लखनऊ का क्षेत्रफल 80 वर्ग किलोमीटर और आबादी लगभग 45 लाख है तथा साक्षरता है 70 प्रतिशत। इसकी तहसीलें हैं-माल मोहनलाल गंज, बक्सी का तालाब, मलिहाबाद, काकोरी, सरोजनीनगर। यह नगर अपनी नफासत और नजाकत के लिए बहुत प्रसिद्ध है। पुराने चौक में खेले की कलियों से गुंथी लड़ी पहने टोपी अचकन जूतियाँ धारण किये दुपल्ला , कुत, सदरी और हल्की नवाबजादों का चोखी और चटकीली भाषा में बोलने का अन्दाज और तहजीबदार पहनावा, अभी भी आधुनिक समय में कुछ-कुछ दिख जाता है। चिकन उद्योग यहाँ काफी लोकप्रिय है। मलीहाबाद का दशहरी आम तथा लखनऊ का बरिया (खरबूजा बहुत पसन्द किये जाते हैं। यहाँ के व्यंजनों में कबाब, बिरियानी, पुलाव कोरमा, चाट, मिठाई, खेड़ी, मलाई बालाई, शरबत आदि काफी लोकप्रिय हैं। यहाँ का हस्तशिल्प प्रसिद्ध है। मिट्टी के खिलौने, मीनाकारी, जरदोजी, गोटे का काम, चिनहट पाटरी हाथीदांत की कारीगरी कढ़ाई, तम्बाकु हुक्का, इतर, चांदी के वर्क, जेवर निर्माण चाँदी के बर्तनों की कारीगरी आतिशबाजी आदि की काफी ख्याति है। लखनऊ की इमारतों का स्थापत्य सर्वथा सराहनीय है। लक्ष्मण के नाम से बना लक्ष्मण किला अब लखनऊ का प्राचीनतम स्थल है। यहां से प्राप्त टेराकोटा और पुरातात्विक अवशेष सातवीं सदी ई.पू. तक के बताये जाते हैं। इसी से जुड़ी हुई है टीले वाली मस्जिद। लखनऊ की वास्तुकला सर्वथा विशिष्ट है। 18 वीं शती के निर्मित कई भवनों पर इण्डो सरासेनिक शैली का प्रभाव दिखायी पड़ता है और 19वीं शती के भवनों पर यूरोपियन वास्तुकला का। इण्डो सरासेनिक शैली के शौकीन थे नवाब आसफुद्दौला। उन्होंने 1784 से 1786 के बीच आसफी इमामबाड़ा और रूमी दरवाजा का निर्माण करवाया। इसे लखनऊ का हस्ताक्षर भवन माना जाता है। इसमें कहीं लोहे एवं लकड़ी का प्रयोग न करके केवल लखोरी ईट और बादामी चूने का प्रयोग किया। गया है। दरवाजे की ऊंचाई 60 फीट है। ऊपर आठ पहल वाली छतरी है। पूर्व दिशा से देखने पर यह पंच महला लगता है। पश्चिमी सिरे से देखने पर यह त्रिपोलिया प्रतीत होता है। दरवाजे के दोनों ओर तीन मंजिल का हवादार परकोटा है, जिसके सिरे पर आठ पहलू बुर्ज है। दरवाजे का आकार शंख जैसा है। मेहरावं धनुषाकार हैं। ऊपर नागर कला के बेलबूटे हैं, जिसे शाहजहांनी शैली कहते हैं। इसके शिखर पर एक कमल पुष्प है। मेहराव के नीचे ईरानी ज्यामितीय चित हैं। इमामबाड़े में दो प्रवेश-द्वार हैं। दक्षिणी प्रवेश-द्वार के आगे आंगन है, जिसके पीछे तीन द्वारों का मण्डप फिर आगन फिर इमामबाड़ा और आसफी मस्जिद है। इस भवन की सबसे बड़ी विशेषता है-163 फीट लम्बा 5 फीट चौड़ा और 50 फीट ऊंचा तल जिसकी छत कमानीदार डाटों से बनायी गयी है। इसमें न कोई खम्भा है और न लोहा लकड़ी का स्तम्भ। इस हाल में आसफुद्दीला और बेगम की कर्जे हैं। हाल की दीवालों में भूलभुलैया है। पूरी भूलभुलैया मधुमक्खी के छत्ते जैसी है। उसमें 489 द्वार हैं। मस्जिद का आकार नाशपाती जैसा है। उसमें 8 पहल वाली मीनारें हैं। शाहनजफ छोटा शाहनजफ तथा इमामबाड़ा का निर्माण गाजिउद्दीन हैदर ने कराया था। 1. अवध संस्कृति विश्वकोश-1 सूर्य प्रसाद दिक्षित
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