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सदियों से, हमारे देश भारत में कपड़ा कारीगरों ने विभिन्न तकनीकों से कपड़ों पर प्रस्तुत किए गए रूपांकनों से सुशोभित, सुंदर वस्त्रों की एक विशेष दुनिया को रूप दिया है। ये रूपांकन प्रकृति, विभिन्न किंवदंतियों, मान्यताओं, कारीगरों के आस-पास के जीवन और उनकी अपनी रचनात्मकता से प्रेरित होते हैं। ये धार्मिक तथा शुभ एवं सजावटी तथा रचनात्मक अभिव्यक्ति की एक विशेष दुनिया का विस्तार हमारे सामने पेश करते हैं। इनमें से कई रूपांकनों का संदर्भ भारतीय संस्कृति से जुड़ा होता है, जबकि उन्हें अलग-अलग रूपों या विवरणों में व्यक्त किया जाता है। इसके साथ ही, कुछ रूपांकन क्षेत्र या स्थान, समुदाय, और यहां तक कि पहनने वाले व्यक्ति के लिए विशिष्ट रूप से तैयार किए जाते हैं। वर्तमान समय में, विश्व भर के कपड़ा कारीगर और डिजाइनर (Designer), पारंपरिक भारतीय कपड़ा रूपांकनों से प्रेरित होकर सुंदर वस्त्र बनाते हैं। इस प्रकार, वे रूपांकनों की क़ीमती शब्दावली को जीवित और विकसित करते रहते हैं।
क्या आप ऐसे ही एक, पेस्ली (Paisley) नामक रूपांकन के बारे में जानते हैं? पेस्ली बूटा का उपयोग करके बनाया गया एक सजावटी कपड़ा रूपांकन है, जो एक घुमावदार ऊपरी छोर के साथ पानी की एक बूंद के आकार का होता है। वास्तव में बूटा शब्द एक फ़ारसी शब्द ‘बोतेह’ (Boteh) से बना है जिसका अर्थ झाड़ी या पत्तियों का समूह या फूल की कली है। हम पेस्ली की तुलना एक शंकु के आकार से भी कर सकते हैं। पेस्ली रूपांकन की उत्पत्ति फारस (Persia) से, जो वर्तमान ईरान (Iran) में है, से मानी जाती है।
18वीं और 19वीं शताब्दी में भारत में इस रूपांकन में मुगल साम्राज्य के बाद के संस्करणों के पश्चिम में आयात के बाद यह रूपांकन पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय होने लगा। इन रूपांकनों को मुगल साम्राज्य के दौरान विशेष रूप से कश्मीरी शॉल पर और फिर बाद में स्थानीय स्तर पर दोहराया गया था। जबकि, इस रूपांकन का अंग्रेजी नाम स्कॉटलैंड (Scotland) के पेस्ली (Paisley) शहर से लिया गया है। पेस्ली एक औद्योगिक कपड़ा केंद्र था, जहां पेस्ली डिज़ाइन तैयार किए जाते थे। आमतौर पर, यह रूपांकन आज भी ब्रिटेन (Britain) और अन्य अंग्रेजी भाषी देशों में पुरुषों की टाई (Tie), वेस्टकोट (Waistcoat) और स्कार्फ (Scarfs) पर देखे जाते हैं। दूसरी ओर, ईरान और दक्षिण तथा मध्य एशियाई (Asian) देशों में यह रूपांकन कपड़ों और वस्त्रों के अन्य संस्करणों में भी लोकप्रिय बना हुआ है।
18वीं और 19वीं शताब्दी में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) ने भारत से कश्मीरी शॉल को इंग्लैंड (England) और स्कॉटलैंड में आयात किया था; जहां वे बेहद लोकप्रिय हो गए, और वहां जल्द ही उनकी नकल की जाने लगी। पश्चिमी दुनिया में इस रूपांकन की नकल करने वाला पहला स्थान स्कॉटलैंड का पेस्ली शहर था। यूरोप (Europe) में औद्योगिक क्रांति होने के साथ, पेस्ली शॉल का निर्माण औद्योगिक स्तर पर किया जाने लगा था। उस समय कारीगरों द्वारा हाथ से बनाए जाने के कारण भारतीय शॉल महंगी थी, जबकि,कारखाने में निर्मित पेस्ली शॉल तुलनात्मक रूप से सस्ती थी जिसके कारण यह मध्यम वर्ग के लोगों के बीच भी आम हो गई और इस प्रकार इस रूपांकन की लोकप्रियता को बढ़ावा मिला।
