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हिंदू धर्म में भगवद्गीता, आस्था का प्रमुख केंद्र होने के साथ ही अनन्य और असाधारण महत्व भी रखती है। भगवद्गीता ने श्री अरविंद घोष, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी आदि जैसे भारतीय महापुरुषों के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण विदेशी व्यक्तियों को भी प्रभावित किया है । एल्डस हक्सले(Aldous Huxley), हेनरी डेविड थोरो (Henry David Thoreau), जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर (J. Robert Oppenheimer), राल्फ वाल्डो एमर्सन(Ralph Waldo Emerson), कार्ल जंग(Carl Jung), बुलेंट एसेविट(Bulent Ecevit), हरमन हेस (Hermann Hesse), हेनरिक हिमलर(Heinrich Himmler), जॉर्ज हैरिसन(George Harrison), निकोला टेस्ला(Nikola Tesla) सहित कुछ अन्य विचारकों और संगीतकारों ने समय-समय पर भगवद् गीता से प्रेरणा ली है।
आइए जानते है कि, एक अमेरिकी भौतिक विज्ञानी और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लॉस एलामोस(Los Alamos) प्रयोगशाला में पहले परमाणु हथियार बनाने वाले अनुसंधान और विकास कार्यक्रम, मैनहट्टन परियोजना(Manhattan Project) के निदेशक जे.रॉबर्ट ओपेनहाइमर(J. Robert Oppenheimer) भगवद्गीता से कैसे प्रभावित थे? क्योंकि, आजकल जे. रॉबर्टओपेनहाइमर के जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ काफ़ी चर्चा का विषय बनी हुई है।
अक्सर ही, रॉबर्ट ओपेनहाइमर को 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी के रूप में, अल्बर्ट आइंस्टाईन (Albert Einstein) के बाद सम्मान दिया जाता है। 16 जुलाई, 1945 को न्यू मैक्सिकन(New Mexican) रेगिस्तान में पहले परमाणु हथियार अथवा ‘ट्रिनिटी(Trinity)’ परमाणु परीक्षण का सफलतापूर्वक परीक्षण करने के बाद, उन्हें “परमाणु बम के जनक” के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने वर्ष 1933 में संस्कृत भाषा सीखी और तब उन्होंने भगवद् गीता के मूल रूप को पढ़ा। भगवद् गीता को पढ़ने के बाद उन्होंने गीता को अपने जीवन दर्शन को आकार देने वाले सबसे प्रभावशाली ग्रंथों में से एक बताया था।
क्या आप जानते है कि, परमाणु विस्फोट को देखते समय, ओपेनहाइमर को भगवद् गीता के कौन से श्लोक याद आए थे? निम्नलिखित श्लोक उनमें से एक था:
दिविसूर्यसहस्रस्यभवेद्युगपदुत्थिता। यदि भाःसदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः।।११-१२।।
अर्थात, “आकाश में अगर हजारों सूर्यों के एक साथ उदय होने से जो प्रकाश होगा, वह कदाचित विश्व रूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश ही होगा।“ इसके अलावा, उन्होंने कहा था कि, तब परमाणु विस्फोट के समय वे जानते थे कि, अब दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी। तब उन्हें याद आया कि, भगवद् गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को यही समझाने की कोशिश करते हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को प्रभावित करने एवं अपना कर्तव्य अदा करने हेतु प्रेरित करने के लिए, अपना “बहु-सशस्त्र रूप” या “विराट स्वरूप” धारण किया था। श्री कृष्ण के इस रूप के तेज की तुलना, ओपेनहाइमर ने परमाणु विस्फोट द्वारा उत्पन्न हुए प्रकाश के साथ की थी। इस परिदृश्य में, श्रीकृष्ण कहते है, “अब मैं इस दुनिया का विनाशक, यानी मृत्यु बन गया हूं।” इस स्थिति में, ओपेनहाइमर को लगा था कि, लोगों ने तब उनके बारे में भी शायद ऐसा ही कुछ सोचा होगा।
