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प्राचीनकाल और मध्यकाल में विश्व के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के बीच अनेकों वस्तुओं का आदान प्रदान हुआ, जिसमें “रेशम मार्ग” ने एक विशेष भूमिका निभाई। रेशम मार्ग यूरोप (Europe) और एशिया (Asia) के व्यापार मार्गों का एक तंत्र था जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 15वीं शताब्दी के मध्य तक सक्रिय रहा। इस तंत्र ने पूर्वी और पश्चिमी देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक संबंधों को बढ़ावा देने में केंद्रीय भूमिका निभाई। “रेशम मार्ग” शब्द का उपयोग पहली बार 19वीं सदी के अंत में किया गया था, क्योंकि इस समय इन मार्गों की मदद से चीन में उत्पादित होने वाले रेशम वस्त्रों का अत्यधिक व्यापार किया गया।
जो लोग रेशम मार्ग के बारे में नहीं जानते, वे अक्सर रेशम मार्ग का नाम सुनकर किसी एकल मार्ग की कल्पना करने लगते हैं, किंतु रेशम मार्ग न तो कोई वास्तविक सड़क है और न ही एकल मार्ग। यह 1,500 से अधिक वर्षों से व्यापारियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले मार्गों के तंत्र को संदर्भित करता है। इसकी शुरूआत 130 ईसा पूर्व में चीन के हान राजवंश (Han Dynasty) के व्यापार शुरू करने के साथ हुई थी। 1453 ईस्वी तक यह मार्ग सक्रिय रहा, किंतु इसके बाद ऑटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) ने पश्चिमी देशों के साथ व्यापार करना बंद कर दिया। हालांकि, रेशम मार्ग का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए होता रहा। जर्मनी (Germany) के भूगोलवेत्ता और यात्री फर्डिनेंड वॉन रिचथोफ़ेन (Ferdinand von Richthofen) ने पहली बार 1877 ईस्वी में यूरोप और पूर्वी एशिया के बीच वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए उपयोग किए जाने वाले मार्ग का वर्णन करने के लिए “रेशम मार्ग” शब्द का उपयोग किया था। रेशम मार्ग लगभग 6,437 किलोमीटर (4,000 मील) तक फैला हुआ था, जिनमें गोबी रेगिस्तान और पामीर पर्वत सहित दुनिया के कुछ सबसे दुर्गम क्षेत्र शामिल हैं। इन मार्गों के रखरखाव के लिए कोई भी व्यवस्था न होने के कारण रास्ते आम तौर पर खराब स्थिति में थे। रास्तों में लुटेरों का आना-जाना आम था, इसलिए खुद के संरक्षण के लिए व्यापारियों ने ऊँटों या अन्य जानवरों का उपयोग किया। समय के साथ यात्रा करने वाले व्यापारियों को ठिकाना प्रदान करने के लिए बड़ी सरायें भी बनाई गईं। रेशम मार्ग से प्रचुर मात्रा में माल की आवाजाही होती थी। व्यापारी चीन से यूरोप तक रेशम ले जाते थे, जहां यह राजघरानों और धनी लोगों द्वारा उपयोग किया जाता था। एशिया की कुछ अन्य वस्तुएं, जो यूरोप में अत्यधिक लोकप्रिय थीं, उनमें जेड (सजावटी पत्थर), चीनी मिट्टी के बर्तन, चाय और मसाले शामिल थे, जबकि पश्चिमी देशों से पूर्वी देशों में जिन वस्तुओं का व्यापार किया गया था, उनमें घोड़े, कांच के बर्तन, कपड़ा, ऊँट, शहद, शराब और सोना आदि शामिल थे। जिस प्रकार से रेशम मार्ग पर वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा था, ठीक उसी प्रकार रेशम मार्ग के जरिए संस्कृतियों का भी आदान-प्रदान हुआ। सूचनाओं के आदान-प्रदान ने नई प्रौद्योगिकियों और नवाचारों को जन्म दिया, जिन्होंने पूरी दुनिया को ही बदल दिया। चीन में लाए गए घोड़ों ने जहां मंगोल साम्राज्य की शक्ति को बढ़ाया, वहीं चीन से आए बारूद ने यूरोप और अन्य क्षेत्रों में युद्ध की प्रकृति को बदल दिया।
