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भारत का विशाल हिमालय हमारे देश के लिए एक मजबूत प्राकृतिक दीवार की भांति खड़ा है, जो हमारे लिए एक मजबूत रक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि, हिमालय न केवल हमारे देश को मध्य एशिया की ठंडी और शुष्क हवाओं से बचाते हैं, बल्कि ये हिंद महासागर की मानसूनी हवाओं को उत्तरी देशों में जाने से भी रोकता है। इसके अलावा देश में बहने वाली कई नदियों का उद्गम इसकी ही पर्वतमालाओं से होता है। साथ ही बर्फ की इन गगनचुंबी चोटियों ने इतिहास में कई आक्रमणकारियों को हमारे देश पर आक्रमण करने से भी रोका है।
आज से लगभग 225 मिलियन वर्ष पहले हमारा भारत, ऑस्ट्रेलिया (Australia) के निकट एक बहुत विशाल द्वीप की तरह तैरता था। भारत और एशिया के बीच एक विशाल महासागर था, जिसे टेथिस सागर (Tethys Sea) कहा जाता था। फिर, लगभग 200 मिलियन वर्ष पहले, इन क्षेत्रों में हलचल बढ़ने लगीं। यह पूरा भू-भाग सुपरकॉन्टिनेंट पैंजिया (Supercontinent Pangea) में विभाजित होने लगा, और यह द्वीप उत्तर की ओर बढ़ते हुए एशिया के करीब आ गया। इसके बाद लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के बीच बहुत मंद गति से एक टकराव शुरू हुआ। इन दोनों प्लेटों के बीच इसी टकराव के परिणामस्वरूप हिमालय का निर्माण हुआ। भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट की चट्टानें वजन की दृष्टि से लगभग समान थीं। इसलिए, एक प्लेट दूसरे के नीचे नहीं खिसक सकती। इसके बजाय उन्होंने एक-दूसरे को धक्का देना शुरू कर दिया और ऊपर की ओर बढ़ने लगे, जिससे ऊंचा हिमालय पर्वत बन गया। यह प्रक्रिया अलग-अलग चरणों में हुई, जिससे समय के साथ पहाड़ ऊपर उठते गए। और आज भी ये दोनों प्लेट्स एक दूसरे को धक्का दे रही हैं।
पैंजिया के उत्तरी भाग में वर्तमान उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया (यूरोप और एशिया) शामिल थे, जिसे लॉरेशिया या अंगारालैंड (Laurasia Or Angaraland) कहा जाता है और इसके दक्षिणी भाग में वर्तमान दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण भारत, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका (Australia And Antarctica) शामिल थे। इस भूभाग को गोंडवानालैंड (Gondwanaland) कहा जाता था।
भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के बीच टकराव अभी भी जारी है और हिमालय अभी भी ऊपर उठ रहा है। पहाड़, हवा और पानी से कट भी रहे हैं। लेकिन, वे कटने की तुलना में अधिक तेजी से ऊपर उठ रहे हैं। इसका मतलब यह है कि आने वाले कई वर्षों तक हिमालय ऊँचा होता रहेगा। हिमालय धनुषाकार है और यह तलछटी चट्टानों से बना है। हिमालय की चोटियों की औसत ऊंचाई लगभग 6,000 मीटर दर्ज की गई है। किसी आम इंसान द्वारा इतनी ऊंचाई वाले बर्फीले क्षेत्रों में जाना और वहां पर रुके रहना असंभव प्रतीत होता है! लेकिन, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, मूल रूप से बिहार के रहने वाले और हमारे लखनऊ में एक बैंकर (Banker) की नौकरी करने वाले अमित ने, लगभग 7,077 मीटर ऊँची माउंट कुन (Mount Kun) (लद्दाख की जांस्कर घाटी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी!) पर चढ़कर एक नया कीर्तिमान हासिल कर लिया! अमित लखनऊ में एक बैंकर के रूप में काम करते हैं। उनका मुख्य काम बैंक के लेन-देन के ढेर सारे डेटा को देखना और उस डेटा से हर दिन विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना है। लेकिन, साल दो साल पहले स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पहले ही वह माउंट कुन की चोटी तक पहुंचने में कामयाब रहे। निकट भविष्य में वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की योजना भी बना रहे हैं। 