क्या आप अनुमान लगा सकते है कि, इस स्थिति में ओपेनहाइमर कौन है? वह संसार का विनाशक नहीं, बल्कि अर्जुन हैं। वास्तव में, वह अपने भाइयों-बहनों या सम्पूर्ण मानवता को, मारना नहीं चाहते थे । परंतु, उन्हें ही सरकार द्वारा, युद्ध में अपना योगदान देने हेतु आदेश दिया गया था। भौतिकी, विखंडन, परमाणु बम और द्वितीय विश्व युद्ध दुनिया को नष्ट करने की ताकत रखते थे; यह जानते हुए भी, ओपेनहाइमर के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। जो कुछ उनके सामने प्रदर्शित किया जा रहा था, उससे वह भयभीत हो रहे थे, विश्व युद्ध के कारण हुए मृत्यु के तांडव को देख रहे थेऔर साथ ही महसूस कर रहे थे, वह कितने छोटे और महत्वहीन हैं। फिर इस भयानक स्थिति से मजबूर होकर, ओपेनहाइमर खुद को भौतिकी के राजकुमार के रूप में अपने कर्तव्य के प्रति आश्वस्त करते हैं, जो कर्तव्य युद्ध है। गीता के पाठ में भी, श्रीकृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं कि, उसका युद्ध में जाना क्यों महत्वपूर्ण है, भले ही अर्जुन को अपने गुरुओं व् समक्ष परिवार के सदस्यों से युद्ध नहीं करना था।
गीता में, कृष्ण के तर्क के तीन बिंदु हैं:
पहला, अर्जुन एक सैनिक है, और इसलिए युद्ध करना उसका कर्तव्य है। दूसरा, अर्जुन के भाग्य का निर्धारण करना उसका काम न होकर, कृष्ण का काम है। और तीसरा, यदि अर्जुन को अपनी आत्मा की रक्षा करनी है, तो उसे अंततः कृष्ण पर ही विश्वास करना होगा। ऐसे में, अर्जुन आश्वस्त होने लगता है। तब श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि वह, कुछ करने के लिए वहां उपस्थित हैं,और कहते है कि, “अब मैं इस दुनिया का विनाशक, यानी मृत्यु बन गया हूं।” अतः अर्जुन, इस कथानक से प्रभावित होकर, युद्ध में शामिल होने के लिए सहमत हो जाता है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय(Harvard University) छोड़ने के बाद, ओपेनहाइमर ने अपने अंग्रेजी अनुवादों के माध्यम से, शास्त्रीय हिंदू ग्रंथों से खुद को परिचित करना शुरू किया। उन्होंने संस्कृत भाषा सीखी, और फिर भगवद् गीता और मेघदूत जैसी साहित्यिक रचनाएं पढ़ीं। बाद में, उन्होंने गीता को उन पुस्तकों में से एक बताया, जिसने उनके जीवन दर्शन को सबसे अधिक आकार दिया था। उन्होंने अपने भाई को भी लिखा था कि, “गीता बहुत आसान और काफी अद्भुत है, और यह किसी भी ज्ञात भाषा में मौजूद सबसे सुंदर दार्शनिक गीत है।” ओपेनहाइमर ने अपने दोस्तों को गीता की प्रतियां उपहार के रूप में दीं थी और अपनी मेज के पास गीता की एक प्रति भी रखी थी। वह वास्तव में, भगवद् गीता के आकर्षण और सामान्य ज्ञान से प्रभावित थे।
उपसंहार के रूप में हम कह सकते हैं कि, अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते समय, कृष्ण के मन में था कि, अंततः सब नष्ट हो जायेंगे। युद्ध में, चाहे आप भाग लें या न लें, सभी लोग प्रभावित तो हो ही जाते हैं । ओपेनहाइमर और उनके परमाणु बम के लिए, यह विशेष रूप से सच लगता है। इसके साथ ही, ओपेनहाइमर की गीता से प्रेरित “कर्तव्य” की भावना उनके जीवन और उनकी सरकारी सेवा में व्याप्त है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4fn9hvzy
https://tinyurl.com/2s3asj9u
https://tinyurl.com/4a6brhbf
https://tinyurl.com/3ms2mrww
https://tinyurl.com/4xczdh4x
चित्र संदर्भ
1. जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर और महाभारत के दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. परमाणु बम परीक्षण स्थल के ग्राउंड ज़ीरो पर रॉबर्ट ओपेनहाइमर (बाएं) और जनरल लेस्ली ग्रोव्स (दाएं) को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. रणक्षेत्र को दर्शाता चित्रण (GetArchive)
4. विश्वरूप अवतार में श्री कृष्ण को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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