भारत भी विभिन्न प्रकार से रेशम मार्ग से जुड़ा हुआ था। व्यापार मार्गों की एक श्रृंखला भारतीय उपमहाद्वीप को शेष एशिया और यूरोप से जोड़ती थी। ये मार्ग रेशम, मसालों, कीमती पत्थरों और भोग - विलासिता की वस्तुओं के व्यापार के लिए महत्वपूर्ण थे। इन सभी सामग्रियों को प्राचीन दुनिया में अत्यधिक महत्व दिया जाता था। भारत में, प्राचीन रेशम मार्ग सात मुख्य राज्यों को आवरित करता था, जिनमें बिहार, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश (जिसमें वर्तमान उत्तराखंड भी शामिल है) को आवरित करता था। इसके अंतर्गत कुल मिलाकर 12 मुख्य स्थल हैं, जिनमें प्राचीन वैशाली के खंडहर (बिहार), विक्रमशिला प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष (बिहार), कुशीनगर (उत्तर प्रदेश), श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश), कौशांबी (उत्तर प्रदेश), अहिच्छत्र (उत्तर प्रदेश), प्राचीन स्थल और बौद्ध स्तूप (पंजाब), अरिकामेडु (पुडुचेरी), कावेरीपट्टिनम का उत्खनन स्थल (तमिलनाडु), हरवान में प्राचीन मठ एवं स्तूप (जम्मू और कश्मीर), बुरुद कोट (महाराष्ट्र), और इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) शामिल हैं। इन स्थलों को यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में दर्ज किया गया है। रेशम मार्ग ने भारत और अन्य देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए, बौद्ध धर्म रेशम मार्ग के माध्यम से मध्य एशिया और चीन तक फैला। आज, कई शहरों और कस्बों, जो कभी रेशम मार्ग के महत्वपूर्ण पड़ाव थे, ने अपना ऐतिहासिक महत्व बरकरार रखा हुआ है और वे स्थल दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। लेह शहर, रेशम मार्ग पर मौजूद व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। यह शहर बौद्ध धर्म का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था और आज लद्दाख में कई बौद्ध मठ और सांस्कृतिक स्थल पाए जा सकते हैं, जो रेशम मार्ग से जुड़े थे। इसी तरह, उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गरतांग गली, रेशम मार्ग के प्राचीन व्यापार मार्गों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। यह भारत और तिब्बत के बीच रेशम, मसाले, चाय और कीमती पत्थरों जैसी वस्तुओं के व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग था। गरतांग गली का उपयोग मंगोल सेनाओं द्वारा भारत पर आक्रमण करने और इस क्षेत्र में अपना शासन स्थापित करने के लिए भी किया गया। रेशम मार्ग का एक हिस्सा पक्के राजमार्ग के रूप में अभी भी मौजूद है, जो पाकिस्तान (Pakistan) और चीन के झिंजियांग (Xinjiang) के उइगुर (Uygur) स्वायत्त क्षेत्र को जोड़ता है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/5678xced
https://tinyurl.com/44txx4ac
https://tinyurl.com/mr2n4u6e
https://tinyurl.com/ydapkd9m
चित्र संदर्भ
1. रेशम मार्ग के मानचित्र को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
2. रेशम मार्ग और कारवां मार्गों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. प्राचीन रेशम मार्ग के कारवां को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. रेशम मार्ग के बोर्ड को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. रेशम मार्ग के मानचित्र को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. उपदेश देते गौतम बुद्ध की 8 वीं शताब्दी की प्रतिमा को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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