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आज के दिन अर्थात 7 जून को प्रत्येक वर्ष खाद्य मानकों पर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ (World Food Safety Day (WFSD) मनाया जाता है। खाद्य जनित रोग प्रतिवर्ष विश्व में 10 में से 1 व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। उचित खाद्य मानक यह सुनिश्चित करते हैं कि हम जो खाद्य खा रहे हैं वह सुरक्षित हैं। इस वर्ष खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, कृषि उत्पादन, खाद्य जनित जोखिमों को समझने, रोकने, और उन्हें प्रबंधित करने के प्रोत्साहन हेतु पांचवां विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाएगा। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organisation-WHO) और खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation-FAO) ने मिलकर 2018 में इस दिन को नामित किया था। इस वर्ष का ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ “खाद्य मानक जीवन बचाते हैं” (Food standards save lives) विषय पर आधारित है।
आज के परिदृश्य में संस्थान की यह पहल महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आज हमारा कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में है। इससे हमारी खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ता हैं। हमारे देश में किसान सूखे और बाढ़ जैसी समस्याओं का कई बार सामना करते है। ये चरम स्थितियां किसानों के पशुधन एवं मत्स्य पालन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। आज खाद्य उपलब्धता में कमी, जलवायु-लचीली फसल, और भोजन की गुणवत्ता में गिरावट, देश के गंभीर मुद्दे बन गए हैं।
देश के कुछ हिस्सों में किसान को, पहले ही इस वर्ष बढ़ते तापमान और मानसून के मौसम में देरी की वजह से सूखे की चिंता परेशान कर रही हैं। हालांकि, भारत सरकार मानसून से पहले चेतावनी जारी करती है, और जनता को संभावित अनुकूलन उपायों के बारे में सूचित करती है। फिर भी, पिछले कुछ वर्षों में तूफानों की वजह से किसानों को, फसलों की क्षति और मिट्टी की गुणवत्ता में कमी से जुड़े नुकसान उठाने पड़े हैं। इसके अलावा, भारत में मानसून की प्रकृति किसी क्षेत्र में बाढ़ का कारण बनती है, तो किसी क्षेत्र में सूखे का, जो किसानों और मछुआरों को प्रभावित करती है।
इसके परिणामस्वरूप, किसानों को इन फसलों को उगाने में लगने वाली अतिरिक्त लागत से भी जूझना पड़ता है। जिसके कारण मुख्य फसलों की कीमत में वृद्धि होती है, और कम आय वाले परिवार और व्यक्ति उनकी बुनियादी खाद्य पदार्थों की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ होते हैं। जलवायु जोखिम के प्रबंधन पर एक रिपोर्ट के अनुसार, गरीब परिवार, कम आय के कारण भोजन और पोषक तत्वों के उपभोग में कटौती करते हैं। वर्ष 2022 में, भारत ‘खाद्य सुरक्षा सूचकांक’ (Food Security Index) में 113 देशों में से 68वें स्थान पर था। संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organization) के अनुसार, हमारा देश 195 मिलियन कुपोषित लोगों का घर है, जिनमें 43% बच्चे हैं।
जलवायु परिवर्तन ने बीजों की फसलों के लिए भी खतरा पैदा किया है, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा से सम्बंधित खतरें भी बढ़ गए हैं। देश की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण गेहूं और चावल के उत्पादन में भी हाल के वर्षों में कमी आई है। गेहूं की फसल को फरवरी-मार्च महीनों में, दिन के दौरान 25° सेल्सियस (Celsius) से कम तापमान की आवश्यकता होती है। यह वह अवधि होती है, जब पौधा दाने भरने की अवस्था में होता है। आज बढ़ते तापमान के कारण पौधों में दाने भरने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। ‘केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय’ के आंकड़ों के अनुसार, देश में 2021-22 में 106.84 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन किया गया, जो 2020–21 में उत्पादित 109.59 मिलियन टन गेहूं के मुकाबले लगभग 3 मिलियन टन कम है। धान का भी यही हाल है।
फूल आने की अवस्था में अधिक वर्षा होने पर अनाज की चमक कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में पौधों का परागण भी प्रभावित होता है। परागण की कमी का अर्थ बीज की भी कमी है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और तापमान बढ़ने से पौधों में यौन प्रजनन चरण बदल जाता है, और बीजों की आनुवांशिक गुणवत्ता में भी बाधा आती है।
एक दूसरा मुद्दा, शहरी क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा का है। खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य है, ‘सभी लोगों के पास, हर समय, अपनी आहार संबंधी आवश्यकताओं के अनुसार पौष्टिक और संतुलित भोजन का उपभोग करने के लिए सामाजिक और वित्तीय साधन की उपलब्धता’। अतः खाद्य सुरक्षा के लिए सामाजिक और आर्थिक पहुंच आवश्यक है। शहरी क्षेत्र में रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए इन दोनों पहलुओं में कमी है। आर्थिक अभाव देश के शहरी क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा का सबसे बड़ा कारण है। शहरी आबादी के पर्याप्त अनुपात के लिए सामाजिक पहुंच भी उपलब्ध नहीं है। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब लोगों के शरीर को सीमित पोषक तत्व भी सही ढंग से समृद्ध नहीं करते। अतः हमें हमारी नीतियों और योजनाओं में सुधार करने की आवश्यकता है!
इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इन्हीं प्रयासों में ‘केंद्रीय औषधीय और सुगंधित पौधा संस्थान’ (Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants -CIMAP) ने पिछले महीने, बाराबंकी जिले के भगौली गांव में भारत का पहला ‘चिरस्थाई सुगंध संघ’ (Sustainable Aroma Cluster) शुरू किया है। इस प्रक्रिया में, किसानों के लिए, मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता की रक्षा के साथ, स्थिर और आर्थिक उत्पादकता को बनाए रखने हेतु नवीनतम कृषि तकनीकों के उपयोग का प्रदर्शन किया गया था। संस्थान ने पर्यावरण अनुकूल तरीकों से सुगंधित पौधों की खेती करके 30 किसानों की भूमि पर यह क्लस्टर बनाया। अरोमा क्लस्टर टिकाऊ कृषि पद्धतियों के कार्यान्वयन के लिए एक आदर्श के रूप में काम करेगा, और वातावरण में कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा। क्लस्टर में, सीआइएम–उन्नति (CIM-Unnati) नामक एक उच्च उपज वाली पुदीने की फसल लगाई गई है। यह फसल पौधे के कीट और रोग जैसे जैविक तनाव के प्रति प्रतिरोधक है, जबकि सूखे, बेमौसम बारिश, पानी और जमीन की लवणता, तथा उच्च धातु स्तर, गर्मी, और ठंडी आदि अजैविक तनाव के प्रति सहिष्णु भी है।
इस क्लस्टर के दौरान वैज्ञानिकों ने किसानों को उर्वरकों और कीटनाशकों का कुशलता से छिड़काव करने के लिए ड्रोन (Drone) का उपयोग करना भी सिखाया। साथ ही किसानों को, हाथ से सिंचाई करने से होने वाली पानी की बर्बादी, और हाथ से कीटनाशक का छिड़काव करने से व्यक्तियों और पर्यावरण को होने वाले नुकसान, के बारे में भी बताया। इस क्लस्टर में शामिल हुए किसानों को ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ (Soil Health Card) भी प्रदान किए गए। यहां पुदीने का तेल निकालने के लिए सौर ऊर्जा संचालित इकाइयों का भी उद्घाटन किया गया। संस्थान ने, क्लस्टर के विकास में अर्ली मिंट टेक्नोलॉजी (Early Mint Technology) नामक एक उन्नत कृषि तकनीक का उपयोग किया है। यह तकनीक सिंचाई के समय 20% से 25% पानी की बचत करती है, और खरपतवार की वृध्दि को कम करती है। इसके अलावा, यह फसल की शीघ्र परिपक्वता में भी मदद करती है।
संदर्भ
https://bit.ly/42hFL3R
https://bit.ly/3C7A0Lv
https://bit.ly/3IQ8WnQ
https://bit.ly/43gtoXm
https://rb.gy/2sqhe
चित्र संदर्भ
1. पुदीने के आवश्यक तेल को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. खेत खोदते किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (Max Pixel)
3. सूखे खेत को दर्शाता चित्रण (Max Pixel)
4. फसल की देखरेख करते किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (Max Pixel)
5. पुदीने के ढेर को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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