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जापान के प्रसिद्ध लेखक, हारुकी मुराकामी (Haruki Murakami) ने एक बार कहा था कि “यदि आप केवल उन्हीं किताबों को पढ़ रहे हैं, जिन्हें बाकी सभी लोग पढ़ रहे हैं, तो आप केवल वही सोच सकते हैं जो बाकी लोग सोच रहे हैं।” यही कारण है कि आलोचक प्रवृत्ति के कई लोग ऐसी पुस्तकों को पढ़ने में अधिक रूचि रखते हैं, जो पुस्तकें प्रतिबंधित होती हैं, और जिन्हें कोई नहीं पढ़ सकता। हर किताब में अलग-अलग तरह के विचार लिखे गए होते हैं, इसलिए जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति उस लेखक के नजरिये से सहमत हो। इसलिए लगभग सभी देशों में सरकार द्वारा उन पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, जिन्हें उनकी सत्ता या समाज के लिए अनुपयुक्त एवं सार्वजनिक संवेदनाओं के प्रति अपमानजनक या सरासर देशद्रोह माना जाता है।
साल 1909 में, महात्मा गांधी द्वारा लिखित ‘हिंद स्वराज’ (इंडियन होम रूल “Indian Home Rule”) के गुजराती अनुवाद को आधुनिक युग में प्रतिबंधित होने वाली पहली किताबों में से एक माना जाता है। उस समय सत्तारूढ़ ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा इस पुस्तक को एक देशद्रोही पाठ माना गया था। हिंद स्वराज को गांधीजी ने तब लिखा था जब वह एक जहाज पर यात्रा कर रहे थे और केवल 10 दिनों में उन्होंने इस किताब को लिख दिया। गुजराती में लिखी गई यह किताब दो अलग-अलग राय वाले भारतीयों के बीच बातचीत को दर्शाती है। इसे पहली बार ‘इंडियन ओपिनियन’ (Indian Opinion) नामक साप्ताहिक पत्रिका में दो भागों में छापा गया था, जिसे गांधीजी ने संपादित किया था।
बाद में इसे एक पुस्तक का रूप दे दिया गया। गांधी जी का विचार था कि भारत को अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों के आधार पर आत्मनिर्भर और आत्मशासित बनना चाहिए। अपने समय के अन्य लोगों के विपरीत, गांधीजी ने स्वराज को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के रूप में नहीं देखा, बल्कि उन्होंने इसे आत्म-नियंत्रण और नैतिक मूल्यों के साथ जीने के एक तरीके के रूप में देखा। हालांकि, इस किताब में भारतीयों की भी आलोचना की गई है, जिसमें गांधी जी ने लिखा है कि “भारत को अंग्रेजों ने नहीं लिया, बल्कि हमने उन्हें यह दे दिया।" उस समय भले ही इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन इसमें मौजूद विचार आगे चलकर भी जीवित रहे और 1947 में भारत की आजादी के रूप में फलीभूत हुआ। गांधी जी ने भी इस प्रतिबंध की कड़ी आलोचना की थी।
सबसे बड़ी कुर्सी पर काबिज सत्ता का विरोध केवल पुस्तक के प्रतिबंधों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि अधिकाशं मामलों में यह सीधे तौर पर इसके लेखकों को भी प्रभवित कर सकता है। उदाहरण के तौर पर, 1880 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा “केसरी लेख" नामक एक मराठी साप्ताहिक लेख की शुरुआत की गई थी, जिसे “सबसे चरम विचारों और भारत में किसी भी स्थानीय भाषा के सबसे बड़े प्रसार" का दर्जा दिया गया था। इसमें भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कड़े विचार व्यक्त किये गए थे, इसलिए उस समय यह पत्रिका भारत में बहुत लोकप्रिय हुई। लेकिन जून 1897 में, तिलक को इसमें प्रकाशित लेखों के लिए 18 महीने की कैद की सजा सुना दी गई थी।
