Post Viewership from Post Date to 16-Oct-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2443 435 2878

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

आइए जानें, अरुणाचल प्रदेश की गालो जनजाति और उनकी परंपरा से सम्बंधित रोचक बातें

लखनऊ

 16-09-2023 09:38 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

हमारे देश भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनजातीय आबादी निवास करती है। आदिवासी समुदाय रामायण और महाभारत के समय से ही भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग रहे हैं। देश की विभिन्न जनजातियों की अद्वितीय जीवन शैली और रीति-रिवाजों के साथ अलग-अलग समृद्ध परंपराएं, संस्कृतियां और विरासत हैं। ऐसी ही समृद्ध परंपराओं, संस्कृति और विरासत वाली एक जनजाति अरुणाचल प्रदेश की गालो (Galo) जनजाति है। अरुणाचल प्रदेश की गालो जनजाति गैलोंग (Gallong) नामक इंडो-तिब्बती (Indo Tibetan) भाषा बोलती है। इस जनजाति की खास बात यह है कि यह जनजाति अपने समुदाय में होने वाली शादियों के लिए विख्यात है, जो कि अन्य समुदायों में होने वाली शादियों से बिल्कुल अलग होती हैं। तो आइए, आज हम इस लेख के जरिए अपने सह-भारतीयों को बेहतर तरीके से जानने की कोशिश करते हैं।
अरुणाचल प्रदेश की गालो जनजाति के लोग अबोटानी (Abotani) समुदाय के वंशज माने जाते हैं, जो कि तानी गालो (Tani Galo) भाषा बोलते थे। संविधान के लागू होने से पहले गालो जनजाति का उल्लेख करने के लिए डूबा (Duba), डोबा (Doba), डोबा अबोर (Dobah Abor), गैलोंग अबोर (Gallong Abor), गैलोंग, गैलोंग एडि (Gallong Adi) आदि शब्दों का उपयोग किया जाता था। जिसके बाद 1950 में गालो जनजाति को गैलोंग नाम के तहत एक अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
गालो जनजाति मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत में आधुनिक अरुणाचल प्रदेश राज्य के पश्चिम सियांग (West Siang), लेपा राडा (Lepa Rada) और निचले सियांग जिलों में निवास करती है, हालांकि अब पूर्वी सियांग जिले के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र, ऊपरी सुबनसिरी (Upper Subansiri) जिले के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र और ईटानगर के कुछ छोटे कस्बों में भी गालो जनजाति देखी जा सकती है। गालो भाषा, तानी समूह की एक सीनो-तिब्बती (Sino-Tibetan) भाषा है, जो गालो जनजाति द्वारा बोली जाती है। ऐसा माना जाता है कि गालो भाषा एक संकटग्रस्त भाषा है, लेकिन ऐसे कुछ आंकड़े भी मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि दुनिया की कई अन्य भाषाओं की तुलना में गालो भाषा बेहतर स्थिति में है। आलो (Aalo) में बोली जाने वाली पुगो (Pugo) और आलो के दक्षिणी हिस्से में बोली जाने वाली लारे (Lare) बोलियां गालो भाषा की प्रमुख बोलियां हैं । इसके अलावा गालो भाषा की एक अन्य बोली कार्गु कार्डी ( Kargu kardi) भी है, जो कि टैगिन (Tagin) क्षेत्र के निकट उत्तर पश्चिम में बोली जाने वाली बोली से संबंधित है। उत्तरी क्षेत्र में गालो की और भी बोलियाँ हो सकती हैं, हालांकि उन बोलियों पर अभी तक शोध नहीं किया गया है तथा इस क्षेत्र में ऐसी कई उपबोलियाँ भी मौजूद हैं, जो गालो से सम्बंधित प्रतीत होती हैं। इसकी पड़ोसी भाषाओं में असमिया (Assamese), नेपाली (Nepali), बोडो (Bodo), मिसिंग (Mising), मिनयोंग (Minyong), हिल्स मिरी (Hills Miri), टैगिन (Tagin), निशि (Nishi), बोरी (Bori), पैलिबो (Pailibo), रामो (Ramo) और बोकर (Bokar) शामिल हैं। जिन क्षेत्रों में गालो समुदाय का प्रभुत्व है, वहां के विद्यालयों में गालो तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है।
गालो जनजाति के लोग विवाह को वंश और संस्कृति की निरंतरता के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य मानते हैं। अन्य समुदायों की भांति गालो जनजाति के लिए विवाह का अर्थ केवल एक पुरुष और एक महिला का सम्बंध ही नहीं है, बल्कि यह दो परिवारों और सामान्य रूप से कुलों के बीच का सम्बंध है। गालो समाज में सामान्य तौर पर बातचीत के जरिए विवाह तय होते हैं। गालो जनजाति अंतर्विवाही है और वे शादी के लिए बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। उनके लिए विवाह की कोई विशेष आयु नहीं होती, तथा गालो जनजाति का कोई भी पुरूष एक से अधिक शादियां कर सकता