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नदियाँ हमारे विश्व की जीवनदायिनी हैं। दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्रों को पानी की आपूर्ति प्रदान करने के साथ-साथ ये विभिन्न जीवों की एक महत्वपूर्ण आबादी को भी आवास प्रदान करती हैं।इसके अलावा नदियां परिवहन और मनोरंजन का भी स्रोत हैं। एक समय ऐसा था, जब लखनऊ की गोमती नदी जीवों की एक महत्वपूर्ण आबादी को आश्रय देती थी, किंतु अब यह नदी, प्रदूषण के उच्च स्तर का सामना कर रही है।भारतीय वन्यजीव संस्थानकी एक टीम ने लखनऊ-सीतापुर सीमा पर 929 किलोमीटर लंबी गोमती नदी में पहली बार ऊदबिलाव को देखा है।यह एक आश्चर्यजनक बात है, क्यों कि विभिन्न प्रमुख उद्योगों द्वारा अपशिष्टों के लगातार निर्वहन के कारण नदी की स्थिति बिल्कुल खराब हो गई है।उत्तर प्रदेश में उदबिलाव आमतौर पर पीलीभीत टाइगर रिजर्व, दुधवा टाइगर रिजर्व, कतर्निया घाट, हैदरपुर आद्रभूमि और हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य में पाए जाते हैं।भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञ के अनुसार, टीम ने ऊदबिलाव को तब देखा जब वे एक पारिस्थितिक मूल्यांकन कर रहे थे, जो कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के “स्वच्छ गंगा” राष्ट्रीय मिशन द्वारा वित्त पोषित परियोजना का हिस्सा है।गोमती नदी में पहले कभी भी ऊदबिलाव नहीं देखा गया था। गोमती में ऊदबिलाव की उपस्थिति का बहुत महत्व है, क्योंकि यह इंगित करता है कि नदी का कुछ भाग अभी भी जलजीवों के लिए रहने योग्य है। सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि 150 से अधिक गांवों के 68 नालों और 30 उद्योगों से रोजाना 865 मिलियन लीटर सीवेज निर्वहन सीधे नदी में डाला जाता है।इन 30 उद्योगों में 7 चीनी, 2बूचड़खाने, 3कपड़ा या यार्न रंगाई उद्योग, 5 इंजीनियरिंग उद्योग, 3डिस्टिलरी इकाइयां (Distillery units) और डेयरी, उर्वरक, कागज, खाद्य और पेय पदार्थों के 10 उद्योग शामिल हैं।ऊदबिलाव मुख्य रूप से मछलियों, झींगों, क्रेफिश, केकड़े, कीड़ों और मेंढकों, मडस्किपर्स (Mudskippers), पक्षियों और चूहों जैसे कशेरुकियों का शिकार करता है। उन्हें नदियों के किनारे मौजूद चट्टानी भाग पसंद हैं, क्योंकि यह उन्हें मांद बनाने और आराम करने के लिए उचित स्थान प्रदान करता है।ऊदबिलाव नदी के किनारे मौजूद दलदल और वनस्पतिपर भोजन और घूमने के लिए निर्भर है।
गोमती नदी में प्रदूषण के स्तर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि कुछ समय पूर्व ही नदी से हजारों मृत मछलियों को बाहर निकाला गया। लोगों को इन मछलियों को निकालने में काफी दिक्कत हुई, क्यों कि नदी अत्यधिक प्रदूषित थी।नदी के पानी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम हो जाने के कारण मछलियां मर गई थीं। प्रदूषण निवारण बोर्ड के अधिकारी इस दुखद स्थिति के लिए अनुपचारित मलवे को दोष देते हैं। हालांकि, कुछ का मानना है कि मछलियों की सामूहिक हत्या सीवेज के कारण नहीं, बल्कि सीतापुर और लखीमपुर-खीरी के ऊपरी इलाकों में पेपर मिलों, चीनी कारखानों और डिस्टिलरी उद्योगों द्वाराछोड़े गए औद्योगिक अपशिष्टके कारण हुई।