Post Viewership from Post Date to 12-Oct-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2143 458 2601

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

टेराकोटा कला का एक मुख्य प्रकार है, लखनऊ की चिनहट कुंभकारी

लखनऊ

 12-09-2023 09:56 AM
म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

मूर्तिकला, दृश्य कला का एक ऐसा रूप है, जो त्रि-आयामी कलाकृतियों का निर्माण करती है। त्रि-आयामी कलाकृतियों से तात्पर्य ऐसी कलाकृतियों से है, जिनमें कलाकृतियों के निर्माण के समय उनकी ऊंचाई, चौड़ाई और गहराई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मूर्तिकला का एक प्रकार टेराकोटा (Terracotta) भी है, जिसका उपयोग अक्सर ललित कला में किया जाता है। “टेराकोटा” शब्द का तात्पर्य "पकी हुई मिट्टी” है,अर्थात टेराकोटा की मूर्तियां या वस्तुएं बनाने के लिए पकी हुई मिट्टी का उपयोग किया जाता है। लखनऊ की चिनहट कुंभकारी पॉटरी, जो कि चमकदार टेराकोटा कुंभकारी और चीनी मिट्टी कुंभकारी (Ceramic) का ही एक रूप है, पूरे विश्व भर में अत्यधिक प्रसिद्ध है। तो आइए इस बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं। मूर्तिकला, प्लास्टिक कला (Plastic arts) का ही एक रूप है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्लास्टिक कला शब्द का उपयोग सभी दृश्य कलाओं (जैसे पेंटिंग, मूर्तिकला, फिल्म और फोटोग्राफी) के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। सामान्य भाषा में कहा जा सकता है कि प्लास्टिक कला में वे सभी सामग्रियां शामिल होती हैं जिन्हें नक्काशी या आकार दिया जा सकता है, जैसे पत्थर या लकड़ी, कंक्रीट, कांच या धातु। एक अच्छी गुणवत्ता वाली मूर्तिकला के निर्माण के लिए अक्सर पत्थर, धातु, चीनी मिट्टी, लकड़ी और अन्य सामग्रियों पर नक्काशी(Carving)की जाती है।
या फिर इन वस्तुओं पर क्ले (Clay) जैसी सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जिसे मॉडलिंग (Modelling) के रूप में जाना जाता है। किसी सामग्री को आकृति के सांचे में ढालकर भी मूर्तिकला तैयार की जा सकती है। वास्तव में आज के आधुनिक युग में मूर्तिकला के निर्माण में किसी भी सामग्री और प्रक्रिया का स्वतंत्र रूप से उपयोग किया जा सकता है। मूर्तिकला का एक प्रकार टेराकोटा कला भी है,जिसका भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के समय से उपयोग हो रहा है । टेराकोटा कला, मिट्टी के माध्यम से बनाई गई कलाकृतियों का ही एक रूप है, जो भूरे नारंगी रंग की होती है। भूरा-नारंगी रंग आमतौर पर सूखी और पकी हुई मिट्टी से प्राप्त किया जाता है।मोहनजोदड़ो और हड़प्पा, जो सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल थे, में विभिन्न उत्खननों से मानव और पशु आकृति वाले टेराकोटा कला के बर्तन मिले हैं। पिछले कुछ वर्षों में सजावटी वस्तुओं से लेकर घरेलू उपयोगी उत्पादों को बनाने के लिए टेराकोटा कला का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है और यह कला अत्यधिक लोकप्रिय हो गई है। टेराकोटा कला के जरिए न केवल लैंप (Lamp), बर्तन, ईंटें, टाइल्स (Tiles) आदि का निर्माण किया जाता है, बल्कि विभिन्न प्रकार के आभूषण जैसे हार, झुमके, अंगूठियां, कंगन आदि भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा रसोई घर में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के बर्तन जैसे प्लेट, कप, ट्रे, चम्मच, चायदानी और यहां तक कि कटोरे भी टेराकोटा कला से निर्मित किए जा रहे हैं। टेराकोटा कलाकारी में निर्मित दीये और मूर्तियां अक्सर त्योहारों के दौरान मंदिरों और घरों में देखे जा सकते हैं। आइए, अब जानते हैं कि भारत में इस कला का विकास किस प्रकार हुआ। भारत में ईसाई युग की शुरुआत के दौरान, बौद्ध धर्म का काफी विस्तार हुआ और भगवान बुद्ध के संदेशों को चित्रित करने के लिए एक नए कलात्मक विकास की आवश्यकता महसूस की गई, जिसके परिणामस्वरूप भारत में मूर्तिकला के तीन मुख्य विद्यालयों की स्थापना की गई। मूर्तिकला के इन तीन विद्यालयों ने अपनी अलग-अलग शैलियां और विशिष्टताएं विकसित कीं। इन विद्यालयों का नाम उनके प्रसिद्ध स्थानों के आधार पर रखा गया था। उदाहरण के लिए - गांधार कला स्कूल का नाम गांधार के आधार पर रखा गया था। गांधार कला विद्यालय, पहली शताब्दी ईसवी में कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल के दौरान विकसित हुआ। शक और कुषाण दोनों गांधार कला विद्यालय के संरक्षक थे, क्योंकि यह विद्यालय भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित करने वाला पहला विद्यालय था।