लखनऊ में हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप 19वीं शताब्दी में बनी यह पिक्चर गैलरी है। जिसे अवध के तीसरे बादषाह मोहम्मद अली शाह ने सन् 1838 में बनवाया था। इसे बरदरी के नाम से भी जाना जाता हैं क्यूंकि इसके बारह दरवाज़े हैं| यह इमारत खासतोर पर शाही लोगों द्वारा छायावास के लिए इस्तेमाल करते थे| और ये भी कहा जाता हैं कि नवाबों के समय यहां पर इस इमारत में नवाबों की अलदात चलती थी। लेकिन नवाबों का राज्य खत्म होने के बाद इस इमारत को पिक्चर गैलरी में तबदील कर दिया गया।यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। यह गैलरी लखनऊ के उस अतीत की याद दिलाती है जब यहां नवाबों का डंका बजता था।
पिक्चर गैलरी के सामने, हरे लॉन और पेड़ों से घिरा हुआ एक सुंदर तालाब है। पिक्चर गैलरी तक पहुंचने के लिए लगभग 30 सीढ़ियों को पार करना पड़ता है यहाँ पर उस वक़्त की तस्वीरें हैं जब न ही तो डीएसएलआर कैमरे हुआ करते थे नहीं प्लास्टिक पेंट और ऑइल कलर। फिर भी यहां पर जो तस्वीरें हैं वो सभी देखने लायक हैं। यहां पर जो तस्वीरें हैं उनको ऑइल पेंट या वाटर कलर से नहीं तैयार किया गया है बल्कि हीरे जवाहरात के पाउडर और फलों के रस से चित्रकारों ने इन दुर्लभ चित्रों को तैयार किया था। यहां प्रदर्शित नवाबों के चित्रों से उन दिनों में उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वेशभूषा और गहने की जानकारी मिलती है। यहां पर जितनी भी तस्वीरें हैं वह सब मूविंग पिक्चर हैं यानी अगर आप आसिफुद्दौला की जूती की तरह दाहें तरफ से देखेंगे तब भी वह आपके सामने रहेगी और अगर बाहें तरफ से देखेंगे तब भी जूती आपको एक दम अपनी तरफ ही दिखेगी। इसी तरह कुछ तस्वीरों पर सूरज की किरणें और चांद की रौशनी भी पड़ रही है जो एक अद्भुत दृश्य बना रही है और सुबह और शाम को रेखांकित कर रही है। इस पिक्चर गैलरी के सामने मीना बाज़ार हैं बरदारी में मस्जिद और हमाम(स्नान अनुभाग) भी हैं
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