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ब्रिटिश शासन के कई किस्से कहानियों में अक्सर अंग्रेजों के लिए ‘फिरंगी’ शब्द का उपयोग पढ़ने और सुनने में मिलता रहा है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे द्वारा अंग्रेजों के लिए फिरंगी शब्द का उपयोग क्यों किया जाता है? दरअसल हिंदुस्तानी भाषा के ‘फिरंगी’ (Firangi) शब्द को ‘फ़ारसी’ (Persian) शब्द से लिया गया था, जो अरबी (Arabic) शब्द फ़िरंज (Firanj) के समानांतर बना था, जिसका अर्थ है ‘फ्रांसीसी’ (French) या ‘फ्रैंक्स’ (Franks- फ्रांसीसी लोगों के पूर्वज), जो अरबों और अरबी भाषी मुसलमानों और यूरोपीय ईसाइयों के बीच मध्ययुगीन परस्पर क्रिया के दौरान उभरे थे। बाद में इस शब्द का उपयोग मुस्लिम समुदाय में आए सभी यूरोपीय (European) लोगों के लिए किया जाने लगा। जब यूरोपीय भारत आए, तो भारतीय और विशेष रूप से दिल्ली-पंजाब-हरियाणा-अवध-बिहार क्षेत्र में सामान्य हिन्दुस्तानी भाषा (जिसे बाद में हिंदी और उर्दू भाषा में मानकीकृत किया गया) बोलने वाले लोगों द्वारा यूरोपीय विदेशियों के लिए फिरंगी शब्द का उपयोग किया जाने लगा। हालाँकि आमतौर पर इस शब्द का आनुवादिक अर्थ “विदेशी” होता है, लेकिन वास्तव में, यह शब्द केवल यूरोपीय या गोरे लोगों को ही संदर्भित करता है। मध्य पूर्वी (Middle Easterner), उप-सहारा अफ्रीकी (Sub-Saharan Africans), पूर्वी एशियाई, या गैर-भारतीय दक्षिण एशियाई लोगों को आमतौर पर फिरंगी नहीं कहा जाता है।
‘फ्रैंक्स’ वैसे तो जर्मनिक (Germanic) लोग थे जिनके नाम का पहली बार तीसरी शताब्दी के रोमन (Roman) स्रोतों में उल्लेख देखने को मिलता है, जो रोमन साम्राज्य की उत्तरी सीमा पर राइन (Rhine) नदी के निचले हिस्से के पास रहते थे। तथा बाद में यही रोमानी फ्रैंकिश राजवंश, पश्चिमी रोमन साम्राज्य के भीतर लवा (Loire) और राइन (Rhine) नदियों के बीच स्थित पूरे क्षेत्र के शासक बन गए। साथ ही उनके द्वारा धीरे धीरे पुराने साम्राज्य के अंदर और बाहर कई अन्य उत्तर-रोमन साम्राज्यों पर सत्ता प्राप्त कर ली गई। ये जर्मेनिक जनजातियाँ, जिन्हें पुरातन काल में फ्रैंक्स कहा जाता था, वेसर-राइन जर्मनिक / इस्तवाओनिक (Weser-Rhine Germanic/Istvaeonic) सांस्कृतिक-भाषाई समूह से जुड़ी हैं। राइन नदी पर रोम की सीमा के अंदर फ्रेंकिश लोगों को अक्सर दो समूहों में विभाजित किया जाता है - सैलियन फ्रैंक्स (Salian Franks) जो पहले से ही रोमन क्षेत्र में रहते थे और रिपुएरियन या राइनलैंड फ्रैंक्स (Ripuarian or Rhineland Franks), जिन्होंने कई प्रयासों के बाद, अंततः रोमन सीमांत शहर कोलोन (Cologne) पर विजय प्राप्त की और राइन के बाएं किनारे पर नियंत्रण कर लिया।
साथ ही "फ्रैंक" या "फ्रैंकिश" शब्दों का बाद में कई अलग-अलग स्तरों का विकास हुआ, जो कभी-कभी यूरोप के एक बहुत बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करते थे, और दूसरी ओर कभी-कभी फ्रांस तक ही सीमित थे। 1099 में, येरूसलम (Jerusalem) के धर्मयोद्धाओं की बसने वाली आबादी में ज्यादातर फ्रांसीसी शामिल थे, जो उस समय भी फ्रैंक्स और अन्य यूरोपीय जैसे स्पेनियों (Spaniards), जर्मनों और हंगेरियाई (Hungarians) लोगों के रूप में जाने जाते थे।
843 में वर्दुन की संधि के बाद, फ्रेंकिश क्षेत्र को तीन अलग-अलग राज्यों में विभाजित किया गया: पश्चिम फ्रांसिया, मध्य फ्रांसिया और पूर्वी फ्रांसिया। 870 ईसवी में, मध्य फ़्रांसिया को फिर से विभाजित किया गया था, इसके अधिकांश क्षेत्र को पश्चिम और पूर्वी फ़्रांसिया के बीच विभाजित किया गया था, जिसने क्रमशः फ़्रांस के भविष्य के साम्राज्य और पवित्र रोमन साम्राज्य के केन्द्रक का निर्माण किया, तथा पश्चिम फ़्रांसिया (France) के साथ अंत में कालक्रम को बरकरार रखा।
