Post Viewership from Post Date to 15-Jul-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2664 528 3192

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

लखनऊ के सिटी मोन्टेसरी स्कूल में होता है, छात्रों का समग्र विकास

लखनऊ

 12-06-2023 09:32 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

क्या आप जानते हैं कि हमारे लखनऊ का ‘सिटी मोंटेसरी स्कूल’ (City Montessori School) दुनिया का सबसे बड़ा विद्यालय है, जहां पर 1,050 कक्षाएं हैं, जिनमें 52,000 से अधिक छात्र पढ़ते हैं! इस विद्यालय में बच्चों को “मोंटेसरी” शिक्षा प्रणाली के तहत शिक्षा प्रदान की जाती है, जो बच्चों के शैक्षिक स्तर एवं उनके सामजिक, मानसिक, शारीरिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण में भी महत्वपूर्ण सुधार करती है।
लखनऊ के ‘सिटी मोंटेसरी स्कूल’ की कक्षाओं में छात्रों की संख्या बहुत अधिक होने के बावजूद भी, माता-पिता अपने बच्चों को यहां प्रवेश दिलाने के लिए आतुर रहते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि यह विद्यालय काफी प्रतिष्ठित है और भारत के किसी भी ए-लेवल (A-level) विद्यालय के समकक्ष, इस विद्यालय के कम से कम 40% छात्रों का परीक्षा परिणाम हमेशा से ही 90% या उससे अधिक रहता है, जबकि इस विद्यालय का औसत परीक्षा परिणाम 80% है । इसी कारण इस विद्यालय का नाम भारत के शीर्ष विद्यालयों में लिया जाता है। ‘सिटी मोंटेसरी स्कूल’ या सी. एम. एस. (C. M. S.), 1959 में केवल पांच छात्रों के साथ शुरू हुआ था, लेकिन तब से लेकर आज तक यहां छात्रों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। स्कूल प्रति वर्ष 30,000 से लेकर 70,000 तक फीस लेता है, जिससे यह क्षेत्र के अन्य संभ्रांत स्कूलों की तुलना में अधिक किफायती हो जाता है। यहां के शिक्षकों को वेतन भी अच्छा मिलता है, जिससे वे प्रेरित रहते हैं। इसके अलावा स्कूल उन्हें संसाधन और अन्य सहायता भी प्रदान करता है। स्कूल में छात्रों के समग्र विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है। यहां उन शिक्षकों को पुरस्कृत भी किया जाता है, जिनके छात्र राष्ट्रव्यापी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। सी.एम.एस, स्कूल के कार्यक्रमों द्वारा उत्सव जैसा माहौल बनाता है, और छात्रों में सहिष्णुता और एकता को बढ़ावा देता है।
मोंटेसरी शिक्षा की कई विशेषताएं हैं, जैसे:
१. मिश्रित-आयु कक्षाएं, जहाँ विभिन्न आयु के बच्चे एक साथ सीखते हैं।
२. छात्रों को कई विकल्पों में से अपनी पसंदीदा गतिविधियों को चुनने की स्वतंत्रता है।
३. लंबी निर्बाध कार्य अवधि, आमतौर पर तीन घंटे।
४. छात्र केवल पढ़ाई गई जानकारी के बजाय ,व्यावहारिक गतिविधियों और खोज के माध्यम से भी सीखते हैं।
५. शैक्षिक सामग्री अक्सर लकड़ी जैसी प्राकृतिक सामग्रियों से बनाई जाती है।
६. बच्चों के लिए, सीखने का माहौल सुव्यवस्थित और सुलभ होता है।
७. परिसर की सीमा के भीतर छात्रों को पूरी स्वतंत्रता होती है।
८. शिक्षकों को प्रत्येक बच्चे की अनूठी विशेषताओं और क्षमताओं को देखने और समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। भारत में मोंटेसरी शिक्षा, मोंटेसरी शिक्षा की प्रणेता मानी जाने वाली, डॉ. मारिया मॉन्टेसरी (Dr. Maria Montessori), के सन 1939 में भारत आगमन से कई वर्षों पहले ही शुरू हो चुकी थी। भारत के एक अग्रणी शिक्षाविद्, गिजूभाई बधेका ,भारत में मॉन्टेसरी शिक्षा प्रणाली को लाने वाले व्यक्ति माने जाते हैं। प्रारंभिक वर्षों में एक छोटे बच्चे का दिमाग कैसे विकसित होता है, इसके पीछे उनके विचार अत्यधिक प्रासंगिक हैं। भारत में प्राथमिक शिक्षा काफी हद तक औपनिवेशिक प्रणाली के तहत मिशनरियों (Missionary) के बालवाड़ी कार्यक्रमों (Kindergarten Programs) से प्रभावित थी। हालांकि, उस समय के लोग रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा के दर्शन से प्रेरित होने लगे थे; यह दर्शन प्रकृति, शिक्षकों और छात्रों के बीच संबंध पर जोर देता था। बधेका देश में प्रचलित शिक्षा की औपनिवेशिक प्रणाली के खिलाफ थे। औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली आम तौर पर अंक, ग्रेड (Grade), एक शिक्षक-केंद्रित दृष्टिकोण, निश्चित पाठ्यक्रम, कम व्यावहारिक दृष्टिको, रटने और अनुशासन-आधारित सीखने की प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करती थी। बधेका का मानना ​​था कि शिक्षक और शिक्षाविद अगर नहीं जानते कि अच्छी तरह से कैसे पढ़ाना है, तो शिक्षण गुणवत्ता खराब होगी। 1920 में, गिजुभाई बधेका ने ‘बाल मंदिर किंडरगार्टन’ की स्थापना की और यहां पर मोंटेसरी सिद्धांतों को लागू किया। बाद में, नानाभाई भट्ट, हरभाई त्रिवेदी और बधेका ने भावनगर में श्री दक्षिणामूर्ति गिजुभाई विनय मंदिर स्कूल का निर्माण किया। गिजुभाई ने मोंटेसरी के शैक्षिक सिद्धांतों को भारतीय परिवेश के अनुकूल बनाने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने विद्वानों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षित किया और उपयुक्त शिक्षण सामग्री तैयार की। इस शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत स्वतंत्रता, प्रेम, संवेदी विकास, संगीत, नृत्य, कहानी कहने और खेल पर ध्यान केंद्रित करने वाले विचारों ने बच्चों और माता-पिता दोनों के बीच लोकप्रियता हासिल की। अहमदाबाद के साराभाई परिवार का भी मोंटेसरी शिक्षा से गहरा संबंध रहा था। सरला देवी साराभाई ने डॉ. मारिया मोंटेसरी के दर्शन (Philosophy) से प्रेरित होकर उनके काम का अध्ययन किया। सरला देवी मोंटेसरी शिक्षा प्रणाली से इतनी अधिक प्रभावित हुईं, कि उन्होंने अपने बच्चों का शिक्षण भी इसी प्रणाली में किया, जिनमें से एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई हुए। सरला देवी ने मोंटेसरी शिक्षा के समर्थक ई.एम. स्टैंडिंग (E.M. Standing) को भी भारत आने का निमंत्रण दिया। स्वतंत्रता और न्याय के लिए समर्पित, तारा बाई मोदक ने भी मोंटेसरी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए गिजुभाई बधेका का समर्थन किया। उन्होंने ‘शिक्षण पत्रिका’ नामक एक गुजराती मासिक पत्रिका का संपादन शुरू किया, जिसमें उस समय की अन्य शैक्षिक विधियों की आलोचना की गई थी। उन्होंने ‘इंडियन मॉन्टेसरी सोसाइटी’ (Indian Montessori Society) की भी स्थापना की और मोंटेसरी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सम्मेलनों का भी आयोजन किया। तारा बाई ने मुंबई में ‘शिशु विहार’ नामक एक स्कूल और शिक्षकों के लिए एक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की स्थापना भी की। 1918 में भारत आए एक अंग्रेज जॉर्ज अरुंडेल (George Arundale) ने एनी बेसेंट (Annie Besant) और होमरूल आंदोलन (Home Rule Movement) का समर्थन किया। उन्होंने 1937 में हॉलैंड (Holland) में डॉ. मॉन्टेसरी से मुलाकात की और उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया। अरुंडेल का मानना था कि भारतीय शिक्षा भारतीयों के ही हाथों में होनी चाहिए और यहाँ के बच्चों को यहीं की संस्कृति और इतिहास को भारतीय भाषाओं में पढ़ाया जाना चाहिए।
