर्जा संसाधनों में से एक है। सौर, पवन या कोयले जैसे ऊर्जा के अन्य रूपों के विपरीत जलविद्युत ऊर्जा स्थिर है।
आपूर्ति माँगों को पूरा करने के लिए ऊर्जा उत्पादन हेतु जल के प्रवाह को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। ऊर्जा उत्पादन के कई अन्य रूपों की तुलना में, जल ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए बनाए गए बांध वर्षों तक सुरक्षित रहते हैं। हालांकि, विभिन्न लाभों के साथ जलविद्युत ऊर्जा के कुछ नुकसान भी हैं, जैसे बांधों के निर्माण के कारण कृषि योग्य भूमि का नुकसान होता है तथा एक बड़ी आबादी को अपने मूल आवास से पलायन करना पड़ता है। इसके अलावा पनबिजली संयंत्र नदी की प्राकृतिक पारिस्थितिकी को भी बाधित करते हैं। हालांकि, जलविद्युत ऊर्जा के उत्पादन के लिए बनाए गए बांध बाढ़ के जोखिमों को कम कर सकते हैं, लेकिन बांध की विफलता मानव के लिए विनाशकारी हो सकती है। जलविद्युत ऊर्जा का एक और नुकसान बांध बनाने के लिए इसमें लगने वाली उच्च लागत है। आजादी के बाद भारत सरकार द्वारा पनबिजली संयंत्रों में बड़े निवेश किए गए हैं, लेकिन वर्तमान समय में ऊर्जा के सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्रोतों की सहज और सरल उपलब्धता ने पनबिजली संयंत्रों की लोकप्रियता को कम कर दिया है। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत अपेक्षाकृत सस्ते हैं तथा इसमें लोगों को अपना आवास बदलने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके साथ ही ऊर्जा का कोई भी स्त्रोत तभी पूर्ण रूप से सफल माना जाएगा जब ऊर्जा का उचित उपयोग किया जाए, जिसकी जिम्मेदारी हम नागरिकों की है। अतः सदैव ऊर्जा का उचित उपयोग करें। आवश्यकता न होने पर इसे व्यर्थ ना करें। तभी किसी भी ऊर्जा संयंत्र को स्थापित करने की आर्थिक, भौतिक एवं पारिस्थितिक लागत का लाभ संभव है ।

संदर्भ:
https://tinyurl.com/3tyby2et
https://tinyurl.com/mwwcy4w8
https://tinyurl.com/3fyn2jbr
https://tinyurl.com/4zj27njx
https://tinyurl.com/mrykz8pv

चित्र संदर्भ
1. जल विद्युत् परियोजना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, wallpeparflare)
2. अपर इंदिरावती पावर हाउस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पहले के समय में बिजली से चलने वाली मशीनों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ‘वल्कन स्ट्रीट प्लांट’ को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
5. टिहरी बांध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. भीतर से पनबिजली संयंत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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