समय - सीमा 260
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1053
मानव और उनके आविष्कार 829
भूगोल 241
जीव-जंतु 304
| Post Viewership from Post Date to 24- Apr-2023 (31st Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 1675 | 534 | 0 | 2209 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
“जहां खंडहर होता है, खजाने की उम्मीद भी वहीं होती है।”
ऊपर दी गई गूढ़ पंक्तियाँ उस व्यक्ति ने रची हैं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में भले ही एक बार भी भारत में कदम नहीं रखा हो, लेकिन उनके लेखन का प्रभाव आज भी भारतीय साहित्य में झलकता है। उनके नाम से ही प्रेरित “रूमी दरवाजा" हमारे शहर लखनऊ की शान में आज भी अदब से खड़ा है। वास्तव में, रूमी की रचनाओं और भारतीय दर्शन में गजब की समानताएं दिखाई देती हैं।
मौलाना जलालुद्दीन रूमी (Maulana Jalaluddin Rumi), एक लोकप्रिय सूफी कवि, रहस्यवादी और दुनियाभर के लेखकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत रहे हैं। इनका जन्म 1207 ईसवी में फारस (Persia) देश के प्रसिद्ध नगर बल्ख़ (Balkh) में हुआ था। रूमी एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, कवि और सूफी फकीर थे। उनके कालातीत कार्यों के लिए, आज भी उनके कार्यों (लेखन) को व्यापक रूप से पढ़ा और सराहा जाता है। उनके लेखन प्रेम, लालसा, मित्रता, पीड़ा और भक्ति की भावनाओं को व्यक्त करते हैं और विभिन्न लोगों के बीच एकता और सद्भाव का संदेश देते हैं। कोन्या, तुर्की (Konya, Turkey) में स्थित रूमी का मकबरा, आज भी उनके प्रशंसकों के लिए तीर्थ स्थान से कम नहीं है।
रूमी की कविताओं का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, और उनके संदेश ने दुनिया भर के कलाकारों, नर्तकों और संगीतकारों को प्रेरित किया है। हालांकि, रूमी ने अपने जीवन काल के दौरान कभी भी भारत का दौरा नहीं किया था लेकिन कई विद्वान रूमी की रचनाओं और भारतीय वेदांतिक या अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों के बीच गहरी समानता पाते हैं।
रूमी की आध्यात्मिक यात्रा ने कई कलाकारों और शिक्षाविदों को भी प्रेरित किया है। उनके कार्यों पर असंख्य टीकाएँ और विश्लेषण भी मौजूद हैं। भारत में, उनकी कविताओं के क्षेत्रीय भाषाओं, विशेष रूप से हिंदी में कई अनुवाद हुए हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीतकारों और नर्तकों के साथ-साथ सूफी गायकों ने भी अपनी कला के माध्यम से उनकी कविताओं का प्रदर्शन किया है। कुछ कलाकारों ने अपनी कला में रूमी के कुछ दोहों का उपयोग किया है जबकि अन्य ने लंबे उद्धरणों का उपयोग किया है। कई विश्लेषकों और इतिहासकारों द्वारा भारतीय संत-कवि कबीर, भारतीय कवि अमीर खुसरो और रूमी के काम बीच भी समानताएं बताई गई हैं। भारतीय फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली ने तो उनके काम पर एक वृत्तचित्र भी बनाया है।
दिल्ली की कत्थक नृत्यांगना और नृत्य-निर्देशक रानी खानम (Rani Khanum) जैसे कई कलाकारों ने अपने प्रदर्शन में रूमी की कविताओं से छंदों का उपयोग किया है। रानी खानम के अनुसार, “जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया, वह उनका दर्शन था। रूमी का ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग के रूप में संगीत, कविता और नृत्य के उपयोग में दृढ़ विश्वास था। रूमी के विचारों का सामान्य विषय, अन्य रहस्यवादी और सूफी कवियों की तरह है। मेरा मानना है कि रूमी ने उपदेश दिया कि कैसे सभी धर्म और पृष्ठभूमि के लोग शांति और सद्भाव में एक साथ रह सकते हैं। रूमी के विचार और लेखन हमें सिखाते हैं कि आंतरिक शांति और खुशी कैसे प्राप्त करें”।
भारतीय वेदांतिक विचारों से रूमी का जुड़ाव और प्रभाव, आज भी कई लोगों को प्रेरित करता है। उनका प्रेम और एकता का संदेश हमेशा हमेशा से भारतीय संस्कृति के लिए प्रासंगिक बना हुआ है।
एक प्रसिद्ध संगीतकार, तारा किनी (Tara Kinney) को भी रूमी की कविताओं और प्राचीन भारतीय दर्शन के बीच समानताएँ दिखाई देती हैं। तारा कहती हैं कि, “2013 में, हमने ईशा उपनिषद को रूमी की मसनवी के छंदों के साथ जोड़ा। हमने रूमी की कविता का अध्ययन किया, और उपनिषद के दर्शन के साथ ऐसी प्रतिध्वनि पाकर हम चकित रह गए थे।”