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हमारा देश अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण है।यहां विभिन्न धर्म, संप्रदाय, नस्ल आदि के लोग निवास करते हैं, जिनकी भाषाएं भी अलग-अलग हैं। हर भाषा, संस्कृति, मान्यता और धर्म को सम्मान देना ही हमारे देश को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाता है।आधुनिकता की दौड़ में हम कहीं न कहीं अपनी जड़ें खो चुके हैं, तथा अपने देश की विभिन्न भाषाओं को भूलते जा रहे हैं। ऐसा माना जाता है, कि व्यक्ति अपनी मातृभाषा में जो कुछ भी सीखता है उसे वह बहुत सहज रूप से अपने जीवन में आत्मसात कर लेता है तथा उसके जीवन में उस ज्ञान का एक दीर्घकालिक प्रभाव रहता है।
अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है, और इसलिए ऐसी कोई भी प्रणाली नहीं होनी चाहिए, जिसमें पाठ्यपुस्तकें, संदर्भ पुस्तकें और अध्ययन सामग्री भारतीय भाषाओं में उपलब्ध न हों। भाषा और संस्कृति आपस में मजबूती से जुड़े हुए हैं,तथा भाषा की मदद से संस्कृति का विकास कैसे होता है, इस बात की ओर छात्रों और शिक्षकों का ध्यान आकर्षित करना अति महत्वपूर्ण है। इसलिए अब समय आ गया है कि हमारा देश अंग्रेजी-केंद्रित प्रणाली से भारतीय भाषा-केंद्रित शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़े।
जब बच्चा बहुत छोटा होता है, तब उसे जो भाषा सुनने को मिलती है, वह उसकी माँ की सामान्य भाषा होती है तथा इसी भाषा के साथ वह अनुकूलित होना शुरू होता है। लेकिन जब वह विद्यालय जाना शुरू करता है, तब जिस भाषा के साथ वह संपर्क में आता है, उससे उसे घबराहट महसूस होने लगती है। विद्यालय में संचार की भाषा या शिक्षा का माध्यम कुछ ऐसा होता है जिससे वह संभवतः कभी पहले परिचित ही नहीं हुआ। इससे बच्चे के आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और भाषाई तथा संज्ञानात्मक क्षमताओं पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।1953 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा "शिक्षा में स्थानीय भाषाओं का उपयोग" नामक रिपोर्ट में दो पहलू उभरकर सामने आए। पहला पहलू इस बात से सम्बंधित था कि हर बच्चे को स्कूल जाना चाहिए तथा शिक्षण कार्य बच्चे की मातृभाषा में होना चाहिए।तथा दूसरा पहलू इस बात से सम्बंधित था, कि सभी भाषाएँ,यहाँ तक कि तथाकथित आदिम भाषाएँ भी स्कूली शिक्षण का माध्यम बन सकती हैं। कुछ भाषाओं का कुछ हद तक जबकि अन्य भाषाओं का शिक्षा के सभी स्तरों पर उपयोग किया जा सकता है।2004 की संयुक्त राष्ट्र की एक अन्य रिपोर्ट "शैक्षिक गुणवत्ता के लिए मातृभाषा आधारित स्कूली शिक्षा का महत्व” विशेष रूप से "द्विभाषी शिक्षण" की अनुशंसा करती है।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 121 मातृभाषाएँ हैं, जिनमें से 22 भाषाएँ हमारे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं।2019-20 के एक विश्लेषण के अनुसार राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में शिक्षण प्रायःसात भाषाओं (असमिया, बंगाली, बोडो, हिंदी, अंग्रेजी, मणिपुरी और गारो)में किया जा रहा है तथा शिक्षण कार्य के लिए दो माध्यम मुख्य रूप से अपनाए गए हैं,जिनमें से एक राज्य की मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषा है और अन्य या तो अंग्रेजी है या फिर हिन्दी।स्कूलों में शिक्षण के पहले माध्यम के रूप में 25 से अधिक भाषाओं का उपयोग किया जा रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुसार "जहां तक भी संभव हो, कम से कम कक्षा 5 तक या कक्षा 8 तक या उससे भी ऊपर की कक्षाओं में शिक्षा का माध्यम सार्वजनिक और निजी दोनों स्कूलों में घरेलू भाषा या मातृभाषा या स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सिफारिशों के अनुरूप, शिक्षा मंत्रालय की सर्वोच्च प्राथमिकता यह है कि वह एक ऐसे पाठ्यचर्या ढांचे को विकसित और संचालित करे, जिससे स्कूलों में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण कार्य सहज रूप से हो तथा इससे होने वाले लाभों को वास्तविक रूप दिया जा सके।भारतीय भाषाओं के प्रचार और विकास के लिए एक "उच्चाधिकार प्राप्त" समिति की स्थापना की गई है।कक्षा 1-12 तक की पाठ्य पुस्तकों और शिक्षण संसाधनों सहित पाठ्यक्रम सामग्री, दीक्षा पोर्टल पर 32 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है। साथ ही इसमें भारतीय सांकेतिक भाषा को भी शामिल किया गया है।
युवाओं को भाषा के महत्व को समझाने के लिए कुछ समय पूर्व लखनऊ में भाषासंगम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से छात्रों को विभिन्न भाषाएँ जानने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इस प्रकार के कार्यक्रम आज की पीढ़ी को यह दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है कि हमारे पास कितनी समृद्ध विरासत है। देश में बोली जाने वाली भाषाएँ केवल बोली जाती हैं, लेकिन इनमें शोध करना भी अत्यंत आवश्यक है।हमें जितनी भाषाएँ संभव हों, उतनी भाषाएं सीखने का प्रयास करना चाहिए।भाषा शिक्षण केवल गद्य और पद्य पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।साहित्य के विद्यार्थियों को यह सिखाया जाना चाहिए कि वे भाषा की सहायता से क्या कर सकते हैं और इसे रोजगार से जोड़ा जाना चाहिए।
संकायों के अनुरूप अगर हम भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री की उपलब्धता के बारे में बात करें, तो कला संकाय में भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री की उपलब्धता लगभग 80% है, वाणिज्य संकाय में यह 50% तथा विज्ञान संकाय में यह उपलब्धता केवल 30% है।व्यावसायिक अध्ययन में भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री की उपलब्धता मुश्किल से 5%है।यदि अध्ययन सामग्री को विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाता है, तो यह कदम भारत के शिक्षा परिदृश्य में काफी बदलाव ला सकता है।
संदर्भ:
https://rb.gy/yzkwv
https://rb.gy/e8c3v
https://rb.gy/g0pbq
चित्र संदर्भ
1. कक्षा में पढ़ते बच्चों को दर्शाता चित्रण (Freerange Stock)
2. एक माँ और उसके बच्चे को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
3. भारत की भाषाई विविधता को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. दीक्षा पोर्टल को दर्शाता चित्रण (diksha)
5. एक भारतीय छात्र को दर्शाता चित्रण (Rawpixel)
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