युनानी दवाएं जिनकी लोकप्रियता अब जनसाधारण के बीच खत्म होती जा रही है इतिहास का अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हिस्सा रह चुकी हैं। युनानी दवाएं 11वीं शती इसवी की पुस्तक द कैनन ऑफ़ मेडिसीन, जो इब्न सिना द्वारा लिखित है, पर निर्भर करती है। द कैनन ऑफ़ मेडिसीन एक 5 किताबों का संग्रह है जिसे की दवाइयों का विश्वकोश भी कहा जाता है। यह पुस्तक—गेलन—जो कि एक ग्रीक चिकित्सक व दार्शनिक थे उनके विचारों व प्रयोगों पर निर्भर करती है। गेलन कई प्रकार की चिकित्सा विधाओं मे निपुड़ता स्थापित किये थे, जैसे शरीर रचना विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, तंत्रिका विज्ञान आदि।
भारत मे युनानी दवाओं का आगमन 13वीं शताब्दी मे दिल्ली सल्तनत कि स्थापना के साथ हुआ और यहीं से यह मुगल साम्राज्य में और भी उत्कृष्ट हुआ। युनानी दवाओं ने अपने मूल स्वरूप के साथ ही साथ भारतीय आयुर्विज्ञान कि शिक्षा को भी अपने अन्दर समाहित किया जैसे चरक और सुश्रुत की विधायें।
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने दरबार मे कई हकीमों को सम्मिलित किया था। लखनऊ मे युनानी दवाओं का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान था, नवाबों के वक़्त यह दवा विधायें अत्यन्त प्रफुल्लित हुई परन्तु वर्तमान समय में लखनऊ मे करीब 6 युनानी अस्पताल हैं तथा करीब 15-20 हकीम मौजूद हैं, जो कि जनसंख्या के अनुसार बहोत कम हैं। तकमील-उल-तिब्ब महाविद्यालय लखनऊ युनानी परम्परा पर शिक्षा प्रदान करता है।
1. हकीम सैयद ज़िल्लूर रहमान, युनानी मेडिसिन इन इंडिया ड्युरिंग 1901-1947, चिकित्सा और विज्ञान के इतिहास का अध्ययन,
आय.एच.एम.एम.आर, नई दिल्ली, खंड XIII, अंक. 1, 1994, पृष्ठ. 97-112.
2. अर्मेल्ले डेब्रू “फार्मेकोलॉजी दर्शन, इतिहास और चिकित्सा पर गलेन, पांचवीं अंतर्राष्ट्रीय गैलेन कोलोक्विएम, लिल्ले, 16-18 मार्च 1995.” ब्रिल,
न्यू यॉर्क, 1997.
3. हकीम सैयद ज़िल्लूर रहमान, युनानी मेडिसिन इन इंडिया ड्युरिंग 1901-1947, चिकित्सा और विज्ञान के इतिहास का अध्ययन,
आय.एच.एम.एम.आर, नई दिल्ली, खंड XIII, अंक. 1, 1994, पृष्ठ. 97-112.
4. एम.एस.एम.ई. डिप्स लखनऊ
http://www.milligazette.com/Archives/2005/01-15June05-Print-Edition/011506200525.htm