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मध्य प्रदेश के ओरछा में स्थित राम राजा मंदिर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां श्री राम को भगवान के रूप में नहीं, बल्कि राजा के रूप में पूजा जाता है। 16वीं शताब्दी में बना यह मंदिर ओरछा किले के परिसर का एक लोकप्रिय स्मारक है। ऐसा माना जाता है कि राम राजा मंदिर में भगवान राम की मूर्ति को पहले चतुर्भुज मंदिर में रखा जाना था। लेकिन एक बार इस मूर्ति को वर्तमान स्थान (जिस जगह पर आज यह मौजूद है) पर रखने के बाद कोई भी इसे वहां से हिला नहीं पाया। राम राजा मंदिर की जीवंत दीवारें और संगमरमर का प्रांगण इस मंदिर की सुंदरता को और भी अधिक बढ़ाते हैं और इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ राम मंदिरों में से एक बनाते हैं। तो आइए, आज मध्य प्रदेश के राजा राम मंदिर और इसकी अनूठी स्थापत्य शैली के बारे में सचित्र जानकारी प्राप्त करें।
राम राजा मंदिर मध्य प्रदेश के कस्बे ओरछा में स्थित एक मंदिर है। यह एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल है और यहां नियमित रूप से बड़ी संख्या में भक्तों का आगमन होता है। यहां प्रतिवर्ष लगभग 650,000 भारतीय पर्यटक आते हैं, जबकि विदेशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या लगभग 25,000 है। मंदिर में दर्शनार्थियों की दैनिक संख्या 1500 से 3000 तक होती है और मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, शिवरात्रि, रामनवमी, कार्तिक पूर्णिमा और विवाह पंचमी जैसे कुछ महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहारों पर यहां हजारों की संख्या में भक्त आते हैं।
भारत में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान राम की राजा के रूप में पूजा की जाती है और वह भी एक महल में। महल में ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ (Guard of Honour) समारोह का हर दिन आयोजन किया जाता है, जिसमें पुलिस कर्मियों को मंदिर में गार्ड के रूप में नियुक्त किया जाता है, ठीक उसी तरह, जिस तरह से एक राजा के लिए किया जाता है। इसके अलावा प्रतिदिन भगवान राम को सशस्त्र प्रणाम किया जाता है और विभिन्न प्रकार के शाही व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। मंदिर में राजा राम के साथ देवी सीता (बाईं ओर), भाई लक्ष्मण (दाईं ओर), महाराज सुग्रीव और नरसिंह भगवान (दाईं ओर) की मूर्ति भी स्थापित की गई है। दरबार में दाहिनी ओर मां दुर्गा भी विराजमान हैं। माता सीता की मूर्ति के ठीक नीचे भगवान हनुमान और जाम्बवन जी प्रार्थना की स्थिति में दिखाए गए हैं। इस मंदिर की विशेषता, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है, यह है कि यहां भगवान राम के दाहिने हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल है। भगवान राम पद्मासन में बैठे हैं, और बायां पैर दाहिनी जांघ पर टिका हुआ है।
ओरछा का राम राजा मंदिर शुरू में मधुकर शाह का एक विशाल महल हुआ करता था, जो उस समय के शासक थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन भगवान राम मधुकर शाह के सपने में आए तथा उन्होंने मधुकर शाह को एक विशाल मंदिर बनाने को कहा। हालाँकि, मंदिर के निर्माण से पहले ही मधुकर शाह ने भगवान राम की मूर्ति लाकर अपने महल में रख दी थी। जब मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया, तब मूर्ति को महल से उठाकर मंदिर में स्थापित करने की योजना बनाई गई। किंतु कोई भी मूर्ति को उसके प्रारंभिक स्थान से हिला न सका। तब मधुकर शाह को याद आया कि सपने में भगवान राम ने उसे यह आदेश दिया था कि मूर्ति को उसकी प्रारंभिक स्थिति में ही रखा जाना चाहिए। भगवान राम की इच्छा के अनुसार, तब उनका यहविशाल महल धार्मिक मंदिर में परिवर्तित हो गया।
