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बैसाखी का त्यौहार सिक्ख नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और देश के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से पंजाब में इसे बड़े उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्यौहार है जो न केवल हमारे भारत में बल्कि सिक्ख समुदाय के साथ-साथ कुछ हिंदू और मुस्लिम आबादी द्वारा पाकिस्तान (Pakistan) में भी मनाया जाता है। पाकिस्तान में ऐसे कई स्थल हैं जो सिक्ख धर्म के लिए ऐतिहासिक महत्व रखते हैं। उदाहरण के लिए गुरु नानक जी का जन्मस्थान पाकिस्तान में ही है। हर साल बैसाखी के मौके पर इन स्थानों पर भारत और विदेशों से तीर्थयात्री पहुंचते हैं। तो आइए आज बैसाखी के मौके पर जानते हैं, कि पाकिस्तान में बैसाखी का त्यौहार कैसे मनाया जाता है और वहां इसका क्या महत्व है?
बैसाखी का त्यौहार हर साल हिंदू कैलेंडर के वैशाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है जो ज्यादातर 13 या 14 अप्रैल को होता है। यह त्यौहार हिंदू सौर नव वर्ष, फसल उत्सव की शुरुआत और खालसा पंथ के जन्म तथा पंजाबी नव वर्ष का प्रतीक है। परंपरागत रूप से पंजाब में यह वह समय होता है, जब नए साल की पहली फसल को काटा जाता है। बैसाखी का त्यौहार पंजाब क्षेत्र की एक प्राचीन परंपरा है, जिसे प्रारंभ से ही पंजाब के गांवों में, भारत और पाकिस्तान दोनों ही जगह, बड़ी खुशी के साथ मनाया जाता है। हालाँकि, इस त्यौहार का महत्व तब और बढ़ गया, जब 1699 में इसी दिन सिक्खों के श्रद्धेय दसवें गुरु, ‘गुरु गोबिंद सिंह’ जी ने आनंदपुर साहिब जी के केसरगढ़ में खालसा पंथ की नींव रखी थी। माना जाता है कि यह वह दिन है जब गुरु गोबिंद सिंह ने लोगों से ईश्वर के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए प्रेरित करने के लिए एक विशेष सभा बुलाई थी। उसके बाद पांच लोग सामने आए जिन्हें बाद में 'पंज प्यारे' के नाम से जाना गया। माना जाता है कि अत्याचार और सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के लिए उनकी प्रतिबद्धता के प्रतीक के रूप में इन लोगों को अमृत या पवित्र जल चढ़ाया गया।
विभाजन से पहले पाकिस्तान में सिक्ख समुदाय की एक बड़ी आबादी रहती थी, लेकिन 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान सिक्ख समुदाय की एक विशाल जनसंख्या भारत आ गई। वर्तमान में पाकिस्तान में लगभग 23 करोड़ पाकिस्तानियों की कुल आबादी में लगभग 20,000 सिक्ख हैं। दूसरे शब्दों में, पाकिस्तान की कुल आबादी का लगभग 0.01% हिस्सा सिक्ख समुदाय के लोगों का है। सिक्ख समुदाय के ये लोग तथा दुनिया के अन्य हिस्सों से आए हजारों अन्य तीर्थ यात्री बैसाखी मनाने के लिए पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में पहुंचते हैं। बैसाखी के अवसर पर पाकिस्तान में हसन अब्दल में पंजा साहिब परिसर और ननकाना साहिब में गुरुद्वारों तथा लाहौर के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों पर विभिन्न उत्सवों का आयोजन किया जाता है। अजीज-उद-दीन अहमद के अनुसार, अप्रैल में गेहूं की फसल की कटाई के बाद लाहौर में बैसाखी का मेला हुआ करता था। हालांकि विभाजन से पहले और कुछ समय तक उसके बाद भी पाकिस्तान में बैसाखी के त्यौहार के उत्सव की बात ही कुछ और थी जैसा कि, अहमद बताते हैं कि 1970 के दशक में ज़िया-उल-हक के सत्ता में आने के बाद शहर ने अपनी सांस्कृतिक जीवंतता खोनी शुरू कर दी थी। भारत के पंजाब, जहां वैसाखी के दिन को एक आधिकारिक अवकाश के रूप में मान्यता दी गई है, के विपरीत पश्चिमी पंजाब या पाकिस्तान के सिंध प्रांतों में इसे आधिकारिक अवकाश घोषित नहीं किया गया है।
किंतु आज भी पाकिस्तान में बैसाखी के दिन अनेकों आयोजन किए जाते हैं। पारंपरिक लोक नृत्यों, मेलों आदि को बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ आयोजित किया जाता है। इस दिन यहां सिक्ख धर्म के लोग निशान साहिब झंडे को फहराते हैं, जो कि सिख धर्म का प्रतीक है। हर साल दुनिया भर से हजारों सिक्ख और हिंदू बैसाखी समारोह के लिए ननकाना साहिब और गुरुद्वारा पंजा साहिब पहुंचते हैं।
