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हमारे शहर लखनऊ के गोमती नगर में स्थित ‘अम्बेडकर मेमोरियल पार्क’ (Ambedkar Memorial Park) में, कुर्सी पर बैठे डॉ.भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा के आधार पर, हिंदी में एक पंक्ति लिखी गई है, जो उनके जीवन के पूरे सार को समेट लेती है। यह पंक्ति कुछ इस प्रकार हैं: “मेरा जीवन संघर्ष ही मेरा संदेश है।"
क्या आप जानते हैं कि भारत के पहले कानून मंत्री और दलित अधिकारों के लिए लड़ने वाले समाज सुधारक डॉ.भीमराव अम्बेडकर ने ही 14 घंटे प्रति दिन की कार्य की समयावधि को घटाकर 8 घंटे प्रति दिन किया था। इसके अलावा श्रम कानूनों के निर्माण और आधुनिक भारत में श्रम सुधारों की शुरुआत करने के संदर्भ में डॉ. अम्बेडकर का योगदान अद्वितीय है।
किसी भी देश के विकास में श्रमिक या मजदूर एक अत्यंत महत्वपूर्ण इकाई है। भारत में, आबादी का एक बड़ा हिस्सा श्रमिक वर्ग में आता है, जिनमें से अधिकांश कृषि पर निर्भर हैं। देश में, 52 करोड़ से अधिक लोग श्रमिक वर्ग का हिस्सा हैं। भारत में कार्यबल का अधिकांश हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जहां नियमों और सुरक्षा का अभाव नजर आता है। इसलिए इस क्षेत्र में काम करने वाले उन श्रमिकों का सदियों से ही शोषण होता आ रहा है, जो आमतौर पर अशिक्षित और अपने अधिकारों से अनभिज्ञ होते हैं।
औद्योगीकरण की प्रक्रिया के दौरान कई कृषि श्रमिकों ने कारखाने की नौकरियों की ओर रुख किया। औपनिवेशिक शक्तियों और भारतीय पूंजीपतियों सहित कारखानों के मालिकों ने देश में कई निर्माण इकाइयां स्थापित कीं, और अधिक मुनाफे के लिए मजदूरों का शोषण करना शुरू कर दिया। सरकारी नियमों के अभाव में, श्रमिकों का आसानी से शोषण किया जाता था। इसलिए श्रम कानूनों की आवश्यकता को देखते हुए, ब्रिटिश सरकार ने भारत में कारखानों को विनियमित करने के लिए, 1881 में, ‘भारतीय कारखाना अधिनियम’ (Indian Factory Act, 1881) पारित किया।
तब से लेकर आज तक भारत में श्रम कानूनों में विभिन्न परिवर्तन एवं विकास हुए हैं। वर्तमान में, श्रम और रोजगार मामलों से संबंधित 50 से अधिक केंद्रीय कानून और कई राज्य कानून मौजूद हैं। भारतीय संविधान भी मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के माध्यम से श्रम बल के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। श्रम कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास है।
दलितों के सशक्तिकरण और भारतीय संविधान के लेखन में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाने वाले, डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने श्रम कानून के निर्माण में निर्णायक की भूमिका निभाई। उन्होंने 1942 से 1946 के दौरान वायसराय (Viceroy) की कार्यकारी परिषद में सेवा की, और श्रम पोर्टफोलियो (Labor Portfolio) के प्रभारी बने। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने श्रमिकों की स्थितियों में सुधार के लिए कई श्रम कानूनों को पेश किया और उनमें संशोधन भी किया। 1936 में, डॉ. अम्बेडकर ने गरीबों के हितों की रक्षा के लिए ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ (Independent Labor Party) की स्थापना की।
श्रम कानून में डॉ. अम्बेडकर द्वारा किए गए महत्वपूर्ण बदलावों में ‘फैक्ट्री अधिनियम’ में संशोधन शामिल था, जिसमें सवैतनिक अवकाश, अधिकतम काम के घंटे, और ओवरटाइम (overtime) वेतन जैसे प्रावधान शामिल थे। उन्होंने श्रमिकों और उनके परिवारों का समर्थन करने के लिए एक ‘श्रम कल्याण कोष’ की भी स्थापना की थी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कार्यबल में गर्भवती महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश और सुरक्षा प्रदान करने के लिए ‘मातृत्व लाभ अधिनियम’ की शुरुआत करते हुए, महिला सशक्तिकरण पर भी ध्यान केंद्रित किया।
उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों के सामने आने वाले मुद्दों को हल करने के लिए एक अखिल भारतीय श्रमिक संघ (All India Labor Union) के गठन का प्रस्ताव रखा।
आज, भारत सरकार द्वारा लागू की गई कई श्रम नीतियां और कार्यक्रम डॉ अंबेडकर के विचारों से ही प्रभावित हैं। डॉ भीमराव अंबेडकर ने न केवल भारतीय संविधान बनाने में मदद की, बल्कि भारतीय श्रमिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भी काम किया। वह सिर्फ दलित समुदाय के नेता ही नहीं, बल्कि सभी भारतीय मजदूरों के रक्षक भी माने जाते थे।
नेता बनने से पहले डॉ. अंबेडकर को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। वह बेहद विषम परिस्थितियों में रहते थे, जिसने उन्हें अधिकारों और कल्याण के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। अम्बेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (London School Of Economics) से परास्नातक और पीएचडी की डिग्री (Master's and Ph.D Degrees) हासिल की। इसके बाद वे बंबई (वर्तमान मुंबई) के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज (Government Law College) में प्रोफेसर (Professor) बन गए। हालाँकि, अपनी शिक्षा और उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें अपनी दलित पृष्ठभूमि के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा। अस्पृश्यता जैसे सामाजिक कलंक के कारण उन्हें अच्छा आवास भी नहीं मिल सका।
दस वर्षों तक, अम्बेडकर एक चॉल में रहते थे, जो बंबई में सबसे कम आय वाले श्रमिक वर्ग के लिए आवास स्थल था। गरीबों के बीच रहने और उनके संघर्षों को देखने के इस अनुभव का उनकी सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा।
1936 में, डॉ. अम्बेडकर ने ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ के माध्यम से किसानों, किरायेदारों और श्रमिकों के सामने आने वाले मुद्दों को हल करने के लिए काम किया। जिससे लोगों में उनके प्रति विश्वास और सम्मान की भावना जागृत हुई, और इसके साथ ही वह एक सम्मानित श्रमिक नेता बन गए। बाद में उन्होंने ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’ (Industrial Disputes Act) जैसे श्रमिकों के अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले अनुचित कानूनों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। 1942 में, भारत के पहले श्रम मंत्री बनने के बाद, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण श्रम सुधार पेश किए। यह उन्हीं के प्रयासों का परिणाम था कि 14 घंटों के कार्यदिवस को 8 घंटे के कार्य दिवस तक सीमित किया गया । उन्होंने कारखाने के श्रमिकों के लिए वेतन के साथ छुट्टियों और प्रति सप्ताह 48 घंटे काम करने का प्रस्ताव किया। श्रम के लिए न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए, डॉ अंबेडकर ने 1942 में ‘न्यूनतम मजदूरी अधिनियम'(Minimum Wages Act) का मसौदा भी तैयार किया, हालांकि इसे 1948 में ही कानून के रूप में मंजूरी मिली। डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर ने श्रम कल्याण से उत्पन्न मामलों पर सलाह देने के लिए एक सलाहकार समिति का भी गठन किया।
