महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के वैज्ञानिक कार्यों की सराहना करने के लिए प्रत्येक वर्ष 12 फरवरी को ‘चार्ल्स डार्विन दिवस’ (Charles Darwin day) मनाया जाता है। चार्ल्स डार्विन, जिन्हें “प्राकृतिक चयन” (Natural Selection) या 'योग्यतम की उत्तरजीविता' (Survival of the fittest) के सिद्धांत के जनक के रूप में जाना जाता है, का जन्म 12 फरवरी, 1809 को हुआ था। 1859 में डार्विन ने अपनी पुस्तक "ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़" (On the Origin of Species) प्रकाशित की, जिसमें प्राकृतिक चयन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया था। उन्होंने अपने जीवन का एक लंबा समय जीवों के विकास और चयन को समझने तथा इस विषय पर कार्य करने में व्यतीत किया। जैसा कि हम इस माह 12 फरवरी को ‘चार्ल्स डार्विन दिवस’ के करीब आ रहे हैं, तो आइए इस मौके पर मनुष्यों के पूर्वज महान वानरों, जिन्हें ग्रेट एप्स (Great apes) के नाम से जाना जाता है, के बारे में जाने तथा इसके साथ ही ‘इन दोनों में क्या अंतर है’, को भी समझें ।
2014 में जीवाश्म शोधकर्ताओं द्वारा उत्तरी केन्या में तुर्काना झील के पश्चिम में 13 मिलियन साल पुरानी कपि शिशु की खोपड़ी खोजी गई, जिसे इसके खोजकर्ताओं ने "अलेसी" (Alesi) उपनाम दिया । शोधकर्ताओं के अनुसार, यह खोपड़ी संभवतः फल खाने वाले तथा धीमी गति से चढ़ने वाले प्राइमेट(Primate) प्रजाति के जीव की थी, जो देखने में एक बेबी गिब्बन (Gibbon) जैसी थी। यह अब तक की सबसे पूर्ण विलुप्त-बंदर प्रजाति की खोपड़ी है जिससे पता चलता है कि सभी जीवित वानरों और मनुष्यों के अंतिम आम पूर्वज कैसे दिखते होंगे।
मनुष्यों को प्राइमेट प्रजाति के वानरों के उप-समूह में ग्रेट एप्स (Great Apes) वर्गीकृत किया गया है । क्योंकि जीवित प्राइमेट्स में, मनुष्य, वानरों से सबसे अधिक निकटता से संबंधित हैं, जिनमें छोटे वानर (गिबन्स) और महान वानर (चिंपैंजी, गोरिल्ला और वनमानुष) शामिल हैं।
मनुष्यों को होमिनोइड्स (Hominoids) या सुपरफ़ैमिली होमिनोइडिया (Superfamily Hominoidea) के रूप में जाना जाता है। ये तथाकथित होमिनोइड्स (Hominoids) - अर्थात्, गिबन्स, महान वानर और मनुष्य - लगभग 23 मिलियन से 5 मिलियन वर्ष पहले मियोसीन युग (Miocene epoch) के दौरान उभरे और विभिन्न वर्गों में बट गए ।
सबसे पहले वानरों का विकास लगभग 25 मिलियन वर्ष पहले हुआ था और 20 मिलियन वर्ष पहले यह एक बहुत ही विविध समूह था। हालांकि, पिछले 10 मिलियन वर्षों के भीतर, पृथ्वी की जलवायु ठंडी और शुष्क होने के कारण तथा वन्य वातावरण वुडलैंड (Woodland) और घास के मैदान में बदलने के कारण कई वानर प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं हैं।
हालांकि, होमिनोइड्स परिवार से संबंधित कोई भी वानर, जैसे कि चिंपैंजी, गोरिल्ला, वनमानुष और मनुष्य ‘ग्रेट एप्स’ (Great Apes) की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, फिर भी मानव अन्य महान वानरों से कुछ अंतर प्रदर्शित करते हैं । उदाहरण के लिए शारीरिक रूप से, मानव मस्तिष्क महान वानर मस्तिष्क से कई गुना बड़ा होता है। मनुष्य का शरीर घने बालों से ढका नहीं होता और मनुष्यों की शारीरिक रचना द्विपाद , (या दो पैरों पर चलना) है जो अन्य वानरों से भिन्न है। वानरों की तुलना में, मनुष्यों के पैर आनुपातिक रूप से अपेक्षाकृत लंबे होते हैं, और भुजाएँ अपेक्षाकृत छोटी और कमजोर होती हैं। प्रजनन और संतान के संदर्भ में, जन्म देना वानरों