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क्या संभव है हस्तरेखा विज्ञान द्वारा रोगों का पता लगाना?

लखनऊ

 18-07-2023 09:43 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

यह एक सामान्य धारणा है कि धार्मिक मान्यताएं और विज्ञान, एक दूसरे के विपरीत होते हैं किंतु दिलचस्प रूप से, हमारे देश भारत में आपको धर्म और विज्ञान एक दूसरे के विपरीत खड़े नजर नहीं आएंगे, बल्कि एक दूसरे के सामानांतर चलते हुए दिखाई देंगे। भारत में कई धार्मिक मान्यताएं ऐसी हैं, जिनके पीछे के वैज्ञानिक प्रमाण बहुत कम उपलब्ध हैं, किन्तु इनका प्रचलन आज भी ज्यों का त्यों है। हस्तरेखा विज्ञान (Palmistry or Chiromancy) भी ऐसी ही एक प्रचलित मान्यता है। हस्तरेखा विज्ञान एक प्राचीन विज्ञान है, जो किसी व्यक्ति की हथेली की रेखाओं की जांच करके उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य को समझने में हमारी मदद करता है। वास्तव में, यह विज्ञान किसी व्यक्ति की हथेली की रेखाओं और विशेषताओं का अध्ययन करके उसके भविष्य की भविष्यवाणी करने की कला है। इसे हस्तरेखा वाचन के रूप में भी जाना जाता है और दुनिया भर में इस विज्ञान के विभिन्न रूपों का अभ्यास किया जाता है। जो लोग हस्तरेखा विज्ञान का अभ्यास करते हैं, उन्हें आमतौर पर हस्तरेखाविद् (Palmist), हस्तपाठक, हस्तविश्लेषक या हस्तचिकित्सक (Chirologists) कहा जाता है। किसी भी व्यक्ति की हथेली की रेखाओं और विशेषताओं की कई अलग-अलग व्याख्याएँ होती हैं, और ये व्याख्याएँ अक्सर एक-दूसरे के साथ विरोधाभासी होती हैं। भारत में हस्तरेखा शास्त्र का अनुसरण मुख्य रूप से हिंदू ब्राह्मणों द्वारा किया जाता है, और इसे छद्म विज्ञान माना जाता है, अर्थात ऐसा विज्ञान जिसकी प्रमाणिकता का कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हस्तरेखाएं जन्म से ही प्राकृतिक रूप से मौजूद होती हैं और प्रकृति का उपहार मानी जाती हैं। हस्तरेखा शास्त्र मानव जीवन के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह लोगों के जीवन में ग्रह दोषों का पता लगा सकता है और उन्हें ठीक करने के उपाय सुझा सकता है। हस्तरेखा विशेषज्ञों का दावा है कि किसी भी व्यक्ति की हथेली की रेखाओं से उसके भाग्य के बारे में पता लगाया जा सकता है। हाथ की आकृति, ग्रहों की स्थिति और हथेली की रेखाओं का विश्लेषण करके, हस्तरेखा पाठक किसी व्यक्ति के जीवन के सभी पहलुओं की विस्तार से जांच कर सकते हैं। हस्तरेखा शास्त्र एक दर्पण के रूप में कार्य करता है, जो व्यक्ति के जीवन की कहानी को दर्शाता है। इसमें मुख्य रेखाओं, द्वितीयक रेखाओं, प्रभाव रेखाओं, हथेली के आकार, अंगूठे और उंगलियों का अध्ययन करना शामिल है। ऐसा माना जाता है कि हस्तरेखा विज्ञान की उत्पत्ति भारत में हुई और इसका अभ्यास भारत, तिब्बत, चीन (China), फारस (Persia) और कुछ यूरोपीय देशों (European countries) सहित विभिन्न संस्कृतियों में किया जाता रहा है। प्राचीन सभ्यताओं जैसे हिंदू, सुमेरियन (Sumerian), तिब्बती, हिब्रू (Hebrew), बेबीलोनियाई (Babylonian) और फारसियों को हस्तरेखा विज्ञान के अध्ययन और अभ्यास में गहरी रुचि थी। यह अभ्यास हिंदू ज्योतिष (Hindu Astrology), चीनी यिजिंग (आई चिंग) (Chinese Yijing (I Ching), और रोमा (जिप्सी) (Roma (Gypsy) भविष्यवक्ताओं से प्रभावित है। कहा जाता है कि हजारों साल पहले हिंदू ऋषि ‘महर्षि वाल्मीकि’ ने “पुरुष हस्तरेखा शास्त्र पर वाल्मीकि महर्षि की शिक्षाएँ" (The Teachings of Valmiki Maharshi On Male Palmistry) नामक एक पुस्तक लिखी थी, जिसमें 567 श्लोक थे। प्रसिद्ध हस्तरेखाविद् कीरो (Cheiro) ने भी भारत में ही हस्तरेखा विज्ञान सीखा और यहां उन्होंने इस विषय पर प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन किया। इसके बाद हस्तरेखा विज्ञान का चलन भारत से चीन, तिब्बत, मिस्र (Egypt), फारस और अन्य यूरोपीय देशों तक फैल गया। ग्रीस (Greece) में, एनेक्सागोरस (Anaxagoras) ने हस्तरेखा विज्ञान का अभ्यास किया, तथा अरस्तू (Aristotle) ने हस्तरेखा विज्ञान पर एक ग्रंथ की खोज की, जिसे उन्होंने सिकंदर महान (Alexander the Great) को प्रस्तुत किया। क्या आप जानते हैं कि सिकंदर को अपने अधिकारियों के हाथों की रेखाओं का अध्ययन करके उनके चरित्र का विश्लेषण करने में गहरी रुचि थी? प्राचीन हिंदू हस्तरेखा विज्ञान (सामुद्रिक शास्त्र) के अनुसार, नीचे दी गई छवि हथेली पर प्रमुख रेखाओं की उत्पत्ति और मार्ग को दर्शाती है- आप जानते हैं कि हाल के चिकित्सा अनुसंधान में हस्तरेखाओं की जांच को भी ध्यान में रखा जाता है, जिसके तहत आनुवंशिक कारकों और असामान्यताओं को हाथ पर पाए जाने