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बॉहॉस (Bauhaus): आधुनिक भारतीय वास्तुकला की उत्प्रेरक विचारधारा

लखनऊ

 25-07-2023 09:40 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

कल्पना कीजिए कि किसी विद्यालय की संरचना बहुत ही भव्य है, किंतु इस विद्यालय में एक कक्षा से दूसरी कक्षा तक पहुंचने में शिक्षक को लंबा रास्ता तय करना पड़ता हो। दो कक्षाओं के बीच की दूरी को तय करने में कई बार शिक्षक को एक मिनट से अधिक का समय लग जाता हो। पहली नजर में इस एक मिनट का नुकसान आपको भी नगण्य या बहुत कम लगेगा, किंतु एक साल में यह नुकसान बढ़कर इतना अधिक हो जायेगा कि, इतने समय में बच्चों की हिंदी की किताब के दो अध्याय यानि चैप्टर (Chapter) पूरे किये जा सकते थे। यह उदाहरण दर्शाता है कि केवल किसी वस्तु या इमारत के डिज़ाइन (Design) में बदलाव कर देने से, कितना बड़ा परिवर्तन आ सकता है। वास्तुकला में बदलावों की इसी मांग के फलस्वरूप 20वीं सदी की शुरुआत (1919-1933) के दौरान जर्मनी (Germany) में बॉहॉस (Bauhaus (German for 'Building House') नामक प्रभावशाली आंदोलन शुरू किया गया, जिसने आगे चलकर भारत सहित पूरी दुनिया की डिज़ाइन अवधारणा को बदल कर रख दिया। बॉहॉस एक प्रसिद्ध जर्मन कला विद्यालय (German Art School) था, जो 1919 से 1933 तक अस्तित्व में रहा। इसकी स्थापना वास्तुकार वाल्टर ग्रोपियस (Walter Gropius) ने की थी, जिनका इसका उद्देश्य विभिन्न कलाओं को व्यापक तरीके से एक साथ लाना था। यह स्कूल (यहां पर स्कूल शब्द एक विचार या शैली को प्रदर्शित कर रहा है), अपने डिज़ाइन दृष्टिकोण (Design Approach) के लिए प्रसिद्ध हो गया। बॉहॉस शैली पूरी तरह से सादगी और स्पष्ट रेखाओं पर केंद्रित है। इसमें आयतों और गोले जैसी बुनियादी आकृतियों का उपयोग किया जाता है और बहुत अधिक फैंसी सजावट (Fancy Decorations) से परहेज किया जाता है। इसके तहत निर्मित इमारतों, फ़र्निचर (Furniture) और फ़ॉन्ट (Font) में, आप अक्सर कोने और दीवारों को गोल देखेंगे। कुछ इमारतों में आयताकार बालकनियां (Balconies) जैसी विशेषताएं होती हैं। फ़र्निचर में क्रोम धातु पाइप (Chrome Metal Pipe) का उपयोग किया जा सकता है, जो कोनों पर मुड़ते हैं। बॉहॉस विचारधारा, प्रथम विश्व युद्ध और वाइमर गणराज्य (Weimar Republic) की स्थापना के बाद जर्मनी में उभरी उदारवादी भावना से प्रभावित थी। इस विचारधारा पर 19वीं शताब्दी के एक अंग्रेजी डिजाइनर विलियम मॉरिस (William Morris) ने भी गहरा प्रभाव छोड़ा था, जिनका मानना था कि कला का मुख्य उद्देश्य समाज की जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए। “द वेस्ली चेयर (The Wesley Chair)” बॉहॉस का एक चर्चित उदाहरण मानी जाती है, जिसे मार्सेल ब्रेउर (Marcel Breuer) द्वारा डिजाइन किया गया था। यह धातु से बनी एक आधुनिक कुर्सी है, जिसे बड़े पैमाने पर फैक्ट्री (Factory) में उत्पादन के लिए डिजाइन किया गया था। यह कुर्सी अपनी सरल, लेकिन सुंदर डिजाइन के लिए प्रसिद्ध है। 20वीं सदी की शुरुआत में, जब भारत औपनिवेशिक शासन से आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था, उस दौरान हमारी शिक्षा प्रणाली भी पश्चिमी विचारधाराओं और यूरोपीय कला और तकनीकों से काफी प्रभावित होने लगी थी। प्रसिद्ध कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य में अपने नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) में प्राप्त राशि से, कलकत्ता के शांतिनिकेतन में विश्वभारती नामक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य भी ललित और व्यावहारिक कला, दर्शन और कृषि को एकीकृत करना था, जिसकी वजह से इसने बॉहॉस स्कूल का ध्यान भी आकर्षित किया।
टैगोर के विचारों और बॉहॉस स्कूल की विचारधाराओं में काफी समानता नजर आती थी। 1920 के दशक की शुरुआत में, स्टेला क्राम्रिस्क (Stella Kramrisch) नामक एक ऑस्ट्रियाई (Austrian) कला इतिहासकार ने शांतिनिकेतन में भारतीय और यूरोपीय कला सिखाई और बॉहॉस का परिचय बंगाल स्कूल के भारतीय कलाकारों से भी कराया। दिसंबर 1922 में संयुक्त प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसे 'कलकत्ता में बॉहॉस (Bauhaus In Calcutta)' के नाम से जाना जाता है। इसे भारत में आधुनिकतावाद का शुरुआती बिंदु माना जाता है। यह कलकत्ता में द इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट (The Indian Society Of Oriental Art) की 14वीं वार्षिक प्रदर्शनी का हिस्सा