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रानी लक्ष्मीबाई विशेष:सिकंदर बाग लखनऊ में खूब लड़ी मर्दानी वो तो हमारी ऊदा देवी थी

लखनऊ

 17-06-2023 09:37 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

कोई उनको हब्सिन कहता, कोई कहता नीच अछूत,
अबला कोई उन्हें बतलाये, कोई कहे उन्हें मज़बूत
क्या आपने लखनऊ में सिकंदर बाग के बाहर एक चौराहे पर हाथ में राइफल लिए एक महिला की मूर्ति को देखा है? दरअसल यह मूर्ति 1857 के विद्रोह की नायिका रही ऊदा देवी पासी की है। लेकिन दुर्भाग्य से उनके इस महत्वपूर्ण योगदान को, समय के साथ भुला दिया गया। हालांकि केवल उदा देवी ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास में कई ऐसी वीरांगनाएँ हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व जीवन, देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया, किंतु उनके इस योगदान को नजरअंदाज कर दिया गया! यदि आप उनकी साहस से ओतप्रोत कहानियों को पढ़ लें तो आपके भी रौंगटे खड़े हो जाएंगे। हमारे देश में अनुसूचित जाति और समुदायों की, कई महिलाओं ने ब्रिटिश शासन (British rule) से देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। दुर्भाग्य से उनके योगदान को केवल इसलिए अनदेखा कर दिया गया, क्योंकि वे पिछड़ी हुई की पृष्ठभूमि से आती हैं। नीचे दी गई सूची में इन साहसी महिलाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है। १. कुयिली (Kuyili): कुयिली एक बहादुर महिला थीं, जो 1780 के आसपास दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में रहती थीं। वह एक निचली जाति के परिवार से ताल्लुक रखती थीं और शिवगंगई की रानी वेलु नचियार (Rani Velu Nachiyar) की जासूस के रूप में काम करती थीं। कुयिली, पहले रानी की अंगरक्षक और बाद में महिला सेना की कमांडर-इन-चीफ (Commander-in-Chief) बनीं। उन्होंने अपनी सेना का नेतृत्व निडर होकर किया। उन्होंने शिवगंगई किले में प्रवेश किया और अंग्रेजों के हथियारों को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। हालांकि इस जाबांजी की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। निचली जाति की महिला के रूप में उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के उनके साहस तथा दृढ़ संकल्प को आज भी याद किया जाता है। २. झलकारी बाई (Jhalkari Bai): झलकारी बाई, दलित समुदाय से निकली एक बहादुर योद्धा थीं। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। झलकारी बाई, अस्त्र-शस्त्र चलाने और घुड़सवारी में असाधारण रूप से कुशल थी। उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। हालाँकि, उनकी मृत्यु के बारे में कोई भी स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। ३. ऊदा देवी (Uda Devi): ऊदा देवी एक दलित स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। वह पासी जाति से थीं, जो कि ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर और उत्पीड़ित जाति मानी जाती थी। अवध के एक छोटे से गाँव में जन्मी उदा देवी, ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ भारतीय लोगों के बढ़ते गुस्से को देखकर, बेगम हजरत महल के पास युद्ध में शामिल होने के लिए पहुंची। बेगम ने उनकी कमान के तहत, एक महिला बटालियन बनाने में मदद की। उदा देवी और उनकी दलित वीरनगनाओं ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1857 के पहले भारतीय विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नवंबर में, 'लखनऊ की दूसरी राहत' के दौरान, जनरल कॉलिन कैंपबेल की 93 वीं हाइलैंड रेजिमेंट, गोमती नदी के दक्षिणी तट पर स्थित सिकंदरबाग के महल तक पहुंच गई। ब्रिटिश सेना को वहां भारतीय विद्रोहियों के सख्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। वहाँ हुई लड़ाई में, 2,000 से अधिक विद्रोहियों और कई ब्रिटिश सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। अंग्रेजों द्वारा सिकंदरबाग पर कब्जा करने के बाद, एक अधिकारी ने देखा कि कई ब्रिटिश हताहतों में गोलियों के घाव थे जो एक खड़ी, नीचे की ओर प्रक्षेपवक्र का संकेत देते थे। यह संदेह करते हुए कि कोइ विद्रोही पास के पीपल के पेड़ में छिपा हुआ है, और वहाँ से गोलियां चला रहा है , ब्रिटिश अधिकारियों ने पेड़ पर गोलियों की बौछार करनी शुरू कर दी जब तक की वो विद्रोही पेड़ से जमीन पर नहीं गिर पड़ा और मारा नहीं गया। फिर पता चला कि विद्रोही वास्तव में ऊदा देवी पासी थी, जिसने विद्रोह में भाग लेने के लिए पुरुषों के कपड़े पहने हुए थे। 