City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1600 | 467 | 2067 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
आपने अक्सर बड़े-बड़े ज्योतिष और पंडितों को रुद्राक्ष की माला पहने हुए जरूर देखा होगा। क्योंकि सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व होता है। अपनी दिव्य उपचार शक्तियों के कारण, प्राचीन काल से ही रुद्राक्ष को सबसे कीमती मोतियों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि इसे धारण करने का सौभाग्य केवल उन्हीं को मिलता है जिन पर भगवान शिव की विशेष कृपा होती है। प्रार्थना और ध्यान के लिए उपयोग की जाने वाली आध्यात्मिक रुद्र माला में आमतौर पर 108 रुद्राक्ष होते हैं। सनातन धर्म में मान्यता है कि रुद्राक्ष की माला पहनने वाले व्यक्ति पर “त्रिदेवों" अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का विशेष आशीर्वाद रहता है।
रुद्राक्ष के वृक्ष का वैज्ञानिक नाम एलिओकार्पस गैनिट्रस (Elaeocarpus Ganitrus) है। रुद्राक्ष, इस वृक्ष के फल का सूखा हुआ बीज होता है । रुद्राक्ष का प्रयोग हिंदुओं (विशेषकर शैव), बौद्धों और सिक्खों द्वारा ईश्वर की स्तुति हेतु प्रार्थना की माला एवं आभूषण बनाने के लिए किया जाता है। एलिओकार्पस गैनिट्रस मूलतः एलिओकार्पेसी परिवार (Laeocarpaceae Family) से संबंधित वृक्ष है, और हिमालयी क्षेत्र में उगता है। एलिओकार्पस गैनिट्रस की लगभग 360 विभिन्न प्रजातियां होती हैं, जो ऑस्ट्रेलिया (Australia), पूर्वी एशिया (East Asia), मलेशिया (Malaysia) और प्रशांत द्वीप समूह में पाई जाती हैं। इनमें से 25 प्रजातियाँ अकेले भारत में पाई जाती हैं। रुद्राक्ष भी कई अमूल्य रत्नों एवं कीमती मोतियों के समान ही मूल्यवान होते हैं। रुद्राक्ष में कई फल कोष्ठक भी होते हैं जिन्हें संस्कृत भाषा में मुख कहा जाता है। हालांकि रुद्राक्षों में फल कोष्ठकों की संख्या अलग-अलग हो सकती है । रुद्राक्ष में आमतौर पर 1 से 14 मुख होते हैं।हैं । एकमुखी रुद्राक्ष सबसे दुर्लभ होते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इनमे से प्रत्येक मुख एक विशेष देवता का प्रतिनिधित्व करता है। रुद्राक्ष के ये बीज कई प्रकार के बताए गए हैं। प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए दो बीजों को गौरी शंकर कहा जाता है । वे बीज जिनमें जुड़े हुए पत्थरों में से केवल एक का मुंह दिखाई देता है है उन्हें सावर गौरी शंकर कहते हैं। जिन बीजों पर सूंड जैसा उभार होता है उन्हें गणेश के नाम से जाना जाता है । इसके अलावा प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए 3 बीजों को त्रिजुटी कहा जाता है । अन्य दुर्लभ प्रकारों में वेद (4 संयुक्त सवार) और द्वैत (2 संयुक्त सवार) शामिल हैं। रुद्राक्ष का वृक्ष (एलिओकार्पस गैनिट्रस) समुद्र तल से 2,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर उगता है। आम तौर पर रुद्राक्ष का वृक्ष पश्चिम में मेडागास्कर (Madagascar) से लेकर भारत, मलेशिया, दक्षिणी चीन (South China), जापान (Japan), ऑस्ट्रेलिया (Australia), न्यूजीलैंड (New Zealand), फिजी (Fiji) और हवाई (Hawaii) में भी पाया जाता है। भारत में यह वृक्ष असम, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और सिक्किम में पाया जाता है। तवांग और ऊपरी सुबनसिरी (Upper Subansiri) सहित कुछ अन्य ऊंचाई वाले क्षेत्रों को छोड़कर, रुद्राक्ष के वृक्ष अरुणाचल प्रदेश के सभी जिलों की तलहटी में उगते हैं।
