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भारत में ब्रिटिश काल के दौरान 6 अक्टूबर, 1894 को हमारे लखनऊ शहर में एक मौसम विज्ञान वेधशाला (Meteorological Observatory) की स्थापना की गई थी। 1 फरवरी, 1948 को इस वेधशाला को अमौसी क्षेत्र (कृष्णा नगर) में स्थानांतरित किया गया था। जबकि, एक बार फिर, 29 नवंबर, 1972 को इस वेधशाला को अमौसी हवाई अड्डे (चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा) में स्थानांतरित कर दिया गया। यह वेधशाला आज हमारे उत्तर प्रदेश राज्य की आम जनता तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों जैसे कृषि, सिंचाई, बिजली, बाढ़ नियंत्रण, राहत और पुनर्वास, सड़क मार्ग और रेलवे आदि को मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करती है। इसके साथ ही, यह वेधशाला केंद्र सरकार और निजी दलों को भुगतान के आधार पर मौसम संबंधी आंकड़े और विमानन सेवाओं की आपूर्ति भी करती है। इन आंकड़ों का उपयोग अनुसंधान उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिकों द्वारा, केंद्रीय जल आयोग के केंद्रीय बाढ़ पूर्वानुमान प्रभाग द्वारा तथा किसानों, आम जनता एवं वायु सेना कर्मियों, सभी हवाईजहाजों , समाचार पत्रों, ऑल इंडिया रेडियो (All India Radio), टीवी चैनलों और मीडिया (Media) के द्वारा किया जाता है।
दरअसल, हमारे उत्तरप्रदेश राज्य में तीन हवाई अड्डों पर मौसम विज्ञान वेधशालाएं स्थित हैं:
१.चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, अमौसी, कानपुर रोड, लखनऊ।
२.बाबतपुर हवाई अड्डा, वाराणसी।
३.फुरसतगंज हवाई अड्डा, रायबरेली।
हमारे लखनऊ का यह मौसम वेधशाला केंद्र पूरे उत्तर प्रदेश राज्य के सभी मौसम पूर्वानुमानों से संबंधित जानकारी प्रदान करता है। इसके साथ ही, यह केंद्र राज्य में स्थित विभागीय और गैर-विभागीय वेधशालाओं के साथ-साथ ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (India Meteorological Department) की विभिन्न योजनाओं जैसे कि, दस्तावेज़ एवं अभिलेख प्रबंधन प्रणाली (Document and Records Management System (DRMS), स्वास्थ्य सुधार संगठन (Health Maintenance Organization (HMO) और क्षेत्र विपणन संगठन (Field Marketing organization (FMO) के तहत रेन गेज स्टेशनों (Rain gauge Stations) का भी निरीक्षण करता है।
इन वेधशालाओं का उद्देश्य मौसम संबंधी अवलोकन करना और अस्थायी तथा स्थानिक पैमाने पर वर्तमान एवं पूर्वी मौसम से संबंधित जानकारी और मौसम पूर्वानुमान प्रदान करना है। ये पूर्वानुमान कृषि, सिंचाई, विमानन, बिजली संयंत्रों, योजना, औद्योगिक संचालन, पर्यटन, आपदा प्रबंधन और अन्य मौसम-संवेदनशील गतिविधियों के संसाधनों के अनुकूलन हेतु महत्त्वपूर्ण होते है।
इसके अलावा, हमारे शहर में 28 दिसंबर, 2011 को एक डॉपलर मौसम रडार (Doppler Weather Radar (DWR) केंद्र का निर्माण हुआ था। इस वर्ष जनवरी महीने में ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (India Meteorological Department (IMD) के 148वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Science) द्वारा जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी डॉपलर मौसम रडार प्रणालियों का उद्घाटन किया गया । मौसम विभाग द्वारा जम्मू-कश्मीर के बनिहाल टॉप, हिमाचल प्रदेश के जोत और मुरारी देवी और उत्तराखंड के सुरकंडा देवी में चार डॉपलर रडार स्थापित किए गए हैं।
‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ चरम मौसम की घटनाओं से संबंधित अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए 2025 तक पूरे देश में डॉपलर मौसम रडार प्रणालियां स्थापित करने की तैयारी कर रहा है। डॉपलर सिद्धांत के आधार पर, इस रडार (Radio Detection and Ranging) को दूर स्थित वातावरण के बारे में डेटा या मौसम पूर्वानुमान और निगरानी में सटीकता लाने हेतु बनाया गया है। इस रडार के पास वर्षा की तीव्रता, हवा की तीव्रता तथा वेग को मापने एवं किसी तूफान के केंद्र तथा बवंडर की दिशा का पता लगाने के लिए उपकरण हैं।
वास्तव में रडार एक ऐसा उपकरण होता है, जो गतिशील एवं गैर-गतिशील वस्तुओं के स्थान (सीमा और दिशा), ऊंचाई, तीव्रता और गति का पता लगाने के लिए माइक्रोवेव (Microwaves) क्षेत्र में विद्युत चुम्बकीय तरंगों (Electromagnetic waves) का उपयोग करता है।
डॉपलर रडार एक विशेष रडार है जो दूर स्थित वस्तुओं के बारे में वेग डेटा उत्पन्न करने के लिए डॉपलर प्रभाव का उपयोग करता है। डॉपलर सिद्धांत से तात्पर्य है कि जब कोई स्रोत और उसके सिग्नल (Signal) एक दूसरे के सापेक्ष गति में होते हैं, तो समीक्षक द्वारा देखी गई आवृत्ति में परिवर्तन होता रहता है। यह किसी लक्ष्य (वस्तु) से माइक्रोवेव सिग्नल को उछालता है, तथा विश्लेषण करता है कि इस लक्ष्य की गति ने वापस छोड़े गए सिग्नल की आवृत्ति को कैसे बदल दिया है। आवृत्ति में यह भिन्नता रडार के सापेक्ष लक्ष्य के वेग के रेडियल घटक (Radial component) का प्रत्यक्ष और अत्यधिक सटीक माप देती है।
डॉपलर रडार को तरंग दैर्ध्यों (Wavelength) के अनुसार कई अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया गया है। ये श्रेणियां एल (L), एस (S), सी (C), एक्स (X), के (K) हैं। इनमें से मुख्यतः एक्स-बैंड रडार का उपयोग मौसम की घटनाओं का पता लगाने के लिए हवाई जहाजों द्वारा किया जाता है ।
आज देश में, चरम मौसम की घटनाओं के पूर्वानुमान में हुए सुधार के कारण, आपदाओं से संबंधित मृत्यु दर कम होकर केवल एकल अंक में आ गई है। डॉपलर रडार की प्रासंगिकता इसमें बड़ी भूमिका निभाती है।
पिछले आठ से नौ वर्षों में हमारे मौसम विभाग की मौसम पूर्वानुमान की सटीकता में लगभग 40% का सुधार हुआ है। देश में डॉपलर रडार की संख्या 2013 में 15 से बढ़कर 2023 में 37 हो गई है। इसके साथ ही, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2025 तक अन्य 25 रडार की स्थापना करने का लक्ष्य रखा गया है।
डॉपलर रडार की मदद से सही समय पर और सटीक रूप से मौसम पूर्वानुमान किया जा सकता है, जिससे,चरम मौसम की घटनाओं की संभावना में प्रबंधन और सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3x8k9kfy
https://tinyurl.com/43kh9t79
https://tinyurl.com/mptwwvky
चित्र संदर्भ
1. चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, अमौसी, कानपुर रोड, लखनऊ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. एक हवाईअड्डे की मौसम विज्ञान वेधशाला को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. भारत मौसम विज्ञान विभाग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. मौसमी रडार को दर्शाता चित्रण (Store norske leksikon)
5. डॉपलर रडार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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