निहारी अरबी शब्द निहार से उत्पन्न हुआ हैं जिसका मतलब दिन अथवा सुबह से होता हैं। जो सुबह की नमाज़(फज्र) के समय से होता हैं।यह भोजन मुख्यतः सुबह के समय खाया जाता है। निहारी का उत्पत्ति मुग़ल शासन के पतन के समय अट्ठारवीं सदी के दौरान पुरानी दिल्ली (जामा मस्जिद एवं दरियागंज इलाकों में) हुआ। मुस्लमान नवाब शुबह जल्दी उठकर निहारी का सेवन करते थे और बाद में लम्बे समय तक विराम करने के पश्चात दोपहर की नमाज पढ़ने जाते थे। उसके बाद यह मजदूर लोगों में भी प्रचलन में आ गयी और नाश्ते के रूप में प्रसिद्ध भोजन बना। पहले ये शर्दियों के मौसम में खायी जाती थी अब ये हर मौसम में बड़े शोक से खायी जाती हैं और अन्य वैकल्पिक कथाओं के अनुसार यह वर्तमान उत्तरप्रदेश के लखनऊ की शाही रसोइयों से होते हुए प्रसिद्धि हासिल करने के बाद मुस्लिम नवाबों की रसोई में पहुँचा। लोग एक पूरी रात के लिए इसे पकाते थे और सुबह सूर्योदय के समय इसका भोजन किया करते थे।
निहारी का उपयोग जुखाम, नासास्त्राव और बुखार के समय घरेलू उपचार की तरह किया जाता है। इसको गरीब लोग बहोत खाते हैं क्यों ये आसानी से सस्ते में बाज़ार में मौजूद होती हैं। वैसी ही हालत अभी भी हैं। आज भी अगर कोई लखनऊ आता हैं और मांसाहारी हैं तो वोह निहारी जरुर खाता हैं। आमतोर पर लोग मटन निहारी पसंद करते हैं। पहले ये सिर्फ कुछ ही रेस्टोरेंट में मिलती थी पर अब ये अकसर सभी रेस्टोरेंट में मिल जाती हैं। इसको खाने के लिए लोग बहुत दूर दूर से सफ़र करके सिर्फ ओर सिर्फ निहारी खाने के लिए लखनऊ आते हैं। लखनऊ में चौक के इलाकों में निहारी की दुकानें मशहूर हैं। यहाँ सिर्फ निहारी खाने के लिए लम्बी लाईन में खड़े होते हैं।
१.द क्लासिक क्युसिन ऑफ़ लखनऊ, ट्रांसलेटेड बाई सूफिया हुसैन
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