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अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है, कि "Never Judge A Book By Its Cover" यानी “केवल किसी किताब के बाहरी कवर को देखकर, यह तय मत करें कि उसके भीतर लिखा क्या है।” इसी तरह, लखनऊ शहर में आमतौर पर दिखाई देने वाले कबाड़ वाले भैया भी एक ऐसी ही बेशकीमती किताब हैं, जिनके बेतरतीब से हूलिए को देखकर उनके बारे में लोग कई गलतफहमियां पाले हुए हैं। लेकिन, यदि आप इनके सामाजिक योगदान और आर्थिक तरक्की को देखेगें तो दंग रह जायेंगे।
इन्हें लोग अक्सर स्क्रैप डीलर्स (Scrap Dealers) के नाम से जानते हैं। वहीं, इन्हें हम आम बोलचाल कि भाषा में कबाड़ीवाला या रद्दीवाला भी कहते हैं। गुरुग्राम (गुड़गांव) में, गोविंद और उनके भाई जोगिंदर शिव, स्क्रैप डीलर्स (Scrap Dealers) नामक एक कबाड़खाना चलाते हैं। ये दोनों भाई भारत के अनौपचारिक रीसाइक्लिंग उद्योग (Informal Recycling Industry) का ही एक हिस्सा हैं। दोनों भाई एक दशक से अधिक समय से इस व्यवसाय में हैं और अपने सामने आने वाले कचरे के प्रकार में बदलाव भी देख रहे हैं। प्रसंस्कृत भोजन, इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics) और अन्य वस्तुओं की बढ़ती खपत के कारण भारत में अपशिष्ट उत्पादन की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती नजर आ रही है। ऐसे में कचरा संग्रहण और पृथक्करण, गोविंद और जोगिंदर जैसे लोगों के प्रयासों पर ही निर्भर है।
आज, हर जगह प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरा हावी हो गया है, जिसमें तांबे की तारों जैसी मूल्यवान सामग्रियों की जगह चांदी का उपयोग किया जा रहा है। इन्हें बीनने में आने वाली चुनौतियों के बावजूद, दोनों भाई रीसाइक्लिंग के माध्यम से प्रति माह लगभग 30,000 रुपये कमाते हैं।
प्रत्येक शनिवार और रविवार को, स्थानीय समयानुसार सुबह 9:00 बजे से, गोविंद राष्ट्रीय राजमार्ग के दूसरी ओर प्रिंसटन (Princeton), कार्लटन (Carlton) और वेलिंगटन एस्टेट (Wellington Estates) जैसे विभिन्न अपार्टमेंट (Apartment) का दौरा करते हैं। वह 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सैकड़ों घरों में आठ घंटे तक दरवाजे की घंटी बजाते रहते हैं।
प्रत्येक घर में, उनका स्वागत एक सप्ताह के कबाड़ के साथ किया जाता है। सारे घर अमेजन (Amazon) और अन्य खुदरा विक्रेताओं से आई किताबों, कागज, कार्डबोर्ड बॉक्स (Cardboard Boxes) के ढेर, मिश्रित प्लास्टिक, उलझे हुए तारों और सभी आकार की धातु की वस्तुओं से भरे हुए होते हैं। वह सावधानीपूर्वक सभी सामग्रियों का वजन करते हैं और घर के मालिकों को उनकी पुनर्चक्रण यानि रीसायकल योग्य वस्तुओं के लिए भुगतान करते हैं।
वहीं, कुछ अन्य देशों में रीसाइक्लिंग सेवाएं मुफ्त में प्रदान की जाती हैं, लेकिन गोविंद बताते हैं कि भारत में, उन्हें लोगों से रीसाइक्लिंग योग्य वस्तुएं पैसे देकर खरीदनी पड़ती हैं। इनके द्वारा इकट्ठी की गयी सामग्री में सबसे बड़ा (उनके साप्ताहिक संग्रह का 80%) हिस्सा कागज़ होता है। वह लगभग 2,000 किलोग्राम समाचार पत्र, पत्रिकाएं, किताबें और कार्डबोर्ड इकट्ठा करते हैं। हालांकि, कागज़ सबसे सस्ती पुनर्चक्रण योग्य सामग्री है, जो लगभग 12 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। इसके विपरीत, धातु, जो उनके संग्रह का केवल 10% है, लगभग 24 