City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1799 | 1036 | 2835 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
क्या आप जानते है कि हमारे शहर रामपुर में स्थित ‘रज़ा लाइब्रेरी’ के संग्रह में पांडुलिपियों और दस्तावेजों के अलावा विभिन्न प्रकार के शारीरिक संबंधों के विषयों को दर्शाने वाली तस्वीरों का भी एक संग्रह है। ये संग्रह विशेष रूप से इंडो-इस्लामिक संस्कृति से संबंधित है तथा व्यापक विषयों और हजारों वर्षों के इतिहास का भी संकेतक हैं। हालांकि, भारतीय चित्रकला पर बनी किसी भी पुस्तक में इन तस्वीरों को कभी भी पुन: प्रस्तुत नहीं किया गया है। ये चित्र ऑनलाइन भी उपलब्ध नहीं थे। इनका वर्णन कुछ असामान्य प्रतीत होता है। साथ ही इनके लिए “कामुक” के बजाय “अश्लील” शब्द का उपयोग किया गया था। कभी–कभी तो अज्ञात निजी संग्रहों से भारतीय लघुचित्र, विदेशी नीलामी वेबसाइटों और विदेशी संग्रहालयों के सोशल मीडिया पेजों पर भी दिखाई देते हैं।
बारबरा शमित्ज़ (Barbara Schimtz) और ज़ियाउद्दीन अहमद देसाई द्वारा 2002 में संकलित चित्रों की अपनी आधिकारिक सूची में, 19वीं शताब्दी की शुरुआत से 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक बने चार एल्बमों (Album) या चित्रावली को “अश्लील” करार दिया गया है; क्योंकि ये एल्बम यौन विषयों से प्रेरित हैं। ये चित्र पहाड़ी (कांगड़ा), राजस्थानी और लखनऊ या संभवतः दिल्ली की चित्रकला शैलियों से संबंधित हैं जिनकी विषयवस्तु विभिन्न प्रकार के कामुक विषयों को प्रकट करती है। इसमें विषमलैंगिक और समलैंगिक युगल और जोड़े, कई सहभागियों से युक्त संभोग, यौन व्यायाम विद्या, ताक-झांक और पशुवत् आचरण के कार्य भी शामिल हैं।
प्रश्न है कि समकालीन परंपराओं के संदर्भ में कामुकता के चित्रण का क्या अर्थ हो सकता है? और इन चित्रों द्वारा आखिरकार उस युग के बारे में क्या स्पष्ट करने की कोशिश की जा रही है जब उनका निर्माण हुआ था? ये चित्र दरअसल चार एल्बम, क्रमांक 29 से 32 में संग्रहित है। ये चित्र प्रसिद्ध रागमाला चित्रकला शैली में बने हैं। एल्बम 29 में 25 चित्र हैं, 30 और 31 क्रमांक के एल्बम में 9 चित्र हैं, जबकि एल्बम 32 में केवल 3 ही चित्र हैं।
दरअसल रागमाला चित्रकला शैली मध्ययुगीन और शुरुआती आधुनिक दक्षिण एशिया में कामुकता को व्यक्त करने के लिए सबसे प्रसिद्ध दृश्य रूपों में से एक है। यह चित्रकला शैली 16वीं और 19वीं शताब्दी के बीच राजस्थान, मध्य भारत, दख्खन, उत्तरी मैदानों और पहाड़ी राज्यों के अभिजात वर्ग के बीच प्रसिद्ध थी। यह शैली कवियों और संगीतकारों द्वारा दिव्य या मानवीय रूप में कल्पना की गई भारतीय संगीत विधाओं का दृश्य प्रतिनिधित्व भी करती है। साथ ही यह रूढ़िबद्ध और कुलीन व्यवस्था में अक्सर प्रेम प्रसंग या भक्तिपूर्ण स्थितियों को भी दिखाती है।
रामपुर रागमाला में, पारंपरिक कामुक झांकियों को कल्पनाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया है। 19वीं सदी की कांगड़ा शैली से प्रेरित एल्बम 29, सबसे अधिक विचित्र और सामाजिक गरिमा को भंग करने वाली है। एल्बम 30, में 1825 के दिल्ली या लखनऊ से चित्र शामिल हैं। हालांकि, इन एल्बमों में कथात्मक अखंडता स्थापित करना संभव नहीं है, दर्शक श्रृंगार रस या शास्त्रीय कामुक भावना की प्रगति की कल्पना करते हैं, जो रागमाला को प्रभावित करती है। एल्बम 31 और 32, जो 1900 शताब्दी के पूर्वार्ध के हैं, में बहुत कम चित्र शामिल हैं। एल्बम 31, राजस्थान से संबंधित है, हालांकि यह बहुत स्पष्ट नहीं है। जबकि एल्बम 32 लखनऊ से संबंधित है और इसमें 3 चित्र शामिल हैं। इन चित्रों में विचित्र रूप से यौन संबंध स्थापित करते हुए लोगों के कई विचित्र चित्र शामिल हैं।
