Post Viewership from Post Date to 21-Sep-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1932 497 2429

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

लखनऊ की गोमती नदी पर बना लौह पुल, निर्माण की पूर्वनिर्मित संरचना तकनीक का है भाग

लखनऊ

 21-08-2023 09:49 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

आज के युग में, प्रीफैब्रिकेशन (Prefabrication) कोई नई बात नहीं है। आज यह तकनीक डिजाइन (Design), भवन निर्माण और वास्तुकला की समग्र प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण बन गई है। दरअसल, प्रीफैब्रिकेशन किसी कारखाने या कार्यशाला में निर्माण–स्थल से कही दूर अर्थात ऑफ साइट (Offsite), मानकीकृत घटकों या बुनियादी संरचनाओं का उत्पादन करने की एक विधि है। फिर इन्हें, निर्माण–स्थल पर अर्थात ऑन साइट (On site) एक साथ खड़ा किया जा सकता है। पूर्वनिर्मित घटकों या संरचनाओं को समतल तरीके से बांधकर या आंशिक रूप से खड़ा करके निर्माण–स्थल पर लाया जा सकता है। आम भाषा में हम इसे, ‘पहले से गठित’ अथवा ‘पूर्वनिर्मित संरचनाएं’ कह सकते हैं। वैसे तो किसी भी निर्माण के बुनियादी ढांचे के रूप में, कंक्रीट (Concrete) और स्टील (Steel) की संरचनाओं का उत्पादन निर्माण-स्थान से दूर अर्थात, उनका प्रीफैब्रिकेशन ही होता है। यंत्रों के द्वारा निर्माण में, भवन निर्माण मानकीकृत और पूर्वनिर्मित संरचनात्मक घटकों के साथ ही, अपना पहला कदम रख सका है। प्रीफैब्रिकेशन काफ़ी समय से अपने विकासात्मक चरण में था, और 20वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में यह विकसित हुआ। समकालीन वास्तुकला में उपयोग की जाने वाली सामान्य पूर्वनिर्मित संरचनाओं को, प्रयुक्त की गई प्रमुख संरचनात्मक सामग्री के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता हैं: पहली है पूर्वनिर्मित कंक्रीट, दूसरी पूर्वनिर्मित स्टील और तीसरी पूर्वनिर्मित लकड़ी प्रणाली। इन तीनों प्रकारों में, अपनी यांत्रिक प्रकृति के कारण संरचनात्मक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए, पूर्वनिर्मित स्टील प्रणाली सबसे आसान तरीका है।
हमारे ‘निर्माण इतिहास’ में प्रीफैब्रिकेशन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह कई देशों में काफ़ी पहले से प्रसिद्ध था। हालांकि, तब यह संकल्पना, जहां कोई निर्माण उपयुक्त स्थानीय सामग्री उपलब्ध नहीं होती थी, वहां एक समाधान थी। उदाहरण के लिए, पूर्वी उपनिवेशों में, जहां इमारतों को जल्दी से खड़ा किया जाना आवश्यक था, या फिर जहां कौशल और सामग्री की कमी थी, वहां इस तकनीक ने निर्माण कार्य को आसान बना दिया था। मेसोपोटामिया सभ्यता (Mesopotamian civilisation) की पकी हुई मिट्टी की ईंटों से लेकर प्राचीन रोमनों (Romans) तक, जो अपने नहरों एवं सुरंगों के लिए कंक्रीट के सांचों का उपयोग करते थे, यह तकनीक प्रसिद्ध थी। विलियम द कॉन्करर (William the Conqueror), जिन्होंने 1066 में इंग्लैंड (England) पर आक्रमण किया था, वह भी आक्रमण के समय अपने साथ रक्षा हथियारों के पूर्वनिर्मित खंड लेकर आए थे। विश्व के इन स्थानों के साथ ही, हमारे देश और राज्य में भी कई पूर्वनिर्मित संरचनाएं देखी जा सकती हैं। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि, हमारे शहर लखनऊ में ऐसी संरचना कहा है? आइए, हम आपको बताते हैं। गोमती नदी पर बना लौह पुल नवाब अमजद अली (1842-1847) के शासनकाल में बनाया गया था। हालांकि, इसकी लोहे की संरचना वास्तव में, कई साल पहले ब्रिटेन (Britain) से आयात की गई थी।
ब्रिटेन की बटरली (Butterley) कंपनी द्वारा बनाए गए, इस लौह पुल के 2,500 टुकड़े 1820 के दशक में लखनऊ में आयात किए गए थे। इस पुल को 1814 में जॉन रेनी (John Rennie) द्वारा डिजाइन किया गया था। लेकिन, इसके निर्माण हेतु तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता थी। और तत्कालीन अवध राज्य में, इंजीनियरिंग कौशल एवं ज्ञान की कमी के कारण इसके निर्माण में देरी हुई थी। फिर बाद में, अमजद अली ने ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) से मदद के लिए संपर्क किया। तब, अंततः ईस्ट इंडिया कंपनी के अलेक्जेंडर फ्रेजर (Alexander Fraser) और उनके बंगाल इंजीनियरों के संघ ने इसका निर्माण पूर्ण किया। जबकि, अब यह हमारे शहर का एक विशिष्ट आभूषण बन गया है। यहां हम आपको बता दें कि बटरली कंपनी एक अंग्रेजी विनिर्माण कंपनी थी, जिसकी स्थापना 1790 में बेंजामिन आउट्राम एंड कंपनी (Benjamin Outram and Company) के रूप में की गई थी। इसकी सहायक कंपनियां वर्ष 2009 तक अस्तित्व में थीं। यह डर्बीशायर (Derbyshire) क्षेत्र के रिपले (Ripley) शहर में स्थित थी। डर्बीशायर का क्षेत्र लौह अयस्क के भंडार के लिए जाना जाता था। और अतः यह विनिर्माण कंपनी यहां स्थित थी। जबकि, जनरल (General) अलेक्जेंडर फ़्रेज़र (1824–1898) रॉयल इंजीनियर्स (Royal Engineers) अथवा बंगाल इंजीनियर्स में, एक ब्रिटिश सेना अधिकारी थे। उन्होंने भारत एवं बर्मा (Burma) में सेवा दी थी। जैसा कि हम पढ़ चुके हैं कि, वह 1844 में लखनऊ में गोमती नदी पर बनाएं गए लौह पुल के निर्माण के प्रभारी भी थे।
दशकों के तकनीकी विकास के बाद, अब हम, पूर्वनिर्मित वास्तुकला की क्षमता की खोज जारी रखने तथा इसे अपनी निर्माण डिजाइनों के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने हेतु एक मानक तरीके के रूप में विचार करने के लिए सुसज्जित हैं। दिलचस्प बात यह है कि, इसकी संभावनाएं केवल विस्तारित ही हो रही हैं!