वाले पैटर्न से जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की हृदय रेखा में कोई दोष है, तो यह संभावित हृदय समस्याओं का संकेत हो सकता है। इसलिए हस्तरेखाविद् दावा करते हैं कि किसी भी व्यक्ति की हथेली का अध्ययन करके उसके जीवन के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को समझा जा सकता है। कुछ अध्ययनों में हथेली की सिलवटों और गुणसूत्र विपथन द्वारा मस्तिष्क रोगों और कैंसर के बीच संबंधों का पता लगाया गया है। इन अध्ययनों में हथेली की बनावट एवं रेखाओं को दंत क्षय, स्त्री रोग संबंधी कैंसर, ऑटिज्म (Autism), कटे होंठ और स्तन कैंसर से जोड़ा गया है। हाल ही में कुछ ऐसे दावे भी किये गए थे कि हस्तरेखा विज्ञान का उपयोग किसी व्यक्ति में एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS) नामक रोग की शुरुआत और रोगी के जीवित रहने की अवधि का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। एएलएस अर्थात एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस प्रगतिशील बीमारियों का एक समूह है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिससे मांसपेशियों की गति में कमी आने लगती है। कभी-कभी इसे एक प्रसिद्ध बेसबॉल खिलाड़ी के नाम पर, जिसे यह बीमारी थी, “लू गेहरिग्स रोग (Lou Gehrig's Disease) के रूप में भी जाना जाता है। एएलएस के परिणामस्वरूप मांसपेशियों में कमजोरी, दैनिक गतिविधियों में कठिनाई, ऐंठन और अस्पष्ट वाणी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह रोग किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह पुरुषों में महिलाओं की तुलना में थोड़ा अधिक आम है और आमतौर पर 50 से 60 साल की उम्र के लोगों में दिखाई देता है। एएलएस के रोगियों के बीच जीवन प्रत्याशा अलग-अलग होती है। हालांकि अभी तक एएलएस का कोई ठोस इलाज नहीं है, लेकिन उपयुक्त उपचार लक्षणों को प्रबंधित करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकता है। इस संदर्भ में हस्तरेखाविदों ने भी एएलएस रोगियों के जीवित रहने और रोग की स्थिति की भविष्यवाणी करने के लिए शरीर के रंग, हथेली के आकार और त्वचा जैसे कारकों पर विचार करने की कोशिश की है। प्रारंभ में, पर्यवेक्षक 40% रोगियों में उनकी हथेली के चित्रों के आधार पर रोग ग्रस्त अंग के बारे में सही भविष्यवाणी करने में सक्षम थे। इस अध्ययन में भारत में पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (The Postgraduate Institute Of Medical Education And Research) के न्यूरोलॉजी आउट पेशेंट विभाग (The Department Of Neurology Outpatient) में भाग लेने वाले एएलएस रोगियों को शामिल किया गया। अध्ययन में नियंत्रण कक्ष के कर्मियों सहित सभी रोगियों की सहमति से हथेली की तस्वीरें ली गईं। अध्ययन में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, माइग्रेन (Migraine) जैसी अन्य स्वास्थ्य स्थितियों वाले एएलएस रोगियों के साथ-साथ धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान न करने वाले, दोनों रोगियों को शामिल किया गया। कुल 26 एएलएस रोगियों, 30 न्यूरोलॉजिकल नियंत्रण (Neurological Controls) कर्मियों और 34 स्वस्थ आयु-मिलान नियंत्रण कर्मियों को भर्ती किया गया था। अकादमिक रूप से योग्य हस्तरेखाविदों ने अंध विधि (Blind Method) अर्थात बिना यह जाने की उपयुक्त चित्र किस व्यक्ति की हथेली का है, का उपयोग करके हथेली के चित्रों का व्यापक विश्लेषण किया। हालाँकि, (ALS) रोगियों की मृत्यु के बारे में अध्ययन के दौरान किए गए पूर्वानुमान वास्तविक आंकड़ों से मेल नहीं खाते। इसके अलावा हस्तरेखा विशेषज्ञों की भविष्यवाणियों और वास्तविक जीवित रहने की दर के बीच भी बड़ा अंतर नजर आया।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4c3nzhpz
https://tinyurl.com/mrch34da
https://tinyurl.com/4u7aeztb
https://tinyurl.com/2p9xzu7u

चित्र संदर्भ
1. हस्तरेखा विज्ञान को दर्शाता चित्रण (youtube)
2. हाथ के विभिन्न भागों के लघु वर्णन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3 .हस्तरेखा पठन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. वाल्मीकि महर्षि को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. सामुद्रिक शास्त्र को दर्शाता चित्रण (amazon)
6. एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस से पीड़ितों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. एएलएस के नैदानिक निदान को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. हथेली को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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