एक अन्य किवदंती के अनुसार ओरछा के राजा मधुकर शाह जू देव बृंदावन के बांके बिहारी (भगवान कृष्ण) के भक्त थे, जबकि उनकी पत्नी रानी गणेश कुंवारी, जिन्हें कमला देवी भी कहा जाता है, भगवान राम की भक्त थीं। एक दिन राजा ने रानी को अपने साथ भगवान कृष्ण की भूमि ब्रज-मथुरा चलने को कहा, लेकिन रानी अयोध्या जाना चाहती थी। राजा नाराज हो गया और उसने रानी से कहा कि यदि आप अयोध्या ही जाना चाहती है तो जाएं किंतु तभी वापस आना, जब भगवान राम आपके साथ हो। रानी इस प्रण के साथ कि वह भगवान श्री राम के बाल रूप के साथ ही वापस लौटेगी, अयोध्या चल दी। उन्होंने वहां सरयू नदी के तट पर कठोर तप किया। अयोध्या जाने से पहले उन्होंने ओरछा में भव्य चतुर्भुज मंदिर के निर्माण का भी आदेश दे दिया था। रानी ने लगभग एक महीने तक उपवास और प्रार्थना की लेकिन भगवान राम प्रकट नहीं हुए, इसलिए अंततः निराशा में, वह आधी रात को नदी में कूद गई। तभी कुछ चमत्कार हुआ और भगवान राम, रानी की गोद में बाल रूप में प्रकट हुए। भगवान राम ने रानी से खुश होकर एक वरदान मांगने के लिए कहा, जिस पर रानी ने भगवान राम को बाल रूप में ओरछा आने के लिए कहा। भगवान राम जाने के लिए तैयार हो गए। वहीं दूसरी तरफ राजा ने स्वप्न में बांके बिहारी को देखा जिसमें भगवान ने राजा को अपने एवं भगवान राम के रूप में भेद करने के लिए फटकार लगाई तथा रानी द्वारा लाई जाने वाली मूर्ति को स्थापित करने के लिए आदेश दिया। ओरछा लौटने पर, रानी बालक रूपी राम के साथ अपने महल वापस चली गई और भगवान राम को अगले दिन चतुर्भुज मंदिर ले जाने के लिए केवल एक रात के लिए उन्हें अपने कमरे में स्थापित किया, लेकिन भगवान राम की शर्त के अनुसार,वह मूर्ति वहीं पर सदैव के लिए स्थापित हो गई। और इसलिए आज तक राम राजा मंदिर रानी के महल में है, न कि चतुर्भुज मंदिर में, जो महल के ठीक बगल में है।
राम राजा मंदिर की एक अनूठी विशेषता इसकी स्थापत्य शैली है, क्योंकि यह मंदिर एक धार्मिक स्मारक के बजाय एक महलनुमा आवासीय घर है। दिव्य आशीर्वाद और शाश्वत सुख प्राप्त करने के लिए कई भक्त दूर-दूर से राम राजा मंदिर में आते हैं। संगमरमर के आंगन और रंग-बिरंगी चित्रों से ढकी दीवारों से सजे राम राजा मंदिर की वास्तुकला बहुत शालीन है। प्रतिदिन पूजा के बाद भगवान राम के बाएं पैर के अंगूठे पर चंदन का टीका लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि राजा राम दरबार में जाते समय उपासक यदि राजा राम के बाएं पैर के अंगूठे को देख लें, तो उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है। हालांकि भगवान राम के बाएं पैर के अंगूठे को देखना आसान काम नहीं है, क्योंकि मूर्ति का बायां पैर मुड़ा हुआ है। स्थानीय परिवहन व्यवस्था के माध्यम से ओरछा के राम राजा मंदिर तक किसी भी स्थान से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3AAbKRm
https://bit.ly/3Aw20b2
https://bit.ly/41WyTcw
चित्र संदर्भ
1. मध्य प्रदेश के राम राजा मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मध्य प्रदेश के राम राजा मंदिर के प्रवेश द्वार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मध्य प्रदेश के राम राजा मंदिर के विशाल प्रांगण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ओरछा के राजा मधुकर शाह जू देव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. राम राजा मंदिर के वृहंगम दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)