1857 के विद्रोह के दौरान उनकी वीरता को श्रद्धांजलि देने के लिए लखनऊ के सिकंदर बाग के बाहर एक चौराहे पर राइफल लिए और दृढ़ संकल्प प्रदर्शित करते हुए उदा देवी पासी की मूर्ति भी स्थापित है। ऊदा देवी की विरासत आज भी गैर-प्रमुख जातियों, विशेषकर पासी जाति की महिलाओं को प्रेरित करती है। आज भी उनकी शहादत को निडर दलित नारीत्व के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। ४. हेलेन लेपचा उर्फ सावित्री देवी: हेलेन लेपचा (Helen Lepcha), जिन्हें सावित्री देवी के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वोत्तर भारत के सिक्किम राज्य की एक स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने महात्मा गांधी के चरखा आंदोलन से प्रेरित होकर, बिहार में विनाशकारी बाढ़ के दौरान राहत कार्यों में भी भाग लिया। हेलेन लेपचा ने सक्रिय रूप से ब्रिटिश उपनिवेशवाद का विरोध किया और सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) तथा जवाहरलाल नेहरू जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विदेशी सामानों के खिलाफ रैलियां आयोजित कीं। हेलेन लेपचा सामाजिक सक्रियता में भी शामिल रहीं और विभिन्न संघों में महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रहीं। ५. रानी गाइदिनल्यू (Rani Gaidinliu): रानी गाइदिनल्यू, जिन्हें "नागाओं की रानी" के रूप में जाना जाता है, पूर्वोत्तर भारत के एक राज्य मणिपुर की प्रमुख महिला नेता थीं। बहुत कम उम्र मे ही वह अपने चचेरे भाई द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ आयोजित एक सामाजिक-धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन में शामिल हो गईं। रानी गाइदिन्ल्यू ने जेलियांग्रांग जनजाति (Zeliangrong tribe) के लोगों को अंग्रेजों को करों का भुगतान करने से रोकने के लिए संगठित किया और उन्हें औपनिवेशिक ताकतों से बचने में मदद की। अंततः उन्हें भी पकड़ लिया गया, और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी रानी गाइदिन्ल्यू ने भारत में वंचित समूहों की भलाई के लिए काम करना जारी रखा।
५. पुतली माया देवी पोद्दार (Putli Maya Devi Poddar): यह एक गोरखा महिला थी, जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और सामाजिक असमानता दोनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गईं और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। पुतली माया देवी ने दलितों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए संगठनों की स्थापना भी की! इन सभी के साथ-साथ 1857 के विद्रोह में झलकारी बाई, अवंती बाई, महावीरी देवी और आशा देवी, भगवती देवी त्यागी और राज कौर जैसी विभिन्न जातियों से संबंध रखने वाली महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्होंने न केवल अपनी जातियों बल्कि सभी बहुजनों को समाज में इज्जत दिलाई।
आपको जानकर हैरानी होगी कि 1857 के विद्रोह में सशस्त्र संघर्ष में पुरुषों की तुलना में सक्रिय रूप से भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या अधिक थी। लेकिन इसके बावजूद भारत में औपनिवेशिक काल के दौरान उच्च जाति और मध्यम वर्ग की महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर कई लेख छपे लेकिन बहुजन महिलाओं के प्रतिनिधित्व को अक्सर अनदेखा कर दिया गया। 1857 के विद्रोह की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी - भागीदारी। न केवल शाही और कुलीन पृष्ठभूमि से, बल्कि कमजोर समुदायों से भी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अवध के नवाबों के हरम की रखवाली के लिए कई अफ्रीकी महिलाओं को नियुक्त किया गया था। वे भी 1857 के दौरान लखनऊ की लड़ाई में शहीद हुईं। हालाँकि आजादी की लड़ाई सभी ने लड़ी थी, लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि वास्तव में यह आज़ादी कुछ ही लोगों को मिली?

संदर्भ
https://t.ly/b4Jk
https://t.ly/S_8G
https://t.ly/MeGQZ
https://t.ly/nTQb

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ में सिकंदर बाग के बाहर एक चौराहे पर हाथ में राइफल लिए एक ऊदा देवी पासी की मूर्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (twitter)
2. 1857 के विद्रोह को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. कुयिली को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. झलकारी बाई को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. 19 अगस्त, 2016 को सिकंदर बाग, लखनऊ में स्वतंत्रता सेनानी ऊदा देवी को श्रद्धांजलि देते हुए, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री जे.पी.नड्डा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. हेलेन लेपचा को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
7. रानी गाइदिनल्यू को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. महिला स्वतंत्रता सेनानियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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