सूफी कवि जलालुद्दीन रूमी की रचनाओं और भारतीय दर्शन में दिखाई देती हैं, गजब की समानताएं

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
20-03-2023 11:12 AM
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सूफी कवि जलालुद्दीन रूमी की रचनाओं और भारतीय दर्शन में दिखाई देती हैं, गजब की समानताएं

“जहां खंडहर होता है, खजाने की उम्मीद भी वहीं होती है।” ऊपर दी गई गूढ़ पंक्तियाँ उस व्यक्ति ने रची हैं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में भले ही एक बार भी भारत में कदम नहीं रखा हो, लेकिन उनके लेखन का प्रभाव आज भी भारतीय साहित्य में झलकता है। उनके नाम से ही प्रेरित “रूमी दरवाजा" हमारे शहर लखनऊ की शान में आज भी अदब से खड़ा है। वास्तव में, रूमी की रचनाओं और भारतीय दर्शन में गजब की समानताएं दिखाई देती हैं।
मौलाना जलालुद्दीन रूमी (Maulana Jalaluddin Rumi), एक लोकप्रिय सूफी कवि, रहस्यवादी और दुनियाभर के लेखकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत रहे हैं। इनका जन्म 1207 ईसवी में फारस (Persia) देश के प्रसिद्ध नगर बल्ख़ (Balkh) में हुआ था। रूमी एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, कवि और सूफी फकीर थे। उनके कालातीत कार्यों के लिए, आज भी उनके कार्यों (लेखन) को व्यापक रूप से पढ़ा और सराहा जाता है। उनके लेखन प्रेम, लालसा, मित्रता, पीड़ा और भक्ति की भावनाओं को व्यक्त करते हैं और विभिन्न लोगों के बीच एकता और सद्भाव का संदेश देते हैं। कोन्या, तुर्की (Konya, Turkey) में स्थित रूमी का मकबरा, आज भी उनके प्रशंसकों के लिए तीर्थ स्थान से कम नहीं है। रूमी की कविताओं का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, और उनके संदेश ने दुनिया भर के कलाकारों, नर्तकों और संगीतकारों को प्रेरित किया है। हालांकि, रूमी ने अपने जीवन काल के दौरान कभी भी भारत का दौरा नहीं किया था लेकिन कई विद्वान रूमी की रचनाओं और भारतीय वेदांतिक या अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों के बीच गहरी समानता पाते हैं। रूमी की आध्यात्मिक यात्रा ने कई कलाकारों और शिक्षाविदों को भी प्रेरित किया है। उनके कार्यों पर असंख्य टीकाएँ और विश्लेषण भी मौजूद हैं। भारत में, उनकी कविताओं के क्षेत्रीय भाषाओं, विशेष रूप से हिंदी में कई अनुवाद हुए हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीतकारों और नर्तकों के साथ-साथ सूफी गायकों ने भी अपनी कला के माध्यम से उनकी कविताओं का प्रदर्शन किया है। कुछ कलाकारों ने अपनी कला में रूमी के कुछ दोहों का उपयोग किया है जबकि अन्य ने लंबे उद्धरणों का उपयोग किया है। कई विश्लेषकों और इतिहासकारों द्वारा भारतीय संत-कवि कबीर, भारतीय कवि अमीर खुसरो और रूमी के काम बीच भी समानताएं बताई गई हैं। भारतीय फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली ने तो उनके काम पर एक वृत्तचित्र भी बनाया है। दिल्ली की कत्थक नृत्यांगना और नृत्य-निर्देशक रानी खानम (Rani Khanum) जैसे कई कलाकारों ने अपने प्रदर्शन में रूमी की कविताओं से छंदों का उपयोग किया है। रानी खानम के अनुसार, “जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित किया, वह उनका दर्शन था। रूमी का ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग के रूप में संगीत, कविता और नृत्य के उपयोग में दृढ़ विश्वास था। रूमी के विचारों का सामान्य विषय, अन्य रहस्यवादी और सूफी कवियों की तरह है। मेरा मानना ​​है कि रूमी ने उपदेश दिया कि कैसे सभी धर्म और पृष्ठभूमि के लोग शांति और सद्भाव में एक साथ रह सकते हैं। रूमी के विचार और लेखन हमें सिखाते हैं कि आंतरिक शांति और खुशी कैसे प्राप्त करें”।
भारतीय वेदांतिक विचारों से रूमी का जुड़ाव और प्रभाव, आज भी कई लोगों को प्रेरित करता है। उनका प्रेम और एकता का संदेश हमेशा हमेशा से भारतीय संस्कृति के लिए प्रासंगिक बना हुआ है। एक प्रसिद्ध संगीतकार, तारा किनी (Tara Kinney) को भी रूमी की कविताओं और प्राचीन भारतीय दर्शन के बीच समानताएँ दिखाई देती हैं। तारा कहती हैं कि, “2013 में, हमने ईशा उपनिषद को रूमी की मसनवी के छंदों के साथ जोड़ा। हमने रूमी की कविता का अध्ययन किया, और उपनिषद के दर्शन के साथ ऐसी प्रतिध्वनि पाकर हम चकित रह गए थे।”

