Post Viewership from Post Date to 20-Jul-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2787 504 3291

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

आइए जानें, किन उद्देश्यों के लिए बनाए गए हैं रंगीन कूड़ेदान

लखनऊ

 22-06-2023 10:15 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

भारत की लगभग 484 मिलियन शहरी आबादी हर साल अपने दिनचर्या में 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न करती है। इसमें से 5.6 मिलियन टन कचरा प्लास्टिक का होता है। 0.17 मिलियन टन कचरा जैव-चिकित्सा का और 7.90 मिलियन टन कचरा खतरनाक या विषाक्त होता है तथा 15 लाख टन कचरा ई-कचरा (e-waste) होता है। भारत में विभिन्न उपयोग उद्देश्यों के लिए 3 रंग के कूड़ेदान-हरे, नीले और काले या लाल रंग के कूड़ेदान बनाए गए हैं। भारत के कुछ शहरों में गैर-बायोडिग्रेडेबल (Non-Biodegradable) या खतरनाक कचरे के लिए काले कूड़ेदान का उपयोग किया जाता है जबकि कुछ शहरों में लाल कूड़ेदान का उपयोग किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, शहरों में अधिकांश नगरपालिका कचरा 'गीला' कचरा होता है, जिसे आसानी से खाद के रूप में परिवर्तित कर उपयोग किया जा सकता है। नगरपालिका के कचरे का लगभग 30% हिस्सा प्लास्टिक और धातु से बना होता है, जिसे पुनः चक्रण के लिए एक अधिकृत डीलर को भेजा जा सकता है। लगभग 20% कचरा ई-कचरा होता है, जिससे कीमती धातुओं को अलग किया जा सकता है और पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है। किंतु दुख की बात तो यह है कि एकत्र किए गए कुल नगरपालिका कचरे में से, 94% कचरे को ऐसे ही जमीन पर ढेर के रूप में फेंक दिया जाता है और केवल 5% हिस्से का ही खाद बनाया जाता है।
हालांकि समय-समय पर प्रधानमंत्री द्वारा भी अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” में तरल और सूखे कचरे के लिए क्रमशः हरे और नीले रंग के दो प्रकार के कूड़ेदान उपयोग करने की अपील की जाती रही है । और कुछ शहरों जैसे कि बेंगलुरु, गुड़गांव, पुणे और कोयम्बटूर के नागरिकों ने तो अपनी जागरूकता का परिचय देते हुए प्रधानमंत्री से अपील की कि वे कचरे के इस दो-तरफ़ा पृथक्करण को दूर कर इसके बजाय तीन-तरफ़ा मॉडल को अपनाएँ। किंतु आज भी अधिकांश शहरों में कचरे को एक ही जगह बिना पृथक्करण के फेंक दिया जाता है। इसका एक प्रमुख कारण लोगों में जागरूकता एवं कचरे के डब्बे के रंग को लेकर ज्ञान की कमी भी है। लोग सैनिटरी नैपकिन (sanitary napkins) और डायपर (diapers) को सूखा कचरा समझकर सूखे कचरे के लिए बने नीले रंग के कूड़ेदान में फेंक देते हैं, जो कि प्रदूषण का कारण बनता है। इससे कूड़े को पृथक करने वाले लोगों का कार्य भी कठिन हो जाता है , क्योंकि उन्हें इस कचरे को सूखे कचरे से अलग करना पड़ता है।
इसलिए घरेलू कचरे को अलग करने के तरीके के बारे में लोगों को शिक्षित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। उन्हें यह बताने की जरूरत है कि एक फ्यूज्ड बल्ब (Fused bulb) और बचा हुआ खाना एक ही कूड़ेदान में नहीं फेंका जा सकता। साथ ही गीले कचरे को सूखे कचरे से अलग करना भी जरूरी है। हम सभी को अपने स्वयं के कचरे की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और जितना संभव हो, उतना पुनर्चक्रण करना चाहिए।
तो चलिए जानते हैं, कि आपको कौन सा कचरा किस रंग के कूड़ेदान में डालना चाहिए-
हरे रंग का कूड़ेदान : हरे रंग के कूड़ेदान का इस्तेमाल बायोडिग्रेडेबल कचरे अर्थात ऐसा कचरा जो आसानी से अपघटित हो जाता है, के लिए किया जाता है। इस कूड़ेदान या बिन का उपयोग पके हुए भोजन, बचे हुए भोजन, सब्जियों या फलों के छिलके, अंडे के छिलके, सड़े हुए अंडे, चिकन या मछली की हड्डियाँ, टी बैग्स/कॉफी, नारियल के छिलके और गिरे हुए पत्तों या बगीचे के कचरे सहित गीली या जैविक सामग्री के निपटान के लिए किया जा सकता है। टहनियाँ या पूजा के फूल-माला आदि सभी हरे कूड़ेदान में डाले जा सकते हैं। नीले रंग का कूड़ेदान : नीले रंग के कूड़ेदान का उपयोग सूखे या पुनः चक्रण के योग्य सामग्री को अलग करने के लिए किया जाता है। प्लास्टिक की वस्तुएं, बोतलें, बक्से, कप, टॉफी रैपर, साबुन या चॉकलेट रैपर और कागज के कचरे जैसे पत्रिकाएं, समाचार पत्र, कार्डबोर्ड कार्टन, पिज्जा बॉक्स या पेपर कप, प्लेट जैसे कचरे को नीले रंग के कूड़ेदान में फेंकना चाहिए। धात्विक वस्तुएँ जैसे टिन या कैन, फॉइल पेपर और कंटेनर और यहाँ तक कि सूखा कचरा जिसमें सौंदर्य प्रसाधन, बाल, रबर या थर्मोकोल आदि