है। यहां बहुविवाह स्वीकार्य होता है और इसके लिए पुरुष को अपनी पत्नी से सहमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है। उनका मानना है, कि पत्नियों की संख्या अधिक होने से समाज में पति का रुतबा बढ़ता है। हालांकि, वर्तमान समय में गालो जनजाति में प्रेम विवाह का प्रचलन भी बढ़ गया है, तथा बहुविवाह की प्रथा भी कुछ हद तक कम हो गई है। गालो जनजाति में तलाक बहुत दुर्लभ लेकिन स्वीकृत है। तलाक होने पर बच्चे पिता के साथ रहते हैं और विधवा, विधुर और तलाकशुदा लोगों के लिए पुनर्विवाह की अनुमति है। गालो जनजाति के बीच विवाह करने के लिए एक निश्चित समय होता है । चूंकि गालो, मूल रूप से कृषक हैं इसलिए खेती का कार्य पूरा करने के बाद ही विवाह करना उनके बीच एक प्राचीन परंपरा बन गई है। शरद ऋतु के दौरान धान की कटाई के बाद माता-पिता अपने बच्चों के विवाहकी व्यवस्था करते हैं। गालो जनजाति का मानना है कि विवाह के लिए अधिक मात्रा में अन्न (चावल और बाजरा) की आवश्यकता होती है, इसलिए कटाई के बाद जब अन्न भंडार भर जाते है, तब वे विवाह समारोह का आयोजन करते हैं। हालांकि उससे पूर्व कई तरह की रस्में होती हैं, जो बहुत रोचक होती हैं। गालो जनजाति में दो तरह के विवाह समारोह प्रचलित हैं, जिनमें डेटी नाइमे (Datey Nyime) और डेमी नाइमे (DameyNyime) शामिल हैं। डेटी नाइमे प्रकार के विवाह में बड़ी संख्या में मिथुन (पशु) और सूअरों की बलि दी जाती है। इसलिए इस प्रकार के विवाह इस जनजाति के समृद्ध परिवारों के लड़के और लड़कियों के बीच तय की जाती हैं। जबकि, डेमी नाइमे विवाह एक सरल विवाह है, जो जनजाति के अधिकांश लोगों द्वारा किया जाता है। डेमी नाइमे में कम संख्या में मिथुनों की बलि दी जाती है। दोनों प्रकार के विवाहों में लोगों द्वारा टोगू ओयू (Togu Oyu) का आयोजन किया जाता है। बातचीत द्वारा होने वाले विवाह को “नयिदा तनम” (Nyida Tanam) कहा जाता है। दुल्हन के घर से सकारात्मक संकेत मिलने पर दूल्हे के माता-पिता सहमति लेने के लिए दुल्हन के घर जाते हैं। इसके बाद विवाह की संभावना और सुखद भविष्य का अनुमान लगाने के लिए एक पुजारी को बुलाया जाता है, जो कि मुर्गे के यकृत या जिगर को देखकर यह बताता है, कि विवाह शुभ होगा या नहीं। यदि फैसला अनुकूल आता है तो विवाह पक्का हो जाता है और यदि फैसला विपरीत होता है तो सभी गतिविधियां वहीं रोक दी जाती हैं। शादी की तारीख को अंतिम रूप देने के लिए दुल्हन के घर में डबिन (Dubin ) नामक एक बैठक आयोजित की जाती है। इस दौरान वधू पक्ष द्वारा वर पक्ष को कुछ उपहार सामग्री भी दी जाती है। इस इस परंपरा को ओमे लेयप (Ome Layap) के नाम से जाना जाता है जिसके बाद वधू को वर के घर के सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। इस परंपरा के दौरान दुल्हन एक मुर्गी की बलि देती है जिसका एक पंख उसके बालों में चिपका दिया जाता है और इस तरह एक लड़की एक पत्नी और एक नए परिवार की स्थायी सदस्य बन जाती है।
प्रेम विवाह जिसे गालो जनजाति के बीच मैसिम चाइनाटन (MaisimChinatn) कहा जाता है, वर्तमान में गालो जनजाति के बीच विवाह का एक सामान्य रूप है। गालो जनजाति के लोग कभी भी एक गांव में विवाह नहीं करते क्योंकि वे गांव में रहने वाले सभी लोगों को एक ही पैतृक परिवार का सदस्य होने के नाते भाई बहन मानते हैं । गालो विवाह में वर पक्ष के लोग वधू पक्ष को कुछ मूल्य भेंट करते हैं, यह भेंट आमतौर पर वस्तु के रूप में या पशुधन के रूप में दी जाती है। गालो महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा प्राप्त है। हालांकि, परंपरागत रूप से पति चुनने में महिलाओं को कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे, लेकिन आज उनकी इच्छाओं का सम्मान किया जाता है। तलाक के मामले में महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा प्राप्त है। कुसमायोजन की स्थिति में पुरुष और महिला दोनों तलाक की पहल कर सकते हैं।

संदर्भ:
https://tinyurl.com/ya8j3ejp
https://tinyurl.com/bdf6v7rx
https://tinyurl.com/hmc27n8r
https://tinyurl.com/bdhpz525

चित्र संदर्भ 
1. गालो जनजाति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. अरुणांचल प्रदेश के आदिवासियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हिमालयन यूनिवर्सिटी में मोपिन फेस्टिवल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id