श्रमिकों के समर्थन के लिए डॉ. अम्बेडकर ने ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ (Reserve Bank Of India) और ‘कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम’(Employees State Insurance Act) जैसे संस्थानों और कानूनों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हीं के प्रयासों के कारण पूर्वी एशियाई देशों में, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के माध्यम से कर्मचारियों के कल्याण के लिए बीमा लाने वाला भारत पहला देश था। उन्होंने रोजगार कार्यालयों का भी निर्माण किया और श्रमिकों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम पेश किए। इसके अलावा, डॉ. अम्बेडकर ने ‘श्रमिक संघों के महत्व’ और ‘हड़ताल के अधिकार’ पर भी जोर दिया। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के कारण ही आज श्रमिक अपने अधिकारों के लिए हड़ताल पर जा सकते हैं। 1943 में, डॉ अंबेडकर ने ट्रेड यूनियनों (Trade Unions) की अनिवार्य मान्यता के लिए ‘भारतीय ट्रेड यूनियन (संशोधन) विधेयक' (Indian Trade Unions (Amendment) Bill) पेश किया। उन्हीं के कार्यकाल के दौरान सबसे पहले मुख्य श्रम आयुक्त, प्रांतीय श्रम आयुक्त, श्रम निरीक्षक आदि की नियुक्ति हुई थी। डॉ अंबेडकर द्वारा ही ‘औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) विधेयक’ केंद्रीय विधानसभा में पेश किया गया था, जो 23 अप्रैल, 1946 को लागू हुआ।
डॉ अम्बेडकर सभी के लिए सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता में विश्वास करते थे। उन्होंने साम्यवाद का विरोध किया और मजदूरों के लिए काम और जीवन की उचित परिस्थितियों के महत्व पर बल दिया। उन्होंने ‘सस्ते श्रम’ के विचार के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी और भारत में श्रमिकों के लिए बेहतर भविष्य की दिशा में काम किया। आज भी विश्व के बड़े-बड़े विद्वान उनकी दूरदृष्टि की सराहना करते नहीं थकते हैं! उनके सम्मान में हमारे लखनऊ में भी उनको समर्पित ‘अम्बेडकर मेमोरियल पार्क’ की स्थापना की गई है! यह पार्क गोमती नगर, लखनऊ, में स्थित एक सार्वजनिक पार्क और स्मारक है। इस पार्क में अन्य महान विभूतियों, जैसे ज्योतिराव फुले, नारायण गुरु, बिरसा मुंडा, शाहूजी महाराज और काशीराम, की भी प्रतिमाएं मौजूद हैं। मेमोरियल पार्क में 108 एकड़ का क्षेत्र शामिल है और इसमें 124 स्मारकीय हाथी भी हैं।
स्मारक का निर्माण 1995 में शुरु हुआ और 2008 में पूरा हुआ। इसे राजस्थान से आए लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाया गया था। स्मारक को बनाने में करीब 7 अरब रुपए खर्च हुए हैं। पार्क का मुख्य आकर्षण अम्बेडकर स्तूप है, जिसमें डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में है। स्मारक के समीप, ‘डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन संग्रहालय’ नामक एक संग्रहालय भी है, जिसमें विभिन्न समाज सुधारकों की मूर्तियाँ हैं। इसके साथ ही यहां ‘डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन गैलरी’ में आपको कांस्य भित्ति चित्र भी देखने के लिए मिल जायेंगे।
संदर्भ
https://shorturl.at/iqvGW
https://shorturl.at/fmKLP
https://shorturl.at/dptzG
https://shorturl.at/bnwTX
https://shorturl.at/ekmRZ
चित्र संदर्भ
1. अम्बेडकर मेमोरियल पार्क’ (Ambedkar Memorial Park) में, कुर्सी पर बैठे डॉ.भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia,
Picryl)
2. डॉ. अम्बेडकर को जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई, इस दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
3. एक फैक्ट्री में काम करते मजदूरों को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. ट्रेड यूनियन रैली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बरार, मध्य प्रांत, नागपुर में 'इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी' के नेता और कार्यकर्ताओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष के तौर पर डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. लखनऊ में अम्बेडकर स्मारक के रात्रि के दृश्य, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. अम्बेडकर स्मारक में अम्बेडकर स्तूप और हाथीयों की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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