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हमारे शहर लखनऊ की नवाबों के शहर के रूप में पहचान है। नवाबों के शहर के बारे में तो बहुत कुछ जाना जाता है लेकिन उनके शाही निवास के बारे में काफी कम जानकारी मिलती है। क्या आपको भी कभी नवाबों के शाही निवास के बारे में उत्सुकता रही है? हमारे शहर का ऐसा ही एक स्मारकीय चिन्ह है, जो इस पहलू पर प्रकाश डालता है, और वह है लखनऊ का छत्तर मंजिल। यह नवाबों का पूर्व निवासी महल था। छत्तर मंज़िल, जिसे अम्ब्रेला पैलेस (Umbrella Palace) के रूप में भी जाना जाता है, सुंदरता, भव्यता और शहर में मुगल शासन वास्तु कला निर्माण का एक शानदार उदाहरण है।
वास्तव में हमारा शहर लखनऊ इतिहास की एक जीवंत किताब है, जिसका प्रत्येक पृष्ठ और अध्याय तत्कालीन नवाबी संस्कृति की गौरवशाली कहानियों से भरा पड़ा है। लखनऊ में पर्यटन को और बढ़ावा देने के उद्देश्य से छत्तर मंजिल, रौशन-उद-दौला कोठी, कोठी गुलिस्तां-ए-इराम, कोठी दर्शन विलास और कोठी फरहतबक्श सहित नवाबी युग से संबंधित पांच महलनुमा इमारतों को जल्द ही लखनऊ के हेरिटेज होटल (Heritage hotels) में तब्दील किया जाएगा। इन सभी संरचनाओं का निर्माण 1722 से 1856 के बीच किया गया था। आइए जानते हैं कि छत्तर मंजिल की आखिर ऐसी क्या विशेषता है जिसके कारण इसका चयन इस रूपांतरण के लिए हुआ है ?
छत्तर मंज़िल या अम्ब्रेला पैलेस का निर्माण कार्य नवाब गाज़ी-उद-दीन हैदर द्वारा प्रारंभ कराया गया था, लेकिन इसे उनके बेटे नवाब नसीर-उद-दीन हैदर द्वारा उनकी मृत्यु के पश्चात ही पूरा कराया गया । इस महल का उपयोग नवाबों द्वारा उस समय तक नवाबी निवास के रूप में किया जाता था जब तक कि नवाब वाजिद अली शाह ने इसके मूल तल को कैसरबाग में बदल नहीं दिया।
नवाब सआदत अली खान ने इस महल का नाम अपनी मां चतर कुंवर के नाम पर रखा था, हालांकि, डिजाइन और वास्तुकला भी इसमें एक और आयाम जोड़ते हैं। विशेष रुप से बनाए गए छतरी जैसे गुंबद या छत्र, इस महल की विशेषता हैं, जिन्हें इसके नाम की उत्पत्ति के लिए भी एक कारण माना जा सकता है। और दिलचस्प बात तो यह है कि ये गुम्बद या ‘छत’ सीधे सूर्य की किरणें प्राप्त करने पर, चमकदार रोशनी में चमकने लगते हैं!