थी। प्रदर्शनी में बॉहॉस शिक्षकों और छात्रों द्वारा 250 से अधिक कृतियों को प्रदर्शित किया गया, जिनमें पॉल क्ली (Paul Klee), लियोनेल फीनिंगर (Lionel Feininger), जोहान्स इटेन (Johannes Itten) और वासिली कैंडिंस्की (Wassily Kandinsky) जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के साथ-साथ गगनेन्द्रनाथ टैगोर, अवनीन्द्रनाथ टैगोर, नंदलाल बोस और जैमिनी रॉय जैसे क्रांतिकारी भारतीय कलाकार भी शामिल थे। अच्युत कनविंदे और हबीब रहमान जैसे प्रमुख भारतीय वास्तुकारों, जिन्होंने विदेश में बॉहॉस प्रभाव के तहत अध्ययन किया था, ने भी 1940 के दशक में आधुनिक भारतीय वास्तुकला में योगदान दिया। बॉहॉस का प्रभाव उन भारतीय वास्तुकारों के माध्यम से भारत तक पहुंचा, जिन्होंने अमेरिका में अध्ययन किया और इसे वाल्टर ग्रोपियस (Walter Gropius) तथा मिज़ वान डेर रोहे (Mies Van Der Rohe) जैसे बॉहॉस मास्टर्स (Bauhaus Masters) से सीखा।
इसके बाद अहमदाबाद, कलकत्ता, मुंबई और दिल्ली शहरों में भी बॉहॉस-प्रेरित वास्तुकला संरचनाएं देखी जाने लगी। जैसे:
● अहमदाबाद में, अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्री के रिसर्च एसोसिएशन बिल्डिंग और मेहसाणा डेयरी (Ahmedabad Textile Industry And The Mehsana Dairy) में बॉहॉस-शैली को देखा जा सकता है।
● कलकत्ता में, वास्तुकार हबीब रहमान की कृतियां, जैसे गांधी घाट स्मारक और नया सचिवालय, बॉहॉस न्यूनीकरणवादी दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।
● नेहरू विज्ञान केंद्र और अच्युत कनविंदे की सीएच-4 कुर्सी (Ch-4 Chair) को मुंबई में बॉहॉस-प्रभावित डिजाइनों का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
● दिल्ली में, वास्तुकार हबीब रहमान की कृतियां जैसे: मौलाना आज़ाद की मज़ार, ज़ाकिर हुसैन की मज़ार, रवीन्द्र भवन, अशोक एस्टेट और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड कार्यालय भवन में बॉहॉस और भारतीय पारंपरिक रूपों के संलयन को देखा जा सकता है। 1960 के दशक में, भारत ने उल्म मॉडल (Ulm Model) के माध्यम से बॉहॉस के शिक्षण सिद्धांतों को अपनाते हुए, अहमदाबाद में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन (National Institute Of Design (NID) जैसे संस्थानों की स्थापना की गई। एनआईडी, को नए लोकतांत्रिक देश में औद्योगिक उत्पादन और विकास योजनाओं में सहायता के लिए डिजाइन शिक्षा और अनुसंधान के संयोजन के विचार से बनाया गया था। यह समाजवाद के लिए डिजाइन की बॉहॉस अवधारणा से प्रेरित था। शुरुआत में यह दिल्ली में स्थित था, लेकिन बाद में राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने के लिए अहमदाबाद में स्थानांतरित हो गया। यह उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय के तहत संचालित होता है, जो भारत के औद्योगिक विकास के लिए डिज़ाइन के महत्व पर जोर देता है।
एनआईडी ने छात्रों के सीखने के अनुभवों को आकार देने के लिए कार्यशालाओं, इन-हाउस परियोजनाओं (In-House Projects) और भारतीय परंपराओं पर शोध को प्रोत्साहित किया। अंतर-विषयक शिक्षा और वैश्विक विचारों के संपर्क को बढ़ावा देने के लिए, एनआईडी ने अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइनरों को आमंत्रित किया और अपने संकाय को भी प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा। डिज़ाइन के प्रति एनआईडी का दृष्टिकोण व्यावहारिक था और इसका उद्देश्य भारत में वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करना था। इसने किसानों के लिए बीज रोपण उपकरण, टूथब्रश-जीभ क्लीनर (Toothbrush-Tongue Cleaner), ईंधन-कुशल स्टोव (Fuel-Efficient Stoves) और छोटे ट्रैक्टर (Small Tractor) जैसे विभिन्न उत्पाद भी डिजाइन किए।

संदर्भ
https://tinyurl.com/5d9zwum6
https://tinyurl.com/4efuac8h
https://tinyurl.com/2p95ddv8
https://tinyurl.com/yck7c5rf

चित्र संदर्भ
1. बॉहॉस-प्रेरित वास्तुकला संरचना को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. डेसौ में बॉहॉस इमारत को वाल्टर ग्रोपियस द्वारा डिजाइन किया गया था। को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. वेस्ली चेयर बॉहॉस का एक चर्चित उदाहरण मानी जाती है, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मिज़ वान डेर रोहे द्वारा निर्मित फ़ार्नस्वर्थ हाउस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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