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि, जापान और यूरोप जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत, लगभग 90% पीईटी प्लास्टिक का पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग करता है। लेकिन, प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करना एक बड़ी चुनौती जैसा है, क्योंकि लोग इसे उतनी लगन से अलग नहीं करते, जितना वे कागज या अन्य धातुओं को करते हैं। खाद्य कंटेनरों और शैंपू की बोतलों को अक्सर उचित छंटाई के बिना फेंक दिया जाता है, जिससे गोविंद बड़ी मेहनत के बाद रीसाइक्लिंग के लिए साफ प्लास्टिक प्राप्त कर पाते हैं।
उनके कबाड़खाने में, ग्राहकों का आना-जाना लगा रहता है, जिनमें कचरा बीनने वाले भी शामिल होते हैं, जो बिक्री के लिए बचाई गई वस्तुएं लाते हैं। उनका कबाड़खाना एक दुकान के रूप में भी काम करता है, जहां आसपास के लोग पुराने फर्नीचर (Furniture) और बर्तन खरीदने आते हैं।
खरीदने और बेचने के बाद छंटाई की प्रक्रिया शुरू होती है। कागज़ पालम के एक गोदाम में और फिर वहां से उत्तर प्रदेश की फैक्ट्रियों में जाता है। वहीं धातुओं को पश्चिमी दिल्ली में स्थित मायापुरी भेजा जाता है, यह स्क्रैप धातु का एक प्रमुख बाजार है। इसके अलावा प्लास्टिक कचरा गुड़गांव की विभिन्न फैक्ट्रियों में जाता है, जो इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ते रीसाइक्लिंग उद्योग में योगदान देता है। इस बीच, ई-कचरा (E-Waste) पूर्वोत्तर दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक स्क्रैप के केंद्र सीलमपुर को निर्देशित किया जाता है।
भारत के एक अन्य व्यस्त शहर चेन्नई, में प्रतिदिन लगभग 4,500 टन ठोस कचरा पैदा होता है, जिसका अधिकांश भाग लैंडफिल (Landfill) कचरे के विशाल ढेर में चला जाता है। लेकिन इस कचरे के निपटान के लिए, कबाडी वालों का एक अविश्वसनीय पारिस्थितिकी तंत्र भी काम करता है, जो कचरे से सामग्री को रीसाइक्लिंग और पुनर्प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बढ़ते हुए कबाड़ कि समस्या से निपटने के लिए कबाड़ी वाला कनेक्ट (Kabadiwala Connect,), नामक पहल भी शुरू की गई है, जिसका मुख्य उद्देश्य एक सूचना सेवा के माध्यम से लोगों को कबाड़ीवालों से जोड़कर लैंडफिल से कचरे को हटाना है। इसका प्राथमिक लक्ष्य लैंडफिल कचरे को कम करना, कबाड़ीवालों की आय को बढ़ावा देना और उन्हें कचरा प्रबंधन नीतियों में शामिल करना है। कबाड़ीवाला कनेक्ट एक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली है, जिसे विकासशील देशों में स्थित शहरों के लिए डिज़ाइन किया गया है। कबाड़ीवाला कनेक्ट अनौपचारिक कचरा बीनने वालों को औपचारिक कचरा प्रबंधन प्रणाली में एकीकृत करके एक समाधान प्रदान करता है। यह उपभोक्ता के बाद के कचरे के संग्रह और प्रसंस्करण के लिए शहरों के मौजूदा अनौपचारिक अपशिष्ट बुनियादी ढांचे का उपयोग करता है।
ये कबाड़ीवाले, दशकों से फल-फूल रहे हैं। कबाड़ीवाले कचरे को उसके बिक्री मूल्य के आधार पर वर्गीकृत करने में विशेषज्ञ होते हैं। आम धारणा के विपरीत, कबाड़ का व्यापार करना काफी लाभदायक हो सकता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ कबाड़ीवाले 50,000 प्रति माह से अधिक रुपये कमाते हैं। ये संख्या कॉर्पोरेट सेक्टर (Corporate Sector) में काम करने वाले किसी आम कर्मचारी के मासिक वेतन से भी अधिक है।
