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19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, दुनिया के कई क्षेत्रों में फोटोग्राफी के फलने-फूलने के साथ ही भारत में भी फोटोग्राफरों की रुचि बढ़ने लगी। 1857 के गदर के बाद हमारे शहर लखनऊ को भी वैश्विक स्तर पर जाना जाने लगा था। इसके बाद दुनिया के कुछ शुरुआती फोटोग्राफरों (Photographers) की रूचि इस शहर में भी बढ़ने लगी। इसी दौरान लखनऊ स्थित फोटोग्राफी फर्मों में से एक ने एक अग्रणी स्कॉटिश फोटोग्राफर (Scottish Photographer) फ्रेड ब्रेमनर (Fred Bremner) को काम पर रखा था। भारत में उनका फोटोग्राफी का काम वाकई में देखने लायक है।
फ्रेड ब्रेमनर मूल रूप से एक स्कॉटिश फोटोग्राफर थे, जिनका जन्म 1863 में स्कॉटलैंड (Scotland) में हुआ था। उन्होंने अपने पिता के स्टूडियो (Studio) के माध्यम से फोटोग्राफी की कला सीखी , जहां उन्होंने मात्र तेरह साल की उम्र में काम करना शुरू कर दिया था। उनके जीवन में एक दिलचस्प मोड़ तब आया, जब 1882 में, उन्हें हमारे लखनऊ में रहने वाले उनके बहनोई जी.डब्ल्यू लॉरी (G.W. Lawrie), जो खुद भी उस समय के एक जाने माने फोटोग्राफर थे, के द्वारा भारत में फोटोग्राफर के तौर पर काम करने की पेशकश की गई थी।
उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उत्तरी भारत में कई वर्षों तक काम किया तथा यहाँ के लोगों और परिदृश्यों की कई तस्वीरें लीं।
1889 में, ब्रेमनर ने कराची (अखंड भारत का हिस्सा) में अपना पहला फोटोग्राफी स्टूडियो (Photography Studio) खोला और बाद में अन्य शहरों - रावलपिंडी, क्वेटा और लाहौर में भी स्टूडियो खोले। 1910 में फ्रेड ब्रेमनर ने तत्कालीन भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में भी एक ग्रीष्मकालीन स्टूडियो खोला।
उन्होंने भारत में कई दूरदराज के इलाकों की यात्रा की और वहां के ग्रामीण जीवन और लोगों की तस्वीरें खींची, जिन्हे आज 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में जीवन का एक दुर्लभ रिकॉर्ड माना जाता है। उनकी तस्वीरों में 19वीं सदी के अंत के दौरान की भारत के उत्तर पश्चिम सीमांत क्षेत्र ((North West Frontier Province)अब पाकिस्तान) में तैनात ब्रिटिश और भारतीय सेना इकाइयों की तस्वीरें भी शामिल हैं, जो सैन्य इतिहास में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।
ब्रेमनर का काम उच्च गुणवत्ता और विस्तार पर बारीकी से ध्यान देने के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनकी तस्वीरें इस अवधि के लोगों और सैनिकों के जीवन में एक झलक प्रस्तुत करती हैं। उनके द्वारा खींची गई कुछ शानदार तस्वीरों में देश की पहली बटालियन वेसेक्स रेजिमेंट (Battalion Wessex Regiment), क्वेटा बलूचिस्तान (Quetta Baluchistan) और प्रथम विश्व युद्ध, 1911 के शानदार फोटोग्राफिक प्रिंट (Photographic Print) शामिल हैं। इन तस्वीरों के माध्यम से उन्होंने सेना के जवानों, सैनिकों, युद्ध उपकरणों , सैनिकों की वर्दी और एक बटालियन में सैनिकों के रहने की स्थिति का दस्तावेजीकरण किया है। कुल मिलाकर, ब्रेमनर का काम फोटोग्राफी के इतिहास और इस अवधि के दौरान भारत में जीवन की हमारी समझ के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
तस्वीरें खींचने के लिए उन्होंने कोलोटाइप प्रक्रिया (Collotype Process) का उपयोग किया, जो एक फोटो मैकेनिकल प्रिंटिंग प्रक्रिया (Photomechanical Printing Process) है, जो निरंतर-टोन फोटोग्राफिक निगेटिव (Continuous-Tone Photographic Negatives) से उच्च-गुणवत्ता वाले प्रिंट का उत्पादन करती है। कोलोटाइप प्रक्रिया का आविष्कार 1855 में किया गया था और 1868 में इसमें सुधार किया गया था।
ब्रेमनर ने भारतीय सेना के प्रकार (Types Of The Indian Army (1900), द फर्स्ट बटालियन विल्टशायर रेजिमेंट ‘द स्प्रिंगर्स' (1900) (The 1st Battalion Wiltshire Regiment ‘The Springers’ (1900), द सेकेंड बटालियन सफोल्क रेजिमेंट (THe 2nd Battalion Suffolk Regiment (1900) और बलूचिस्तान इलस्ट्रेटेड , 1900 (Baluchistan Illustrated, 1900) सहित कई किताबें प्रकाशित कीं। ‘बलूचिस्तान इलस्ट्रेटेड 1900’ नामक तस्वीरों की श्रृंखला 1931 में भूकंप से नष्ट होने से पहले क्वेटा के एकमात्र जीवित फोटोग्राफिक रिकॉर्डों में से एक है।
ब्रेमनर का काम महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि यह 19 वी सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत में ब्रिटिश और भारतीय जीवन की एक दुर्लभ झलक प्रदान करता है। उनके कोलोटाइप प्रिंट असाधारण रूप से दुर्लभ हैं, और इसकी कुछ ही प्रतियां उपलब्ध हैं।
उन्होंने एक सफल पोस्टकार्ड व्यवसाय (Postcard Business) भी चलाया और कई पंजाबी सामंती शासकों के लिए कमीशन पर काम किया। वह अपना सारा काम खुद करना पसंद करते थे। वह 1923 में इंग्लैंड में सेवानिवृत्त हुए और 1940 में संस्मरण “माई फोर्टी इयर्स इन इंडिया” (My Forty Years In India) लिखा और प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने अपने आकर्षण, अपने प्रति लोगों के विचित्र शिष्टाचार और रीति-रिवाजों के कारण कश्मीर को भारत में अपनी पसंदीदा जगह बताया।
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