शामिल हैं, को भी नीले रंग के कूड़ेदान में फेंका जा सकता है। काले रंग का कूड़ेदान : काले रंग के कूड़ेदान का उपयोग तीसरी श्रेणी के कचरे, जो प्रायः घरेलू खतरनाक कचरा होता है, जैसे सैनिटरी नैपकिन, डायपर, ब्लेड, बैंडेज, सीएफएल, ट्यूब लाइट, प्रिंटर कार्ट्रिज, टूटा थर्मामीटर, बैटरी, बटन सेल, दवाईयां जिनकी अवधि खत्म हो चुकी है, के लिए उपयोग किया जाता है। किसी-किसी स्थान पर लाल कूड़ेदान का भी उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग ऐसे कचरे के लिए किया जाता है जो बायोडिग्रेडेबल नहीं है। इस कचरे का पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है। इसे आमतौर पर अस्पतालों में रखा जाता है और जैव-चिकित्सीय कचरे जैसे सुई, सर्जिकल चाकू (Surgical Knife), शरीर के तरल पदार्थ, सूती ड्रेसिंग (cotton dressing), टिश्यू, सैनिटरी नैपकिन आदि को इकट्ठा करने के लिए उपयोग किया जाता है। यदि इस कचरे का ठीक से निस्तारण नहीं किया जाता है, तो रोग संक्रमित सुइयों की चुभन के माध्यम से एचआईवी (HIV), हेपेटाइटिस B और C (Hepatitis B and C) जैसे रोगों के स्थानांतरित होने का खतरा हो जाता है।
इस कचरे में खतरनाक और गैर-खतरनाक दोनों तरह के कचरे होते हैं। चूंकि इन अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता है, इसलिए इन्हें जलाने के लिए ले जाया जाता है। हालांकि इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की धारणा भारत से अलग है और इसमें 5 रंगों वाली अपशिष्ट निपटान प्रणाली को शामिल किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय धारणा के अंतर्गत अपशिष्ट निपटान के लिए प्रायः भूरे, पीले, नारंगी, नीले और हरे रंग के कूड़ेदान का उपयोग किया जाता है। अपघटित होने वाले कचरे जैसे भोजन का कचरा, भोजन से सना हुआ कागज, गैर-खतरनाक लकड़ी का कचरा, सड़ा हुआ मांस, बगीचे का मलबा आदि सभी जैविक कचरे को भूरे रंग के कूड़ेदान में डाला जाता है। ज्वलनशील, संक्षारक, जहरीले, विस्फोटक कचरे जैसे पेंट, बैटरी, सफाई के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री, कीटनाशक, मोटर तेल, अप्रयुक्त दवाएं, रेडियोधर्मी अपशिष्ट आदि को पीले कूड़ेदान में डाला जाता है। औद्योगिक और व्यावसायिक वातावरण में पाया जाने वाला कोई भी कचरा ठोस कचरा माना जाता है तथा इसे नारंगी रंग के कूड़ेदान में डाला जाता है। ठोस कचरे की श्रेणी में कांच, चीनी मिट्टी की चीज़ें, कागज, धातु और प्लास्टिक आदि शामिल हैं। सभी ग्रीस, तेल, कीचड़, धोने का पानी, अपशिष्ट डिटर्जेंट और गंदे पानी को तरल कचरा कहा जाता है तथा इसे नीले रंग के कूड़ेदान में डाला जाता है। ऐसा अपशिष्ट जिसका उपयोग नई वस्तुओं को बनाने के लिए किया जा सकता है, उसे पुनर्चक्रण योग्य कचरा कहा जाता है तथा इसे हरे रंग के कूड़ेदान में डाला जाता है। अपशिष्ट प्रबंधन में अपशिष्ट पृथक्करण एक प्रमुख भूमिका निभाता है। अपशिष्ट पृथक्करण के बारे में जागरूकता पैदा करने में सरकार और गैर सरकारी संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उचित अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 4 आर (4 R) अर्थात पुन: उपयोग (Reuse), पुनर्चक्रण (Recycle), कम करना (Reduce), मना करना (Refuse) के बारे में लोगों में जागरूकता की आवश्यकता है। जागरूकता अभियानों, सोशल मीडिया, रेडियो, समाचार पत्रों आदि के माध्यम से जनता को आसानी से इन से अवगत कराया जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर हर घर में कचरे का पृथक्करण शुरू किया जाना चाहिए। इसके साथ ही कचरे का उचित निस्तारण भी जरूरी है। कचरे के पृथक्करण, परिवहन और उचित निपटान के लिए कड़े उपाय किए जाने चाहिए। ‘सही कूड़ेदान में सही कचरा’ हमारा आदर्श वाक्य होना चाहिए। स्वच्छ शहर स्वस्थ शहर

संदर्भ:
https://rb.gy/prsyv
https://rb.gy/hbz3d
https://rb.gy/7ac51

चित्र संदर्भ
1. रंगीन कूड़ेदानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बड़े कूड़ेदानों को दर्शाता चित्रण (Pxfuel)
3. मिश्रित कूड़े को दर्शाता चित्रण (pexels)
4. हरे रंग के कूड़ेदान को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
5. नीले रंग के कूड़ेदान को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. काले रंग के कूड़ेदान को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
7. लाल रंग के कूड़ेदान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. कतार में कूड़ेदानों को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id