गोमती नदी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर 1 मिलीग्राम प्रति लीटर जितना कम हो गया है। जलीय जीवन को बनाए रखने के लिए जल में ऑक्सीजन की न्यूनतम मात्रा 4-6 मिलीग्राम प्रति लीटर होना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश मछुहारा संघ ने इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल सरकारी कार्रवाई की मांग की है। समय के साथ-साथ गोमती नदी उत्तर प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी बनती जा रही है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किये गए निरीक्षण से पता चला है कि यह पानी उपयोग करने के लिए पूरी तरह सेअनुपयुक्त है। प्रदूषण की सीमा इस कदर है कि नदी की जैव विविधता प्रभावित हो रही है। कुछ समय पहले मोलस्क (Molluscs) की एक समुद्री प्रजाति,सोलारिएला (Solariella),नदी में पाई गई थी। यह खतरे का संकेत है, क्योंकि सोलारिएला तटीय जल (जिसमें आमतौर पर पीएच का उच्च स्तर होता है) की स्थानिक प्रजाति है।भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार,अकशेरुकी जीवशायद वेडर (Waders) जैसे पक्षियों की वजह से नदी में आए होंगे। लेकिन तब से ये जीव नदी में पीएच का उच्च स्तर होने के कारण यहां जीवित रहने में सक्षम है। माधवपुरा, इसौली और बशरियाघाट जैसे अन्य क्षेत्रों में, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणके वैज्ञानिकों ने हेमिसाइप्रिस अरोराई (Hemicyprisarorai) पाया, जो कि अत्यधिक क्षारीय पानी (8.2 से 9.1 के पीएच) में जीवित रहता है।
इन क्षेत्रों का पीएचस्तर उच्चइसलिए था, क्यों कि इसके आस-पास के खेतों में उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग होता था। यह साबित करने के लिए कि प्रदूषण नदी की जैव विविधता को बदल रहा है, वैज्ञानिकों ने गोमती की सहायक नदियों के पानी के नमूनों का परीक्षण किया, तथा सहायक नदियोंमें अरोराई और सोलारीएला की अनुपस्थिति पाई गई।विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण से नदियों का प्रभावित होना पारिस्थितिक आपदा का सूचक है। सरकार को नदी की और बायोमैपिंग करनी चाहिए। करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी आज तक गोमती की सफाई नहीं हो पाई है। 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पीलीभीत, लखीमपुर, सीतापुर और बाराबंकी के शहरों में औद्योगिक कचरे और सीवेज के इलाज के लिए ऐसे तालाबों का निर्माण करने का आदेश दिया था, जिनमें ऑक्सीकरण की प्रक्रिया तेजी से हो।गोमती नदी में ऑक्सीजन का स्तर बहुत ही अधिक गिर गया है।प्रतिदिन 761 मिलियन लीटर कचरे का उत्पादन होता है, जिसमें से प्रति दिनकेवल 438 मिलियन लीटर सीवेज अपशिष्ट का ही निपटान किया जाता है।बाकि सब कचरा नदी में डाल दिया जाता है।गोमती नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए नदी के किनारे रहने वाले समुदायों को प्रजातियों के संरक्षण और उनके खुद के अस्तित्व के लिए आवश्यक जलीय तंत्र के महत्व के प्रति जागरूक करना चाहिए।साथ ही स्थानीय आबादी को उचित शैक्षिक अवसर भी उपलब्ध कराने चाहिए। गोमती नदी की स्वच्छता के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न उद्योगों द्वारा उत्पादित होने वाले अपशिष्ट का उचित प्रबंधन किया जाए।
संदर्भ:
https://bit.ly/3q0uMyA
https://bit.ly/3Ip2STi
https://bit.ly/3IuY6DL
चित्र संदर्भ
1. नदी में ऊदबिलाव को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. पानी में तैरते ऊदबिलाव को दर्शाता चित्रण (Pxfuel)
3. नदी में तैरती मृत मछली को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
4. प्रदूषित नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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