रुद्राक्ष के वृक्ष सदाबहार होते हैं, और आर्द्र सदाबहार वनों में उगते हैं। एक वृक्ष की ऊंचाई 50-200 फीट तक हो सकती है। रुद्राक्ष का पेड़ अंकुरण के तीन से चार साल में फल देना शुरू कर देता है। रुद्राक्ष के वृक्ष पर अप्रैल-मई के महीने में फूल लगते हैं और ये फूल सफेद या पीले रंग के होते हैं। जून में रुद्राक्ष के फल लगने शुरू होते हैं और अक्टूबर के करीब पक जाते हैं। पका हुआ फल गूदेदार होता है और इसमें नीले छिलके वाला बीज होता है। बीज में मौजूद भीतरी भाग या मनका ही रुद्राक्ष कहलाता है। एक पेड़ में सालाना 1,000 से 2,000 फल उग सकते हैं। इन फलों को सामान्य भाषा में“रुद्राक्ष फल" कहा जाता है, लेकिन इन्हें ‘अमृत फल’ के नाम से भी जाना जाता है। रुद्राक्ष आमतौर पर भूरे रंग के होते हैं, हालांकि कुछ रुद्राक्ष सफेद, लाल, पीले या काले रंग के भी देखे जा सकते हैं।
रुद्राक्ष शब्द, ‘रूद्र+अक्ष’ से मिलकर बना एक संस्कृत यौगिक शब्द है, जहां ‘रूद्र’ शब्द भगवान शिव को और ‘अक्ष’ शब्द नेत्रों को संदर्भित करता है। हिंदू धर्म में रुद्राक्ष की उत्पत्ति के संदर्भ में भगवान शिव से जुड़ी हुई मान्यता है कि “रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है।" इसलिए इसका नाम रुद्राक्ष पड़ा।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, रुद्राक्ष की माला का विशेष धार्मिक, आध्यात्मिक और भौतिक महत्व होता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में रुद्राक्ष को पृथ्वी और स्वर्ग के बीच संबंध का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि यह अपने भीतर संपूर्ण ब्रह्मांड के विकास के रहस्यों को समेटे हुए है।
अध्यात्म के साथ-साथ हर्बल चिकित्सा के क्षेत्र में भी रुद्राक्ष एक बहुपयोगी बीज माना जाता है।
आयुर्वेदिक औषधीय प्रणाली के अनुसार, “रुद्राक्ष पहनने से नसों और हृदय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है"। साथ ही आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में यह भी माना जाता है कि रुद्राक्ष की माला पहनने से तनाव, चिंता, एकाग्रता की कमी, अनिद्रा, अवसाद, उच्च रक्तचाप, घबराहट, बांझपन, गठिया और अस्थमा जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। भारत, नेपाल और एशियाई देशों के कई क्षेत्रों में इसका उपयोग तनाव, चिंता, अवसाद, घबराहट, तंत्रिका दर्द, मिर्गी, माइग्रेन (Migraine), एकाग्रता की कमी, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, गठिया और यकृत रोगों के उपचार में किया भी जाता है।
रुद्राक्ष में बढ़ती उम्र के प्रभाव् को कम करने का गुण भी होता है। इसके फल का हरा और ताजा गूदा भूख बढ़ाता है तथा मिर्गी, सिर के रोगों एवं मानसिक रोगों के लिए लाभकारी माना जाता है। इसके फल की गुठली अर्थात बीज को पानी के साथ घिसकर चेचक के दानों पर भी लगाया जाता है। इसी प्रकार इसे जलन वाले अंगों पर तथा फोड़े-फुंसियों पर भी लगाया जाता है। कई जानकर मानते हैं कि रुद्राक्ष की माला में, विद्युत गुणों और जैव विद्युत सर्किट (Bioelectric Circuit) की उपस्थिति के कारण कई अद्भुत शक्तियां होती हैं। रुद्राक्ष को हिस्टीरिया (Hysteria) से पीड़ित महिलाओं के लिए भी उपयोगी माना गया है। और साथ ही यह कोमा (Coma) रोगियों के लिए भी लाभदायक माना जाता है ।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5vb2stmz
https://tinyurl.com/23ey7xa4
https://tinyurl.com/yck8wwkd
चित्र संदर्भ
1. रुद्राक्ष और रुद्राक्ष के पेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. हाथ में रुद्राक्ष को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. रुद्राक्ष के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रुद्राक्ष से पिरामिड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रुद्राक्ष की माला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. रुद्राक्ष के विस्तार मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.