City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1567 | 581 | 2148 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
आज राजनीतिक एजेंडे से प्रभावित मीडिया (Media), धार्मिक असहिष्णुता को केंद्र में रखकर देश में धार्मिक सौहार्द पर प्रश्न उठा रहा है। ऐसे में समधर्मी तत्वों से परिपूर्ण हमारे अपने शहर रामपुर का रज़ा पुस्तकालय, उन सभी लोगों के लिए अपचनीय कड़वे घूंट की भांति है, जिन्हें भारतीय समाज में धार्मिक एकता का अभाव नजर आता है।
देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, हमारे शहर रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी (Raza Library) एक शानदार इमारत है। आज यह भवन भारत में बहुलवाद का प्रतीक बन गया है, जो विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव का प्रतिनिधित्व करता है। दरअसल, हामिद मंजिल के नाम से प्रसिद्ध इस इमारत को विशेषतौर पर अपनी आठ मीनारों की निर्माण शैली एवं वास्तु कला के लिए जाना जाता है।
जैसा कि आप ऊपर चित्र में देख ही सकते है कि इस इमारत की मीनार के सबसे निचले हिस्से को एक मस्जिद की तरह बनाया गया है, इसके ऊपर का हिस्सा एक चर्च (church) की भांति दिखाई देता है, चर्च के ऊपर का तीसरा हिस्सा एक सिख गुरुद्वारे की वास्तुकला को दर्शाता है, और सबसे ऊपर का हिस्सा एक हिंदू मंदिर के आकार में बनाया गया है।
रज़ा पुस्तकालय का निर्माण 1902 से 1905 के बीच किया गया था। रामपुर की रियासत पर शासन करने वाले नवाबों ने जानबूझकर, इस इमारत में विभिन्न धर्मों के प्रतीकों को शामिल करने का निर्णय लिया, क्योंकि इसके माध्यम से वे अपने राज्य को एक धर्मनिरपेक्ष क्षेत्र के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे।
हालांकि, पुस्तकालय की वास्तुकला, यूरोपीय प्रभावों को भी दर्शाती है। इस इमारत को नवाब हामिद अली खां के निर्देशन में फ्रांसीसी वास्तुकार डब्ल्यू.सी. राइट (W.C. Right) द्वारा डिजाइन किया गया था। रामपुर के नवाब, हामिद अली खां मूल रूप से अफगानिस्तान के रोह से थे, तथा अपने उदार और समावेशी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे। वे कला, संस्कृति और शिक्षा के संरक्षक माने जाते थे, और उन्होंने हिंदू, मुस्लिम और सिक्ख सहित, विभिन्न धर्मों के विद्वानों और धार्मिक नेताओं का समर्थन भी किया।
रामपुर के इस रज़ा पुस्तकालय को अब नवाब परिवार की देखरेख में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रबंधित किया गया है। इस पुस्तकालय के खजाने में दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों और कलाकृतियों का एक व्यापक संग्रह मौजूद है। हालांकि, पुस्तकालय की शुरुआत रामपुर के नवाबों के व्यक्तिगत पुस्तक संग्रह के रूप में हुई थी, जो कला के उत्साही संग्राहक और संरक्षक माने जाते थे। किंतु आज समय के साथ, यह पुस्तकालय देश में सबसे दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों के सबसे बड़े संग्रहों में से एक बन गया है। इस पुस्तकालय में लगभग 17,000 पांडुलिपियाँ मौजूद हैं! ये ग्रंथ अरबी, फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और अन्य भाषाओं में उपलब्ध हैं, जिनमें इतिहास, दर्शन, विज्ञान, साहित्य और धर्म जैसे विविध विषय वर्णित हैं।
रामपुर मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल राज्य हुआ करता था। लेकिन इसके बावजूद, यहां के नवाबों ने गैर-मुस्लिमों के लिए मंदिरों, चर्चों और गुरुद्वारों जैसे पूजा स्थलों के विकास पर भी ध्यान दिया। यहां तक कि उन्होंने अंतर्धार्मिक विवाहों को भी बढ़ावा दिया और विभिन्न समुदायों के बीच की खाई को पाटने का काम किया।
हालांकि, केवल रज़ा पुस्तकालय ही नहीं, बल्कि देश में कई ऐसी इस्लामिक इमारतें हैं जो धार्मिक एकता की मिसाल पेश करती हैं। भारतीय मस्जिदों की वास्तुकला, फारसी, मध्य एशियाई, तुर्की, हिंदू और इस्लामी प्रभावों के एक अद्वितीय मिश्रण को दर्शाती है। भारत में कुल 300,000 से अधिक सक्रिय मस्जिदें हैं, और प्रत्येक की अपनी विशिष्ट स्थापत्य शैली तथा ऐतिहासिक महत्व है। ये मस्जिदें न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं बल्कि स्थानीय संस्कृति और इतिहास के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती हैं। उदाहरण के तौर पर, केरल कोडंगलूर तालुक के मेथला गांव में स्थित, चेरामन जुमा मस्जिद को भारत की पहली मस्जिद माना जाता है, जिसे 629 ईसवी में पारंपरिक केरल शैली में बनाया गया था। मलिक दिनार (Malik Dinar) नाम के एक अरब द्वारा निर्मित यह मस्जिद ऐतिहासिक रूप से विशेष महत्व रखती है।