ये दोनों ही स्थान सिक्ख धर्म में बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी का जन्म ननकाना साहिब में हुआ था। ऐसा विश्वास है कि गुरुद्वारा पंजा साहिब में गुरू नानक के हाथ का निशान एक चट्टान पर अंकित है। बैसाखी पर हजारों लोग गुरुद्वारा पंजा साहिब के ताल में स्नान करते हैं। लोग इस दिन पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, तथा स्थानीय एवं पारंपरिक व्यंजनों के साथ इस त्यौहार को बड़ी खुशी के साथ मनाते हैं। उत्सव मनाने के लिए लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर भी जाते हैं। एक नए उद्यम को शुरू करने की दृष्टि से भी बैसाखी के त्यौहार को एक शुभ दिन माना जाता है। परंपरागत रूप से, गुरुद्वारे में रहने के दौरान, सिक्ख तीर्थयात्री फर्श पर सोते हैं। त्यौहार की शुरुआत सिक्खों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के पाठ से होती है। इन तीन दिनों के दौरान पाठ के पूरे 1,430 पृष्ठ पढ़े जाते हैं। उत्सव का समापन बैसाख के तीसरे दिन, 'भोग' और पाठ के अंत के साथ होता है।
पिछले तीन वर्षों में, बैसाखी के त्यौहार पर पाकिस्तान में सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन के प्रति अत्यधिक रुझान देखने को मिला है। इस दिन पर्यटक भारी संख्या में भारत, जापान (Japan), चीन (China), श्रीलंका (Sri Lanka), हांगकांग (Hong Kong) और यहां तक कि म्यांमार (Myanmar) से पाकिस्तान पहुंचते हैं। पाकिस्तान सरकार द्वारा उपासकों के लिए हिंदू और सिक्ख धर्म के विभिन्न पवित्र स्थलों को पुनर्निर्मित किया गया है जिसमें प्रमुख रूप से सिंध प्रांत में करतारपुर और 126 वर्षीय शिव मंदिर शामिल है। इसी तरह, बैसाखी समारोह में भाग लेने के लिए सिक्खों के लिए वीजा की सुविधा भी दी जाती है। इस वर्ष भी बैसाखी समारोह के लिए नई दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग ने 9 से 18 अप्रैल तक पाकिस्तान में चलने वाले वार्षिक उत्सव में भाग लेने हेतु भारत के सिक्ख तीर्थयात्रियों के लिए 2,856 वीजा जारी किए हैं। तीर्थयात्री अपनी यात्रा के दौरान डेरा साहिब, पंजा साहिब, ननकाना साहिब और करतारपुर साहिब जा सकते हैं।
'1974 के धार्मिक स्थलों के दौरे पर पाकिस्तान-भारत प्रोटोकॉल' के ढांचे के तहत दोनों देशों की सरकारों द्वारा तीर्थ यात्रियों को वीजा उपलब्ध कराए जाते हैं। हर साल, भारत से बड़ी संख्या में सिक्ख तीर्थयात्री बैसाखी एवं अन्य त्यौहारों पर पाकिस्तान जाते हैं। पाकिस्तान में प्रोटोकॉल के तहत आने वाले धार्मिक स्थलों में रावलपिंडी में गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब और गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब, महाराज रणजीत सिंह की समाधि, हजरत दाता गंज बख्श की दरगाह, गुरुद्वारा श्री डेरा साहिब, गुरुद्वारा जन्म स्थान, गुरुद्वारा दीवान खाना, गुरुद्वारा शहीद गंज, सिंघानियां, गुरुद्वारा भाई तारा सिंह, छठे गुरु का गुरुद्वारा, मोजांग, श्री गुरु राम दास की जन्मस्थली, लाहौर में श्री कटासराज में गुरुद्वारा आदि शामिल हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/43smTkE
https://bit.ly/43wb9gO
https://bit.ly/43xaEDx
https://bit.ly/41lCznU
https://bit.ly/43r56KG
https://bit.ly/415jgQ4
चित्र संदर्भ
1. 2013 में वैशाखी सिख उत्सव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गुरुद्वारा दरबार साहिब को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गुरु गोबिंद सिंह जी को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. मुख्य भवन गुरुद्वारा पंजा साहिब पंजाब पाकिस्तान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बैसाखी के अवसर पर नृत्य करती सिख महिलाओं को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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