2017 में उत्तराखंड की यात्रा के बाद ट्रैकिंग (Trekking) में उनकी गहरी रुचि पैदा हुई। आज वह लखनऊ में एक पर्वतारोहण क्लब के सदस्य हैं और उन्होंने कई अन्य अभियानों में भी भाग लिया है। अमित ने कहा कि, “उन्होंने शुरुआत में स्वतंत्रता दिवस के दिन माउंट कुन पर भारतीय ध्वज फहराने की योजना बनाई थी।” अमित का आखिरी अभियान लद्दाख में माउंट कुन पर ही था। वह और उनकी टीम स्वतंत्रता दिवस से ठीक दो दिन पहले 13 अगस्त को शिखर पर पहुंची। हालांकि, अत्यधिक ठंड और अप्रत्याशित जलवायु परिस्थितियों के कारण उन्हें जल्दी नीचे उतरना पड़ा। उन्होंने उल्लेख किया कि इन चढ़ाई के लिए ना सिर्फ शारीरिक रूप से फिट रहना बेहद जरूरी है, बल्कि मजबूत दिमाग और कठोर मौसम में भी सकारात्मक रहना भी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। कठिन परिस्थितियों का सामना करने में हमारे लखनऊ की बेटियां भी कतई पीछे नहीं हैं! ये हमारे लिए गर्व की बात है कि लखनऊ की 20 वर्षीय एनसीसी कैडेट (NCC Cadet) शालिनी सिंह ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी के हिमालयी क्षेत्र में, उन्नत पर्वतारोहण पाठ्यक्रम पूरा करने वाली भारत की पहली महिला कैडेट बनकर इतिहास रच दिया। लखनऊ के बप्पा श्री नारायण वोकेशनल पीजी कॉलेज (Bappa Shri Narayan Vocational PG College) की छात्रा शालिनी, 45 लोगों की टीम में एकमात्र महिला कैडेट थीं, जिन्हें इस पाठ्यक्रम के लिए चुना गया था। इस चढ़ाई से पहले उन्होंने महीने भर का कोर्स पूरा किया, जिसमें ड्रिंग घाटी में बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच 15,400 फीट की ऊंचाई, बेहद दुर्गम परिस्थितियों में शून्य से भी कम तापमान (-14 डिग्री सेल्सियस) पर चढ़ना भी शामिल था। शालिनी ने उन्हें विशेष प्रशिक्षण और आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए 67 यूपी बटालियन एनसीसी लखनऊ (67 Up Battalion NCC Lucknow) के कमांडेंट कर्नल पुनीत श्रीवास्तव (Commandant Colonel Puneet Srivastava) को भी धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि, “उन्हें उम्मीद है कि उनकी उपलब्धि अन्य लड़कियों को पर्वतारोहण के लिए प्रेरित करेगी!” शालिनी की उपलब्धि भारत में पर्वतारोहण में महिलाओं के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है। वह उन सभी युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो ऐसी ही बुलंदियों को हासिल करने का सपना देखती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5n7tkhsd
https://tinyurl.com/ycc9pr8s
https://tinyurl.com/23hyh6bm
https://tinyurl.com/4uv2n9kf
चित्र संदर्भ
1. पहाड़ों में तिरंगे के साथ भारतीय युवा को दर्शाता चित्रण (pixles)
2. हिमालय की ऊंची चोटियों को दर्शाता चित्रण (Needpix)
3. सुपरकॉन्टिनेंट पैंजिया के विभाजन को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. 420 मिलियन वर्ष पूर्व गोंडवाना को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. यूरेशियाई प्लेटों के बीच टकराव को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. माउंट कुन को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
7. पर्वतारोही को दर्शाता चित्रण (Pxfuel)
8. पर्वतारोहियों की कतार को दर्शाता चित्रण (Hippopx)
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