की तुलना में मनुष्यों में अधिक कठिन और जोखिम भरा है क्योंकि मानव बच्चे तुलनात्मक रूप से बड़े होते हैं। मानव बच्चे अपनी मां को थामने या पकड़ने की क्षमता के साथ पैदा नहीं होते, जो मानव संतान को अपेक्षाकृत अधिक कमजोर बना देता है। जबकि मादा वानर बहुत वृद्ध होने पर भी संतान को जन्म देने में सक्षम होती है, वहीं मनुष्य मादा के मामले में ऐसा नहीं होता है। संज्ञानात्मक रूप से भी महान वानर और मनुष्य भिन्न होते हैं। वानरों का बुद्धि स्तर तीन से चार साल के मानव के बुद्धि स्तर के बराबर होता है, हालांकि, वे अन्य व्यक्तियों की पहचान कर सकते हैं और अपने साथियों के एक दूसरे के साथ संबंधों को समझ सकते हैं। वे भूत, वर्तमान और भविष्य को भी समझते हैं। किंतु उनके पास व्यापक मौखिक संचार और मनुष्यों द्वारा प्रदर्शित जटिल सामाजिक संगठन का अभाव है। संवाद करने के लिए प्रतीकों या शब्दों को बनाने और उनका उपयोग करने वाला जीव एकमात्र मनुष्य ही है।
जीवाश्मों, प्रोटीनों और आनुवंशिक अध्ययनों से मिले साक्ष्यों से पता चलता है कि लाखों साल पहले इंसानों और चिंपैंजियों के पूर्वज एक ही थे। अधिकांश वैज्ञानिकों का मानना है कि 'मानव' वंश वृक्ष लगभग पाँच से सात मिलियन वर्ष पहले चिंपैंजी और अन्य वानरों से अलग हो गया था। कुछ समय पहले तक यह व्यापक रूप से माना जाता था कि मानव चिंपैंजी की तरह दिखते थे, जिनकी छोटी पीठ, भुजाएं और हाथ शाखाओं में झूलने के लिए अनुकूलित थी। यह दृष्टिकोण इस विश्वास पर आधारित था कि हमारे पूर्वज संभवतः एक प्रोटो-एप चरण (Proto-ape stage) से गुजरे थे और अफ्रीकी वानरों में मनुष्यों की तुलना में अपने पूर्वजों जैसी अपेक्षाकृत कम विशेषताएं हैं। इसलिए अपने इस पूर्वज से अलग होने के बाद उनमें कम बदलाव हुआ है। हालाँकि, इसमें सहायक जीवाश्म साक्ष्य का अभाव था क्योंकि प्रारंभिक चिंपैंजी या गोरिल्ला के लगभग कोई जीवाश्म नहीं हैं और शुरुआती होमिनिन (Hominins) के बहुत कम साक्ष्य हैं। हालांकि, 4.4 मिलियन वर्ष पुराने एर्डीपिथेकस रैमिडस (Ardipithecus ramidus) के कंकाल पर हुए हाल के अध्ययनों ने यह पूरी धारणा बदल दी है ।
रैमिडस प्रजाति होमिनिन विकास के एक महत्वपूर्ण समय की प्रजाति है। रैमिडस में कई भौतिक विशेषताएं हैं जो चिंपैंजी से काफी भिन्न हैं, जो होमिनिन और वानर विकास की हमारी समझ के लिए महत्वपूर्ण है। इस बात की अत्यधिक संभावना है कि रैमिडस अंतिम सामान्य पूर्वज की कुछ विशेषताओं को संरक्षित करता है, इसके अंगों और हाथों की कुछ विशेषताएं जीवित बंदरों और शुरुआती वानरों के समान थीं। लाखों वर्षों के विकासवादी परिवर्तन और प्राकृतिक चयन के कारण बाद की होमिनिन प्रजातियाँ अपने शुरुआती पूर्वजों की तुलना में दिखावट और व्यवहार में वानरों से काफी भिन्न थीं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3DMnqTd
https://bit.ly/3RBXbV7
https://bit.ly/3HEMqNc
चित्र संदर्भ
1. इंसानी पूर्वजों ग्रेट एप्स को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. चार्ल्स डार्विन को संदर्भित करता एक चित्रण (Max Pixel)
3. 2014 में जीवाश्म शोधकर्ताओं द्वारा उत्तरी केन्या में तुर्काना झील के पश्चिम में 13 मिलियन साल पुरानी कपि शिशु की खोपड़ी खोजी गई, जिसे इसके खोजकर्ताओं ने "अलेसी" (Alesi) उपनाम दिया। को संदर्भित करता एक चित्रण (Nature)
4. निर्माणाधीन मानव विकास चित्रमाला को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
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