1939 में मारिया मोंटेसरी के भारत आगमन से भारत में मोंटेसरी शिक्षा को और अधिक बल प्राप्त हुआ। 1939 में मद्रास के प्रीमियर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने, जिन्हें राजाजी के नाम से भी जाना जाता है, डॉ. मोंटेसरी की मद्रास यात्रा का स्वागत किया। उन्होंने उनके सम्मान में एक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किया, और मोंटेसरी सामग्री की व्यवस्था की। द्वितीय विश्व युद्ध के प्रकोप के बावजूद, डॉ. मॉन्टेसरी नवंबर 1939 में मद्रास पहुंचीं। यहां पर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया, और उन्हें ओल्कोट गार्डन बंगले (Olcott Garden Bungalows) में ठहराया गया। भारत, बर्मा, सीलोन और यहां तक कि पूर्वी अफ्रीका (Africa) के विभिन्न हिस्सों के 300 से अधिक छात्रों ने पाठ्यक्रम में भाग लिया। डॉ. मोंटेसरी ने शिक्षण सम्बंधित अपने कार्य और दृष्टिकोण के बारे में चर्चा की, जिसमें उन्होंने समाज को बदलने में वयस्कों और बच्चों के बीच सहयोग के महत्व पर जोर दिया। युद्ध से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, डॉ. मोंटेसरी की भारत यात्रा का देश की शिक्षा प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। शिक्षकों और संस्थानों ने, उनके विचारों और सिद्धांतों को बढ़-चढ़कर अपनाया और भारत में मोंटेसरी शिक्षा के विकास की नींव रखी। बच्चों द्वारा स्कूल जाना शुरू करने से पहले बचपन की देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care And Education (ECCE) वास्तव में महत्वपूर्ण है। यह उन्हें स्कूल के लिए तैयार होने, पढ़ने तथा गणित जैसे महत्वपूर्ण कौशल सीखने में मदद करती है।
आज पूरी दुनिया में, यह प्रयास चल रहे हैं कि प्राथमिक विद्यालय शुरू करने से पहले ही अधिक से अधिक बच्चे संगठित शिक्षण कार्यक्रमों में प्रतिभागी हों । 2020 में, वैश्विक स्तर पर पांच साल के 75% बच्चों ने ऐसे कार्यक्रमों में भाग लिया था। भारत में, ऐसे बच्चों की संख्या 87.2% से भी अधिक थी । 2025 तक सरकार इस संख्या को 95%, और 2030 आते-आते 100% तक बढ़ाना चाहती है। 2020 की ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ (National Education Policy (NEP) भी ईसीसीई के महत्व को स्वीकार करती है। एनईपी के तहत अब पहली बार 3 साल की उम्र के बच्चों को ‘अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन’ (Early Childhood Education) कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। एनईपी एक बच्चे के समग्र विकास के विभिन्न पहलुओं, जैसे शारीरिक कौशल, सोच कौशल, सामाजिक और भावनात्मक कौशल, संस्कृति और कला, संचार, और प्रारंभिक भाषा और गणित कौशल पर केंद्रित है। ईसीसीई की योजना और कार्यान्वयन में ‘महिला और बाल विकास’ और ‘शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय’ जैसे विभिन्न मंत्रालय मिलकर काम करेंगे।
सरकार ने ग्रेड 1(Grade 1) में प्रवेश करने वाले पूर्वस्कूली बच्चों के लिए ‘विद्या प्रवेश’ नामक एक तीन महीने का कार्यक्रम शुरू किया है। हालांकि, ईसीसीई कार्यक्रम को लागू करने में कुछ चुनौतियां भी होंगी। जैसे शिक्षकों को विद्या प्रवेश मॉड्यूल प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। स्कूलों को अधिक शिक्षकों और संसाधन व्यक्तियों को नियुक्त करने की आवश्यकता होगी। उन्हें शौचालय और पीने के पानी जैसी अधिक कक्षाओं, और बाल-सुलभ सुविधाओं का निर्माण करने की भी आवश्यकता हो सकती है। लेकिन इसके दूरगामी परिणाम वाकई में लाभदायक होंगे।

संदर्भ
https://shorturl.at/qIQR0
https://t.ly/XYIg
https://shorturl.at/klHIR
https://shorturl.at/dgX25

 चित्र संदर्भ
1. लखनऊ के सिटी मोन्टेसरी स्कूल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. सिटी मोंटेसरी स्कूल के प्रांगण को दर्शाता चित्रण (youtube)
3. सिटी मोंटेसरी स्कूल के प्रांगण में लिखे सुवाक्य को दर्शाता चित्रण (youtube)
4. सी.एम.एस, कक्षा में बैठे बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
5. डॉ. मारिया मॉन्टेसरी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक नोट पर मारिया मॉन्टेसरी और उनके उद्देश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. सिटी मोंटेसरी स्कूल में व्यायाम करते छोटे बच्चों दर्शाता चित्रण (youtube)
8. गणित सीखते छोटे बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id