कुछ अभिलेखों से पता चलता है कि विलियम मूरक्रॉफ्ट (William Moorcroft), जो कि ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्त एक अंग्रेज व्यापारी, पशु चिकित्सक और खोजकर्ता थे, ने हिमालय पर्वत का दौरा किया था। मूरक्रॉफ्ट ने पूरे हिमालय, तिब्बत (Tibet) और मध्य एशिया में भी बड़े पैमाने पर यात्रा की थी। 1800 के दशक के मध्य में, अपनी यात्रा के दौरान, वे बूटा द्वारा रूपांकित कश्मीर शॉल की सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होंने भारतीय कपड़ा श्रमिकों के परिवारों को यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में स्थानांतरित करने की व्यवस्था करने का प्रयास भी किया था। यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में स्कॉटलैंड के पेस्ली में बने सबसे पुराने पेस्ली शॉल ऊन से बने होते थे। मूरक्रॉफ्ट भारतीय रूपांकन एवं शॉल को वहां लोकप्रिय बनाना चाहते थे। मूरक्रॉफ्ट ने कश्मीरी शॉल निर्माताओं को नॉर्विच (Norwich) और पेस्ली में ले जाने के लिए कई बार प्रयास किए।
दिलचस्प बात तो यह है कि अपनी इसी यात्रा के दौरान 1811 में मूरक्रॉफ्ट ने घोड़ों के प्रजनन हेतु बेहतर पशुधन की तलाश में उत्तरी उपमहाद्वीप में यात्रा की थी, जिसके तहत उन्होंने अवध की तत्कालीन राजधानी हमारे लखनऊ और बनारस (यह उस समय, मराठा क्षेत्र का हिस्सा था) की यात्रा भी की थी।
भारत और पाकिस्तान की विभिन्न भाषाओं में, पेस्ली का नाम ‘आम’ के विभिन्न नामों से संबंधित है। इसे बांग्ला में कालका; तेलुगु में ममीदी पिंडे, तमिल में मंकोलम, मराठी में कोयरी, हिंदी और उर्दू में कैरी तथा पंजाबी में अम्बी कहा जाता है।
रूपांकनों का अध्ययन करने वाले कुछ विद्वानों का मानना है कि बूटा एक पुष्प गुच्छ और सरू के पेड़ का अभिसरण है। यह जीवन और अनंत काल का एक धार्मिक ईरानी प्रतीक है, जो कि पारसी धर्म से संबंधित था। मुड़ा हुआ शंकु भी ताकत और प्रतिरोध, लेकिन विनम्रता का प्रतीक है। पुष्प आकृति की उत्पत्ति सस्सानिद (Sassanid) राजवंश में और बाद में ईरान के सफ़ाविद (Safavid) राजवंश (1501-1736) में हुई थी। साथ ही, यह रूपांकन काज़ार (Qajar) और पहलवी (Pahlavi) राजवंशों के दौरान ईरान में एक प्रमुख रूपांकन था। इन अवधियों में, इस रूपांकन का उपयोग शाही राजचिह्न, मुकुट और दरबारी परिधानों के साथ-साथ सामान्य आबादी द्वारा उपयोग किए जाने वाले वस्त्रों को सजाने के लिए किया जाता था। कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि शुरुआत में बोतेह रूपांकन पारसी धर्म से प्रभावित था। जबकि अन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि,इस रूपांकन का आकार सस्सानिद राजवंश से प्रभावित था।
कुछ अन्य लोगों का तर्क है कि बोतेह की उत्पत्ति पुरानी धार्मिक मान्यताओं से हुई है और इसका अर्थ सूर्य या फिर एक गरुड़ के प्राचीन ईरानी धार्मिक चिन्ह का प्रतीक हो सकता है। क्योंकि लगभग उसी समय के दौरान, बोतेह नामक एक रूपांकन ईरान में लोकप्रिय बन रहा था। यह एक पुष्प डिजाइन था और इसका उपयोग उच्च श्रेणी की सजावट में किया जाता था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2s4423k5
https://tinyurl.com/2p87h788
https://tinyurl.com/2xxxdzvv
https://tinyurl.com/37hyaxcp
https://tinyurl.com/2tk3rb7r
https://tinyurl.com/2wv6wrhw
चित्र संदर्भ
1. कश्मीरी-रेशम-विस्कोस पैस्ले शॉल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. पेस्ली (Paisley) नामक रूपांकन को दर्शाता चित्रण (Rawpixel)
3. 19वीं सदी के मध्य के अमलिकर शॉल, भारत, कश्मीर, को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. फ़ारसी रेशम ब्रोकेड को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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