संदर्भ
https://tinyurl.com/m5nwuun6
https://tinyurl.com/5e9bvmxn
https://tinyurl.com/32kjuym5
https://tinyurl.com/c7u8v28x
https://tinyurl.com/ep5pn3zk
https://tinyurl.com/bdcpy94a

चित्र संदर्भ
1. गोमती नदी पर बने लौह पुल को दर्शाता चित्रण (Prarang)
2. प्रीफैब्रिकेशन निर्माण को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. प्रीफैब्रिकेशन इंस्टालेशन को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
4. लौह पुल के विस्तृत दृश्य को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था कोसल राज्य
    ठहरावः 2000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक

     22-10-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, निर्मल शहर के लकड़ी के खिलौनों में छिपी कला और कारीगरी की अनोखी पहचान
    हथियार व खिलौने

     21-10-2024 09:29 AM


  • आइए, विश्व सांख्यिकी दिवस के अवसर पर जानें, सुपर कम्प्यूटरों के बारे में
    संचार एवं संचार यन्त्र

     20-10-2024 09:27 AM


  • कैलिफ़ोर्निया टाइगर सैलामैंडर की मुस्कान क्यों खो रही है?
    मछलियाँ व उभयचर

     19-10-2024 09:19 AM


  • मध्य प्रदेश के बाग शहर की खास वस्त्र प्रिंट तकनीक, प्रकृति पर है काफ़ी निर्भर
    स्पर्शः रचना व कपड़े

     18-10-2024 09:24 AM


  • आइए जाने, क्यों विलुप्त हो गए, जापान में पाए जाने वाले, जापानी नदी ऊदबिलाव
    स्तनधारी

     17-10-2024 09:28 AM


  • एककोशिकीय जीवों का वर्गीकरण: प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स
    कोशिका के आधार पर

     16-10-2024 09:30 AM


  • भारत में कोकिंग कोल की बढ़ती मांग को कैसे पूरा किया जाएगा?
    खदान

     15-10-2024 09:24 AM


  • पौधों का अनूठा व्यवहार – एलीलोपैथी, अन्य जीवों की करता है मदद
    व्यवहारिक

     14-10-2024 09:30 AM


  • आइए जानें, कैसे बनती हैं कोल्ड ड्रिंक्स
    वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

     13-10-2024 09:20 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id