1908 में केसरी ने फिर से उस समय सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचा जब सरकार द्वारा इसकी 20,000 प्रतियों की बिक्री का अनुमान लगाया गया था। जून 1908 में, तिलक को फिर से दो लेखों के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया। जमानत की सुनवाई के दौरान मुहम्मद अली जिन्ना उनके वकील के रूप में पेश हुए। इसके बाद उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें दोषी ठहराकर छह साल जेल की सजा सुना दी गई। तिलक की सजा के बाद भारत के जनमानस में आक्रोश फैल गया और वह एक राष्ट्रीय नायक के रूप में उभरे।
पुस्तकों और लेखों को लेकर ब्रिटिश हुकूमत का डर तब भी देखा गया जब, 1913 में, हिंदुस्तान गदर पार्टी (Hindustan Ghadar Party) ने “युगांतर” नामक एक पैम्फलेट (Pamphlet) अर्थात परिपत्र जारी किया। उस समय आपराधिक जांच विभाग को यह जानकारी मिली थी कि इस पैम्फलेट को पार्टी के नेता हर दयाल द्वारा लिखा गया था और उनके द्वारा इसे पेरिस (Paris) में श्यामजी कृष्ण वर्मा को भेजा गया था। मूल पैम्फलेट अंग्रेजी में लिखा गया था। इस पैम्फलेट में एक पैराग्राफ (paragraph) था जिसमें उदारवादी भारतीय राजनेताओं की कड़ी आलोचना की गई थी। इसमें उनकी तुलना उन कुत्तों से की गई थी, जिनको अंग्रेजों ने हड्डियां डाली थीं।
आज भी भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के पुस्तकालय में ‘फोर्ट विलियम कॉलेज संग्रह’ (Fort William College Collection), गोपनीय प्रकाशन, प्रतिबंधित प्रकाशन जैसे कुछ बहुत ही दुर्लभ संग्रह मौजूद हैं। इन पुस्तकों को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था, क्योंकि वे इन्हें भी देश की सुरक्षा (वास्तव में अपने साम्राज्य की सुरक्षा) के लिए खतरनाक मानते थे। प्रतिबंधित प्रकाशनों के चार प्रमुख संग्रह (दो यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में और दो भारत में) हैं। यूके में, मौजूद ये संग्रह ‘इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी’ (India Office Library) और ब्रिटिश संग्रहालय में रखे गए हैं। भारत में, इन संग्रहों को ‘भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार’ और ‘भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की लाइब्रेरी’ में रखा जाता है। ब्रिटिश कालीन लेखकों ने मोतीलाल नेहरू, गांधी, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और जवाहरलाल नेहरू जैसे भारतीय नेताओं की प्रशंसा में कई कविताएं भी लिखीं। जिसके बाद समाजवादी और साम्यवादी लेखन में भी कई गुना वृद्धि देखी गई। लेखकों ने श्रमिकों और किसानों को भड़काने वाले लेखों की बाढ़ ला दी। जिससे ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलने लगी जिसके परिणाम ब्रिटिश साम्राज्य ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए इन पुस्तकों एवं लेखों को प्रतिबंधित कर दिया। लेखकों और कवियों द्वारा देश की हर भाषा में लेख लिखे गए, कविताएं रची और पैम्फलेट बांटे गए ।
उस समय लिखे गए लेख और कविताओं के नाम उनके लेखकों के साथ आप निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं-
https://tinyurl.com/veryt2bt
हम भारत को स्वतंत्र कराने में लेखकों और उनकी पुस्तकों की भूमिका के लिए हमेशा आभारी रहेंगे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4caz4vbc
https://tinyurl.com/r2crmfsf
https://tinyurl.com/veryt2bt
चित्र संदर्भ
1. गांधीजी की यात्रा को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
2. प्रतिबंधित पुस्तकों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. मद्रास में बाल गंगाधर तिलक की यात्रा को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. बाल गंगाधर तिलक को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
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