भारत में फ्रैंक्स के इतिहास को जानने के लिए इतिहासकार संजय सुब्रह्मण्यम की फ्रैंक्स के इतिहास पर लिखी गई पुस्तक उल्लेखनीय है। वह लिखते हैं कि भारत आने वाले अंतिम यूरोपीय लोग फ्रांसीसी थे। राजा लुई XIV (King Louis XIV) के शासनकाल के दौरान भारत के साथ व्यापार करने के लिए 1664 ईसवी में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी (French East India Company) का गठन किया गया था। 1668 ईसवी में फ्रांसीसियों ने सूरत में अपना पहला कारखाना स्थापित किया और 1669 ईसवी में मसूलीपट्टम में एक और फ्रांसीसी कारखाना स्थापित किया। 1673 ईसवी में बंगाल के मुगल सूबेदार ने फ्रांसीसियों को चंदनागोर में एक बस्ती स्थापित करने की अनुमति दी। 1674 ईसवी में फ्रांसीसियों ने बीजापुर के पांडिचेरी नामक गाँव में अपना मुख्य गढ़ बना लिया । फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी ने समय बीतने के साथ माहे, कराईकल, बालासोर और कासिम बाजार में अपने व्यापारिक गढ़ विकसित किए।
फ्रांसीसी मुख्य रूप से व्यापार और वाणिज्य के उद्देश्य से भारत आए थे। उनके आगमन से लेकर 1741 ईसवी तक अंग्रेजों की तरह फ्रांसीसियों के उद्देश्य भी विशुद्ध रूप से व्यावसायिक थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, उनके व्यावसायिक उद्देश्यों में बदलाव आया और वे भारत को अपना उपनिवेश मानने लगे। और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के पहले कदम के रूप में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1741 ईसवी में जोसेफ फ्रेंकोइस डुप्लेक्स (Joseph Francois Dupliex) की गवर्नर के रूप में नियुक्ति की गई। लेकिन फ्रांसीसी और अंग्रेजों के बीच वांडीवाश की लड़ाई ने फ्रांसीसियों को 1760 ईसवी में अंग्रेजों द्वारा पांडिचेरी की घेराबंदी के लिए हैदराबाद क्षेत्र खोना पड़ा। 1761 ईसवी में अंग्रेजों ने पांडिचेरी को नष्ट कर दिया। इस प्रकार दक्षिण भारत में फ्रांसीसियों का अधिकार समाप्त हो गया। बाद में ब्रिटेन के साथ 1763 ईसवी की शांति संधि के प्रावधानों के अनुसार पांडिचेरी को 1765 ईसवी में फ्रांस को वापस कर दिया गया। वास्तव में उस दौरान भारतीयों द्वारा फिरंगी शब्द इन्हीं फ्रांसीसियों के लिए उपयुक्त किया गया था जो बाद में अंग्रेजों के लिए भी उपयोग किया जाने लगा ।
300 साल पहले हमारे अपने लखनऊ शहर में ही कई फ्रेंच संबंध मौजूद थे। जिसका जश्न कुछ साल पहले एक सनतकदा आयोजित उत्सव में मनाया गया था। पांच दिवसीय उत्सव के पहले दिन, अवधी-फ्रांसीसी संबंधों को दर्शाने वाली दो विशेष पुस्तकों को पढ़ा गया। प्रदर्शनी में फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा अवध को साधिकार दिए गए चित्रों और तस्वीरों की पूर्णकाय सूची शामिल थी। क्लाउड मार्टिन (Claude Martin) के प्राकृतिक इतिहास संग्रह और ला मार्टिनियर कॉलेज (La Martiniere College) के ड्रोन कैमरा से लिए गए चित्रों ने उत्सव में आगंतुकों का स्वागत किया। नूर खान, जिनके पास (शायद उर्दू में सबसे पुरानी),, 99 साल पुरानी फ्रेंच रसोई की किताब है, द्वारा दर्शकों के लिए इस पुस्तक के कुछ हिस्से पढ़कर सुनाए गए। सैयद अहमद अली अंबालावी द्वारा लिखित इस पुस्तक में संवादात्मक शैली में 400 से अधिक व्यंजनों के बारे में लिखा गया है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3AaW5bh
https://bit.ly/40isHug
https://bit.ly/3KUvHHH
https://bit.ly/2KMLE5Y
https://bit.ly/3MUh5KL
https://rb.gy/69huo
चित्र संदर्भ
1. भारत में ब्रिटिश दौर के एक परिवार को दर्शाता एक चित्रण (NDLA)
2. बंगाल में हिंदू और यूरोपीय शिष्टाचार को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
3. 100 ईसा पूर्व और 300 ईस्वी के बीच पूर्वी जर्मनिक जनजातियों द्वारा बसाए गए क्षेत्रों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. फ्रेंच ईस्ट इंडीज तोप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मार्कोस बोट्सारिस की मृत्यु के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ला मार्टिनियर कॉलेज को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
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