लखनऊ की सरजमीं: नगमे और कला से संपन्न

लखनऊ

 04-02-2018 10:28 AM
द्रिश्य 2- अभिनय कला

ये लखनऊ की सरज़मीन, ये हुस्न-ओ-इश्क का वतन। यही वो मुकाम है, जहाँ अवध की शाम है। जवां जवां हसीं हसीं, ये लखनऊ की सरज़मीन। चौदवी का चाँद फिल्म का ये नगमा लखनऊ की खूबसूरती और विशेषताएं को बड़े रोमानी तरीके से बयां करता है और देखा जाए तो बिलकुल सही मायनों में यथोचित है। नवाबों का, तहज़ीब का ये लखनऊ शहर उसकी बहुसांस्कृतिक पहचान आज भी बनाए हुए है। नवाबों के वक़्त से लखनऊ उत्तर भारत का सांस्कृतिक तथा कलात्मक केंद्र रहा है। स्थापत्यकला, संगीत, शास्त्रीय गायकी, शास्त्रीय नृत्य, कविता और शायरी इन सभी के लिए लखनऊ आज भी प्रसिद्ध है। लखनऊ शहर का यह बहुआयामी रूप कई कवियों और शायरों ने अपने अल्फाजों में क़ैद करने की कोशिश की है। शकील बदायुनी शहर-ए-लखनऊ गीत में कहते हैं: ए शहर-ए-लखनऊ, कैसा निखार तुझ में है। क्या क्या है बागपन, गज़ले गली गली हैं तो, नगमे चमन चमन। शायर के दिल से पूछ, तेरा क्या मकाम है। ए शहर-ए-लखनऊ, तुझे मेरा सलाम है। तेरा ही नाम दूसरा, जन्नत का नाम है। मिर्ज़ा हादी रुसवा ये उर्दू के जाने माने कवि और उपन्यासक थे जिनके लिखे उमराव जान अदा इस 1905 में प्रकाशित हुए उपन्यास को उर्दू का पहला उपन्यास माना जाता है। ये उपन्यास लखनऊ शहर और उसमे बसे उसी नाम के शायर के जीवन पर आधारित है और इसपर उमराव जान इस नाम से दो चलतचित्र भी बनाए गए हैं। दिल्ली और लखनऊ शहर में राजाश्रय खत्म होने की घटना पर उन्होंने अर्ज़ किया है : दिल्ली छुटी थी पहले अब लखनऊ भी छोड़ें दो शहर थे ये अपने दोनों तबाह निकले। लखनऊ शहर ने शायरी की दुनिया को बहुतसे बड़े नाम भेंट किये है कल भी और आज भी। खालिक और ज़मीर, करामत अली शहीदी, दया शंकर कौल नसीम, अली औसत रश्क, वाजिद अली शाह अख्तर (इन्होने कलकत्ता से अपने बीवी जो लखनऊ में थी उनके लिए कवितायें लिखी जो हुस्न-ए-अख्तर से मशहुर हैं), अरशद अली खान कलक (इन्होने कैसर बाग, लखनऊ पर शेरो-शायरी लिखी है)। इनके अलावा आज के दौर में भी लखनऊ ने और भी हीरे अपने सरजमीं से पेश किये है जैसे जां निसार अख्तर और जावेद अख्तर ये कवी, नौशाद अली ये संगीतकार, अनूप जलोटा ये गायक तथा पाली चंद्रा ये कथक नृत्यांगना। लखनऊ आज बढ़ते समय के साथ-साथ तरक्की कर रहा है मगर आज भी ये शहर तहज़ीब, कला और उन्नति के लिए जाना जाता है। किसीने ठीक ही कहा जब ये शेर इरशाद किया: लखनऊ हम पर फिदा है, हम फिदा-ए-लखनऊ आसमां में वो ताव कहां, जो हमसे छुड़ाए लखनऊ। प्रस्तुत चित्र में लखनऊ के परिप्रेक्ष्य में कथक कलाकारों के रेखाचित्र हैं। 1. उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर वॉल्यूम XXXVII 1959 2. हिस्ट्री ऑफ़ उर्दू लिटरेचर: ग्रैहम बैली 1932 3. अ हिस्ट्री ऑफ़ उर्दू लिटरेचर: राम बाबू सक्सेना 1940 4. https://www.rekhta.org/tags/lucknow-shayari?lang=hi 5. द फां द सिआक्ल वर्ल्ड: माइकल सालर https://goo.gl/oqcgwJ



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