वह एक श्लोक का उदाहरण देती है-
यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति |
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुपसते || 6 ||
(जो सब प्राणियों को अपने में और अपने को सब प्राणियों में देखता है, उसे द्वेष या विरक्ति नहीं होती)।" इसी के समतुल्य एक विचार रूमी की मसनवी में मिलता है, जिसका शीर्षक , ‘विश्वासयोग्य एक आत्मा हैं’ (The Faithful are One Soul):
जन्नत के एक सूर्य का प्रकाश भी सौ के बराबर हो जाता है, यह एक सूर्य ही सौ घरों के आंगनों में चमकता है!
लेकिन जब आप दीवारें हटाते हैं, ये बिखरी हुई रोशनी एक हो जाती है।
इसी प्रकार जब हम अपने घर रुपी शरीर या चेतना से भी अपनी मानसिक व् सामजिक दीवारों को हटाते हैं, तब हमेंभी सभी में एक ही आत्मा नजर आती है।
अर्थात
ईश्वर में विश्वास करने वाली सभी आत्माएं एक हो जाती हैं ।
(प्रिय पाठक,. यह एक अनुमानित अनुवाद है, आप इसे सह शब्द भी अनुवादित कर सकते हैं!)
रूमी की कविताओं, दर्शन और शिक्षाओं ने रेशम मार्ग (Silk Route) पर पड़ने वाले सभी क्षेत्रों पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
इन क्षेत्रों में आज भी उनका प्रभाव पश्चिम की तुलना में अधिक है। दरसल सिल्क रूट (Silk Route) या रेशम मार्ग थलचर व्यापार मार्गों का एक विशाल नेटवर्क है, जो एशिया (Asia) को यूरोप (Europe) और मध्य पूर्व से जोड़ता है।
रूमी के आध्यात्मिक और दार्शनिक प्रभाव के कारण इन क्षेत्रों में विशिष्ट आध्यात्मिक संस्कृतियों का विकास हुआ और इस प्रभाव ने संस्कृति के अंतर-क्षेत्रीय आदान-प्रदान में भी केंद्रीय भूमिका निभाई। रूमी ने रेशम मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों के भीतर और उनके आसपास ही अपना अध्ययन किया, यात्रायें की, वह इन्ही क्षेत्रों में काम करते रहे और यहीं पर वह अपनी विरासत भी छोड़ कर गए । उनका जन्म तत्कालीन समय में ज्ञान के केंद्र माने जाने वाले बल्ख में हुआ था। वह अपने पिता बहाउद्दीन वलद (जिन्हें उस समय महान सूफी विद्वान माना जाता था) के मार्गदर्शन में बड़े हुए थे । बाद में एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक, तबरेज के शम्सुद्दीन के साथ रूमी की मुलाकात ने उनके जीवन की राह को पूरी तरह से बदल दिया। आगे चलकर रूमी और शम्सुद्दीन में गहरी मित्रता हो गई। शम्सुद्दीन एक कलंदरी या पथिक दरवेश थे, और कुछ विद्वानों का मानना है कि वह भारतीय मूल के व्यक्ति थे।
चलते चलते आपको उनकी एक और शानदार रचना के साथ छोड़े जाते हैं:
‘मैं तेरा हूँ और तू मेरा है’
अपने स्वयं के जीवन का पूर्ण परित्याग करने से अनंत जीवन प्राप्त होता है ।
जब भगवान अपने उत्कट प्रेमी के सामने प्रकट होते हैं, तो
प्रेमी उनमें लीन हो जाता है, और इतना कि प्रेमी का एक बाल भी नहीं रह जाता है।
सच्चे प्रेमी छाया की तरह होते हैं,
और जब सूरज महिमा में चमकता है तो छाया गायब हो जाती है।


संदर्भ

https://bit.ly/3ljH3fl
https://bit.ly/3YXKCpn
https://bit.ly/40d5olN

चित्र संदर्भ

1. रूमी दरवाजे और जलालुद्दीन रूमी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, World History Encyclopedia)
2. जलालुद्दीन रूमी की रचना को संदर्भित करता एक चित्रण (Picryl)
3. रूमी की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. रेशम मार्ग के पथिकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)