महल की वास्तुकला पर एक ऐसी संस्कृति की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है जो इंडो-यूरोपीय और नवाबी निर्माण कला का एक संयोजन है। बड़े इमामबाड़ा और छोटे इमामबाड़ा की तरह, छत्तर महल में भी दो खंड थे जिन्हें बड़ी छत्तर मंज़िल (बड़ा छत्तर पैलेस) और छोटी छत्तर मंज़िल (छोटा छत्तर पैलेस) कहा जाता था । परंतु अब केवल बड़ी छत्तर मंजिल ही अस्तित्व में है। यह पांच मंजिला महल अपने दो भूमिगत मंजिलों और ऊपर की तीन मंजिलों के साथ वास्तुशिल्प का एक चमत्कार ही है। यहां बड़े पैमाने पर भूमिगत कमरे हैं जो सीधे गोमती नदी के तट की तरफ खुले हैं।
महल के भूमिगत कक्ष बाहर स्थित दो अष्टकोणीय मीनारों से जुड़े होने के कारण बहुत हवादार हैं। गोमती नदी के निकट होने के कारण वे भीषण गर्मी में भी सुखद एवं ठंडे रहते हैं। नवाब नसीर-उद-दीन हैदर द्वारा छत्तर मंजिल की सुंदरता को और बढ़ाने के लिए सुंदर बगीचों का निर्माण भी गया था। इन उद्यानों को गुलशन-ए-इराम नाम दिया गया था, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘स्वर्ग का बगीचा’ होता है। छत्तर मंजिल 1857 के विद्रोह के दौरान लखनवी विद्रोहियों द्वारा शरण लेने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था।
आज इस स्थल का जीर्णोद्धार किया जा रहा है और यहां ‘अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय’ (Abdul Kalam Technical University) और ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’, (Institute of Technology-Banaras Hindu University) वाराणसी की देखरेख में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) द्वारा एक पुरातात्विक खुदाई की जा रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP-Public-Private Partnership) मॉडल के तहत सरकार के स्वामित्व वाली ऐतिहासिक संरचनाओं को होटलों में बदलने की योजना बना रही है। इसके अलावा, राज्य का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस कार्य में शामिल निजी संगठनों एवं संस्थाओं पर नजर रखेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि इमारत का नवीनीकरण और पुनर्निर्माण महल की मूल विरासत रूपी संरचना को प्रभावित न करें ।
अब आपके मन में प्रश्न उठ सकता है कि, हमारी ऐतिहासिक विरासतों को इस प्रकार व्यावसायिक प्रयोग के नजरिए से देखना कितना सही है? परंतु, एक तथ्य है कि, विरासत संरचनाओं का व्यावसायिक उपयोग के लिए परिवर्तन इन स्मारकों को जीर्ण-शीर्ण होने से बचाने के लिए सबसे अच्छा तरीका बनकर उभरा है। और, भविष्य में राजाओं और रानियों एवं बहादुर योद्धाओं की कहानियों को फिर से जीवंत करते हुए, लखनऊ के इन हेरिटेज होटलों में से एक में ठहरना हमारे लिए एक सपने जैसा ही होगा।
शहरों को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए विरासत और आधुनिकता को सह-अस्तित्व में लाया जा सकता है । ऐतिहासिक संरचनाओं का अनुकूल पुन:उपयोग वित्तीय रूप से भी टिकाऊ हो सकता है। बिना उनकी तोड़फोड़ किए और नए कंक्रीट (Concrete), स्टील (Steel) और कांच के ढांचे का निर्माण करके पुरानी संरचनाओं को कार्यालयों, शॉपिंग सेंटरों या रेस्तोरां में बदल दिया जा सकता है।
क्योंकि हमारी सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर का रक्षण करना हमारा कर्तव्य है, हमें इसके संरक्षण के कुछ नए तरीके खोजने होंगे। और इन स्मारकों को व्यवसायिक उपयोग के लिए काम में लाना इसका एक अच्छा उपाय है। क्योंकि वास्तविकता तो यह है कि बिना लाभ के सरकार तो क्या हम भी इनके संरक्षण की जिम्मेदारी लेने के लिए शायद ही तैयार हो ! और वैसे भी इसका पुनर्निर्माण इसके सांस्कृतिक महत्व को कम नहीं करेगा बल्कि शायद और बढ़ाएगा ही।
संदर्भ
https://bit.ly/3TkbVZO
https://bit.ly/3JofVnB
https://bit.ly/3Fs9Fdh
https://bit.ly/402wEn8
चित्र संदर्भ
1. लखनऊ की छत्तर मंज़िल की श्याम श्वेत छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. छत्तर मंज़िल की विस्तृत छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. यमुना नदी तट से छत्तर मंज़िल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. छत्तर मंज़िल के प्रांगण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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