कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जीन संपादन और क्रिस्पर

डीएनए के अनुसार वर्गीकरण
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कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जीन संपादन और क्रिस्पर

नवाचार कृषि जगत में हुई कई प्रमुख प्रगतियों का आधार रहा है तथा इसने भारत की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण रूप से योगदान दिया है। जब 1960 के दशक में उच्च उपज वाली बौनी फसल की किस्मों पर प्रजनन अनुसंधान किया गया तो ,हरित क्रांति के द्वारा जहां व्यापारिक फसलों के उत्पादन को बढ़ावा मिला, वहीं कृषि संबंधी फसल प्रबंधन प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने से भारतीय कृषि, विकास के एक नए स्तर पर पहुंची। हाल ही के वर्षों में, ऐसी फसलों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिनकी उपज और मूल्य उच्च है। साथ ही ऐसे तरीकों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है,जो पादप प्रजनन के क्षेत्र में वृद्धि करते हैं। हालाँकि, दुनिया के विभिन्न देशों में कृषि क्षेत्र में आ रही बाधाओं से निपटने के लिए जीनोम संपादन के तहत क्रिस्पर (Crisper) जैसी तकनीकों को एक उपकरण के रूप में अपनाया गया है, लेकिन भारत विभिन्न नियमों के चलते जीनोम संपादन का उपयोग करने में पीछे रहा है। तो आइए, आज कृषि क्षेत्र में जीन संपादन और क्रिस्पर (Crisper) की भूमिका के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। सबसे पहले यह जानते हैं कि आखिर जीनोम संपादन क्या है? जीनोम संपादन एक ऐसा लोकप्रिय तरीका है जिसकी मदद से किसी भी संजीव (जीव या पादप) के डीएनए (DNA) में बदलाव किया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में जीनोम संपादन की मदद से ऐसी फसल किस्मों को डिजाइन और विकसित किया जा सकता है जिनकी पोषण गुणवत्ता तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है । जीनोम संपादन के लोकप्रिय उपकरणों में ‘क्रिस्पर कैस प्रणाली’ (CRISPR-Cas System), टेलेंस (TALENs), जिंक फिंगर न्यूक्लीएजेज (Zinc Finger Nucleases) शामिल हैं। ये उपकरण उन्नत फसल किस्मों के विकास में सहायक सिद्ध हुए हैं। कृषि क्षेत्र में क्रिस्पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
क्रिस्पर या ‘क्ल्सटर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पेलिंड्रॉमिक रिपीट्स’ (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats) एक ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से पौधों, जानवरों और मानव की कोशिकाओं में मौजूद डीएनए (DNA) या जीनोम (Genome) को संपादित किया जा सकता है। क्रिस्पर बैक्टीरिया (Bacteria) और आर्किया (Archaea) जैसे प्राक्केंद्रकी (Prokaryotic) जीवों के जीनोम में पाए जाने वाला डीएनए अनुक्रम है। इस तकनीक की मदद से किसी पौधे में उस जीन को बदला जा सकता है, जो पौधे में किसी रोग के लिए उत्तरदायी हो। यह फसलों को कीटों से होने वाली तबाही से बचाने में मदद कर सकता है। कई जीनोम-संपादित किस्मों को विश्व स्तर पर विकसित भी किया गया है, जिनमें शाकनाशी (Herbicide) सोयाबीन, मक्का, मशरूम (Mushroom) और उच्च उपज वाले टमाटर शामिल हैं। इसके अलावा उच्च पोषण वाले चावल, गेहूं, सरसों और बाजरा भी जीनोम-संपादन के जरिए विकसित किए गए हैं। आर्थिक दृष्टिकोण से, जीनोम-संपादित फसलों को विकसित करने की लागत उतनी ही है, जितनी कि पारंपरिक प्रजनन से प्राप्त फसलों की। चूंकि जीनोम-संपादन के जरिए विकसित की गई फसल किस्में, पारंपरिक रूप से प्राप्त की गई फसल किस्मों से अलग होती हैं, इसलिए जीनोम-संपादन के जरिए विकसित किए गए उत्पादों की सार्वजनिक स्वीकृति प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन्हें अक्सर आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों या फसलों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों में विदेशी डीएनए का समावेश होता है, इसलिए इन्हें ट्रांसजेनिक (Transgenic) फसल भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिक जागरूकता की कमी के कारण अक्सर यह डर भी लोगों में होता है, कि ट्रांसजेनिक फसल कैंसर का कारण बन सकती हैं तथा पोषण संबंधी दोष उत्पन्न कर सकती हैं। जबकि वास्तव में जीनोम-संपादन के जरिए विकसित की गई फसलों में विदेशी डीएनए नहीं होता है। लेकिन जीनोम-संपादन से विकसित फसलों और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों में अंतर न कर पाने के कारण उपभोक्ताओं के बीच जीनोम-संपादन की लोकप्रियता में गिरावट आई है और भारत इसे आसानी से अपना नहीं पा रहा है। यदि जीनोम-संपादन से विकसित फसलों और ट्रांसजेनिक फसलों के बीच मौजूद भ्रम को दूर किया जाता है, तो जीनोम-संपादन से विकसित फसलों को बेहतर रूप से स्वीकार किया जा सकेगा। जीनोम संपादन के जरिए भारत फसल सुधार में प्रगति कर सकता है तथा व्यापारिक फसलों के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना सकता है। यह तकनीक भारत को वैश्विक बीज केंद्र बनाने में भी मदद कर सकती है। जीनोम-संपादन के द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का विकास किया जा सकता है, जो बदले में उच्च कृषि उत्पादन प्रदान करेगा। इससे छोटे किसानों को अत्यधिक लाभ होने की संभावना है। हालाँकि, यह केवल तब ही संभव है, जब सरकार जीनोम-संपादन से विकसित फसलों से सम्बंधित नियमों को संशोधित करे और भारत में जीनोम-संपादन अनुसंधान को बेहतर ढंग से बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करे । सरकार को जीनोम-संपादन के पीछे मौजूद वैज्ञानिक सिद्धांतों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए, ताकि किसानों और उपभोक्ताओं द्वारा जीनोम-संपादन द्वारा विकसित फसलों को समान रूप से स्वीकार किया जा सके।

संदर्भ:
https://bit.ly/3XEVAPV
https://bit.ly/3XIxXG2
https://bit.ly/3YFQ9BL

चित्र संदर्भ
1. क्रिस्पर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक एसएसडीएनए लक्ष्य के लिए बाध्य एक सीआरआईएसपीआर आरएनए-निर्देशित निगरानी परिसर, कैस्केड की क्रिस्टल संरचना। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जीनों में बदलाव को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. क्रिस्पर लैब को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)