आज हमारे लखनऊ के फैजुल्लागंज के अल्लूनगर इलाके में कबाड़ का कारोबार करने वाली कई दुकानें हैं, लेकिन इन सभी में “Lucknowkabadiwala.Com” नामक एक दुकान, सबसे अलग है, जिसे ओम प्रकाश प्रजापति चलाते हैं। 29 वर्षीय सिविल इंजीनियर ओम प्रकाश प्रजापति ने इस स्टार्ट-अप (Start-Up) को लॉकडाउन के दौरान लॉन्च किया था। लगभग एक साल पहले, जब उन्होंने काम के दौरान वाराणसी में एक निर्माण स्थल पर एक स्क्रैप डीलर को देखा तब उनके मन में कबाड़ बेचने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म (Online Platform) बनाने का विचार आया। अब उनका सपना हकीकत बन गया है।
उनकी दुकान की विशिष्टता यह है कि उनकी वेबसाइट, या एप (Website Or App) स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को आसानी से और उचित मूल्य पर ऑनलाइन कबाड़ बेचने की सेवा प्रदान करती है। प्रजापति खुद भी इस बात से अचंभित हैं कि, उनके इस प्रयास को लोगों से कितनी सराहना मिली है। भले ही शुरू में उन्हें अपने परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन, उन्होंने इस आलोचना को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। जुलाई 2020 में, उन्होंने मोबाइल एप्लिकेशन 'कबडीवाला' लॉन्च किया, जो उपयोगकर्ताओं को ऑनलाइन कबाड़ बेचने की अनुमति देता है।
स्मार्टफोन उपयोगकर्ता गूगल प्लेस्टोर (Google Play Store) से इस ऐप (कबाड़ीवाला) को डाउनलोड कर इसका उपयोग कर सकते हैं। इस एप में उपयोगकर्ता को सबसे पहले लॉग इन (Log In) करना होता है, इसके बाद वे उस कबाड़ की श्रेणी चुन सकते हैं, जिसे वे बेचना चाहते हैं। श्रेणी चुनने के बाद वे अपॉइंटमेंट बुक (Appointment Book) कर सकते हैं, और फिर 'कबडीवाला' की टीम कबाड़ लेने आती है और विक्रेता को कबाड़ के अनुसार मौके पर ही भुगतान करती है । इसके बाद एकत्र किया गया स्क्रैप एक रिसाइक्लर (Recycler) को दे दिया जाता है। प्रजापति के अनुसार, प्रारंभ में, उनके ग्राहकों की प्रतिक्रिया धीमी थी, लेकिन धीरे-धीरे, उनका ग्राहक डेटाबेस लगभग 9,000 तक बढ़ गया। आज वे प्रतिदिन औसतन, लगभग 5 से 8 टन कबाड़ इकट्ठा करते हैं और प्रति माह लगभग ₹50,000 से ₹60,000 कमाते हैं। दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान , उनकी आय और भी अधिक बढ़ जाती है। ग्राहक भी उनकी इस रचनात्मक सेवा से खुश हैं, क्योंकि वे अन्य कबाड़ियों की तुलना में सामग्री के लिए अच्छी कीमतें प्रदान करते हैं।
यदि आपको भी अपने घर के ख़राब और अनुपयोगी सामान की अच्छी कीमत चाहिए, तो आप भी अपने स्मार्टफ़ोन के जरिया इस सेवा का लाभ ले सकते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yc2tz768
https://tinyurl.com/2w7n3fvv
https://tinyurl.com/2p9htdec
https://tinyurl.com/mskz8yy7
https://tinyurl.com/47espke9
चित्र संदर्भ
1. ऑनलाइन कबाड़ीवाला की गाड़ी को दर्शाता चित्रण (youtube)
2. कबाड़ गाड़ियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Dries Buytaert)
3. कागज के कबाड़ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. ई-कचरे को संदर्भित करता एक चित्रण (Max Pixel)
5. कबाड़ उठाते लोगों को दर्शाता चित्रण (Max Pixel)
6. Lucknowkabadiwala.Com को संदर्भित करता एक चित्रण (Lucknowkabadiwala.Com)
7. कबाड़ के ढेर को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
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