गांधार विद्यालय की कला पर ग्रीको-रोमन (Greco-Roman)का प्रभाव देखा जा सकता है। मथुरा कला विद्यालय भी मुख्य रूप से कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल के दौरान विकसित हुआ। इस विद्यालय के महत्वपूर्ण केंद्र मथुरा, सारनाथ और कोसाम्बी थे। मथुरा विद्यालय की महत्वपूर्ण मूर्तिकलाओं में बुद्ध, बोधिसत्व, विष्णु, शिव, यक्ष, यक्षिणी आदि शामिल हैं। तीसरा मूर्तिकला विद्यालय अर्थात अमरावती मूर्तिकला विद्यालय कुषाण काल के दौरान आंध्र प्रदेश के अमरावती और नागार्जुन कोंडा में विकसित हुआ। विद्यालय की मूर्तियों का सफेद चूना पत्थर संगमरमर जैसा दिखता था। यह आज भी वैसा ही दिखता है, जैसा कि जब बनकर तैयार हुआ था। यह मूर्तिकला उन लोगों के आनंद के अनुभव को दर्शाती है, जिन्होंने भगवान बुद्ध के मार्ग को मुक्ति अथवा निर्वाण के नए मार्ग के रूप में अपनाया था। उनके लिए भगवान बुद्ध द्वारा दिखाया गया मार्ग दुनिया से अलग होने का मार्ग नहीं था, बल्कि यह एक ऐसा मार्ग था, जो उन्हें जो उन्हें वास्तविक या आतंरिक मुक्ति अथवा निर्वाण की ओर ले जाएगा! भारत में मिट्टी के बर्तन बनाने की कला देश के लगभग हर हिस्से में एक सामान्य कला है। देश के हर राज्य की मिट्टी के बर्तन बनाने की अपनी अनूठी कला है, चाहे वह राजस्थान की "ब्लू पॉटरी" (Blue Pottery) हो, मध्य प्रदेश की "टेराकोटा" हो या हमारे अपने राज्य उत्तर प्रदेश और शहर लखनऊ की "चिनहट पॉटरी" (Chinhat Pottery)। मिट्टी के बर्तनों का हर रूप रचनात्मक रूप से सुंदर है क्योंकि इसमें कुम्हार का कौशल और शिल्प शामिल होता है, जिसके जरिए वे मुट्ठी भर मिट्टी से उत्कृष्ट आकार और डिजाइन की कलाकृतियां तैयार करते हैं।
चिनहट मिट्टी के बर्तन चमकदार टेराकोटा पॉटरी और चीनी मिट्टी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत के लिए प्रसिद्ध लखनऊ शहर की चिनहट कुंभकारी, मिट्टी के बर्तनों के रूप में एक विशिष्ट रचनात्मक आयाम है। चिनहट कुंभकारी, का नाम उस स्थान के नाम पर ही रखा गया है, जहां इस कला का सर्वाधिक अभ्यास किया जाता है। चिनहट मिट्टी के बर्तन मुख्य रूप से चिनहट क्षेत्र में बनाए जाते हैं जो लखनऊ शहर के पूर्वी बाहरी इलाके फैजाबाद रोड पर स्थित है। यह स्थान उत्तर प्रदेश राज्य में मिट्टी के बर्तनों के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र के रूप में उभरा है और इसने पर्यटकों को भी आकर्षित किया है। चिनहट लखनऊ के बाहरी इलाके में लखनऊ-बाराबंकी रोड के किनारे एक छोटा सा गांव हुआ करता था। मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग शुरू होने से चिनहट को लोकप्रियता मिली है। यहां मिट्टी के बर्तन बनाने की कला बहुत पुरानी है और इसकी शुरुआत एक सरकारी योजना के साथ हुई थी जिसे राज्य योजना विभाग के योजना अनुसंधान और कार्य संस्थान द्वारा शुरू किया गया था।
यह योजना वर्ष 1957 में दो उद्देश्य के साथ शुरू की गई थी, जिसमें क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं को मिट्टी के बर्तन बनाने का प्रशिक्षण देना और शिक्षार्थियों द्वारा स्वयं प्रबंधित और नियंत्रित की जाने वाली छोटी इकाइयों की स्थापना करना था। इस कलाकारी के उत्पादों में कप, कटोरे, फूलदान, और तश्तरियाँ शामिल हैं। इसके अलावा चिनहट के खिलौना चाय-सेट भी बहुत लोकप्रिय हैं। यह सभी उत्पाद चिनहट के कुम्हारों द्वारा बनाई गई रचनात्मकता, कौशल और कड़ी मेहनत के सुंदर नमूने हैं।

संदर्भ:

https://tinyurl.com/4euehejm
https://tinyurl.com/mry9y8n6
https://tinyurl.com/4wys8f36
https://tinyurl.com/38vdb4pw

चित्र संदर्भ 
1. मिटटी के बर्तन बनाने वाले कारीगर को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. चिनहट के मिटटी के बर्तन और विभिन्न वस्तुओं से सजी दुकानों को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
3. प्राचीन भारतीयों द्वारा प्रयुक्त प्राचीन मिट्टी के बर्तनों को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
4. गांधार कला विद्यालय की सुशोभित वास्तुकला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. अमरावती मूर्तिकला विद्यालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. चिनहट पॉटरी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
7. पॉटरी को संदर्भित करता एक चित्रण (Pxfuel)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नदियों के संरक्षण में, लखनऊ का इतिहास गौरवपूर्ण लेकिन वर्तमान लज्जापूर्ण है
    नदियाँ

     18-09-2024 09:20 AM


  • कई रंगों और बनावटों के फूल खिल सकते हैं एक ही पौधे पर
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:18 AM


  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM


  • खनिजों के वर्गीकरण में सबसे प्रचलित है डाना खनिज विज्ञान प्रणाली
    खनिज

     09-09-2024 09:45 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id