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वन्यजीव संपदा का संरक्षण कर मानव स्वयं अपना ही भला कर रहा है

लखनऊ

 03-03-2023 10:44 AM
निवास स्थान

वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले समय में हम प्रतिवर्ष 200- 2000 की दर से जानवरों को खो देंगे। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो विलुप्त होने वाले जानवरों में हमारे लखनऊ के ‘कुकरैल वन अभ्यारण्य’ (Kukrail Forest Reserve) में मौजूद मगरमच्छ भी शामिल हो सकते हैं।
‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची के आंकड़ों के अनुसार, आज जंगली जीवों और वनस्पतियों की 8,400 से अधिक प्रजातियां ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ स्थिति में आ चुकी हैं, जबकि तकरीबन 30,000 से अधिक प्रजातियां ‘संकटग्रस्त या असुरक्षित’ प्रजातियों की श्रेणी में आती हैं । इन अनुमानों के आधार पर, यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में तकरीबन दस लाख से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। इन प्रजातियों का विलुप्त होना मानव जाति के लिए एक गंभीर खतरा माना जाता है, क्योंकि संपूर्ण मानव जाति भोजन, दवाओं और स्वास्थ्य से लेकर ईंधन, आवास और कपड़ों तक, अपनी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए वन्य जीवन और जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर ही निर्भर है । जैव विविधता का नुकसान, इंसानों के साथ-साथ पूरी धरती के लिए बेहद गंभीर और संभावित खतरा है। वन्यजीव प्रजातियों की निरंतर हानि, पूरे पारिस्थितिक तंत्र को कमजोर कर सकती है।
वहीं इसके विपरीत, प्रमुख प्रजातियों के निवास स्थान के संरक्षण का कई अन्य जीवों की आबादी पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, एशियाई हाथियों के संरक्षण के लिए वनाच्छादित आवासों का संरक्षण करने का सकारात्मक लाभ, कई अन्य प्रजातियों को भी मिलता है, जो इन हाथियों की भांति अपने अस्तित्व के लिए जंगलों पर निर्भर हैं।
इसे इस प्रकार समझिये: हाथी पारिस्थितिकी तंत्र के इंजीनियर माने जाते हैं। उनकी गतिविधियों से वन आवासों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए आवश्यक वनस्पति के विकास को बढ़ावा मिलता है, जो बदले में कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration) को बढ़ाता है और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करता है। हाथी, भोजन और पानी की तलाश में बड़े क्षेत्रों में झुंडों में घूमते रहते हैंऔर बीजों के फैलाव, मिट्टी के वातायन (Ventilation) और पोषक तत्वों के चक्रण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कई बड़े पेड़, बीज फैलाव और पुनर्जनन के लिए हाथियों जैसे बड़े कशेरुकी जीवों पर ही निर्भर करते हैं। हाथी दूर-दूर तक विचरण करते हैं और पेड़-पौधों के बीजों को फैलाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वे फलों का सेवन करते हैं, उनके बीजों को अपने गोबर में जमा करते हैं और बीजों को अंकुरित होने और पनपने के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान करते हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के गोबर भृंगों के लिए हाथी का गोबर भोजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी माना जाता है।
अध्ययनों से यह भी पता चला है कि हाथियों की उपस्थिति से मृदा में कार्बन (Carbon), नाइट्रोजन (Nitrogen) और फास्फोरस (Phosphorus) की सांद्रता बढ़ जाती है, जो एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक तत्व होते हैं। हाथी की उपस्थिति, अन्य मवेशियों की उपस्थिति के कारण मिट्टी के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को उलट सकती है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र को भी बहाल करने में मदद मिलती है। लेकिन इनके मूल आवास के नुकसान और अतिक्रमण के कारण उनके आवास और विचरण क्षेत्र भी कम हो रही है । 1979 के बाद से, अफ्रीकी हाथियों के निवास स्थान में 50% से अधिक की गिरावट आई है। हाथियों को जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन और पानी मिलना कठिन होता जा रहा है। हाथियों पर पड़ रहे इस प्रतिकूल प्रभाव एवं हाथियों पर स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र की निर्भरता के कारण एक दर्जन से अधिक हाथी-आश्रित पेड़ प्रजातियों के नए पौधों के विकास में विनाशकारी गिरावट दर्ज की गई है।
हमारे लखनऊ शहर के केंद्र से लगभग 9 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित ‘कुकरैल रिज़र्व फ़ॉरेस्ट’ (Kukrail Reserve Forest) या कुकरैल जंगल को 1950 के दशक में वृक्षारोपण करके बनाया गया था। यह जंगल भारत में मगरमच्छों की 3 मूल प्रजातियों में से एक, मीठे पानी के घड़ियाल (गैवियलिस गैंगेटिकस (Gavialis Gangeticus) के लिए नियंत्रित वातावरण में प्रजनन (Captive breeding) और संरक्षण का केंद्र माना जाता है। यह भारत के 3 मगरमच्छ प्रजनन केंद्रों में से एक है। इस क्षेत्र को जंगल में विकसित करने की शुरुआत 1950 में 5000 एकड़ में वृक्षारोपण करके हुई थी और 1978 में यहां पर घड़ियाल प्रजनन कार्यक्रम शुरू हो गया था। इस जंगल में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की 200 से अधिक प्रजातियां रहती हैं। ‘कुकरैल घड़ियाल पुनर्वास केंद्र’ में लुप्तप्राय घड़ियालों को भी देखा जा सकता है। 1975 तक उत्तर प्रदेश में केवल 300 घड़ियाल बचे थे। नतीजतन, उत्तर प्रदेश वन विभाग द्वारा नदी के किनारों से घड़ियालों के अंडे एकत्र किए गए, कृत्रिम रूप से सेते गए और वयस्क होने पर घड़ियालों को विभिन्न नदियों में छोड़ दिया गया। घड़ियालों के लिए कुकरैल का नियंत्रित वातावरण में प्रजनन कार्यक्रम, देश में ऐसे ही दो सबसे सफल वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों में से एक माना जाता है। आज इस केंद्र में नियंत्रित वातावरण में प्रजनन (Captive Breeding) के लिए 4 निवासी मादा और दो निवासी नर घड़ियाल हैं।
हमारी पृथ्वी की रक्षा और बेहतर स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में जंगली जानवरों और पौधों के योगदान को उजागर करने और उनकी सराहना करने के लिए, हर साल 3 मार्च को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ (World Wildlife Day) मनाया जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। यह तिथि इसलिए चुनी गई है क्योंकि इस दिन वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (Convention on International Trade in Endangered Species (CITES) की नींव रखी गई थी । लुप्तप्राय प्रजातियों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से बचाने के लिए इस सम्मेलन के संकल्प पत्र को 1973 में हस्ताक्षरित और 1 जुलाई 1975 को लागू किया गया था।

संदर्भ
https://bit.ly/3kEdCnS
https://bit.ly/3KIMjDJ
https://rb.gy/95hszx

चित्र संदर्भ
1. एक घड़ियाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारत के लुप्तप्राय जानवरों के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. हाथियों के परिवार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. जंगल में हाथी को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
5. मीठे पानी के घड़ियाल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



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