ऐसी ही उल्लेखनीय मस्जिदों में से एक आगरा की नगीना मस्जिद भी है, जिसे जैवेल मस्जिद (Jewel Mosque) के रूप में भी जाना जाता है। आगरा किले के भीतर स्थित, इस मस्जिद को 1630 से 1640 ईसवी के बीच, शुद्ध सफेद संगमरमर का उपयोग करके बनाया गया था! इसकी वास्तुकला अत्यंत उत्कृष्ट मानी जाती है। इसके अलावा 1644 से 1656 ईसवी के बीच निर्मित दिल्ली की जामा मस्जिद भी ऐतिहासिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इसने 1857 के विद्रोह और 1920 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्षों में अहम भूमिका निभाई थी। भारतीय मस्जिद वास्तुकला के प्रमुख डिजाइन तत्वों में जटिल नक्काशीदार पत्थर का काम, रंगीन टाइलें, लोहे के द्वार, फूलों की आकृति की जटिल नक्काशी शामिल हैं। इसके अलावा जटिल लकड़ी का काम भी भारत में मस्जिद वास्तुकला के अनूठे पहलुओं में से एक माना जाता है।
इंडो-इस्लामिक (Indo-Islamic) वास्तुकला, को भारतीय और इस्लामी निर्माण परंपराओं का एक उल्लेखनीय मिश्रण माना जाता है, जो दोनों (भारतीय और इस्लामी निर्माण परंपराओं) के सर्वोत्तम तत्वों के संश्लेषण को प्रदर्शित करती है। यह शानदार वास्तुकला भारतीय उपमहाद्वीप में ही फली-फूली और इसी का प्रयोग करके भारत की कई मस्जिदों, मीनारों और मुस्लिम सभ्यता के किलों जैसी भव्य संरचनाओं का निर्माण किया गया। भारतीय मस्जिदों की निर्माण शैली में अन्य धर्मों के प्रति खुलापन नजर आता है, जिसे इनका सबसे अनूठा पहलू माना जाता है। अन्य देशों की प्रमुख मस्जिदों के विपरीत, भारतीय मस्जिदें, अन्य धर्मों का भी स्वागत करती हैं। इन मस्जिदों में अक्सर शिक्षण संस्थान (मदरसे) भी मौजूद होते हैं, जो धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों शिक्षा प्रदान करते हैं। यह परंपरा अभी भी दक्षिण भारतीय मुस्लिम समुदाय, विशेषकर केरल में जीवित है। भारतीय मस्जिदों की वास्तुकला केवल धार्मिक संरचनाओं से परे नजर आती है। भारत में मुस्लिम वास्तुकारों ने क्षेत्रीय शिल्प कौशल को बढ़-चढ़कर अपनाया और उस समय उपलब्ध सभी सामग्रियों का उपयोग किया। ताजमहल को इस्लामी वास्तुकला का एक लोकप्रिय प्रतीक माना जाता है। हैरानी की बात यह है कि दुनिया की दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद भी भारत के केरल में स्थित है।
मुगल वास्तुकला, भारतीय इस्लामिक वास्तुकला का एक उल्लेखनीय उदाहरण है। मुगलों ने इस्लामी, तुर्की और फ़ारसी प्रभावों को पारंपरिक भारतीय वैदिक प्रथाओं के साथ मिश्रित किया, जिससे एक उल्लेखनीय मिश्रित वास्तुकला शैली का निर्माण हुआ। उदाहरण के तौर पर 16 वीं शताब्दी में हुमायूँ और शेर शाह द्वारा निर्मित दिल्ली का पुराना किला इंडो-इस्लामिक वास्तुकला को प्रदर्शित करता है। पुराने किले के अंदर किला-ए-कुहना नामक एक मस्जिद है, जो मुगल-पूर्व युग में इस्लामी वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। कुल मिलाकर भारत में मस्जिद वास्तुकला सदियों के विकास क्रम के साथ विकसित हुई है, जिसमें स्थानीय भारतीय शैलियों के तत्वों को बारीकी से शामिल किया गया है! इनके निर्माण में नष्ट किए गए हिंदू और जैन मंदिरों से सामग्री का उपयोग भी किया गया है।
संदर्भ
https://shorturl.at/LTX45
https://shorturl.at/beqKO
https://shorturl.at/guzU5
चित्र संदर्भ
1. रामपुर रज़ा पुस्तकालय को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. रज़ा पुस्तकालय की मीनार को संदर्भित करता एक चित्रण (prarang)
3. समाने से देखने पर रज़ा पुस्तकालय को दर्शाता चित्रण (prarang)
4. मंदिर मस्जिद और गिरजाघर को एकसाथ संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. जामा मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
6. नगीना मस्जिद, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. ताजमहल को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.