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भारतीय संस्कृति द्वारा कला और साहित्य के क्षेत्र में पेश की गई "रस (भावनाओं)" की अवधारणा को एक उत्कृष्ट योगदान माना जाता है। आमतौर पर भारतीय कला और साहित्य जगत में, नौ प्रकार के रस होते हैं, और इन सभी को सामूहिक रूप से "नवरस" कहा जाता है। भारत में नवरस के विचार ने भारतीय संस्कृति में शास्त्रीय कला के सभी रूपों पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ा है। नवरस की अवधारणा को पहली बार, भरत मुनि द्वारा लिखित "नाट्यशास्त्र" में उल्लेखित किया गया। “नाट्यशास्त्र” या “नाय शास्त्र” एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जिसके सभी विषय प्रदर्शन कलाओं पर केंद्रित है। इस पाठ की रचना का श्रेय ऋषि भरत को दिया जाता है। माना जाता है कि इसकी रचना 200 ईसा पूर्व और 200 सीई के बीच हुई थी। हालांकि यह समयावधि विवादित मानी जाती है। नाट्यशास्त्र में प्रदर्शन कलाओं का वर्णन करने वाले कुल 6000 काव्य छंदों के साथ-साथ 36 अध्याय हैं। मान्यता है कि नाट्यशास्त्र स्वयं भी बहुत पुराने “गंधर्व वेद” (सामवेद का परिशिष्ट) पर आधारित है, जिसमें 36000 श्लोक हैं।
इस ग्रंथ में शामिल विषयों में नाटकीय रचना, नाटक की संरचना और इसकी मेजबानी के लिए एक मंच का निर्माण, अभिनय की शैलियाँ, शारीरिक गतिविधियां, श्रृंगार (Make-Up) और वेशभूषा, एक कला निर्देशक की भूमिका और लक्ष्य, संगीत के पैमाने, संगीत वाद्ययंत्र और कला प्रदर्शन के साथ-साथ संगीत के एकीकरण जैसे विषयों पर भी बात की गई है। नाट्यशास्त्र की संरचना में, नाट्य कला के विभिन्न पहलुओं को सामंजस्यपूर्ण ढंग से अलग-अलग अध्यायों में संकलित किया गया है। इस पाठ की शुरुआत ही नाटक की पौराणिक उत्पत्ति और उसके इतिहास को दर्शाते हुए होती है। इस पाठ की शुरुआत में ही कला के विभिन्न रूपों में विभिन्न हिंदू देवताओं की भूमिका के साथ-साथ प्रदर्शन कला के लिए एक मंच की अनुशंसित पूजा (अभिषेक समारोह) का उल्लेख किया गया है। नाट्यशास्त्र को कला पर एक प्राचीन विश्वकोश ग्रंथ के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह ग्रंथ विशेष तौर पर अपने सौंदर्यवादी "रस" सिद्धांत के लिए भी उल्लेखनीय है। साथ ही इस पाठ ने अभिनवभारती जैसे माध्यमिक साहित्य को भी प्रेरित किया है। अपनी रचना के माध्यम से भरतमुनि ने रस के सिद्धांत को उजागर किया, जिसे कला या साहित्य के सौंदर्य अनुभव का आधार माना जाता है। 'रस' शब्द 'सार' का प्रतीक होता है, और भरतमुनि का सौंदर्यशास्त्र इसी 'सार' पर टिका हुआ है।
“नवरस” या नौ भावनाएँ निम्नवत दी गई हैं:
1.श्रृंगार (प्रेम),
2.भयानक (डर)
3.हास्य (हँसी)
4.करुणा (दयालुता)
5.रौद्र (क्रोध)
6.वीर (साहस)
7.विभत्स्य (घृणा)
8.अद्भुत (आश्चर्य),
9.शांता (शांति या प्रशांति)
भले ही रसों की संख्या नौ होती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऋषि भरत ने केवल आठ ही रसों का प्रतिपादन किया है, और नौवां रस प्रक्षेप है। ये सभी “भाव” या “रस”, भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य का अभिनय करने समय, गायकी या अभिनेता के हावभाव तथा चेहरे पर देखे जा सकते हैं। यहाँ पर “भाव“ शब्द, प्रदर्शन देखने और प्रदर्शन करने वाले की मानसिक स्थिति या भावना को संदर्भित करता है।
भाव तीन प्रकार के हो सकते हैं.
1. स्थायी भाव (प्राथमिक भाव)
2. विभिचारी या संचारी भाव - (क्षणभंगुर अवस्थाएं)
3. सात्विक भाव - (स्वाभाविक स्थिति)
भाव के साथ-साथ “रस” शब्द, “एक प्रकार की भावनात्मक प्रतिक्रिया को संदर्भित करता है, जिसे दर्शकों में प्रेरित किया जाता है।” दूसरे शब्दों में समझें तो “रस” वह भावनात्मक स्थिति होती है, जिसका अनुभव दर्शक करते हैं। रस वह आंतरिक आनंद होता है, जिसका रसास्वादन (रसपान) दर्शक और कलाकार दोनों करते हैं। नाट्यशास्त्र में प्रत्येक रस की पहचान, उसके अनुरूप भाव या मनोदशा से की गई है। नाट्यशास्त्र कहता है कि, “मनुष्य जिन भी परिस्थितियों का सामना कर रहा है, उन सभी की प्रतिक्रिया के तौर पर मनुष्य में नौ भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।“ साथ ही नाट्यशास्त्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि, “प्रत्येक रस का भावों के अनुरूप अपना एक इष्टदेव और एक विशिष्ट रंग भी होता है।” जैसे डरे हुए व्यक्ति की आभा काली होती है,और क्रोधित व्यक्ति की आभा लाल रंग से प्रदर्शित की जाती है।
इस प्रकार नौ रंग प्रत्येक भावना को दर्शाने का कार्य करते हैं। जैसे:
1.हरा (श्रृंगार)
2.सफेद (हास्य)
3.धूसर "Gray" (करुणा)
4.लाल (रौद्र, क्रोध)
5.नारंगी (वीर)
6.काला (भयानक)
7.नीला (विभत्स्य)
8.पीला (अद्बुथा)
9.सफेद (शांत)
नाट्यशास्त्र के रचयिता भरत मुनि ने भारतीय कला के दर्शन की नींव रखी थी। उनकी रचना नाट्यशास्त्र को भारत का सबसे प्राचीन कला कार्य माना जाता है। उनकी रचना नाट्यशास्त्र को आज भी भारत के नाट्य प्रदर्शन के “रसभिनय” का आधार माना जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdzxtzu7
https://tinyurl.com/5ybuk72a
https://tinyurl.com/233pchzt
https://tinyurl.com/mpvhbtwz
चित्र संदर्भ
1. नृत्य और हस्तमुद्राओं की सम्मिलित अवस्थाओं को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
2. नाट्यशास्त्र पुस्तक को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
3. शास्त्रीय नृत्य के एक रूप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. गुरु माणि माधव चाक्यार के प्रख्यात रसाभिनय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. सत्त्रिया नृत्य के प्रदर्शन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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