रामपुर के रागमाला की तुलना उस युग के यौन विषयों की पुस्तकें या कोकाशास्त्रों से की जा सकती हैं। ऐसा ही एक लोकप्रिय समकालीन फारसी तुलनात्मक ग्रंथ, ‘लज्जत उन निस्सा’ (The Pleasure of Women) है, जो कोका पंडित की 11वीं शताब्दी की ‘रति रहस्य’ नामक एक कृति का रूपांतर है। ‘लज्जत उन निसा’ की 19वीं सदी की दो प्रतियाँ रज़ा लाइब्रेरी के संग्रह में आज भी उपलब्ध हैं। मुगल, अवधी और राजस्थानी शैली में बनाए गए हरम के दृश्य भी रागमाला की अन्य तुलनात्मक छवियां है। रागमाला चित्रकारों द्वारा अपने उत्कर्ष के समय कामुक जुनून के माहौल को उजागर करना अहम मुद्दा था। लेकिन पारंपरिक लघुचित्र, सीधे यौन संबंधों को चित्रित करने के बजाय, अधिक संयमित, सूक्ष्म और रूपक इच्छा दर्शाते थे।
दरअसल, रामपुर के एल्बम या मुरक्का या लघुचित्र किसके द्वारा प्रायोजित किए गए होंगे, इसके बारे में हमारे पास जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि यह ज्ञात है कि इनके संरक्षकों में भारतीय नवाब और यूरोपीय साहिब दोनों शामिल थे। रामपुर एल्बमों के उद्गम स्थान, या उनका रज़ा लायब्रेरी के संग्रहों में कब प्रवेश हुआ इसका भी वर्णन करना मुश्किल है। लेकिन, तत्कालीन पड़ोसी राज्य अवध की संग्रह प्रथाएँ इसके बारे में कुछ सुराग दे सकती हैं।
अपने लेख ‘सर्किट्स ऑफ़ एक्सचेंज: एल्बम एंड द आर्ट मार्केट इन 18थ सेंचुरी अवध’ (Circuits of Exchange: Albums and the Art Market in 18th century Avadh) में, लेखिका नतालिया डि पिएट्रांटोनियो (Natalia Di Pietrantonio) ने बताया ह कि कैसे अवध के नवाबों के पास, मुरक्कों, जो मुग़ल दिल्ली से बेदखल किए गए चित्रों की दृश्य सूची थे, का संग्रह एवं एकाधिकार था । शायद नतालिया एक मात्र ऐसी विद्वान थी, जिन्होंने इन रामपुर मुरक्कों पर टिप्पणी की है।
जैसा कि नतालिया बताती हैं कि इन विशिष्ट चित्रों की अश्लीलता ही भारत में इनके भाष्य और प्रदर्शन में इनकी अदृश्यता का एकमात्र कारण नहीं हो सकती है। रागमाला चित्रकला हिंदुस्तानी संगीत की इंडो-फ़ारसी परंपरा पर आधारित है और एक समकालिक हिंदू-मुस्लिम मध्ययुगीन कल्पना का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए समग्र रूप से यह, यहां तक कि इसके औपचारिक उदाहरण भी, राष्ट्रवादी कला इतिहास लेखन में समाहित नहीं किए जा सकते है। नतालिया का कहना है कि,रागमाला चित्रकला, हिंदू धर्म की कामुक भावना की एक सुसंगत कहानी प्रस्तुत नहीं करती हैं जिसे भारतीय राष्ट्र के नाम पर सुव्यवस्थित किया जा सके।
आज रामपुर चित्रों को रज़ा पुस्तकालय का संचालन करने वाले ‘भारतीय संस्कृति मंत्रालय’ के तत्वावधान में संरक्षित किया जा रहा है और उनकी देखभाल की जा रही है। रामपुर मुरक्का एक अश्लील लघु परंपरा और एक ऐतिहासिक दृश्य संस्कृति के उदाहरण हैं और संभवतः केवल वही हैं जो भारत में एक सार्वजनिक संग्रह का हिस्सा हैं। अतः वे न केवल पंजीकृत होने के योग्य हैं, बल्कि देखे जाने के योग्य हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3mqtY4D
चित्र संदर्भ
1. शास्त्रीय कामुक भावना को दर्शाती, रागमाला चित्रकला शैली को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. दीपक राग को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. कच्छेली रागिनी को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
4. रागमाला चित्रकला शैली में भारतीय जोड़े को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.